The Indian Contract Act की धारा 128 प्रतिभूओं के दायित्वों से संव्यवहार करती है। इसके अनुसार Surety के दायित्व जब तक संविदा द्वारा अन्यथा उपबंधित न हो मुख्य ऋणी के दायित्व के सामान विस्तृत हैं। Surety मुख्य ऋणी के लिए उत्तरदायित्व लेता है तो वह मुख्य ऋणी के पूर्ण ऋण के लिए उत्तरदायी है।
धारा 128 में Surety के दायित्व को व्यापकता के सामान्य नियम का प्रतिपादन किया गया है। जब तक कि कोई विपरीत संविदा न हो Surety के दायित्व का विस्तार में मुख्य ऋणी के दायित्व के समान ही होता है लेकिन यदि संविदा करते समय Surety के दायित्व की सीमा को सुनिश्चित कर दिया जाता है तो ऐसे मामलों में उसका दायित्व सीमा से अधिक नहीं होगा चाहे मुख्य ऋणी का दायित्व कितना ही क्यों न हो।
रामकिशन बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश एआईआर 2012 एससी 2228 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि दायित्व मूल ऋणी के समय स्तरीय होता है। वह अपने विरुद्ध डिक्री के निष्पादन को इस आधार पर नहीं रोक सकता है कि वह पहले लेनदार द्वारा मूल ऋणी के विरुद्ध उपचार का प्रयोग कर लिया जाए।
बैंक ऑफ बड़ौदा बनाम भागवत नायक एआईआर 2005 मुंबई 224 के वाद में ग्यारंटी के करार के अंतर्गत प्रतिवादीगणों ने देय भुगतान करने का करार किया तथा बैंक को भी ग्यारंटी दी। प्रतिभूओं में से एक ऋण का भुगतान करने में असफल रहा तथा निर्माण के लिए जिस ट्रॉली के लिए ऋण लिया गया था उसे भी अन्य को दे दिया। बिना बैंक की सम्मति के ट्राली के लिए ऋण लिया गया। निर्णय हुआ कि अन्य सभी प्रतिवादी एवं मूल ऋणी संयुक्त तथा पृथक रूप से वादी बैंक के प्रति दायित्वधिन है।
नारायण सिंह बनाम छतर सिंह एआईआर 1973 राजस्थान 347 के वाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने यह अभिनिर्धारित किया है कि धारा 128 को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि Surety का उत्तरदायित्व मुख्य ऋणी के समान इस तरह होता है तथा यदि मुख्य ऋणी के उत्तरदायित्व को संशोधित कर दिया जाए या आंशिक या पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाए तो Surety का उत्तरदायित्व भी उसी प्रकार कम या समाप्त हो जाएगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा बिहार बनाम दामोदर प्रसाद एआईआर 996 एससी 297 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि Surety का उत्तरदायित्व तुरंत होता है तथा इसको तब तक के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता है जब तक कि ऋणदाता के मुख्य ऋणी के विरुद्ध सभी उपाय समाप्त नहीं हो जाते।
कल्पना बनाम कुण्टीरमन एआईआर 1975 मद्रास 174 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि Surety एक अवयस्क से प्रत्याभूति करता है तो वह उत्तरदायी नहीं होगा क्योंकि Suretyका उत्तरदायित्व मुख्य ऋणी के उत्तरदायित्व के सम विस्तीर्ण होता है परंतु यदि संविदा क्षतिपूर्ति की है तो वह उत्तरदायी हो सकेगा।
फेनर इंडिया लिमिटेड बनाम पंजाब एंड सिंध बैंक एआईआर 1997 एससी 3450 के मामले में बैंक द्वारा तीस लाख तक की अग्रिम राशि पर Surety उक्त राशि के लिए दायित्वाधिन था। बैंक ने बीस लाख रुपये दिए। ग्यारंटी देने वाले ने यह कहकर मुक्ति चाही कि उसने तीस लाख के लिए ग्यारंटी दी थी न कि बीस लाख के लिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि Surety एक पैसे से लेकर तीस लाख तक की ग्यारंटी के लिए उत्तरदायी होगा। सहमति धनराशि तक की सीमा तक कोई भी धनराशि यदि अग्रिम दी गई है तो वह वापस ली जा सकती है।