रसीद जारी करने से इनकार करने और स्टाम्प शुल्क बचाने के लिए की गई चालाकी पर दंड : भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 धारा 65, 66 और 67

भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) एक महत्वपूर्ण कानून है, जो विभिन्न वित्तीय (Financial) और कानूनी (Legal) लेन-देन पर स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty) लगाने और उसके भुगतान को सुनिश्चित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी आवश्यक दस्तावेज (Documents) विधिवत (Properly) रूप से स्टाम्प किए जाएं ताकि सरकार को राजस्व (Revenue) का नुकसान न हो।
इस अधिनियम के तहत कई दंडात्मक प्रावधान (Penal Provisions) दिए गए हैं, ताकि कोई भी व्यक्ति नियमों का उल्लंघन न करे और स्टाम्प शुल्क की चोरी न हो।
धारा 65, 66 और 67 विशेष रूप से कुछ विशिष्ट अपराधों (Specific Offenses) से संबंधित हैं, जैसे कि रसीद (Receipt) जारी न करना, बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) पर उचित स्टाम्प न लगाना, और अधूरे बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange) या समुद्री बीमा पॉलिसी (Marine Insurance Policy) जारी करना।
यह लेख इन तीनों धाराओं को सरल हिंदी में विस्तार से समझाएगा, जिसमें उनके उद्देश्य, दंड और व्यावहारिक प्रभाव (Practical Implications) शामिल होंगे।
धारा 65: रसीद जारी करने से इनकार करने और स्टाम्प शुल्क बचाने के लिए की गई चालाकी पर दंड
रसीद (Receipt) एक लिखित प्रमाण होता है, जिससे यह साबित होता है कि किसी व्यक्ति ने पैसा प्राप्त किया है या कोई संपत्ति (Property) दी गई है। धारा 30 के अनुसार, यदि कोई भुगतान ₹20 से अधिक किया जाता है, तो एक उचित स्टाम्प वाली रसीद देना अनिवार्य है।
धारा 65 के तहत अपराध (Offenses Under Section 65)
इस धारा के तहत दो प्रमुख अपराध शामिल हैं:
1. रसीद जारी करने से इनकार करना या अनदेखी करना
यदि कोई व्यक्ति धारा 30 के तहत रसीद जारी करने के लिए बाध्य (Obligated) है, लेकिन वह इसे देने से इनकार कर देता है या जानबूझकर अनदेखी करता है, तो यह कानून का उल्लंघन होगा।
2. गलत रसीद जारी करना या स्टाम्प शुल्क से बचने की कोशिश करना
यदि कोई व्यक्ति स्टाम्प शुल्क से बचने (Evade Stamp Duty) के इरादे से, ₹20 या उससे कम की झूठी रसीद जारी करता है, जबकि असल में राशि इससे अधिक होती है, तो यह अपराध माना जाएगा। इसी तरह, अगर कोई व्यक्ति भुगतान को छोटे-छोटे भागों में बांटकर रसीद जारी करता है ताकि स्टाम्प शुल्क न लगे, तो उसे भी दंड मिलेगा।
धारा 65 के तहत दंड (Penalty Under Section 65)
इस धारा के उल्लंघन पर ₹100 तक का जुर्माना (Fine) लगाया जा सकता है। हालांकि यह राशि छोटी लग सकती है, लेकिन यह लोगों को अनियमितताओं से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए रमेश, जो एक व्यापारी (Businessman) है, सुरेश से ₹5,000 प्राप्त करता है, लेकिन स्टाम्प शुल्क से बचने के लिए केवल ₹20 की रसीद जारी करता है। या फिर वह भुगतान को 250 अलग-अलग रसीदों में बांट देता है, जिससे वह स्टाम्प शुल्क बचा सके। ऐसे मामलों में रमेश पर धारा 65 के तहत जुर्माना लगाया जाएगा।
धारा 66: बीमा पॉलिसी पर स्टाम्प शुल्क न लगाने या बिना स्टाम्प की पॉलिसी जारी करने पर दंड
बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) एक संविदात्मक (Contractual) दस्तावेज होता है, जो बीमाकर्ता (Insurer) और पॉलिसी धारक (Policyholder) के बीच अनुबंध (Contract) को प्रमाणित करता है। इस पर उचित स्टाम्प शुल्क लगाना आवश्यक है, ताकि यह वैध (Valid) और न्यायालय में मान्य (Legally Enforceable) हो।
