एक बार Divorce के बाद फिर से शादी करना

Update: 2025-06-11 11:46 GMT

शादी और तलाक जीवन का हिस्सा है। शादी संस्कार होने के साथ एक लीगल कॉन्सेप्ट भी है क्योंकि शादी के बाद लोग एक दूसरे की जिम्मेदारी से बंध जाते हैं। कई बार आपसी विवादों के चलते पति पत्नी में तलाक हो जाता है और शादी खत्म कर दी जाती है।

फिर जीवन में नई शुरुआत के साथ नई शादी की जाती है। जब कभी पति और पत्नी में विवाद होने पर तलाक लेने का मन बनाया जाता है तब उन्हें फैमिली कोर्ट से डिक्री लेना होती है। बड़े जिलों में फैमिली कोर्ट होता है और छोटी जगहों पर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ही फैमिली कोर्ट का काम करता है। फैमिली कोर्ट तलाक की डिक्री पारित करता है। तलाक लेने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 में कुछ आधार दिए गए हैं उन आधारों पर ही विवाह का कोई एक पक्ष कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर तलाक मांग सकता है।

जब कभी पक्षकारों द्वारा ऐसी तलाक मांगी जाती है तब उसका मुकदमा कोर्ट में चलता है तथा जो पक्षकार तलाक मांग रहा है उसे यह साबित करना होता है कि वह किस आधार पर तलाक मांग रहा है। उस आधार को साबित करना होता है जब तक वह आधार साबित नहीं होता है तब तक तलाक नहीं होती है। इसी के साथ इस अधिनियम की धारा 13 बी में म्यूच्यूअल डिवोर्स जैसी व्यवस्था भी दी गई है जिसमें पक्षकार आपसी रजामंदी से तलाक कर सकते हैं।

कोर्ट द्वारा जब तलाक की डिक्री दे दी जाती है तब सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि विवाह के पक्षकार ऐसी डिक्री मिलने के बाद कब और कैसे दूसरा विवाह संपन्न कर सकते हैं।

तलाक की डिक्री मिलने के बाद दूसरा विवाह कब किया जा सकता है इस बात की जानकारी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 में मिलती है। जहां साफ तौर पर कहा है कि अगर किसी भी डिक्री की अपील नहीं की जा सकती है तब दोनों पक्षकार अपनी अपनी मर्जी से कहीं भी पुनः शादी करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।

फैमिली कोर्ट द्वारा जब हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक दिया जाता है तब तलाक आपसी सहमति से होता है इसलिए यह माना जाता है कि अब पत्रकार किसी प्रकार की अपील नहीं चाहते हैं क्योंकि तलाक आपसी सहमति से हुआ है। इस स्थिति में डिक्री की अपील नहीं होती है और विवाह के दोनों पक्ष पति और पत्नी अपनी स्वतंत्रता से डिक्री मिलने के फौरन बाद कहीं भी शादी कर सकते हैं।

प्रश्न यह है कि अपील किए जाने की समय अवधि क्या होगी और किन मामलों में अपील की जा सकती है। फैमिली कोर्ट के किसी भी आदेश की अपील करने की अवधि 90 दिनों की होती है। इस समय अवधि के अंदर कोई भी असंतुष्ट पक्षकार हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। इस अपील को 90 दिनों के भीतर पेश किया जाता है, अगर अपील 90 दिनों से ज्यादा समय के बाद पेश की जा रही है तब अपील को खारिज कर दिया जाता है। वह कोर्ट यह कहती है कि यह अपील समय अवधि में पेश नहीं की गई है तब पति-पत्नी कहीं दूसरी जगह शादी करने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं क्योंकि हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया है। जब भी अपील खारिज हो जाती है तब फ़ौरन दूसरी शादी की जा सकती है।

जब फैमिली कोर्ट ने विवाह के किसी एक पक्षकार पति या पत्नी में से किसी एक को तलाक की डिक्री दे दी है और ऐसी डिक्री के निर्णय से असंतुष्ट होकर दूसरा पक्षकार हाईकोर्ट के समक्ष अपील करता है तब ऐसी अपील को स्वीकार कर लिया जाता है और सुनवाई के लिए अगली तारीख लगा दी जाती है। इस स्थिति में यह माना जाता है अभी अपील पेंडिंग है और अपील के निस्तारण तक विवाह का कोई भी पक्षकार दूसरा विवाह नहीं कर सकता और अगर फिर भी दूसरा विवाह किया जाता है तब हाईकोर्ट ऐसे विवाह को शून्य घोषित भी कर सकता है क्योंकि अपील के पेंडिंग रहते हुए दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता।

यह माना जाता है कि अगर अपील पेंडिंग है और दूसरा विवाह कर लिया गया जब तक अपील चल रही है तब तक तो दूसरा विवाह शून्य रहेगा पर अगर यह माना गया कि फैमिली कोर्ट का निर्णय ठीक था ऐसी स्थिति में जो विवाह अपील के पेंडिंग रहते किया गया है वह वैध विवाह हो जाएगा।

एक परिस्थिति ऐसी भी है जब अपील के पेंडिंग रहते हुए भी वैध रूप से विवाह किया जा सकता है पर ऐसा विवाह विवाह के दोनों पक्षकारों में आपसी सहमति से राजीनामा हो जाने के बाद ही किया जा सकता है। जैसे कि कोई पति और पत्नी के मध्य विवाद चल रहा था फैमिली कोर्ट ने दोनों में से किसी एक पक्षकार को तलाक दे दिया।

ऐसा तलाक मिलने के बाद दूसरे असंतुष्ट पक्षकार ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील कर दी, ऐसी अपील के पेंडिंग रहते तो दूसरी शादी नहीं की जा सकेगी पर इसी बीच अगर पति और पत्नी के मध्य कोई राजीनामा हो जाए दोनों अपने रास्ते अलग अलग कर ले तथा तलाक पर सहमत हो जाए तब हाईकोर्ट में एक राजीनामे की अर्जी पेश की जा सकती है और ऐसी अर्जी को पेश करने के फौरन बाद ही दूसरी शादी की जा सकती है।

यह सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक मामले में स्पष्ट किया है कि अर्जी देने के फौरन बाद दूसरी शादी की जा सकती है क्योंकि अब यहां पर हाईकोर्ट के पास इस मामले में कोई दूसरा आदेश करने जैसी स्थिति ही नहीं बचती है अर्थात हाईकोर्ट को अब केवल एक औपचारिक आदेश देना है जहां यह लिखना है कि राजीनामा हो जाने से अपील को विड्रॉल किया जा रहा है, इस स्थिति में अपील के पेंटिंग रहते हुए भी दूसरी शादी की जा सकती है।

इन सभी बातों में यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी दूसरी शादी अपील के होते हुए नहीं की जा सकती है अगर अपील नहीं की गई है तब दूसरी शादी की जा सकती है या फिर किसी निर्णय में अपील का अधिकार ही नहीं है तब दूसरी शादी की जा सकती है। पर जब तक दूसरे पक्षकार के पास अपील का अधिकार है तब तक दूसरी शादी अपील की समय अवधि के बाद ही की जा सकती है या अपील के निपटारे के बाद ही की जा सकती है।

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