निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 15 : परिदान और परिदान द्वारा परक्रमण
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत इस आलेख पूर्व के आलेख में परक्रमण शब्द की परिभाषा को समझा था तथा उससे संबंधित प्रावधान पर प्रकाश डाला गया था कि प्रक्रमण क्या होता है। परक्रमण से संबंधित आलेख केे अंत में इस प्रावधान का उल्लेख किया गया था कि परक्रमण कुछ प्रकारों के द्वारा किया जा सकता है।
इस आलेख के अंतर्गत परिदान द्वारा परक्रमण से संबंधित प्रावधानों पर संक्षिप्त टीका प्रस्तुत किया जा रहा है तथा इस सारगर्भित आलेख के अंतर्गत परिदान द्वारा प्रकरण को समझने का प्रयास किया जा रहा है।
जहाँ परक्रामण से भिन्न किसी अन्य प्रयोजन के लिए लिखत को परिदत्त किया गया है, अर्थात् सुरक्षित अभिरक्षा या बैंक की उगाही के लिए या किसी ऋणदाता को प्रतिभूति के रूप में, ऐसा धारक सिवाय सम्यक् अनुक्रम में धारक को छोड़कर सही मायने में लिखत का धारक नहीं होगा।
परक्रमण से संबंधित धारा 46 दो तत्वों को प्रावधानित करती है:-
1. लिखतों के लिखने, प्रतिग्रहीत या पृष्ठांकन करने के लिए परिदान आवश्यक है।
2. परक्रामण के तरीके, जो हो सकते हैं:-
(i) परिदान द्वारा- जहाँ लिखत वाहक को देय है।
(ii) पृष्ठांकन एवं परिदान द्वारा- जहाँ लिखत आदेशित को देय है।
परिदान आवश्यक परक्राम्य लिखत के प्रत्येक लिखा जाना, प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन केवल परिदान से पूर्ण होता है। अतः लिखत के उक्त सभी कार्य परिदान के साथ किए जाना चाहिए। बिना परिदान के उक्त कार्य पूर्ण नहीं होंगे। वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक के लिखना, प्रतिग्रहण या पृष्ठांकन बिना परिदान के अपूर्ण एवं विखण्डनीय होता है जब तक कि लिखत का परिदान नहीं होता है। कोई भी लिखत परिदान तक परक्राम्य लिखत के आवश्यक लक्षणों से पूर्ण नहीं होता है।
परक्राम्य लिखत में संविदा सृजित होने के लिए लेखीवाल, प्रतिग्रहीता एवं पृष्ठांकक के द्वारा प्रतिफल के लिए लिखत परिदत्त होने चाहिए जैसे उक्त परिस्थितियाँ हो जाती हैं संविदा पूर्ण हो जाती है और यह लिखित संविदा बन जाती है।
किसी लिखत की सम्पत्ति को अन्तरित करने के लिए, इसे केवल पृष्ठांकन करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि लिखत पर केवल हस्ताक्षर करना, संविदा को सृजित नहीं करता है। इसे पुनः पृष्ठांकिती को या पृष्ठांकितों के अभिकर्ता को परिदत्त किया जाना चाहिए। किसी लिखत को हस्ताक्षर करने एवं इसे पाने वाले को परिदत करने में स्पष्ट अन्तर होता है।
धारा 46 के अधीन परिदान अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकता है। परिदान केवल उस व्यक्ति को जिसका नाम लिखा गया है, बल्कि इसे पाने वाले के किसी अधिकृत अभिकर्ता को भी किया जा सकता है। जब तक कि लिखने वाले व्यक्ति द्वारा चेक संदाय के आशय से परिदत्त किया जाता है तब चेक की सम्पत्ति पाने वाले को अन्तरित होती है।
जस्टिस मेलिश के अनुसार- विनिमय पत्र की सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए यह केवल आवश्यक नहीं है कि लिखत का पृष्ठांकन किया जाए, इसे पृष्ठांकिती को या उसके अभिकर्ता को परिदत्त किया जाना चाहिए। यदि पृष्ठांकक अपने अभिकर्ता को परिदत्त करता है तो वह उसे वापस ले सकता है, परन्तु यदि पृष्ठांकिती के अभिकर्ता को परिदत करता है तो उससे वापस नहीं ले सकता है।
पुनः यह परिदान के लिए आवश्यक है कि लिखत की सम्पत्ति को परिदत्त करने वाले व्यक्ति को अन्तरित करने के आशय से किया जाना चाहिए। अधिनियम के अधीन किसी विनिमय पत्र के प्रतिग्रहण को पूर्ण करने के लिए यह आवश्यक है कि इसका प्रतिग्रहण के पश्चात् परिदान किया जाना चाहिए।
जहाँ ऊपरवाल प्रतिग्रहण को लिखने के उपरान्त सूचना देता है या वह व्यक्ति जो लिखत को पाने का हकदार है उसके निर्देशानुसार सूचना देता है, प्रतिग्रहण की संविदा सम्पूर्ण एवं अविखण्डनीय हो जाती है।
उदाहरण- (1) 'अ', 'ब' का 1,000 रु० का ऋणी है। 'अ' इस रकम का वचन पत्र 'ब' को देय बनाता है। 'अ' की मृत्यु हो जाती है और तत्पश्चात् उसके कागजातों में यह पाया जाता है 'ब' इस वचन पत्र में कोई अधिकार नहीं रखता है यदि इसे 'ब' को परिदत्त कर दिया जाता है।
