भारत के सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. जी. सदाशिवन नायर बनाम कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मामले में पेंशन से संबंधित नियमों के असमान अनुप्रयोग (unequal application) पर विचार किया।
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार (Right to Equality) के उल्लंघन और पेंशन के अधिकार (Right to Pension) के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। अदालत ने पेंशन अधिकार, नियमों के पीछे की मंशा, और नियमों के असमान प्रयोग के प्रभावों पर चर्चा की।
नियम 25(क) (Rule 25(a)), केरल सेवा नियम (Kerala Service Rules - KSR)
केरल सेवा नियम के नियम 25(क) के तहत उन व्यक्तियों को अनुमति दी जाती है, जिन्हें बार (Bar) से सरकारी सेवा में भर्ती किया गया हो, कि वे पेंशन के लिए अपनी प्रैक्टिस के वर्षों को शामिल कर सकते हैं।
यह नियम 25 वर्ष की उम्र के बाद की प्रैक्टिस को अधिकतम 10 वर्षों तक जोड़ने की अनुमति देता है, बशर्ते सेवा समाप्ति (superannuation) पर न्यूनतम 8 वर्षों की सेवा हो।
हालांकि, 12 फरवरी 1985 को जोड़ा गया एक प्रावधान (proviso) इस लाभ को केवल उन पदों के लिए सीमित करता है, जिनके लिए कानून की योग्यता (Legal Qualification) और बार का अनुभव आवश्यक है।
मुख्य मुद्दा (Fundamental Issue)
इस मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि क्या 1984 में विश्वविद्यालय में शामिल हुए याचिकाकर्ता (Appellant) को अपने बार प्रैक्टिस के वर्षों को पेंशन के लिए गिनने का अधिकार था। विश्वविद्यालय ने 1985 में जोड़े गए प्रावधान का हवाला देकर यह लाभ देने से इनकार कर दिया। यह इनकार नियमों के पीछे की मंशा और समानता के अधिकार पर सवाल खड़ा करता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां (Supreme Court's Observations)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
नियमों के समान अनुप्रयोग की आवश्यकता (Equality in Rule Application)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समान परिस्थितियों (similarly situated individuals) वाले व्यक्तियों को समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता और डॉ. पी. लीला कृष्णन समान परिस्थितियों में थे, लेकिन डॉ. कृष्णन को बार प्रैक्टिस का लाभ दिया गया, जबकि याचिकाकर्ता को वंचित किया गया। इस प्रकार का असमान व्यवहार अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
नियमों का पूर्वव्यापी (Retrospective) प्रभाव
कोर्ट ने माना कि पेंशन नियम आमतौर पर सेवा समाप्ति के समय लागू होते हैं। हालांकि, 1985 में जोड़े गए प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव में लागू करना अनुचित था, खासकर जब संशोधन में ऐसा कोई स्पष्ट निर्देश नहीं था। यह सिद्धांत स्थापित करता है कि सेवा शर्तों में परिवर्तन व्यक्तियों के निहित अधिकारों (vested rights) को मनमाने तरीके से प्रभावित नहीं कर सकता।
पेंशन: एक निहित अधिकार (Pension as a Vested Right)
कोर्ट ने देओकी नंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य और आंध्र प्रदेश सरकार बनाम सैयद यूसुद्दीन अहमद मामलों पर जोर दिया, जिसमें पेंशन को एक निहित अधिकार बताया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सेवा समाप्ति के समय पेंशन का अधिकार तय होता है, और नियमों का पालन समान रूप से होना चाहिए।
संवैधानिक दृष्टिकोण (Constitutional Perspective)
अनुच्छेद 14, जो कानून के समक्ष समानता और मनमाने भेदभाव पर रोक लगाता है, का उल्लंघन इस मामले का केंद्र बिंदु था। 1985 के प्रावधान को चुनिंदा तरीके से लागू करना संविधान के समानता के सिद्धांतों के खिलाफ था। कोर्ट का यह फैसला प्रशासनिक निर्णयों को संविधान के सिद्धांतों के तहत रखने का महत्त्व दर्शाता है।
संदर्भित प्रमुख निर्णय (Landmark Judgments Cited)
कोर्ट ने इन महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया:
• देओकी नंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य: पेंशन को निहित अधिकार के रूप में स्थापित करना।
• आंध्र प्रदेश सरकार बनाम सैयद यूसुद्दीन अहमद: पेंशन के लिए सेवा समाप्ति के समय के नियम लागू होने की पुष्टि।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय समानता के संवैधानिक सिद्धांत और कानूनों के समान अनुप्रयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह न्यायपालिका की भूमिका को भी दर्शाता है कि वह प्रशासनिक मनमानी (arbitrariness) को रोकने और न्याय एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने में कैसे मदद करती है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उनके बार प्रैक्टिस सहित पेंशन लाभ प्रदान करने का निर्देश देकर न्याय का उदाहरण प्रस्तुत किया।