लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 4: अधिनियम में लैंगिक हमला किसे कहा गया है
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) धारा 3 इस अधिनियम की सार्वधिक महत्वपूर्ण धाराओं में से है। इस धारा में लैंगिक हमले को परिभाषित किया गया है। लैंगिक हमला बलात्कार का ही एक वृहद रूप है। बलात्कार में सहमति का प्रश्न होता है लेकिन इस अधिनियम के अंतर्गत सहमति पर कोई प्रश्न नहीं है, दूसरा बलात्कार केवल स्त्री के साथ घट सकता है लेकिन लैंगिक हमला किसी भी बालक के साथ हो सकता है। इस आलेख में लैंगिक हमला पर चर्चा की जा रही है।
यह अधिनियम की धारा 3 में प्रस्तुत की गई परिभाषा है
धारा 3
लैंगिक हमला कोई व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला करता है यदि वह-
(क) अपना लिंग, किसी भी सीमा तक किसी बालक की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, या
(ख) किसी वस्तु या शरीर के किसी ऐसे भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी सीमा तक बालक की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में घुसेड़ता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, या
(ग) बालक के शरीर के किसी भाग के साथ ऐसा अभिचालन करता है जिससे कि वह बालक की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में या बालक के शरीर के किसी भाग में प्रवेश कर सके या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, या
(घ) बालक के लिंग योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर मुंह लगाता है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ बालक से ऐसा करवाता है।
लड़की के साथ लैंगिक हमला का सबूत
निम टशेरिंग लेपचा बनाम सिक्किम राज्य, 2017 क्रिलॉज 3168 (सिक्किम) के मामले में पीडिता लड़की ने अपने गुप्तांग के क्षेत्र में दर्द महसूस करने पर घटना के कुछ दिन पश्चात अपने संरक्षक से संपूर्ण घटना का प्रकथन किया था। घटना के सात दिन पश्चात् पीड़िता की विलम्बित जांच के बावजूद उसके गुप्तांग पर लालिमा तथा सूजन के सम्बन्धित डॉक्टर का निष्कर्ष बलपूर्वक प्रवेशन का सुझाव देता था। उसके अन्तः वस्त्रों में मात्र शुक्राणु की अनुपस्थिति अभियोजन मामले को नामंजूर नहीं कर सकती है, न तो उसके जननांग पर घोर क्षतियों का अभाव अभियोजन मामले के लिए घातक होगा, क्योंकि उसका साक्ष्य संगत और स्थिर है इसलिए अभियुक्त को दोषिसिद्धि उचित अभिनिर्धारित की गयी।
प्रवेशन की परिभाषा
प्रवेशन को बेधने अथवा प्रवेश करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। विधि चिकित्साय शास्त्री ग्लिस्टर ने यह राय दी है कि जब महिला के जननांग में पुरुष जननाग के द्वारा वास्तविक रूप में प्रवेश किया गया हो, तो इसे प्रवेशन कहा जाना चाहिए। वीर्य का स्खलन प्रवेशन गठित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है।
संक्षिप्त आक्सफोर्ड शब्दकोश में, शब्द "प्रवेशन का तात्पर्य में अथवा उसके माध्यम से पहुंच प्राप्त करना, उसके माध्यम से जाना है। जब पुरुष जननांग को एक साथ और कड़ी की गयी जांघ के बीच में डाला जाता है, तो क्या कोई प्रवेशन नहीं हुआ है। शब्द "डालने का तात्पर्य रखना, बैठाना, दाबना है। इसलिए यदि पुरुष जननाग को जांघों के बीच में डाला" अथवा "दाबा" जाता है, तो अनैतिक अपराध गठित करने के लिए प्रवेशन होता है
योनि अथवा अन्य शरीर के छिद्र में लिंग अथवा शरीर के किसी अन्य भाग अथवा बाह्य वस्तु का प्रवेश करना, यह लैंगिक अपराध को परिभाषित करते हुए संविधियों में आजकल प्रयुक्त सामान्य अर्थ है किसी चीज जिसके विरुद्ध प्रक्षेपक को दागा गया हो में गोली अथवा अन्य प्रक्षेपक के द्वारा पहुंची गयी गहराई शरीर अथवा वस्तु में अथवा उससे होकर किसी चीज के बेधने अथवा जाने का कृत्य है।