(2) 'अ' एक ऊपरवाल 'ब' (धारक) से एक विनिमय पत्र प्राप्त करता है और इस पर अपना प्रतिग्रहण दे देता है। 'अ' तत्पश्चात् यह सुनता है कि लेखक दिवालिया हो गया है। 'अ' अपने प्रतिग्रहण को रद्द कर 'ब' को अनादृत विनिमय पत्र लौटा देता है। यह प्रतिग्रहण नहीं है, क्योंकि 'अ' ने विनिमय पत्र स्वयं की आबद्धता स्वीकार करते हुए परिदत्त नहीं किया है।
(3) 'अ' 'ब' का ऋणी है। 'अ' एक वचन पत्र 'ब' के पक्ष में इस रकम के लिए लिखता है प्रेषण में सुरक्षा के लिए वचन पत्र को दो भाग में काट देता है और एक भाग 'ब' को भेजता है। दूसरे आधे भाग को भेजने के पूर्व वह अपना मन बदल देता है और 'ब' को भेजे हुए आधे भाग को वापस की माँग करता है। वह ऐसा करने का हकदार है, क्योंकि भागिक एवं अपूर्ण परिदान सम्पूर्ण सम्पत्ति के अन्तरण के लिए निष्प्रभावी होता है।
(4) 'स' एक विनिमय पत्र का धारक इसे विशेष पृष्ठांकन 'अ' को करता है और इसे 'अ' के नाम के एक लिफाफे में रख देता है। इस पत्र को वह डाक बाक्स में रख देता है जहाँ से यह चोरी हो जाता है। एक चोर या पाने वाला धारक नहीं हो सकता- किसी लिखत का चोर या पाने वाला उसका धारक नहीं हो सकता, क्योंकि लिखत का परिदान उसे नहीं किया गया है।
एक व्यक्ति जिसे लिखत परिदत्त किया गया है उसका धारक हो जाता है। परिदान यद्यपि कि साधारण है, परन्तु यह महत्वपूर्ण औपचारिकता है, क्योंकि इसके बिना कोई भी लिखत का कब्जाधारी धारक नहीं हो सकता है।
अतः लिखत का पाने वाला या चोरी करने वाला उसका धारक नहीं हो सकता है: परन्तु यहाँ पर यह महत्वपूर्ण है कि यदि ऐसा चोर या पाने वाला ऐसे लिखत को किसी दूसरे व्यक्ति को परिदत्त कर देता है जो प्रतिफल से एवं सद्भावना पूर्वक इसे लेता है, धारक बन जाता है।
उदाहरण के लिए 'अ', 'ब' की आलमारी से एक वाहक को देय चेक चुरा लेता है। 'अ' चेक का धारक नहीं है, क्योंकि बैंक उसे परिदत्त नहीं किया गया है। इसी प्रकार लिखत का पाने वाला भी उसका धारक नहीं हो सकता है।
परन्तु एक चोर या पाने वाला वाहक बैंक का भुगतान बैंक से प्राप्त कर सकता है या इसे वह पृष्ठांकित कर सकता है। यदि 'अ' इस चैक को 'स' को परिदत्त कर देता है तो वह चेक का धारक हो जाएगा यदि उसने सद्भावना पूर्वक बैंक को प्राप्त किया है।
लिखत का परिदान आवश्यक रूप से यह स्पष्ट है कि लिखत का परक्रामण उसके परिदान से पूर्ण होता है। अब प्रश्न यह है कि परिदान क्या है? परिदान से अभिप्रेत स्वेच्छापूर्वक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को कब्जे का अन्तरण होता है।
अतः जहाँ किसी लिखत को स्वेच्छा से दूसरे को दिया जाता है यह परिदान है और परिणामतः परक्रामण का पूर्ण होना होगा। परन्तु एक वाहक बैंक, जो बन्दूक की नोक पर प्राप्त किया जाता है, परिदान नहीं होगा। परिदान अभिव्यक्त एवं विवक्षित हो सकेगा।
अपवाद- धारा 46 में यह उपबन्धित है कि जहाँ लिखत को सशर्त या विशेष प्रयोजन के लिए परिदत्त किया गया है, जैसे सुरक्षित अभिरक्षा या प्रतिभूति के लिए वहाँ परिदान नहीं होगा और ऐसा व्यक्ति लिखत का धारक नहीं होगा।
उदाहरण के लिए 'अ' एक वाहक चेक अपने सेवक को सुरक्षित अभिरक्षा के लिए देता है। ऐसा सेवक लिखत का धारक नहीं होगा। परन्तु ऐसे सेवक द्वारा इस लिखत को दूसरे व्यक्ति को देना लिखत का परक्रामण होगा। परन्तु आदेशित देय लिखत में ऐसा नहीं होगा।
परिदान द्वारा परक्रामण-
इस धारा के अनुसार एक लिखत परिदान द्वारा परक्रामित हो जाता है। धारा 47 के अधीन परक्रामण की शर्तें हैं :-
(i) लिखत वाहक को देय होना चाहिए।
(ii) इसे परिदत्त किया जाना चाहिए।
(iii) धारा 56 के उपबन्धों के अधीन ।
लिखत जो आदेशित को देय हैं धारा 47 उन पर प्रयोज्य नहीं होगा। अतः एक वाहक को देय लिखत केवल परिदान से परक्रामित हो जाता है।
धारा 58 निम्नलिखित लिखतों के परक्रामण से सम्बन्धित है-
(i) खोए हुए, या
(ii) जिसे प्राप्त किया गया है :-
ऐसा प्राप्त निम्न प्रकारों से किया जा सकता है-
(क) कपट से, या अपराध से, या
(ख) अवैध तरीकों से, या
(ग) अवैध प्रतिफल से।