धारा 66 के तहत अपराध (Offenses Under Section 66)
1. एक महीने के भीतर उचित स्टाम्प वाली बीमा पॉलिसी जारी न करना
यदि कोई बीमा कंपनी (Insurance Company) बीमा प्रीमियम (Premium) प्राप्त करने के बाद एक महीने के भीतर एक उचित स्टाम्प वाली पॉलिसी जारी नहीं करती है, तो यह अपराध माना जाएगा।
2. बिना स्टाम्प के बीमा पॉलिसी जारी करना
यदि कोई व्यक्ति बिना उचित स्टाम्प शुल्क के बीमा पॉलिसी बनाता, जारी करता या वितरित (Deliver) करता है, तो यह अधिनियम का उल्लंघन होगा।
3. बिना स्टाम्प की पॉलिसी पर भुगतान करना या स्वीकार करना
यदि कोई बीमा कंपनी बिना स्टाम्प की बीमा पॉलिसी पर भुगतान करती है या स्वीकार करती है, तो यह भी अपराध की श्रेणी में आएगा।
धारा 66 के तहत दंड (Penalty Under Section 66)
इस धारा का उल्लंघन करने पर ₹200 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए XYZ इंश्योरेंस कंपनी ने रवि से बीमा प्रीमियम प्राप्त कर लिया, लेकिन एक महीने के भीतर उसे स्टाम्प वाली बीमा पॉलिसी नहीं दी। या फिर कंपनी ने एक बिना स्टाम्प की पॉलिसी जारी कर दी और बाद में उस पर दावा (Claim) का भुगतान किया। इस स्थिति में, कंपनी पर धारा 66 के तहत जुर्माना लगाया जाएगा।
धारा 67: अधूरे बिल ऑफ एक्सचेंज या समुद्री बीमा पॉलिसी जारी करने पर दंड
बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange) और समुद्री बीमा पॉलिसी (Marine Insurance Policy) कई बार एक से अधिक सेट (Set) में जारी की जाती हैं, खासकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade) में। प्रत्येक दस्तावेज को उचित स्टाम्प शुल्क के साथ जारी किया जाना आवश्यक होता है।
धारा 67 के तहत अपराध (Offenses Under Section 67)
1. अधूरा बिल ऑफ एक्सचेंज जारी करना
यदि कोई व्यक्ति बिल ऑफ एक्सचेंज जारी करता है, लेकिन उसे पूरी तरह से स्टाम्प नहीं करता या पूरा सेट नहीं बनाता, तो यह अपराध होगा।
2. अधूरी समुद्री बीमा पॉलिसी जारी करना
समुद्री व्यापार (Marine Trade) में बीमा पॉलिसी अक्सर दो या अधिक प्रतियों (Copies) में जारी की जाती हैं। यदि कोई व्यक्ति सभी प्रतियों पर स्टाम्प नहीं लगाता, तो यह कानून का उल्लंघन होगा।
धारा 67 के तहत दंड (Penalty Under Section 67)
इस धारा के उल्लंघन पर ₹1,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह अन्य दो धाराओं से अधिक गंभीर दंड है, क्योंकि अधूरे दस्तावेजों से व्यापार में धोखाधड़ी (Fraud) और कानूनी विवाद (Legal Disputes) हो सकते हैं।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए अमित, जो एक निर्यातक (Exporter) है, एक समुद्री बीमा पॉलिसी दो सेटों में जारी करता है, लेकिन केवल एक पर स्टाम्प शुल्क लगाता है। बाद में जब जहाज को नुकसान होता है, तो बीमा कंपनी दावा नकार देती है। ऐसे मामलों में, अमित पर धारा 67 के तहत जुर्माना लगाया जाएगा।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 65, 66 और 67 महत्वपूर्ण प्रावधान हैं, जो वित्तीय दस्तावेजों की वैधता (Legitimacy) और पारदर्शिता (Transparency) को बनाए रखने में मदद करते हैं।
धारा 65 रसीदों पर, धारा 66 बीमा पॉलिसियों पर और धारा 67 अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन पर लागू होती है। इन नियमों का पालन करना न केवल कानूनी रूप से अनिवार्य (Legally Mandatory) है, बल्कि वित्तीय सुरक्षा (Financial Security) और विश्वसनीयता (Credibility) के लिए भी आवश्यक है।