The Indian Contract Act में Bailment के Contract में Bailee जिम्मेदारी

Update: 2025-09-11 04:04 GMT

उपनिधान की संविदा के अंतर्गत Bailee और उपनिधाता के बीच संविदा होती है। किसी कार्य के प्रयोजन हेतु इस प्रकार की संविदा का निर्माण किया जाता है तथा उस कार्य के पूरा हो जाने के पश्चात संविदा के अंतर्गत दी गई वस्तु Bailee द्वारा वापस लौटा दी जाती है।

जैसे कि किसी साइकिल स्टैंड पर साइकिल रखने वाला उपनिधाता होता है तथा उस स्टैंड का मालिक Bailee होता है। जितने समय तक साइकिल को स्टैंड पर रखने की संविदा होती है उस समय के पूरा हो जाने के बाद साइकिल स्टैंड का मालिक साइकिल को उसके मूल मालिक को सौंप देता है। इस प्रकार की संविदा उपनिधान की संविदा होती है। आज व्यापारिक युग में अनेकों इस प्रकार की संविदा देखने को मिलती है। जो वस्तु का प्रदान करता है उसे उपनिधाता कहा जाता है तथा जिसे वस्तु प्रदान की जाती है वे Bailee कहलाता है। Bailee के कुछ कर्तव्य होते हैं जिनका पालन करने के लिए बाध्य होता है। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 151 के अंतर्गत Bailee के कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है जो अग्रलिखित है-

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 151 हालांकि स्पष्ट रूप से एक Bailee के कर्तव्यों का उल्लेख तो नहीं करती है परंतु इस धारा के अंतर्गत लगभग समस्त कर्तव्यों का उल्लेख कर भी दिया गया है। यह धारा Bailee द्वारा बरती जाने वाली सतर्कता के नाम से उल्लेखित की गई है। यह धारा उपनिधान की सभी दशाओं में Bailee द्वारा बरते जाने वाली सतर्कता पर बल देती है।

इसके अनुसार उपनिधान की सभी दशाओं में Bailee अबाध्य है कि वह अपने को उपनिहित माल के प्रति उसी प्रकार की और वैसी सतर्कता बरतें जैसे कि मामूली बुद्धि विवेक वाला मनुष्य समय एवं परिस्थितियों के अनुसार अपने ऐसे माल के प्रति बरतेगा जो उसी के किसी परिणाम,क्वालिटी और मूल्य का हो अर्थात इस धारा का विस्तार रूप Bailee द्वारा बरती जाने वाली सतर्कता अथवा सावधानी के प्रति है।

धारा 151 Bailee का युक्तियुक्त सावधानी के कर्तव्य का उपबंध करती है। Bailee का यह कर्तव्य है कि अपने हित माल के प्रति युक्तियुक्त सावधानी बरतें, उससे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह उसकी युक्तियुक्त रूप में देखभाल करें।

ब्राइस बनाम क्रिश्चियनिटी 1928 (44) एलआर 332 के प्रकरण में यह स्पष्ट कहा गया है कि यह धारा Bailee का युक्तियुक्त सावधानी के कर्तव्य का उपबंध करती है।

बांबे स्टीम नेवीगेशन कंपनी बनाम वासुदेव 1928 (52) बॉम्बे, बॉम्बे 37 के मामले में कोर्ट ने यह विचार व्यक्त किया कि उपनिधान से संबंधित प्रत्येक दशाओं में Bailee अबाध्य है कि वह अपने को उपनिहित माल के प्रति उसी प्रकार की सतर्कता बरतें जैसी मामूली प्रज्ञा वाला व्यक्ति वैसी ही परिस्थितियों में अपने ऐसे माल के प्रति बरतता है।

यह धारा वह मानक सुनिश्चित करती है जिसके अनुसार Bailee सामान्य कर्तव्य को धारित करता है। जिसका संबंध युक्तियुक्त सावधानी से है, वह उपनिधान की सभी दशाओं से आबद्ध है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह उपनिहित किए गए माल के प्रति वही सतर्कता बरतें जिस प्रकार मामूली प्रज्ञावान मनुष्य उक्त परिस्थितियों में उक्त सतर्कता से युक्त समझा जाता है किंतु वह सतर्कता उपनिहित माल के परिणाम, क्वालिटी और मूल्य में सार रखती हैं।

