राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 157 से 162 किराया निर्धारण संबंधी प्रावधान

Update: 2025-06-07 12:00 GMT

धारा 157 – किराए का निर्धारण (Assessment of Rents)

जब राज्य सरकार द्वारा किसी क्षेत्र में पुनः बंदोबस्त (re-settlement) की घोषणा की जाती है और किराया-दरें (rent-rates) सरकारी मंजूरी से निर्धारित हो जाती हैं, तो इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है — हर एक भूमि धारक की ज़मीन पर उचित किराया तय करना। यह जिम्मेदारी बंदोबस्त अधिकारी (Settlement Officer) की होती है।

बंदोबस्त अधिकारी यह देखता है कि कौन-कौन से ज़मींदार पहले से कितना किराया दे रहे हैं, वर्तमान किराया-दरों के हिसाब से अब कितना देना चाहिए और क्या किसी की ज़मीन का किराया घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इसका निर्धारण इस आधार पर किया जाता है कि क्या पुराने किराये को उसी रूप में रखा जाए, या उसमें कटौती (abatement), वृद्धि (enhancement) या किसी अन्य प्रकार का समायोजन (commutation) किया जाए।

उदाहरण: मान लीजिए, किसी किसान रामलाल की ज़मीन पर वह पहले 800 रुपये सालाना किराया दे रहा था। लेकिन अब नई किराया-दर के अनुसार उसकी ज़मीन की कीमत और पैदावार अधिक है। तो अधिकारी तय करेगा कि क्या उसे अब 1000 रुपये देना होगा या और कुछ छूट दी जा सकती है।

धारा 158 – मूल्यांकन से बाहर की ज़मीनें (Land to be Excluded from Assessment)

हर ज़मीन पर किराया नहीं लिया जाता। कुछ ज़मीनें ऐसी होती हैं जिनका उपयोग खेती के लिए नहीं होता या जिनका विशेष धार्मिक, सामाजिक या स्थायी उपयोग होता है। इन ज़मीनों को बंदोबस्त के दौरान किराया मूल्यांकन से बाहर रखा जाता है।

ऐसी ज़मीनों में निम्नलिखित शामिल होती हैं —

1. मकान और उससे जुड़ी ज़मीन (buildings with appurtenances)

2. स्थायी खलिहान (permanent threshing floors)

3. कब्रिस्तान, श्मशान और खेल के मैदान

4. स्थायी सड़कें और रास्ते

5. अनुपजाऊ या बंजर ज़मीन

उदाहरण: यदि किसी किसान की ज़मीन में से कुछ हिस्सा स्थायी रास्ता बन चुका है या उस पर उसका पक्का मकान बना हुआ है, तो उस हिस्से पर कोई किराया नहीं लगेगा।

धारा 159 – सुधारों के लिए रियायत (Allowance for Improvements)

अगर किसी किसान ने अपनी ज़मीन पर खुद के खर्चे से कोई सुधार (improvement) किया है — जैसे सिंचाई की व्यवस्था करना, कुआँ खुदवाना, मिट्टी सुधारना, आदि — तो राज्य यह मानता है कि उस सुधार का लाभ किसान को मिलना चाहिए।

इसलिए, जब तक वह सुधार 20 साल तक लाभदायक रहेगा, तब तक उस किसान से बढ़ा हुआ किराया नहीं लिया जाएगा। यानी कि वह सुधार किसान की मेहनत और निवेश का परिणाम है, इसलिए उसके कारण बढ़े हुए उत्पादन के आधार पर उसका किराया नहीं बढ़ाया जाएगा।

उदाहरण: एक किसान ने अपनी ज़मीन में पक्का ट्यूबवेल खुदवाया और सिंचाई की व्यवस्था कर दी जिससे पैदावार बढ़ गई। तो अगले 20 साल तक उस सुधार के कारण उसके किराये में कोई वृद्धि नहीं की जाएगी।

धारा 160 – वर्तमान किराया का विचार (Existing Rent to be Considered)

जब अधिकारी नई किराया दर के अनुसार किराया तय करता है, तो वह पहले से चल रहे किराये को भी ध्यान में रखता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि किसानों पर एकदम से अत्यधिक आर्थिक बोझ न आ जाए।

इसलिए यदि कोई किसान पहले 600 रुपये दे रहा था और नई दर से 1000 रुपये बन रहा है, तो अधिकारी बीच का संतुलन बना सकता है — यह देखते हुए कि ज़्यादा बढ़ोत्तरी किसान की वित्तीय स्थिति पर क्या प्रभाव डालेगी।

उदाहरण: अगर किसी किसान का मूल्यांकन 1200 रुपये बन रहा है लेकिन वह अभी 800 दे रहा है, तो अधिकारी देखेगा कि बढ़ा हुआ किराया तर्कसंगत और व्यवहारिक हो।

धारा 161 – किराया वृद्धि की सीमा (Limits of Enhancement)

राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि किसानों को अचानक बहुत ज्यादा आर्थिक दबाव न झेलना पड़े। इसलिए यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी किसान के वर्तमान किराये को एक बार में एक चौथाई (25%) से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता, भले ही उसकी ज़मीन की कीमत ज़्यादा हो गई हो।

साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि नया तय किराया कम से कम उसकी ज़मीन के मूल्यांकन का तीन चौथाई हिस्सा हो।

उदाहरण: यदि कोई किसान अभी 1000 रुपये सालाना दे रहा है और उसकी ज़मीन की नई कीमत 2000 रुपये है, तो उसका नया किराया एक बार में अधिकतम 1250 रुपये हो सकता है। और यदि मूल्यांकन के अनुसार 1500 रुपये किराया बनता है, तो वह 1250 से कम नहीं हो सकता।

धारा 162 – क्रमिक वृद्धि (Progressive Enhancement)

यदि किसी किसान का नया किराया पुराने किराये से एक चौथाई से अधिक हो और वह मूल्यांकन के तीन चौथाई से भी अधिक हो, तो ऐसी स्थिति में सरकार यह छूट देती है कि वह वृद्धि एकदम से लागू न की जाए।

ऐसे मामलों में बढ़ा हुआ किराया तीन साल तक की अवधि में किस्तों में धीरे-धीरे लागू किया जाएगा। यानी हर साल थोड़ा-थोड़ा करके किराया बढ़ाया जाएगा और तीसरे साल के बाद पूरा किराया देना होगा।

उदाहरण: अगर किसी किसान का किराया 1000 रुपये है और नया किराया 1600 रुपये तय किया गया है, तो यह वृद्धि बहुत अधिक मानी जाएगी। इस पर 3 साल में क्रमिक रूप से यह किराया लागू होगा — पहले साल 1200, दूसरे साल 1400, और तीसरे साल 1600 रुपये।

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 157 से 162 यह सुनिश्चित करती हैं कि ज़मीन के किराए का निर्धारण वैज्ञानिक, व्यवहारिक और न्यायपूर्ण तरीके से किया जाए। यह कानून किसानों के हितों की रक्षा करता है, विशेषकर तब जब नया मूल्यांकन उनकी ज़मीन की पैदावार, सुधार और बाजार दरों के आधार पर बढ़ता है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करता है कि किराया बढ़ोतरी एक सीमा में हो और किसी भी सुधार का लाभ किसान को मिले।

इन प्रावधानों के माध्यम से राज्य यह संतुलन स्थापित करता है कि राजस्व की प्राप्ति तो हो लेकिन किसानों पर अत्यधिक भार न डाला जाए। ये धाराएँ भूमि व्यवस्था में पारदर्शिता, स्थायित्व और न्याय को बढ़ावा देती हैं।

Tags:    

Similar News