
वाहक लिखत की दशा में अधिनियम की धाराएं 10, 78 एवं 82 (ग) लिखतों के संदाय के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है कि सभी मामलों में संदाय एक विधिसम्मत धारक को किया जाना चाहिए। यहाँ प्रश्न है कि वाहक की देय लिखत में किसे विधिसम्मत धारक माना जाय। ऐसी दशा में सही धारक वह है जिसने परिदान के द्वारा लिखत को प्राप्त किया है। वाहक को देय लिखत की दशा में यह निर्धारित करना कि किस धारक ने लिखत को परिदान द्वारा या अन्यथा रूप में प्राप्त किया है, कठिन है।
यदि यह दिखाने के लिए कुछ नहीं है कि वह संदाय पाने का हकदार नहीं है, वहाँ धारा 10 के अनुसार संदाय उस व्यक्ति को किया जाना चाहिए जो लिखत का कब्जाधारी है। इस प्रकार संदाय यहाँ तक कि किसी चोर को या पाने वाले व्यक्ति को यदि किया गया है तो लिखत उन्मुक्त हो जाएगा और ऐसा संदाय विधिसम्मत होगा। यदि परिस्थितियों से किसी विचारवान व्यक्ति को कोई सन्देह उत्पन्न न करे। यहाँ पर यह महत्वपूर्ण है कि सन्देहजनक परिस्थितियों में किसी व्यक्ति (चोर या पाने वाले) को किया गया भुगतान विधिसम्मत संदाय नहीं होगा।
लाला मला बनाम केशवदास में यह धारित किया गया है कि यदि चुराए गए लिखत (वाहक को देय) चुराने वाले या पाने वाले के द्वारा संदाय के लिए उपस्थापित की गई है तो उसे सद्भावी धारक समझकर सद्भावना पूर्वक किया गया संदाय विधिसम्मत होगा। चेक की दशा में भी ऐसा संदाय विधिसम्मत होगा।
भारतीय ट्रेडिंग कम्पनी बनाम इलाहाबाद बैंक में एक वाहक चैक जो एक कम्पनी को देय था, एक व्यकि उसे कम्पनी का तात्पर्पित प्रबन्धक के रूप में संदाय के लिए उपस्थापित किया एवं वहाँ पर परिस्थितियों से भिन्न सन्देह उत्पन्न नहीं होता था, बैंक ने संदाय कर दिया ऐसा संदाय सम्यक् अनुक्रम में मान्य किया गया जिससे भुगतानी बैंक अपनी आबद्धता से उन्मुक्त हो गया।
पॉल बनाम पॉल में यह धारित किया गया था कि संदाय लिखत के धारक को ही इसके किसी हितधारी को नहीं किया जाना चाहिए।
आदेशित देय लिखत- उक्त से स्पष्ट है कि वाहक लिखत की दशा में सही संदाय एक चोर या लिखत के पाने वाले को भी किया जा सकता है, बशर्ते कि सद्भाव पूर्वक संदाय होना चाहिए। परन्तु आदेशित देय लिखत का संदाय पाने वाला या पृष्ठांकिती जो धारक / सम्यक् अनुक्रम धारक है, को किया जाना चाहिये। ऐसा संदाय एक पृष्ठांकिती को इस विश्वास के साथ कि वह सही पृष्ठांकिती है और सद्भावपूर्वक बिना किसी उपेक्षा के किया गया है, विधिसम्मत होगा।
कूटरचित पृष्ठांकन जहाँ संदाय किसी लिखत के ऐसे व्यक्ति को किया गया है जिसका स्वत्व एक कूटरचित पृष्ठांकन से बनाया गया है, यह लिखत को उन्मुक्त नहीं बनाएगा, भुगतान करने वाला सही स्वामी के प्रति संदाय के लिए आबद्ध बना रहेगा। यहाँ तक कि पृष्ठांकन में कोई कूटरचना नहीं की गई है और लिखत किसी अनाधिकृत व्यक्ति के हाथ में है जो पृष्ठांकितो का व्यक्तित्व परिवर्तन (भेष बदकर) कर संदाय प्राप्त कर लेता है, भुगतान करने वाला अपनी आबद्धता से उन्मुक्त नहीं होगा।
एक बिल जान स्मिथ को आदेशानुसार पृष्ठांकित किया गया। एक अन्य व्यक्ति उसी नाम का इस बिल को प्राप्त कर लेता है और संदाय के लिए उपस्थापित करता है। प्रतिगृहीता उसे संदाय कर देता है। बिल का उन्मोचन नहीं हुआ।
प्रतिगृहीता वास्तविक जान स्मिथ के प्रति आबद्ध बना रहेगा यही सिद्धान्त इलाहाबाद बैंक बनाम कुलभूषण के मामले में अनुसरण किया गया जहाँ कूटरचित चेक का संदाय सम्यक् अनुक्रम में मान्य नहीं किया गया।
किसके द्वारा संदाय किया जाए- लिखत का भुगतान उसके किसी भी पक्षकार के द्वारा किया जा सकेगा और ऐसा व्यक्ति संदायोपरान्त उस धारक के अधिकार को प्राप्त कर लेता है जिससे उसने लिखत को प्राप्त किया था और ऐसे धारक का अधिकार इसके पूर्व सभी पक्षकारों को होगा।
कोई भी ऐसा व्यक्ति जो लिखत का पक्षकार नहीं है अर्थात् अजनबी व्यक्ति संदाय कर धारक का स्थान ग्रहण नहीं कर सकता है, परन्तु एक अजनबी व्यक्ति द्वारा जो लिखत प्रसाक्ष्याधीन एवं विनिमय पत्र या वचन पत्र के किसी पक्षकार के आदरणार्थ, किया गया संदाय मान्य होगा। एक अजनबी द्वारा संदाय विधिमान्य संतुष्टि होगा, यदि यह प्रतिगृहीता के खाते में और प्रतिगृहीता इसे वर्तमान में मानता है या पश्चात्वर्ती इसे ग्रहण करता है।