संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 21 : अभिकरण की संविदा के अंतर्गत अभिकर्ता का प्राधिकार क्या होता है (Agent Authority)
संविदा विधि सीरीज के अंतर्गत पिछले आलेख में अभिकरण की संविदा के संबंध में विशेष बातों का उल्लेख किया गया था। अभिकरण की संविदा क्या होती है पिछले आलेख में इस संबंध में चर्चा की जा चुकी है इस आलेख में अभिकर्ता के प्राधिकार के संबंध में उल्लेख किया जा रहा है।
अभिकर्ता के प्राधिकार ( Agent Authority)
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को किसी अभिकर्ता को सौंप देता है। इस प्रकार वह अपने कार्यों का प्रत्यारोपण कर देता है। मालिक के कार्य अभिकर्ता द्वारा किए जाते हैं तो मालिक अभिकर्ता को अपने अधिकार भी सौंप देता है।
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 188 अभिकर्ता के प्राधिकार के विस्तार के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा इस बात पर प्रकाश डालती है कि किसी अभिकर्ता के प्राधिकार या उसकी शक्ति का विस्तार कहां तक होता है।
इस धारा के अनुसार- किसी कार्य को करने का अधिकार रखने वाला अभिकर्ता प्रत्येक ऐसी विधिपूर्ण बात करने का अधिकार रखता है जो वैसा कार्य करने के लिए आवश्यक है।
इस धारा का दूसरा पैरा इस बात का उल्लेख करता है कि किसी कारोबार को चलाने का अधिकार रखने वाला अभिकर्ता हर ऐसी विधिपूर्ण बात करने का प्राधिकार रखता है जो ऐसे कारोबार के संचालन के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो या उसके अनुक्रम में प्राय की जाती है। उदाहरण के लिए ख जो लंदन में रहता है अपने को शोध्य ऋण मुंबई में वसूल करने के लिए क को नियोजित करता है। क उस ऋण को वसूल करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक कोई भी विधिक प्रक्रिया अपना सकेगा और उसके लिए वह विद्यमान मोचन दे सकेगा।
अभिकर्ता का प्राधिकार उस सीमा तक विस्तृत है जिस सीमा तक वह अपने विवेक और शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
धारा 181 से यह समझा जा सकता है कि कोई भी अभिकर्ता वह कोई भी काम कर सकता है जो विधिपूर्ण हो और विधिपूर्ण उस कार्य को माना जाता है जो लोकनीति के विरुद्ध न हो और जो युक्तियुक्तता से परे नहीं हो।
सतलज कॉटन मिल्स लिमिटेड बनाम रंजीत सिंह एआईआर 1952 पंजाब 253 के प्रकरण में कहा गया है कि किसी निगम के संदर्भ में अभिकर्ता किसी ऐसे कार्य का संपादन कर रहा है जिसका किया जाना उसके लिए अधिकारातीत था तो यह विधिमान नहीं माना जाएगा।
आरके डालमिया बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एआईआर 1962 एससी 1521 के प्रकरण में कहा गया है जहां किसी धार्मिक मामले में कोई व्यक्ति प्राधिकार के साथ दूसरे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहा हो वहां उसका इस प्रकार का प्रतिनिधित्व किया जाना यथोचित माना गया।
वलापद कोऑपरेटिव स्टोर्स लिमिटेड बनाम श्रीनिवास अय्यर ब्रदर एआईआर 1964 केरल 126 के प्रकरण में कहा गया है कोई भी अभिकर्ता अपने विवक्षित पर अधिकार के अंतर्गत वह कार्य करने के लिए प्राधिकृत है जो विधि विरुद्ध न हो एवं जिसका संबंध वस्तु के विक्रय से हो।
मोहम्मद इब्राहिम बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एआईआर 1959 337 पटना के प्रकरण में कहा गया है कि इस संबंध में यदि अभिकर्ता किसी प्रतिकूल दावे का अभिवाद करता है तो उसे स्वीकार किया जाएगा। उसका यथोचित आधार पर परीक्षण किया जाएगा।
