
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इनमें कुछ पुराने प्रावधानों (Provisions) को हटाना भी शामिल है।
इनमें प्रमुख रूप से व्यभिचार (Adultery), धारा 377 (Section 377) और राजद्रोह (Sedition) कानून को हटाया गया है। ये सभी प्रावधान कई वर्षों से न्यायालयों (Courts), समाज और सरकार के बीच चर्चा और बहस का विषय रहे हैं।
इन प्रावधानों को हटाने का मुख्य उद्देश्य संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) के अनुरूप कानून बनाना और आधुनिक सामाजिक परिवर्तनों को स्वीकार करना है।
हालांकि, इन बदलावों को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इन कानूनों को पूरी तरह से हटाने के बजाय इन्हें संशोधित (Modify) किया जाना चाहिए था ताकि वे आधुनिक समाज की जरूरतों को पूरा कर सकें।
व्यभिचार (Adultery) को अपराध (Crime) की श्रेणी से हटाना
व्यभिचार (Adultery) को पहले IPC की धारा 497 (Section 497) में अपराध माना जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक ऐतिहासिक फैसले (Landmark Judgment) में इसे असंवैधानिक (Unconstitutional) करार दिया गया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन (Personal Life) में हस्तक्षेप करना संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लंघन (Violation) है।
इससे पहले, व्यभिचार कानून केवल पुरुषों (Men) को ही दोषी मानता था और महिलाओं को इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर भी इस कानून को असंवैधानिक बताया कि यह महिलाओं को उनके पति की "संपत्ति" की तरह मानता है, जो आधुनिक समाज में स्वीकार्य नहीं है।
हालांकि, इस कानून को हटाने पर मिश्रित विचार (Mixed Opinions) सामने आए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि व्यभिचार को फिर से अपराध घोषित किया जाना चाहिए, लेकिन इसे लिंग-निरपेक्ष (Gender Neutral) बनाया जाए, ताकि पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सके।
वे यह भी मानते हैं कि व्यभिचार विवाह (Marriage) की पवित्रता को प्रभावित करता है और इसे कानूनी रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि व्यभिचार एक नैतिक (Moral) या व्यक्तिगत मामला है, जिसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए। उनका तर्क है कि विवाह केवल एक सामाजिक संस्था (Social Institution) नहीं बल्कि एक अनुबंध (Contract) भी है। अगर कोई व्यक्ति इस अनुबंध को तोड़ता है, तो इसका नागरिक (Civil) समाधान होना चाहिए, न कि आपराधिक (Criminal) दंड।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को तलाक (Divorce) के मामलों में एक वैध आधार (Valid Ground) माना है, जिससे प्रभावित पक्ष को तलाक और मुआवजा (Compensation) मिल सकता है।
धारा 377 (Section 377) को पूरी तरह हटाना
IPC की धारा 377 (Section 377) पहले समलैंगिक संबंधों (Same-Sex Relationships) को अपराध मानती थी और इसे "अप्राकृतिक अपराध (Unnatural Offence)" कहा जाता था। लेकिन 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी यौन पहचान (Sexual Identity) को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार (Right to Expression) है और इसमें राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस फैसले ने भारत में LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों (Rights) को मान्यता दी।
लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को पूरी तरह से असंवैधानिक (Unconstitutional) नहीं घोषित किया था।
अदालत ने केवल सहमति से बने वयस्कों (Consensual Adults) के बीच संबंधों को अपराध से मुक्त किया था, लेकिन जानवरों के साथ यौन संबंध (Bestiality), जबरदस्ती अप्राकृतिक यौन संबंध (Non-Consensual Acts) और बाल यौन शोषण (Child Abuse) को अपराध के रूप में बरकरार रखा था।
हालांकि, BNS 2023 ने धारा 377 को पूरी तरह से हटा दिया है। इससे यह चिंता उठी है कि अब कुछ अपराधों को कानूनी रूप से परिभाषित करने के लिए एक अलग कानून की आवश्यकता होगी।
कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि धारा 377 को पूरी तरह हटाने के बजाय उसमें संशोधन किया जाना चाहिए था ताकि समलैंगिकता (Homosexuality) को अपराध से मुक्त रखा जाता, लेकिन अन्य अपराधों के लिए सजा का प्रावधान बना रहता।
राजद्रोह (Sedition) कानून को हटाना
BNS 2023 का सबसे बड़ा बदलाव IPC की धारा 124A (Section 124A) यानी राजद्रोह (Sedition) कानून को हटाना है। यह कानून ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था और इसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता था।
हाल के वर्षों में इस कानून का व्यापक दुरुपयोग (Misuse) हुआ और इसे सरकार की आलोचना (Criticism of Government) करने वाले पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। कई मामलों में, केवल सरकार की नीतियों का विरोध करने पर भी लोगों को गिरफ्तार किया गया।
हालांकि, BNS 2023 ने राजद्रोह कानून को हटा दिया है, लेकिन इसकी भावना को धारा 152 (Section 152) के रूप में शामिल कर दिया है।
धारा 152 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति "राष्ट्र की संप्रभुता (Sovereignty) को खतरे में डालने" या "विध्वंसक गतिविधियों (Subversive Activities)" में शामिल होता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है।
लेकिन इस धारा में "विध्वंसक गतिविधियां" और "संप्रभुता को खतरे में डालना" स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किए गए हैं। इससे भविष्य में इस धारा के दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति सरकार की आलोचना करने पर गलत तरीके से गिरफ्तार किया जा सकता है।
भारत के विधि आयोग (Law Commission) ने 2023 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राजद्रोह कानून को पूरी तरह हटाने के बजाय इसे संशोधित किया जाना चाहिए ताकि सिर्फ हिंसा भड़काने वाले मामलों में ही इसका इस्तेमाल किया जाए।
BNS 2023 ने कई पुराने प्रावधानों को हटाकर भारतीय दंड कानून को आधुनिक बनाने की कोशिश की है। व्यभिचार (Adultery) और समलैंगिक संबंधों (Same-Sex Relationships) को अपराध की श्रेणी से बाहर करना एक सकारात्मक बदलाव है जो निजता (Privacy) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) को मजबूत करता है।
हालांकि, धारा 377 को पूरी तरह से हटाने से कुछ कानूनी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि अब अप्राकृतिक अपराधों (Unnatural Offences) से संबंधित कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
इसी तरह, राजद्रोह कानून को हटाना एक अच्छा कदम है, लेकिन धारा 152 (Section 152) की अस्पष्ट भाषा (Vague Language) भविष्य में दुरुपयोग की आशंका पैदा कर सकती है।
अदालतों (Courts) की भूमिका अब बेहद महत्वपूर्ण होगी क्योंकि वे यह तय करेंगी कि BNS 2023 के नए प्रावधानों की व्याख्या (Interpretation) कैसे की जाए।