बलात्संग प्रवेशन की गहराई अतात्विक
उच्चतम न्यायालय का यह संगत विचार रहा है कि हल्का-सा प्रवेशन भी बलात्संग का अपराध बनाने के लिए पर्याप्त होता है और प्रवेशन की गहराई अतात्विक होती है। इस संदर्भ में मोदी के चिकित्सा विधिशास्त्र और विष विज्ञान (बाइसवां संस्करण), पृष्ठ 495 को उद्धृत करना उपयुक्त है, जो इस प्रकार से पठित है :
"इस प्रकार, बलात्संग का अपराध गठित करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वीर्य के स्खलन और योनिच्छद के फटने के साथ लिंग का पूर्ण प्रवेशन होना चाहिए। वीर्य के स्खलन सहित अथवा रहित वृहत् भगोष्ठ, भग अथवा बाह्य जननांग के भीतर लिंग का आंशिक प्रवेशन अथवा प्रवेशन का प्रयत्न भी विधि के प्रयोजन के लिए बिल्कुल पर्याप्त होता है। इसलिए जननांग को कोई क्षति कारित किये बिना अथवा कोई वीर्य का धब्बा छोड़े बिना बलात्संग का अपराध विधितः कारित करना बिल्कुल संभाव्य होता है।
ऐसी स्थिति में चिकित्सा अधिकारी को अपनी रिपोर्ट में नकारात्मक तथ्यों का उल्लेख करना चाहिए, परन्तु अपनी यह राय नहीं देनी चाहिए कि कोई बलात्संग कारित नहीं किया गया था। बलात्संग अपराध है, न कि चिकित्सीय दशा है।
बलात्संग एक विधिक पद, न कि पीड़िता का उपचार करने वाले चिकित्सक के द्वारा किया जाने वाला रोग निदान है। केवल कथन, जो चिकित्सा अधिकारी के द्वारा किया जा सकता है, यह प्रभाव है कि क्या हाल में लैंगिक क्रियाकलाप का साक्ष्य है। क्या बलात्संग घटित हुआ था अथवा नहीं, विधिक, न कि चिकित्सीय निष्कर्ष है।
क्या आंशिक प्रवेशन बलात्संग की कोटि में आता है का प्रश्न भंग के अन्दर लिंग का आंशिक प्रवेशन विधित बलात्संग होता है। जननाग को कोई क्षति का कोई चिन्ह नहीं हो सकता है, कोई वीर्य का धब्बा नहीं हो सकता है और योचिच्छद का कोई फटाव नहीं हो सकता है। ऐसे मामलों में चिकित्सा अधिकारी को रिपोर्ट अभिलिखित करने में बहुत सतक होना चाहिए।
यह कथन करना संभाव्य नहीं है कि कोई बलात्संग कारित नहीं किया गया है। किसी व्यक्ति को केवल यह उल्लेख करना चाहिए कि जांच के दौरान क्या देखा अथवा संप्रेक्षण किया गया है। जननांग से भिन्न महिला के शरीर पर किसी अन्य स्थान पर स्थित किसी क्षति का भी उल्लेख विस्तारपूर्वक तथा स्पष्ट रूप ने करना चाहिए। ऐसी क्षतिया संघर्ष और प्रतिरोध का अतिरिक्त सबूत प्रस्तुत करती हैं और यह कि यह पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध तथा उसकी सम्मति के बिना भी था।
आंशिक प्रवेशन बलात्संग की कोटि में आता है
मदन गोपाल कक्कड़ बनाम नवल दूबे एवं एक अन्य 1992 (3) जे टी 270 (1992) 3 एससीसी 204 के मामले में निर्धारित किया गया है कि चिकित्सीय निष्कर्ष के आधार पर वृहत भगोष्ठ अथवा भग अथवा बाह्य जननांग के भीतर आंशिक प्रवेशन हुआ था. जो विधिक अर्थ में बलात्संग कारित करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए अभियुक्त को बलात्संग के अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया था।
बलात्संग का अपराध गठित करने के लिए लिंग का आंशिक प्रवेशन अथवा प्रवेशन का प्रयत्न भी पर्याप्त है।
बलात्संग का अपराध कारित किये जाने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि पूर्ण प्रवेशन होना चाहिए। वीर्य के स्खलन सहित अथवा रहित बृहत् भगोष्ठ, मग अथवा बाह्य जननांग के भीतर लिंग का आंशिक प्रवेशन विधि में बिल्कुल पर्याप्त है। परन्तु यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भग में प्रवेशन को साबित किया जाना चाहिए।