सतनाम चंदन बनाम दर्शन सिंह एआईआर 2007 डी ओ सी 216 के प्रकरण में अभिनिर्धारित हुआ है कि जब एनआरआई भूमि स्वामी द्वारा एक बेदखली हेतु वाद दायर किया गया और मुख्तारनामा के धारक में भूमि स्वामी की वास्तविक आवश्यकता का परीक्षण किया कब पारित किया गया बेदखली का आदेश अवैधानिक था।
अभिकरण की संविदा एक प्रकार की संविदा होती है तो इस संबंध में प्राधिकार संबंधी वह सारे नियम होंगे जो संविदा की बाबत लागू होते हैं। इस संबंध में पक्षकारों के आशय संबंधी निश्चयात्मक सबूत की अवधारणा प्रकाश में आती है।
मुख्तारनामा (Power of Attorney)
मुख्तारनामा एक दस्तावेज जो कतिपय औपचारिकताओं से युक्त होता है। बैंक ऑफ़ बंगाल बनाम रामानाथन चोटी 1916 कोलकाता 527 के मामले में कहा गया है कि जहां कोई कार्य किसी मुख्तारनामा के तहत किया जाना तात्पर्य था उसे इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह प्रदाय शक्ति से बाहर होकर किए जाने के लिए तात्पर्य है। वहां यह अभिनिर्धारित किया गया है कि संबंध में आवश्यक प्राधिकार सीमा के भीतर ही कार्य का संपादन किया जा सकता है।
मुख्तारनामा का तात्पर्य उस दस्तावेज से हैं जिस के संदर्भ में वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार का मुख्तारनामा प्रदान किया गया है वह विधिक कार्यवाहियों का संचालन करने हेतु समर्थ माना जाता है। किसी कार्य को विधितः संपन्न कराने हेतु किसी व्यक्ति को मुख्तारनामा प्रदान किया गया है वह केवल उसी कार्य के संबंध में अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है क्योंकि वह उक्त कार्य से भिन्न न किसी प्रयोजन के लिए उक्त शक्ति का प्रयोग करने के लिए अधिकृत नहीं माना जाएगा।
जहां सामान्य शक्ति सहित विशेष शक्ति भी अपेक्षित है तो ऐसी स्थिति में यदि मुख्तारनामा के द्वारा किसी व्यक्ति को विशेष शक्ति से युक्त किया गया है तो वह अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
सुलेमान बीवी बनाम हफीज मोहम्मद एआईआर 1927 कोलकाता 687 के प्रकरण में इसी प्रकार जहां किसी देय राशि की वसूली हेतु मुख्तारनामा दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में उक्त अधिकतम अपने नियोजन के सामान्य अनुक्रम में उक्त राशि की वसूली करने हेतु प्राधिकृत माना जाएगा।
किसी दस्तावेज के पंजीकरण के संबंध में मुख्तारनामा में जो बातें उल्लेखित हो उसी के अनुसार अभिकर्ता को कार्य करना चाहिए यदि वह उसके असंगत कार्य करता है तो इसे परिस्थितियों के अनुसार युक्तियुक्त माना गया।
विधिक कार्यवाहियों का संचालन उसी रूप में होना चाहिए जिस रूप में मालिक के मुख्तार को मुख्तारनामा के द्वारा प्रधिकृत किया गया है अर्थात वह उसी पर अधिकार के अंतर्गत कार्य करेगा जिस पर अधिकार के अंतर्गत उसे कार्य करने हेतु प्राधिकृत किया गया है।
मुख्तारनामा प्रतिसंहरण
यह मालिक की इच्छा पर है कि वह मुख्तारनामा का प्रतिसंहरण कर दे अर्थात उसे रद्द कर दे, किंतु जहां कोई मुख्तारनामा किसी अभिकर्ता के संबंध में सृजित किया गया है तो वह उसी मुख्तारनामा के अनुसार कार्य करेगा वरना मुख्तारनामा की बाबत अप्रतिसंहरण शब्द का प्रयोग हुआ है किंतु यह ध्यान देने की बात है कि मालिक इसके बावजूद भी मुख्तारनामा का प्रतिसंहरण करने के लिए अधिकृत है।
