गवाह से पूछे गए अश्लील या अपमानजनक प्रश्न : BNS 2023 की धारा 153 से 156

Update: 2024-09-05 12:56 GMT

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है, ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह ली है। इस अधिनियम के अंतर्गत गवाहों से पूछताछ (Cross-examination) के दौरान पूछे जाने वाले अनुचित प्रश्नों को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान दिए गए हैं। धारा 151 और धारा 152, जिन पर हमने पहले चर्चा की थी, इस बात की रक्षा करते हैं कि गवाह से सिर्फ उन प्रश्नों को पूछा जाए जिनके लिए उचित आधार हो। अब धारा 153 से 156 तक के प्रावधान न्यायालय (Court) की शक्ति और जिम्मेदारी को दर्शाते हैं, जब गवाह से पूछे गए प्रश्न बिना उचित आधार या अनुचित हों।

धारा 153: अनुचित प्रश्न पूछे जाने पर न्यायालय की प्रक्रिया (Procedure of Court in Case of Unreasonable Questions)

धारा 153 यह प्रावधान करती है कि यदि न्यायालय को यह लगता है कि किसी गवाह से बिना किसी उचित आधार के प्रश्न पूछे गए हैं, तो वह इस मामले की जानकारी उच्च न्यायालय (High Court) या उस प्राधिकरण को दे सकता है जिसके अंतर्गत वह अधिवक्ता (Advocate) आता है। इसका उद्देश्य अधिवक्ताओं को जिम्मेदारी से पेश आना सिखाना है, ताकि वे गवाहों से ऐसे प्रश्न न पूछें जिनका कोई ठोस आधार नहीं है।

यदि कोई वकील गवाह से ऐसा प्रश्न पूछता है जो केवल उसे परेशान करने या उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए है, और न्यायालय को यह अनुचित लगता है, तो न्यायालय इस बात की जानकारी संबंधित कानूनी प्राधिकरण को दे सकता है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि उस वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो।

धारा 154: अश्लील या अपमानजनक प्रश्न (Indecent and Scandalous Questions)

धारा 154 के अंतर्गत, न्यायालय किसी भी ऐसे प्रश्न या जांच को रोक सकता है जिसे वह अश्लील (Indecent) या अपमानजनक (Scandalous) मानता है, भले ही उन प्रश्नों का न्यायालय में उठाए गए मुद्दे से कुछ संबंध हो। हालांकि, यह प्रावधान उन मामलों पर लागू नहीं होता जब सवाल प्रत्यक्ष रूप से विवादित तथ्यों (Facts in Issue) से संबंधित हों या जब इन तथ्यों का निर्धारण आवश्यक हो।

इस धारा का उद्देश्य न्यायालय की गरिमा बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना है कि गवाहों को ऐसी अपमानजनक और असंवेदनशील पूछताछ का सामना न करना पड़े जो केवल उन्हें शर्मिंदा करने के लिए की गई हो। उदाहरण के लिए, किसी गवाह से उसकी व्यक्तिगत जिंदगी के ऐसे पहलुओं के बारे में पूछताछ करना जो न तो मामले से जुड़े हों और न ही तथ्यात्मक विवाद को सुलझाने में सहायक हों, ऐसे प्रश्नों पर धारा 154 के तहत रोक लगाई जा सकती है।

धारा 155: अपमानित करने या परेशान करने के इरादे से पूछे गए प्रश्न (Questions Intended to Insult or Annoy)

धारा 155 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी ऐसे प्रश्न पर रोक लगा सकता है जो उसे अपमानित करने या परेशान करने के इरादे से पूछा गया प्रतीत होता हो। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि गवाहों को न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अनावश्यक रूप से परेशान या अपमानित न किया जाए।

इस धारा के अंतर्गत, यदि किसी प्रश्न का उद्देश्य केवल गवाह को नीचा दिखाना है, या प्रश्न का स्वरूप असहनीय और अनुचित है, तो न्यायालय उसे तुरंत रोक सकता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई वकील गवाह से ऐसे सवाल पूछता है जिनका केवल उद्देश्य गवाह को अपमानित करना है, तो न्यायालय इस तरह के प्रश्नों को निषेध (Forbid) कर सकता है, भले ही वह प्रश्न कानूनी रूप से सही हों।

धारा 156: गवाह की विश्वसनीयता पर प्रश्नों का खंडन (Exclusion of Evidence to Contradict Answers Testing Veracity)

धारा 156 यह प्रावधान करती है कि जब गवाह से कोई ऐसा प्रश्न पूछा गया हो जिसका उद्देश्य केवल उसकी साख (Credibility) को कम करना हो, और गवाह ने इसका उत्तर दे दिया हो, तो उस उत्तर का खंडन करने के लिए कोई और साक्ष्य (Evidence) प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक बार गवाह से कोई प्रश्न पूछ लिया गया और उसका उत्तर मिल गया, तो न्यायालय में उस उत्तर को खंडित करने के लिए अतिरिक्त साक्ष्य पेश नहीं किए जा सकते। यह प्रावधान गवाह की गवाही को संक्षिप्त और सुसंगत बनाए रखने के लिए है, ताकि अनावश्यक रूप से गवाह की प्रतिष्ठा पर आघात न किया जा सके।

उदाहरण के लिए, अगर किसी गवाह से पूछा गया कि क्या वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल था और उसने इसका उत्तर 'नहीं' में दिया, तो इसका खंडन करने के लिए आगे कोई साक्ष्य नहीं दिया जा सकता। गवाह की साख पर सवाल उठाने के लिए जो भी साक्ष्य हो, वह पहले से ही पेश होना चाहिए।

धारा 151 और 152 के संदर्भ में धारा 153 से 156 की व्याख्या (Understanding Sections 153 to 156 in Context of Sections 151 and 152)

धारा 151 और 152 यह सुनिश्चित करती हैं कि गवाह से पूछताछ (Cross-examination) के दौरान केवल वही प्रश्न पूछे जाएं जिनके लिए उचित और ठोस आधार हो। इसके विपरीत, धारा 153 से 156 तक के प्रावधान न्यायालय को ऐसे प्रश्नों से निपटने के लिए शक्ति देते हैं जो अनुचित, अपमानजनक, या परेशान करने वाले हो सकते हैं।

धारा 153 वकीलों के अनुशासन को बनाए रखने का काम करती है, जबकि धारा 154 और 155 यह सुनिश्चित करती हैं कि गवाहों को अपमानजनक या परेशान करने वाले प्रश्नों का सामना न करना पड़े। धारा 156 यह सुनिश्चित करती है कि एक बार किसी गवाह से विश्वसनीयता (Veracity) पर सवाल पूछे जाने के बाद, उसके उत्तर को और अधिक खंडित करने का प्रयास न किया जाए।

ये प्रावधान न्यायालय में गवाहों की गरिमा और साख बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं और सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया उचित और निष्पक्ष हो। इन धाराओं का सही और सख्ती से पालन करने से गवाहों के अधिकारों की रक्षा होती है और न्यायालय की प्रक्रिया निष्पक्ष रहती है।

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