यदि महिला यह कहती है कि उसके साथ बलपूर्वक बलात्सग कारित किया गया था, तो कथन यह कथन करने की कोटि में आता है कि प्रवेशन हुआ था।
हल्का प्रवेशन हल्का प्रवेशन विधि में बलात्संग कारित करने के लिए पर्याप्त था। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन कथन का प्रयोग केवल ऐसे कथन करने वाले व्यक्ति का खण्डन करने के प्रयोजन के लिए किया जा सकता है। यह मानना भी कि अभियोक्त्री ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन अपनी परीक्षा के दौरान यह प्रकट नहीं किया था कि उसके साथ तीन मास तक बलात्संग कारित किया गया था। यह उसके द्वारा किये गये किसी कथन को खण्डित नहीं करेगा।
अभियुक्त के पुरुष जननांग पर क्षतियों का अभाव के साथ ही साथ अभियोक्त्री पर किसी दीर्घ क्षति का अभाव इस तथ्य का निश्चायक नहीं था कि प्रवेशन नहीं हुआ था।
बलात्संग के आपराधिक लक्षण
इस अपराध के आपराधिक लक्षण को निर्धारित करने में निम्नलिखित प्रारूपिक स्थितियों, जहाँ पर बलात्संग अधिकांशत होता है, को सुभेदित करना महत्वपूर्ण होता है-
(1) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पार्टी, विवाह के स्वागत, आदि में रहते समय बलात्संग कारित करने के आशय से उसे फुसलाने अथवा उस स्थल से पृथक करने के लिए पीड़िता के विश्वास का और अधिकांशत मदमत्त स्थिति का लाभ लेता है,
(2) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पीड़िता से सार्वजनिक स्थान (रेस्तरां में या बीच आदि पर) मिलता है, और धोखा के माध्यम से उसे एकान्त स्थान पर ले जाता है, जहाँ पर बलात्संग कारित किया जाता है।
(3) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पीड़िता से यान (कार, मोटरबोट) के पहिए के पीछे मिलता है और उसे या तो उस पर चढ़ने या उसे दिये गये गन्तव्य स्थान तक ले जाने का प्रस्ताव करता है। रास्ते में बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ बलात्संग कारित करने के आशय से उसे एकान्त स्थान पर ले जाता है।
(4) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पीड़िता से संयोगवश एकान्त स्थान (वन, पान) में मिलता है और उस पर एकाएक आक्रमण कर देता है।
(5) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति पीड़िता से रास्ते में पहले से ही मिलता है और गुप्त रूप में उसके पीछे-पीछे एकान्त स्थान तक जाता है. उस पर एकाएक आक्रमण कर देता है।
(6) बलात्संग कारित करने वाला व्यक्ति अवयस्क से या तो संयोगवश मिलता है या साशय उसका पीछा करता है (यह अधिकांशतः प्रागढ़ में, दिन के देखभाल केन्द्र के नजदीक तथा स्कूल के भवन में होता है) और धोखा के माध्यम से उसे एकान्त स्थान में ले जाता है तथा उसके साथ बलात्संग कारित करता है।
लैंगिक व्यवहार मानव के लैंगिक व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए डोनाल्ड टैपट ने यह संप्रेक्षण किया है कि कामुकता के जीवविज्ञानीय घटना होने के कारण कोई विनिर्दिष्ट प्रशिक्षण आवश्यक नहीं है। मानव के विकास के साथ जैव-शारीरिकीय परिवर्तन पुरुष और स्त्री को लैंगिक व्यवहार के लिए स्वतः तैयार करते हैं।
जहाँ तक सन्तानोत्पत्ति को नियंत्रित करने के लिए बाह्य चिकित्सीय उपकरणों की निरर्थकता का सम्बन्ध है, उसने यह संप्रेक्षण किया है कि गर्भनिरोधक की जानकारी अनावश्यक है, क्योंकि वह अनैतिक व्यवहार के भय को समाप्त कर देगा और लोग संभाव्य गर्भधारण अथवा जन्म के बिना चतुराई से मैथुन अपचारिता में लिप्त होने के लिए स्वतंत्र हो जायेंगे।