जब भी कोई एजेंसी की संविदा की जाती है तो इसमें मालिक द्वारा एजेंट को मुख्तारनामा दे दिया जाता है तथा कई शक्तियां दे दी जाती हैं। जिन शर्तों से कोई भी अभिकर्ता मालिक की शक्तियां प्राप्त कर लेता है मुख्तारनामा के द्वारा अभिकर्ता को किसी व्यवसाय का प्रबंध सौंपा जा सकता है ऐसी स्थिति में उक्त नियुक्ति अभिकर्ता अपने कृतियों का संपादन मालिक के निर्देश अनुसार करेगा।
इस प्रकरण में यह भी उल्लेख है जब मालिक किसी व्यवसाय का प्रबंध एवं चलाने हेतु किसी अभिकर्ता को प्राधिकृत करता है तो अभिकर्ता उसी के अनुसार कोई कार्य किसी अवधि विशेष के लिए करेगा अर्थात निर्देश तो मालिक के द्वारा ही दिए जाएंगे कोई भी अभिकर्ता किसी मालिक के निर्देशों की अवहेलना करके अपने अनुसार कोई कार्य नहीं कर सकता है निर्देश मालिक के द्वारा दिए जाते हैं तथा उस निर्देश का पालन तब तक करना होता है तब तक उस प्रयोजन को पूरा नहीं कर दिया जाता जिस प्रयोजन के लिए अभिकरण की संविदा की गई है। अभिकर्ता के मालिक के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं इसका उल्लेख अगले आलेख में किया जाएगा।
मालिक की ओर से क्रय करने की शक्ति
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत अभिकर्ता के सभी कर्तव्य है। जो कार्य मालिक द्वारा किए जा सकते हैं मुख्तारनामा के द्वारा मालिक किसी अभिकर्ता को क्रय करने की शक्ति प्रदान कर देता है किसी युक्तियुक्त ब्याज दर पर यदि कोई माल का क्रय करता है किंतु यदि उक्त क्रय किए गए निर्णय से मालिक को लाभान्वित हो न तात्पर्य तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता वैसा कार्य व्यवहार संपन्न कर सकता है।
परशुराम अग्रवाल बनाम फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया एआईआर 1994 उड़ीसा 292 के प्रकरण में कहा गया है कि वह कोई क्रय उसी सीमा तक संपन्न करने हेतु अधिकृत है जितना मामले की परिस्थितियों के अनुसार उचित एवं न्याय संगत होता है। एक प्रकरण में यह अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय खाद्य निगम एफसीआई का यह दायित्व है कि उसने अपने अभिकर्ता के द्वारा जितना कार्य करवाया है उसे अपने व्यवहार में लाएं।
विक्रय का प्राधिकार
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक द्वारा अभिकर्ता को विक्रय का भी प्राधिकार सौंप दिया जाता है। इस प्रकार का प्राधिकार उसे मुख्तारनामा के माध्यम से सौंपा जाता है तथा अभिकर्ता उस चीज को बेचने के लिए शक्तिशाली हो जाता है जिस चीज को मालिक सकता है परंतु ऐसा विक्रय रहे मालिक के निर्देशों के अनुसार ही किए जाएगा जिस प्रकार किसी वस्तु को मालिक बेच सकता है। इसी प्रकार से किसी वस्तु को एक अभिकर्ता भी बेच सकता है। यदि सामान्य तौर पर अभिकर्ता को किसी माल के विक्रय के संदर्भ में नियुक्त किया गया है तो वह माल का विक्रय करेगा इस निमित्त दलाल से भी संपर्क करने के लिए अधिकृत होगा और उन सभी कार्यों को कर सकता है जो युक्तियुक्तता और लोक नीति के विरुद्ध न हो, कोई भी ऐसा कार्य कर सकता है जिसे एक सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति करता है।
परंतु विक्रय के प्राधिकार का उपयोग करते हुए अभिकर्ता को कुछ बातों को ध्यान में रखना होता है जैसे कि
वह विक्रय से मालिक को लाभान्वित करेगा।
वह मालिक के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होगा।
वह युक्तियुक्त रूप में कार्य करेगा।
वह मालिक को हानि से बचाएगा।
उसके कार्य में स्पष्टता होगी।
बड़बिक बनाम ग्रांड 1974 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां क्रय अथवा विक्रय उसी रूप में होंगे वहां इससे संबंधित बातों का विवरण विक्रय की संविदा में किया जाता है।
