किराया न्यायाधिकरण और अपीलीय किराया न्यायाधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियाँ – धारा 21 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001

Update: 2025-04-07 11:20 GMT
किराया न्यायाधिकरण और अपीलीय किराया न्यायाधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियाँ – धारा 21 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के अंतर्गत स्थापित Rent Tribunal (किराया न्यायाधिकरण) और Appellate Rent Tribunal (अपीलीय किराया न्यायाधिकरण) का कार्य केवल विवादों का निपटारा करना ही नहीं, बल्कि समयबद्ध और न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाकर पक्षकारों को राहत देना भी है। धारा 21 इन न्यायाधिकरणों की प्रक्रिया और शक्तियों (Procedure and Powers) को विस्तार से समझाती है।

1. गवाहों की गवाही केवल हलफनामे द्वारा (Witness Evidence through Affidavit)

धारा 21 की उपधारा (1) कहती है कि Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal में चल रहे हर मुकदमे में किसी भी गवाह (Witness) की गवाही केवल हलफनामा (Affidavit) के ज़रिए दी जाएगी। इसका मतलब है कि गवाह को न्यायाधिकरण के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर गवाही देने की आवश्यकता नहीं है।

हालांकि, अगर न्यायाधिकरण को यह लगे कि न्याय के हित (In the interest of Justice) में किसी गवाह को सामने बुलाना ज़रूरी है और वह गवाह उपस्थित हो सकता है, तो वह उस गवाह को उपस्थित होने का आदेश दे सकता है ताकि उसकी पूछताछ या जिरह (Examination or Cross-examination) की जा सके।

उदाहरण (Illustration): मान लीजिए कि मकान मालिक ने किसी व्यक्ति को किरायेदार के देर से भुगतान करने की बात के समर्थन में गवाह बनाया है। इस व्यक्ति की गवाही हलफनामे से दी जा सकती है। लेकिन अगर किरायेदार उस पर सवाल उठाना चाहता है, तो न्यायाधिकरण उसे समन (Summon) करके बुला सकता है।

2. दस्तावेज़ों की पहचान और अंकन (Marking and Referencing of Documents)

उपधारा (2) के अनुसार, जब पक्षकार (Parties) न्यायाधिकरण में दस्तावेज़ जमा करते हैं, तो उन्हें विशिष्ट तरीके से चिन्हित (Mark) करना अनिवार्य होता है।

मकान मालिक (Petitioner) द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों को Ex-1, Ex-2, Ex-3… के रूप में लाल स्याही (Red Ink) से चिन्हित किया जाएगा।

किरायेदार (Respondent) द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों को Ex-A1, Ex-A2, Ex-A3… के रूप में लाल स्याही से चिन्हित किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त, यदि किसी दस्तावेज़ के अंदर किसी विशेष हिस्से का हवाला (Reference) दिया गया है, तो उसे भी A से B या C से D के रूप में लाल स्याही से अंकित किया जाएगा।

उदाहरण: अगर मकान मालिक एक रसीद दिखा रहा है जिसमें किराया भुगतान की तारीख है, और उस तारीख का जिक्र हलफनामे में है, तो उस तारीख को 'A से B' के रूप में चिन्हित किया जाएगा।

3. प्रक्रिया का लचीलापन और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत (Procedure not bound by Civil Procedure Code but Guided by Natural Justice)

उपधारा (3) के अनुसार, Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal पर Code of Civil Procedure, 1908 (दीवानी प्रक्रिया संहिता) की बाध्यता नहीं होती। इसका मतलब यह है कि ये न्यायाधिकरण दीवानी न्यायालयों की कठोर प्रक्रिया का पालन नहीं करते।

बल्कि ये Natural Justice (नैसर्गिक न्याय) के सिद्धांतों से निर्देशित होते हैं और इस अधिनियम तथा नियमों (Rules) के अंतर्गत अपनी प्रक्रिया स्वयं निर्धारित कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, उन्हें दीवानी न्यायालय जैसी कुछ शक्तियाँ (Powers) भी प्राप्त होती हैं, जैसे कि:

• किसी व्यक्ति को समन भेजकर बुलाना और शपथ पर उसकी गवाही लेना (Summoning and Examining)

• दस्तावेज़ों की खोज और प्रस्तुत करने की माँग करना (Discovery and Production)

• अपने ही निर्णय की समीक्षा करना (Reviewing Own Decision)

• गवाहों या दस्तावेज़ों के परीक्षण के लिए आयोग नियुक्त करना (Issuing Commissions)

• अनुपस्थिति में याचिका खारिज करना या एकतरफा निर्णय देना (Dismissing for Default or Ex-Parte Order)

• खारिज या एकतरफा आदेश को हटाना (Setting Aside Order)

• कानूनी उत्तराधिकारी को शामिल करना (Bringing Legal Heirs on Record)

• और अन्य निर्धारित कार्य (Other Prescribed Matters)

उदाहरण: यदि किरायेदार न्यायाधिकरण में उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायाधिकरण याचिका को एकतरफा (Ex-Parte) रूप में निपटा सकता है। लेकिन यदि उचित कारण प्रस्तुत किया जाए, तो वह इस आदेश को रद्द भी कर सकता है।

4. स्थगन केवल लिखित में (No Adjournment Without Written Application)

उपधारा (4) के अनुसार, Rent Tribunal किसी भी सुनवाई को स्थगित (Adjourn) तभी करेगा जब इसके लिए लिखित आवेदन (Written Application) दिया जाए और न्यायाधिकरण इसके कारणों को लिखित में रिकॉर्ड करे।

इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि मामले अनावश्यक रूप से टाले न जाएं और न्याय प्रक्रिया में देरी न हो।

5. न्यायिक कार्यवाही का दर्जा (Proceedings Deemed Judicial)

उपधारा (5) कहती है कि Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal की कार्यवाहियों को Judicial Proceedings (न्यायिक कार्यवाही) माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति इन न्यायाधिकरणों के समक्ष झूठ बोलता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code) की धारा 193 (झूठी गवाही), 228 (न्यायालय की अवमानना), और 196 के तहत दंडित किया जा सकता है।

इसके अलावा, Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal को Code of Criminal Procedure, 1973 के धारा 195 और अध्याय XXVI के लिए Civil Court (दीवानी न्यायालय) माना जाएगा।

उदाहरण: यदि कोई पक्ष जानबूझकर झूठा हलफनामा देता है या दस्तावेज़ में हेराफेरी करता है, तो उस पर आपराधिक कार्यवाही की जा सकती है, ठीक उसी तरह जैसे दीवानी अदालत में किया जाता है।

धारा 21 का उद्देश्य Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal की प्रक्रिया को स्पष्ट, सरल, और न्यायोचित बनाना है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी पक्षों को न्याय मिले, बिना किसी अनावश्यक देरी या तकनीकी अड़चनों के। हलफनामों के माध्यम से गवाही, दस्तावेजों का स्पष्ट अंकन, लचीली प्रक्रिया, और दीवानी अदालत जैसी शक्तियाँ—इन सबका संयोजन न्याय प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और सुलभ बनाता है।

यह धारा विशेष रूप से इस अधिनियम की न्यायिक प्रकृति को रेखांकित करती है और यह बताती है कि किरायेदार और मकान मालिक दोनों को समान अवसर मिलते हैं कि वे अपने पक्ष को प्रभावी रूप से न्यायाधिकरण के समक्ष रख सकें।

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