क्या राजनीतिक प्रभाव के आधार पर Prosecution Withdrawal उचित है?

Update: 2025-09-02 12:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फ़ैसला Shailendra Kumar Srivastava v. State of Uttar Pradesh & Anr. (2024 INSC 529) यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है कि क्या किसी आरोपी के राजनीतिक प्रभाव या जनछवि (Public Image) के आधार पर अभियोग वापसी (Withdrawal of Prosecution) की अनुमति दी जा सकती है।

यह निर्णय न केवल CrPC (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 321 की व्याख्या करता है बल्कि इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि किस तरह न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में देरी, राजनीतिक दबाव और अभियोजन विवेक (Prosecutorial Discretion) का दुरुपयोग न्याय के लिए खतरा बन सकता है।

धारा 321 CrPC (Section 321 CrPC)

धारा 321 CrPC लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को यह अधिकार देती है कि वह अदालत की अनुमति से किसी भी आरोपी के विरुद्ध अभियोग वापस ले सके। यह प्रावधान मूल रूप से इस उद्देश्य से बनाया गया है कि जहाँ अभियोग को जारी रखना निरर्थक हो या व्यापक जनहित (Public Interest) में न हो, वहाँ अभियोग वापसी हो सके। लेकिन इसका उद्देश्य कभी भी राजनीतिक दबाव या व्यक्तिगत हितों की पूर्ति नहीं रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोहराया कि किसी विधायक या जनप्रतिनिधि की लोकप्रियता अभियोग वापसी का आधार नहीं बन सकती। गंभीर अपराधों (Serious Crimes) में केवल “अच्छी छवि” दिखाकर अभियोग से बचना सार्वजनिक न्याय (Public Justice) के साथ धोखा होगा।

अभियोग वापसी की न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation of Withdrawal)

अभियोग वापसी पर कई ऐतिहासिक निर्णय दिए गए हैं। State of Bihar v. Ram Naresh Pandey (1957 SCR 279) में अदालत ने कहा कि अभियोग वापसी केवल सार्वजनिक न्याय (Public Justice) को ध्यान में रखकर ही हो सकती है, न कि निजी लाभ के लिए।

Sheonandan Paswan v. State of Bihar (1987 1 SCC 288) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोक अभियोजक (Public Prosecutor) का कार्य स्वतंत्र है और केवल न्यायहित (Interest of Justice) में ही अभियोग वापसी की जा सकती है।

Rajender Kumar Jain v. State (1980 3 SCC 435) में अदालत ने यह भी कहा कि अदालत अभियोजक के निर्णय को पूरी तरह से बदल नहीं सकती, लेकिन यह ज़रूरी है कि वह सुनिश्चित करे कि निर्णय दुर्भावना (Mala Fide) या बाहरी दबाव (Extraneous Considerations) से प्रेरित न हो।

इन्हीं निर्णयों की रोशनी में सुप्रीम कोर्ट ने Shailendra Kumar Srivastava केस में कहा कि किसी विधायक की “अच्छी छवि” या चुनावी जीत अभियोग वापसी का आधार नहीं हो सकती।

राजनीतिक प्रभाव का प्रश्न (Issue of Political Influence)

इस मामले का सबसे बड़ा मुद्दा राजनीतिक प्रभाव था। अदालत ने माना कि यह अत्यंत चिंताजनक है कि एक विधायक को केवल उसकी जनछवि और चुनावी सफलता के आधार पर अभियोग से मुक्त कर दिया गया।

अदालत ने कहा कि चुना जाना कभी भी नैतिकता या निर्दोषता का प्रमाण नहीं हो सकता। विशेषकर हत्या जैसे गंभीर अपराधों में अभियोग को “जनहित” के नाम पर वापस लेना न्याय के सिद्धांतों (Principles of Justice) के विपरीत है।

न्यायिक प्रक्रिया में देरी (Delay in Judicial Process)

मामले की एक और गंभीर समस्या अत्यधिक देरी थी। लगभग 30 साल तक मुकदमा लंबित रहा और हाईकोर्ट में 12 साल तक पुनरीक्षण याचिकाएँ (Revision Petitions) लंबित रहीं। इस दौरान ट्रायल कोर्ट (Trial Court) का काम भी ठप हो गया क्योंकि मूल अभिलेख (Original Records) हाईकोर्ट के पास थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतनी लंबी देरी न्याय से वंचित करने के समान है। अदालत ने ज़ोर दिया कि तेज़ सुनवाई (Speedy Trial) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है, जैसा कि Hussainara Khatoon v. State of Bihar (1979 AIR 1369) में माना गया था।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court's Ruling)

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया जिसमें आरोपी विधायक के विरुद्ध अभियोग वापसी की अनुमति दी गई थी। अदालत ने कहा कि “अच्छी छवि” या “जन समर्थन” अभियोग वापसी का कोई वैध आधार नहीं है।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह केवल रिकॉर्ड की प्रतियाँ (Copies) रखे और मूल रिकॉर्ड ट्रायल कोर्ट को वापस करे ताकि मुकदमा शीघ्र पूरा हो सके।

संवैधानिक पहलू (Constitutional Dimensions)

यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से सीधे जुड़ा है। अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार (Right to Equality) देता है और यदि राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों को विशेष छूट दी जाए तो यह समानता का उल्लंघन होगा।

अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Life and Personal Liberty) की गारंटी देता है, जिसमें पीड़ितों और उनके परिवारों का शीघ्र न्याय पाने का अधिकार भी शामिल है। लंबे समय तक मुकदमे को खींचना इस अधिकार का हनन (Violation) है।

व्यापक प्रभाव (Broader Implications)

यह निर्णय अदालतों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि अभियोग वापसी (Withdrawal of Prosecution) असाधारण परिस्थिति में ही दी जा सकती है। न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अभियोजन विवेक (Prosecutorial Discretion) का राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए दुरुपयोग न हो।

इसके अतिरिक्त यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। जहाँ कहीं यह लगे कि अभियोग वापसी राजनीतिक दबाव में हो रही है, वहाँ अदालतों को हस्तक्षेप करना चाहिए।

Shailendra Kumar Srivastava v. State of Uttar Pradesh & Anr. में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह सिद्ध करता है कि राजनीतिक प्रभाव और लोकप्रियता कभी भी न्याय के स्थान पर नहीं आ सकते। धारा 321 CrPC का उद्देश्य जनहित (Public Interest) की रक्षा करना है, न कि शक्तिशाली लोगों को अपराध से बचाना।

इस फैसले से अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि न्याय केवल क़ानून और साक्ष्यों (Law and Evidence) पर आधारित होगा, न कि राजनीतिक ताक़त पर। यह निर्णय न केवल अभियोग वापसी की सीमा तय करता है बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence) और संविधान की मूल भावना (Constitutional Spirit) की भी रक्षा करता है।

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