कॉल शेखर पटनम हैंड मैच वर्कर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाम राधेलाल लल्लू लाल 1971 एम् पि एल जी 552 के प्रकरण में तय हुआ है कि जहां कोई विक्रय विलेख निष्पादित करने संबंधी कोई शक्ति अथवा पर अधिकार प्रदान किया गया है तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता उक्त प्रकार की सीमा में रहकर ही अपने कार्यों का निष्पादन करेगा।
संदाय करने का प्राधिकार
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत जिस प्रकार मालिक को कोई भुगतान करने का अधिकार प्राप्त होता है इसी प्रकार वह पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से किसी एजेंट को अपनी ओर से संदाय करने का अधिकार प्रदान कर सकता है तथा इस हेतु उसे शक्तिशाली कर सकता है। कोई ऋण का संदाय करने संबंधी प्रतिकार उक्त संदर्भ में किसी अभिस्वीकृति के अधिकार से संबंधित हो सकता है। यदि कोई अनुबंध आंशिक संदाय से संबंधित है तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता मालिक की ओर से आंशिक संदाय करेगा। इसी प्रकार का विचार न्यायालय ने अन्ना चारी बनाम रत्नम के मामले में व्यक्त किया है।
भुगतान प्राप्त करने की शक्ति
अभिकर्ता को प्राप्त प्राधिकार के अंतर्गत भुगतान को प्राप्त करने की भी शक्ति प्राप्त हो सकती है यदि मालिक अभिकर्ता को कोई संदाय प्राप्त करने हेतु सशक्त किया करता है तो ऐसी स्थिति में उक्त अभिकर्ता मालिक के निर्देश अनुसार संदाय को प्राप्त कर सकता है तथा अभिकरण की संविदा में इस प्रकार का प्रावधान रखा जा सकता है कि कोई मालिक की ओर से कोई अभिकर्ता किसी संदाय को प्राप्त करें।
ऋण वसूलने का प्राधिकार
किसी भी अभिकरण की संविदा के अंतर्गत के मालिक द्वारा अभिकर्ता को अपने ऋण को वसूलने का अधिकार भी दिया जा सकता है। यदि मालिक ने अभिकर्ता को ऋण वसूलने का अधिकार प्रदान किया है तो ऐसी स्थिति में वह अभिकर्ता उक्त ऋण वसूल करने के लिए अधिकृत होता है। किंतु वह उसी को वसूल कर सकता है जिसके लिए अधिकृत है क्योंकि वह किसी ऐसे ऋण की वसूली नहीं कर सकता जिसे वसूलने का अधिकार नहीं प्राप्त है।
ऋण लेने का प्राधिकार
जिस प्रकार एक मालिक ऋण ले सकता है उसी प्रकार एक अभिकर्ता अपने मालिक की ओर से ऋण ले सकता है क्योंकि अभिकर्ता जब ऋण का संदाय कर सकता है तो उस ऋण को प्राप्त भी कर सकता है।
संविदा विधि के अंतर्गत इस प्रकार के ऋण को लेने का प्राधिकार अभिकर्ता को प्राप्त है। यह बात निसंदेह रूप में स्थापित है कि धारा 186 अभिकर्ता को ऋण की वसूली के लिए अधिकृत कर सकता है किंतु यह तभी किया जाएगा जबकि उक्त ऋण लेने की आवश्यकता हो और उक्त संव्यवहार समय के अनुसार आवश्यक हो।
बैंक ऑफ़ बंगाल बनाम रामनाथन चोटी एआईआर 1916 के प्रकरण में कौंसिल ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभिकर्ता उसी ऋण के विषय में प्राधिकृत किया जाएगा जिसके संदर्भ में उसका वैसा किया जाना सामान्य परिस्थितियों के अनुसार यथोचित और साम्यपूर्ण हो जबकि मालिक अभिकर्ता को इस निमित्त अधिकृत करता है कि वह मालिक के लिए कोई ऋण आदि ले तो ऐसी स्थिति में उक्त अभिकर्ता मालिक के लिए ऋण लेगा। जहां कोई फार्म सामान्य साझेदारी में हो या और कुछ धनराशि की आवश्यकता पड़ी थी वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि फर्म के अधिकृत अभिकर्ता के लिए उधार ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं।