धारा 7, 8 और 9 राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के तहत बाज़ार मूल्य निर्धारण, सेट ऑफ और काउंटर क्लेम

बाज़ार मूल्य निर्धारण (Determination of Market Value) - धारा 7
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) में यह निर्धारित किया गया है कि किसी संपत्ति (Property) का बाज़ार मूल्य (Market Value) कैसे तय किया जाएगा, क्योंकि न्यायालय शुल्क (Court Fees) का निर्धारण इसी पर निर्भर करता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संपत्तियों का मूल्यांकन न्यायसंगत तरीके से किया जाए।
मूल्यांकन की तिथि (Date for Determining Market Value)
धारा 7(1) के अनुसार, किसी संपत्ति का बाज़ार मूल्य उसी दिन का लिया जाएगा जिस दिन वादी (Plaintiff) द्वारा वादपत्र (Plaint) न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि संपत्ति का मूल्य उसी दिन का तय किया जाएगा, जिस दिन मामला (Case) दाखिल किया गया हो, न कि पहले या बाद की किसी तिथि का।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने 2025 में भूमि पर अधिकार पाने के लिए वाद दायर किया है, तो न्यायालय उस भूमि का मूल्य 2025 की दरों के अनुसार तय करेगा, न कि 2015 या 2030 की संभावित दरों के आधार पर। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि न्यायालय शुल्क को कृत्रिम रूप से घटाने या बढ़ाने से बचा जा सके।
विशिष्ट मामलों में भूमि का बाज़ार मूल्य
धारा 7(2) में कुछ विशेष स्थितियों में भूमि के बाज़ार मूल्य की गणना का तरीका बताया गया है।
ये मामले निम्नलिखित धारा के अंतर्गत आते हैं:
• धारा 24(a) और 24(b) के अंतर्गत वाद
• धारा 26(a) के अंतर्गत वाद
• धारा 28, 29, 35(1), 35(3), 36, और 44 के अंतर्गत वाद
इन मामलों में, भूमि के बाज़ार मूल्य का निर्धारण इस आधार पर किया जाएगा कि उस भूमि का अंतिम सरकारी बंदोबस्त (Settlement) में कितना किराया (Rent) तय किया गया था।
यदि भूमि का किराया तय किया गया था, तो उसका मूल्य अंतिम बंदोबस्त में स्वीकृत किराए की 25 गुना राशि मानी जाएगी। उदाहरण के लिए, यदि सरकार ने किसी भूमि का वार्षिक किराया ₹1,000 तय किया था, तो उसका न्यायालय शुल्क के लिए मान्य बाज़ार मूल्य ₹25,000 होगा (₹1,000 × 25)।
यदि भूमि के लिए किराया निर्धारित नहीं किया गया था, तो उसी क्षेत्र की समान भूमि के अंतिम बंदोबस्त में स्वीकृत किराए को आधार मानकर उसकी 25 गुना राशि को बाज़ार मूल्य माना जाएगा।
उदाहरण के लिए, यदि किसी गांव में एक भूमि के लिए कोई आधिकारिक किराया तय नहीं किया गया था, लेकिन पास की अन्य भूमि के लिए ₹1,200 वार्षिक किराया तय किया गया था, तो उस भूमि का बाज़ार मूल्य ₹30,000 होगा (₹1,200 × 25)।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि भूमि के मूल्यांकन में पारदर्शिता बनी रहे और किसी को अनुचित लाभ न मिले।
सेट ऑफ (Set Off) या काउंटर क्लेम (Counter Claim) - धारा 8
धारा 8 उन स्थितियों से संबंधित है जहां प्रतिवादी (Defendant) उत्तर पत्र (Written Statement) में सेट ऑफ या काउंटर क्लेम प्रस्तुत करता है। सेट ऑफ तब होता है जब प्रतिवादी स्वीकार करता है कि वादी का दावा सही है, लेकिन यह भी कहता है कि वादी को भी उससे कुछ राशि प्राप्त करनी चाहिए और इसे उसकी देनदारी से घटाया जाना चाहिए। काउंटर क्लेम तब होता है जब प्रतिवादी सिर्फ बचाव (Defense) करने के बजाय वादी के खिलाफ भी एक दावा पेश करता है।