लेकिन, यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि वर्तमान नैतिक भ्रम तथा धार्मिक मंजूरियों के समाप्त होने वाले प्रभाव ने मैथुन अपचारिता में अप्रत्याशित वृद्धि किया है। मैथुन के अपराध आजकल इतने सामान्य हो गये है कि लोग उनके बारे में सभी गंभीरता खो दिये हैं और वे मानव व्यवहार के सामान्य ढंग के रूप में दिख रहे हैं।
चरित्र के ऐसे लक्षण जो बलात्संग को आमंत्रित कर सकते हैं-
पीडिता की चरित्र की रुपरेखा उन चरित्र के लक्षणों, जो बलात्संग को आमंत्रित कर सकते हैं. को साबित करने में महत्त्वपूर्ण होती है। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अत्यधिक विश्वस्तता, अन्तर्निहित अप्रज्ञा अथवा लापरवाही और कतिपय मामलों में, कुछ पीड़िताओं का तुच्छ अथवा नैतिक व्यवहार भी होता है, जो कतिपय परिस्थितियों के अधीन ऐसी स्थिति में न आने के लिए प्रत्येक संभाव्य अवसर प्रदान किया था, जो बलात्संग (जो मदिरा, आदि के प्रयोग से प्रेरित न हो) को अग्रसर कर सकता है।
अवयस्क के साथ बलात्संग और पर लैंगिक हमला
इस प्रश्न पर विकास यशवन्त मडावी बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2021 सीआरएलजे 2872 अभियुक्त खेलने के बहाने पीड़िता को अपने शयन कक्ष में ले गया था और अभिकथित ढंग से पीड़िता पर लैंगिक हमला किया था। पीड़िता की माता के परिसाक्ष्य की अभिपुष्टि पीड़िता की चचेरी बहन द्वारा की गयी थी, जिसने अधिकथित किया था कि उसने अभियुक्त को पीड़िता को कपड़ा पहनाते हुए देखा था। पीड़िता की माता और पीड़िता की चचेरी बहन के अभिसाक्ष्य की भी अभिपुष्टि चिकित्सीय साक्ष्य द्वारा की गयी थी।
पीड़िता की अवयस्क आयु के कारण अपरीक्षा अभियोजन मामले पर अविश्वास करने के लिए आधार नहीं है। इसके अतिरिक्त कोई सत्याभाषी स्पष्टीकरण नहीं था कि क्यों अभियुक्त को मिथ्या ढंग से आलिप्त किया जायेगा क्योंकि पीड़िता नियमित रूप से अभियुक्त के घर आया-जाया करती थी। कोई ऐसी प्रतिरक्षा साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के समय नहीं उठायी गयी थी। इस प्रकार भार का निर्वहन करने के लिए अभियुक्त की असफलता उस पर अधिरोपित की गयी है। इसलिए अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित निर्णीत की गयी थी।
पीड़िता की माता (अभियोजन साक्षी 1) के साक्ष्य की सम्यक् रूप से अभिपुष्टि पीड़िता की चचेरी बहन (अभियोजन साक्षी 5) द्वारा की गयी है अभियोजन साक्षी 5 का साक्ष्य दर्शित करता है कि अपीलार्थी अपनी चचेरी बहन (पीडिता) को अपने शयन कक्ष में ले गया था। उसने अधिकथित किया है कि उसने अपीलार्थी को उसकी चचेरी बहन का नेकर पहनाते हुए देखा था और इसके पश्चात् अपीलार्थी उनके लिए आईस क्रीम लाया था।
अभियोजन साक्षी 5 के साक्ष्य का परिशीलन करने के पश्चात्, उसके परिसाक्ष्य पर अविश्वास करने के लिए उसकी प्रतिपरीक्षा में कोई चीज नहीं है। दोनों साक्षियों अर्थात् अभियोजन साक्षी 1 और अभियोजन साक्षी 5 के साक्ष्य की सम्यक् रूप से अभिपुष्टि चिकित्सा अधिकारी द्वारा की गयी है, जिसने अधिकथित किया है कि अभिलिखित इतिहास लैंगिक हमला की सम्भाव्यता को दर्शित करता है।
कोई सत्याभाषी कारण अभिलेख पर या तो अभियोजन साक्षी 1 कमोवेश अभियोजन साक्षी 5 (आयु 5 वर्ष) के लिए अपीलार्थी को मिथ्या ढंग से आलिप्त करने के लिए नहीं आया है क्योंकि अभिलेख पर साक्ष्य से, अभियोजन साक्षी 1 और अपीलार्थी के बीच सम्बन्ध हार्दिक होना प्रतीत होता है और यह भी स्पष्ट है कि लड़की अपीलार्थीगण के घर में खेलने के लिए जायेगी। एफआईआर तत्परता से अभियोजन साक्षी 1 द्वारा अगले दिन दाखिल की गयी थी। इस प्रकार, अभिलेख पर साक्ष्य स्पष्ट रूप से दर्शित करता है कि अभियोजन ने अपीलार्थी के विरुद्ध युक्तियुक्त सन्देह के परे अपने मामले को साबित किया है।