जानिए वारंट क्या होते हैं?

Update: 2024-11-11 03:18 GMT

वारंट अदालत का पॉवर है जो किसी भी व्यक्ति को अदालत में हाज़िर किये जाने हेतु इस्तेमाल किया जाता है। वारंट कोर्ट को प्राप्त ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को गिरफ्तार कर कोर्ट के समक्ष लाए जाने का प्रावधान करती है। सर्वप्रथम तो कोर्ट जिस व्यक्ति को हाजिर करवाना चाहती है उस व्यक्ति को समन जारी किया जाता है। समन के माध्यम से कोर्ट में हाजिर करवाने का प्रयास किया जाता है लेकिन यदि व्यक्ति समन से बच रहा है और समन तामील होने के बाद भी कोर्ट के समक्ष हाजिर नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में कोर्ट को गिरफ्तार करके अपने समक्ष पेश किए जाने का वारंट जारी करती है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 72 के अधीन वारंट की अवधि बताई गयी है। कोई भी वारंट जब किसी कोर्ट के पीठासीन अधिकारी द्वारा जारी कर दिया जाता है तो वह वारंट उस समय तक जब तक वह उसे जारी करने वाली कोर्ट द्वारा निरस्त नहीं कर दिया जाता है या उसका निष्पादन नहीं कर दिया जाता तब तक वह वारंट प्रवर्तन में रहेगा। कोई भी वारंट जब तक वापस नहीं ले लिया जाता निष्पादन नहीं कर दिया जाता तब तक वह वारंट प्रवर्तन में रहता है। समन किसी भी व्यक्ति को कोर्ट में उपस्थित होने के लिए जारी किया जाता है जबकि वारंट गिरफ्तारी के लिए जारी किए जाते है। वह पुलिस अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के नाम से निर्दिष्ट होता है।

समन उस व्यक्ति को निर्दिष्ट होता है तथा उस व्यक्ति के पते पर ही निर्दिष्ट होता है जिस व्यक्ति के लिए जारी किया जाता है। जिस व्यक्ति को कोर्ट में उपस्थित किया जाना है समन उस व्यक्ति के पते पर ही जारी होता है लेकिन गिरफ्तारी वारंट उस व्यक्ति के नाम से तो जारी होता है लेकिन निर्दिष्ट किसी अन्य को होता है। किसी अन्य को आदेश होता है कि वह उस व्यक्ति को जिसके लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है उसे कोर्ट के समक्ष पेश करें।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत वारंट के प्रकार तो नहीं दिए गए है परंतु धारा 73 के अंतर्गत कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है कि वह स्वविवेकनुसार यह निर्देश दे सकता है कि यदि जिस व्यक्ति के नाम पर वारंट जारी किया गया है वह व्यक्ति नियत दिनांक को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का वचन दे रहा है तो कोई बंधपत्र न्यायालय को देता है तो ऐसी परिस्थिति में जमानत पर छोड़ा जा सकता है। वारंट दो प्रकार के होते हैं जमानतीय, गैर जमानतीय

जमानतीय वह वारंट है जिसमें प्रतिभूओ की संख्या या फिर कोई बंधपत्र की एक निश्चित धनराशि के आधार पर जिस व्यक्ति को वारंट निर्दिष्ट हुआ है उसे यह निर्देश होता है कि जिसके विरुद्ध वारंट है उसे छोड़ा जा सकता है और नियत तिथि को कोर्ट में उपस्थित होने का वचन लिया जा सकता है।

अर्थात कोर्ट जिस व्यक्ति को वारंट निर्दिष्ट करता है वह व्यक्ति बंधपत्र पर जमानत लेकर नियत तारीख को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश मात्र उस व्यक्ति को दे देता है जिस व्यक्ति को कोर्ट ने वारंट जारी किया है।

वारंट में तीन व्यक्तियों का महत्वपूर्ण रोल होता है।

पहला वह वारंट को जारी करने वाली कोर्ट

दूसरा जिस व्यक्ति को वारंट निर्दिष्ट किया गया है अर्थात जिस व्यक्ति को यह आदेश दिया गया है कि वह वारंट लेकर जाए। वारंट में जिस व्यक्ति की जानकारी दी गई है उस व्यक्ति को गिरफ्तार करके कोर्ट के समक्ष पेश करे।