इस धारा के अनुसार, किसी भी लिखित उत्तर पत्र में सेट ऑफ या काउंटर क्लेम शामिल होने पर उसी प्रकार न्यायालय शुल्क लगेगा जैसे वादपत्र पर लगता है।
उदाहरण के लिए, यदि A ने B पर ₹50,000 के ऋण की वसूली के लिए मामला दर्ज किया, लेकिन B ने उत्तर दिया कि A ने उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है और इसके लिए A को ₹20,000 का हर्जाना देना चाहिए, तो यह काउंटर क्लेम होगा। इस स्थिति में, B को ₹20,000 के दावे पर न्यायालय शुल्क अदा करना होगा, जैसे कि A को अपने ₹50,000 के दावे पर शुल्क अदा करना पड़ा था।
इसी प्रकार, यदि B यह दावा करता है कि A ने उसे पहले ही ₹10,000 का भुगतान कर दिया था और इसे वाद की राशि से घटाया जाना चाहिए, तो यह सेट ऑफ कहलाएगा। इस स्थिति में, B को ₹10,000 के सेट ऑफ पर न्यायालय शुल्क अदा करना होगा।
यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिवादी केवल न्यायालय शुल्क से बचने के लिए सेट ऑफ या काउंटर क्लेम का दुरुपयोग न करें।
बहु-वर्णन वाले दस्तावेज़ (Documents Falling Under Two or More Descriptions) - धारा 9
धारा 9 उन मामलों को नियंत्रित करती है जहां कोई दस्तावेज़ (Document) एक से अधिक विवरणों (Descriptions) के अंतर्गत आता है और प्रत्येक विवरण के लिए अलग-अलग न्यायालय शुल्क लागू होता है। ऐसी स्थिति में, उस दस्तावेज़ पर केवल सबसे अधिक शुल्क (Highest Fee) लागू होगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई दस्तावेज़ बंधक पत्र (Mortgage Deed) और उपहार पत्र (Gift Deed) दोनों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, और यदि बंधक पत्र के लिए न्यायालय शुल्क ₹2,000 है और उपहार पत्र के लिए ₹3,000 है, तो ₹3,000 का शुल्क लिया जाएगा।
हालांकि, यदि किसी दस्तावेज़ के लिए एक विवरण विशेष (Special) हो और दूसरा सामान्य (General), तो विशेष विवरण के अनुसार शुल्क लिया जाएगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई दस्तावेज़ सामान्य अनुबंध (General Contract) और संपत्ति बिक्री समझौता (Special Agreement for Property Sale) दोनों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, और यदि संपत्ति बिक्री समझौते के लिए अधिक न्यायालय शुल्क लागू होता है, तो वही शुल्क लिया जाएगा।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि लोग न्यायालय शुल्क कम करने के लिए गलत वर्गीकरण का सहारा न लें।
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 7, 8 और 9 न्यायालय शुल्क की गणना को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाती हैं। धारा 7 संपत्तियों के बाज़ार मूल्य को निर्धारित करने के लिए एक स्पष्ट तरीका प्रदान करती है, धारा 8 यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिवादी जो वित्तीय दावा पेश करते हैं, वे भी उचित न्यायालय शुल्क अदा करें, और धारा 9 यह निर्धारित करती है कि बहु-वर्णन वाले दस्तावेजों पर न्यायसंगत न्यायालय शुल्क लागू हो। इन प्रावधानों से न्यायालय में न्यायिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता बनी रहती है और अनुचित लाभ लेने की संभावनाओं को समाप्त किया जाता है।