भाग 1: आरोपों को किस तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उनके कानूनी आवश्यकताएँ क्या हैं? धारा 234, BNSS, 2023

Update: 2024-10-24 12:15 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) को बदल दिया है और कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। इस संहिता का एक महत्वपूर्ण अध्याय अध्याय 18 (Chapter XVIII) है, जो न्यायालय में आरोप (Charges) दर्ज करने की प्रक्रिया और उसके रूप को समझाता है।

आरोप का विचार आपराधिक प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाता है, क्योंकि यह उस आरोप को परिभाषित करता है जो आरोपी पर लगाया गया है और जो अपराध वह करने का आरोपित है।

इस लेख में, हम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत धारा 234 (Section 234) में आरोपों के रूप को लेकर किए गए प्रावधानों की व्याख्या करेंगे। साथ ही हम यह भी समझेंगे कि आरोपों को किस तरह से तैयार किया जाना चाहिए, उनके कानूनी आवश्यकताएँ क्या हैं, और इन आरोपों का आरोपी पर क्या प्रभाव पड़ता है।

आरोप क्या है? (What is a Charge?) आरोप एक औपचारिक (Formal) आरोप है जो किसी व्यक्ति पर लगाया जाता है, जिसमें उस पर किसी विशेष अपराध करने का आरोप लगाया जाता है। यह आरोपी को उस अपराध की जानकारी देने का काम करता है जिसके लिए उसे अभियुक्त बनाया जा रहा है, ताकि वह अपनी रक्षा (Defence) के लिए पूरी तैयारी कर सके। आपराधिक कानून (Criminal Law) में आरोप ही वह नींव है जिस पर मुकदमा चलता है, इसलिए यह न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

धारा 234(1) के तहत आरोप की संरचना (Structure of a Charge under Section 234(1)) धारा 234(1) के अनुसार, हर आरोप में उस अपराध का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जिसके लिए आरोपी को आरोपित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य आरोप को स्पष्ट और निश्चित रूप से प्रस्तुत करना है, ताकि आरोपी को पूरी तरह से पता हो कि उस पर किस अपराध का आरोप लगाया गया है।

यह प्रावधान (Provision) इस बात पर जोर देता है कि आरोप अस्पष्ट या उलझाऊ नहीं होना चाहिए; इसे स्पष्ट रूप से उस अपराध का उल्लेख करना चाहिए जिसके लिए आरोपी का परीक्षण हो रहा है। यह आरोपी और अदालत दोनों को एक स्पष्ट दिशा देता है, जिससे निष्पक्ष और न्यायसंगत (Fair and Just) मुकदमे की प्रक्रिया संभव होती है।

धारा 234(2) के तहत अपराध का नामकरण (Naming the Offence under Section 234(2)) अगर अपराध का कोई विशेष नाम है, जो उस कानून में बताया गया है जो इसे बनाता है, तो धारा 234(2) के अनुसार उस नाम का उल्लेख (Mention) करके ही आरोप लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, हत्या, चोरी या धोखाधड़ी जैसे अपराधों के विशिष्ट नाम होते हैं जो भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita), 2023 के तहत आते हैं। ऐसे मामलों में, आरोप में बस उस अपराध का नाम लिखना पर्याप्त होगा।

यह प्रक्रिया को सरल बनाता है, क्योंकि अपराध के कानूनी नाम में पहले से ही एक स्पष्ट अर्थ निहित होता है। हालांकि, अगर किसी अपराध का कोई विशेष कानूनी नाम नहीं है, तो आरोप में अधिक विवरण (Detail) दिया जाना आवश्यक है, जैसा कि अगले अनुभाग में बताया गया है।

धारा 234(3) के तहत जब कोई विशिष्ट नाम न हो तो अपराध का विवरण (Describing the Offence When No Specific Name Exists: Section 234(3)) ऐसे मामलों में, जहां अपराध का कोई विशेष कानूनी नाम नहीं है, धारा 234(3) यह अनिवार्य करती है कि आरोप में पर्याप्त विवरण दिया जाए ताकि आरोपी को स्पष्ट रूप से पता हो कि उस पर किस अपराध का आरोप लगाया गया है। इसका मतलब यह है कि आरोप में अपराध की कानूनी परिभाषा का एक हिस्सा शामिल होना चाहिए ताकि आरोपी को आरोप की प्रकृति समझ में आ सके।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी को आरोप के बारे में कोई संदेह न हो और वह इसके खिलाफ अपनी रक्षा की तैयारी कर सके।

धारा 234(4) के तहत कानून और धारा का उल्लेख (Mention of Law and Section: Section 234(4)) धारा 234(4) यह निर्धारित करती है कि आरोप में उस विशेष कानून और धारा का उल्लेख होना चाहिए जिसके तहत अपराध का आरोप लगाया गया है। इसका मतलब यह है कि अपराध का नाम बताने या उसका विवरण देने के साथ-साथ आरोप में उस भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) या अन्य संबंधित कानून का सटीक उल्लेख होना चाहिए जिसे आरोपी ने उल्लंघन किया है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति पर चोरी का आरोप है, तो आरोप में यह स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए कि यह अपराध भारतीय न्याय संहिता की धारा 320 के तहत दंडनीय है। इससे पारदर्शिता और स्पष्टता सुनिश्चित होती है, ताकि आरोपी और अदालत को पूरी तरह से पता हो कि कौन-सा प्रावधान लागू हो रहा है।