तीसरा वह व्यक्ति जिस व्यक्ति के नाम पर वारंट को जारी किया गया है अर्थात वह व्यक्ति जिसे गिरफ्तार करके कोर्ट के समक्ष लाकर पेश करना है।

वह व्यक्ति जिन्हें वारंट निर्दिष्ट हो सकते हैं

कोर्ट जिन्हें वारंट निर्दिष्ट करेगा यह बीएनएसएस की धारा 74 एवं 75 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से दिया गया है तथा उन व्यक्तियों को बताया गया है जिन्हें कोर्ट वारंट निर्दिष्ट कर सकती है।

संहिता की धारा 75 बताती है कि कोर्ट गिरफ्तारी का वारंट मामूली तौर पर एक या एक से अधिक पुलिस अधिकारियों को निर्दिष्ट करेगा परंतु यदि वारंट का निष्पादन तुरंत करना है तो ऐसी परिस्थिति में कोई पुलिस अधिकारी मिल नहीं रहा है तो वारंट जारी करने वाली कोर्ट किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को वारंट जारी कर सकता है। एक से अधिक पुलिस अधिकारियों को वारंट जारी किया जा सकता है तथा इसका निष्पादन जिन भी एक से अधिक को जारी किया गया है वह सभी कर सकते है।

संहिता की धारा 75 कोर्ट को विस्तृत शक्ति देते हुए यह प्रावधान करती है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट किसी निकल भागे सिद्धदोष उद्घोषित अपराधी, किसी ऐसे व्यक्ति को जो गिरफ्तारी से बचने का प्रयास कर रहा है और वह गैर जमानतीय अपराध से अभियुक्त है ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी गिरफ्तारी वारंट अपनी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भी व्यक्ति को निर्दिष्ट कर सकता है।

आवश्यक नहीं है कि पुलिस को ही गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जाएगा कोर्ट अपने विवेक अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है और ऐसा व्यक्ति गिरफ्तारी के लिए किसी भूमि या अन्य संपत्ति में प्रवेश करता है तो उसका वारंट निष्पादन करेगा। जब ऐसा व्यक्ति वारंट के विरुद्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेता है तो उसे फौरन वारंट जारी करने वाली कोर्ट के समक्ष या फिर निकटतम पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा।

यह कोर्ट की बड़ी शक्ति है। इस शक्ति के माध्यम से कोर्ट किसी भी व्यक्ति को वारंट जारी करती है, निर्दिष्ट करती है तथा यहां पर पुलिस की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है।

जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया गया है यदि उसका निष्पादन कोर्ट की अधिकारिता के बाहर है तो ऐसी परिस्थिति में उसे जारी करने वाली कोर्ट डाक द्वारा अन्यथा किसी ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिला, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त को भेज सकता है जिसकी अधिकारिता स्थान में सीमाओं के अंदर उस का निष्पादन किया जाना है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला अधीक्षक या आयुक्त उस वारंट पर अपना नाम पृष्ठांकित करके उसका निष्पादन करता है।

रामप्रवेश सिंह बनाम जिला मजिस्ट्रेट देवरिया के मामले में कहा गया है कि किसी भी मामले में धारा 82 के उपबंध तब लागू होंगे जब गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति जेल में निरोधक नहीं है। यह उपबंध उस दशा में लागू नहीं होंगे यदि व्यक्ति पहले से ही जेल में बंद है।

इसका उल्लेख बीएनएसएस की धारा 81 करती है तथा धारा बताती है कि यदि कोर्ट द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को वारंट का निष्पादन करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है जिस पुलिस अधिकारी के क्षेत्राधिकार में निष्पादन नहीं होना है तो वह पुलिस अधिकारी ऐसा वारंट लेकर ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी से निम्न पंक्ति के पुलिस अधिकारी के पास जिसकी अधिकारिकता की स्थानीय सीमाओं के अंदर वारंट का निष्पादन किया जाना है लेकर जाएगा। पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी होना चाहिए तथा ऐसे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारंट का निष्पादन कर दिया जाता है।

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