धारा 151 का अध्ययन करने से कुछ तथ्य निकल कर सामने आते हैं जिनको इस प्रकार रखा जा सकता है-

Bailee द्वारा युक्तियुक्त सावधानी बरती जानी चाहिए

उपनिधान की सभी दशाओं में वह आबद्ध है

उसकी सतर्कता सामान्य प्रज्ञा वाले व्यक्ति की भांति हो

युक्तियुक्त सावधानी परिस्थितियों के अनुरूप हो

वह सावधानी परिणाम के सापेक्ष हो

वह सावधानी क्वालिटी के संदर्भ में हो

इन तथ्यों पर यह कहा जा सकता है कि Bailee द्वारा युक्तियुक्त सावधानी बरतीं जानी चाहिए। यह सावधानी मामले की परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए। हर मामले में सिद्धांत लागू नहीं होता है जैसे कि यदि किसी स्कूटर को सुधारने के लिए मैकेनिक को सौंपा गया है तथा मैकेनिक ने स्कूटर को बगैर लॉक किए खुली सड़क पर पटक दिया तथा व स्कूटर चोरी हो गया कोई भी प्रज्ञा वान व्यक्ति अपने किसी स्कूटर को इस प्रकार खुली सड़क पर नहीं छोड़ेगा तो यहां पर प्रज्ञा का अर्थ इस बात से लगाया जा सकता है कि मैकेनिक अपने मालिकाना हक के स्कूटर के प्रति कैसी सतर्कता बरतता।

सरस्वती कुंवर बनाम बद्री प्रसाद 1916 (36) आईसी 31 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां प्रतिवादी ने धन बॉक्स के माध्यम से उपनिधान किया था जो कि बंद था वहां उक्त बंद बॉक्स के संदर्भ में धन की हानि के लिए प्रतिवादी को उत्तरदायीं नहीं ठहराया जा सकता।

जुगनी लाल कमलापति ऑयल मिल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 1976 (1) सीसी एआईआर 1976 एससी 227 के प्रकरण में कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी धोबी को अपने कपड़े आदि धुलने के उद्देश्य से देता है और धोबी से अपेक्षा करता है कि वह उसे सुरक्षित रखेगा यदि वह किसी भी प्रकार की लापरवाही का बर्ताव करता है तो ऐसी स्थिति में वह उक्त बर्ताव के लिए स्वयं उत्तरदायीं होगा।

सुंदरलाल बनाम रामस्वरूप एआईआर 1952 इलाहाबाद (205) के प्रकरण में कोई दुकान किराए पर ली गई थी जो लकड़ी की बनी थी। एक लिखित करार के अंतर्गत उक्त दुकान को उसी हालत में लौटने की भी प्रतिज्ञा शामिल थी। करार में यह भी उपबंध किया गया था कि दुकान को होने वाली क्षति के लिए किराए पर लेने वाला व्यक्ति उत्तरदायीं होगा। शहर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया और दंगा हो गया और इसके परिणामस्वरूप दंगाई भीड़ में उक्त दुकान में आग लगा दी जिससे वह दुकान जलकर नष्ट हो गई।

इस पर कोर्ट ने निर्णय दिया कि किराए पर लेने वाले की असावधानी के बिना दुकान को ऐसी घटनाओं के कारण क्षति हुई है जो उसके नियंत्रण में नहीं थी और इस लिए उपयुक्त प्रकार की क्षति के लिए प्रतिवादी दायीं नहीं था।

शांतिलाल बनाम ताराचंद्र एआईआर 1973 इलाहाबाद (158) के प्रकरण में गोदाम में खदान रखा हुआ था यह गोदाम Bailee के कब्जे में था। नगर में संभावित तरीके से प्रबल रूप में बाढ़ आ गई जिससे खदान में क्षति हुई। इस पर कोर्ट ने कहा कि Bailee इसके लिए उत्तरदायीं नहीं है।

Tags:    

Similar News