धारा 234(5) के तहत कानूनी शर्तें पूरी करना (Legal Conditions Fulfilled: Section 234(5)) धारा 234(5) में बताया गया है कि आरोप लगाए जाने का यह मतलब है कि वह अपराध करने के लिए कानूनी रूप से आवश्यक सभी शर्तें पूरी कर ली गई हैं। इसका मतलब यह है कि जब आरोप दायर किया जाता है, तो यह माना जाता है कि अभियोजन पक्ष (Prosecution) ने उस मामले को अदालत में लाने के लिए सभी आवश्यक कानूनी शर्तें पूरी कर ली हैं।

इस प्रावधान से आरोप तैयार करने की प्रक्रिया सरल हो जाती है, क्योंकि अभियोजक को हर कानूनी शर्त को स्पष्ट रूप से लिखने की आवश्यकता नहीं होती। आरोप के वैध (Valid) होने का मतलब यह होता है कि सभी आवश्यक कानूनी शर्तें पहले ही पूरी हो चुकी हैं।

धारा 234(6) के तहत अदालत की भाषा (Language of the Court: Section 234(6)) धारा 234(6) यह अनिवार्य करती है कि आरोप अदालत की भाषा में लिखा जाना चाहिए। इसका उद्देश्य यह है कि आरोप सभी पक्षों के लिए समझने योग्य हो, जैसे कि न्यायाधीश, आरोपी, और उनके कानूनी प्रतिनिधि।

चूंकि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अदालतें अलग-अलग भाषाओं में काम करती हैं, यह प्रावधान देश की भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) को ध्यान में रखता है और सुनिश्चित करता है कि भाषा की बाधा के कारण न्याय बाधित न हो।

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में अदालत में आरोप मराठी में लिखा जा सकता है, जबकि राजस्थान में इसे हिंदी में लिखा जा सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि आरोप उस भाषा में हो जो अदालत समझ सके।

धारा 234(7) के तहत पिछली सज़ाओं का उल्लेख (Mentioning Previous Convictions: Section 234(7)) धारा 234(7) उन मामलों से संबंधित है, जहां आरोपी के खिलाफ पहले से कोई सजा है, जो अगर साबित होती है तो वर्तमान अपराध में सजा बढ़ सकती है। अगर अभियोजन पक्ष पिछले किसी अपराध की सजा को इस उद्देश्य से साबित करना चाहता है, तो आरोप में उस पिछली सजा का तथ्य, तारीख और स्थान बताया जाना चाहिए।

यह प्रावधान महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ कानूनों के तहत, पहले की सजा होने पर आरोपी को अधिक कठोर सजा दी जा सकती है। यदि यह जानकारी प्रारंभिक आरोप में शामिल नहीं की गई है, तो अदालत सजा सुनाने से पहले कभी भी इसे जोड़ सकती है।

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी को पहले से यह जानकारी हो कि अगर पिछली सजा साबित होती है, तो उसकी सजा बढ़ सकती है, ताकि वह अपनी रक्षा के लिए तैयारी कर सके।

आरोपों के उदाहरण (Illustrations of Charges) संहिता में धारा 234 के तहत आरोप तैयार करने के कई उदाहरण दिए गए हैं:

उदाहरण (a) यह समझाता है कि जब किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया जाता है, तो यह यह संकेत देता है कि वह कृत्य भारतीय न्याय संहिता की धारा 100 और 101 के तहत हत्या की कानूनी परिभाषा के अंतर्गत आता है, और उस पर कोई सामान्य या विशेष अपवाद लागू नहीं होते।

उदाहरण (b) उन मामलों से संबंधित है जब जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाई जाती है। यदि आरोपी पर धारा 118(2) के तहत हथियार का उपयोग कर गंभीर चोट पहुंचाने का आरोप है, तो इसका मतलब यह है कि संहिता के अन्य कोई अपवाद लागू नहीं होते।

उदाहरण (c) यह स्पष्ट करता है कि हत्या, चोरी, धोखाधड़ी, या अन्य अपराधों के आरोप बस नाम से लगाए जा सकते हैं, लेकिन हमेशा उस धारा का उल्लेख होना चाहिए जो लागू होती है।

उदाहरण (d) यह दिखाता है कि सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा संपत्ति की बिक्री में बाधा डालने के आरोप को धारा 219 के तहत कैसे सरल और स्पष्ट भाषा में तैयार किया जा सकता है।

इस पहले भाग में, हमने समझा कि धारा 234 के तहत आरोपों को कैसे तैयार और प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अगले भाग में हम इन प्रावधानों के व्यावहारिक प्रभाव और विधि विशेषज्ञों, अदालतों और आरोपियों के लिए इसके महत्व की चर्चा करेंगे।

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