सुप्रीम कोर्ट के Independent Thought बनाम भारत संघ (2017) मामले में मुख्य प्रश्न यह था कि क्या 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से विवाह के बाद यौन संबंध बनाना रेप (Rape) माना जाएगा। भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 (Exception 2) के अनुसार, यदि लड़की 15 वर्ष से अधिक है और उसकी शादी हो चुकी है, तो पति द्वारा बनाए गए यौन संबंध को रेप नहीं माना जाएगा।
यह अपवाद बाल अधिकार (Child Rights) और बच्चों के यौन शोषण (Sexual Exploitation) से सुरक्षा को लेकर बने कानूनों के खिलाफ था, जिससे गंभीर संवैधानिक और नैतिक प्रश्न उत्पन्न हुए।
कानूनी ढांचा (Legal Framework)
आईपीसी (IPC) की धारा 375 के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से यौन संबंध बनाना वैधानिक रेप (Statutory Rape) के अंतर्गत आता है, भले ही वह लड़की की सहमति (Consent) से हो। लेकिन, अपवाद 2 ने एक असमानता पैदा की, जिसके अनुसार अगर लड़की 15 से 18 वर्ष की है और उसका विवाह हो चुका है, तो उसका पति उससे सहमति के बिना भी यौन संबंध बना सकता था।
यह अपवाद बाल संरक्षण कानूनों जैसे 'Protection of Children from Sexual Offences Act' (POCSO) और 'Prohibition of Child Marriage Act' (PCMA) से टकराव में था, जिनमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से यौन संबंध को अपराध माना गया है।
संवैधानिक उल्लंघन और बाल अधिकार (Constitutional Violations and Rights of the Child)
सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि यह अपवाद (Exception) विवाहित और अविवाहित लड़कियों के बीच भेदभाव करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (Article 14 – Equality) का उल्लंघन है। इसके अलावा, यह शरीर की अखंडता (Bodily Integrity) और प्रजनन की स्वतंत्रता (Reproductive Choice) के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो अनुच्छेद 21 (Article 21 – Right to Life) द्वारा संरक्षित हैं।
कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि 18 वर्ष से कम उम्र की प्रत्येक लड़की, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, बच्ची ही मानी जाएगी और उसे पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 15(3) (Article 15(3)) सरकार को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions) बनाने की शक्ति देता है। लेकिन, यह अपवाद 15(3) के उद्देश्य के विपरीत था, क्योंकि यह बालिका के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करता।
अंतरराष्ट्रीय दायित्व (International Commitments)
भारत संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (United Nations Convention on the Rights of the Child - CRC) और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने वाली संधि (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women - CEDAW) जैसे कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों का हिस्सा है, जो बच्चों को हर प्रकार के शोषण (Exploitation) और हिंसा (Violence) से बचाने पर ज़ोर देते हैं। कोर्ट ने कहा कि आईपीसी (IPC) का यह अपवाद इन अंतरराष्ट्रीय समझौतों के साथ मेल नहीं खाता।
कोर्ट का निर्णय और व्याख्या (The Court's Interpretation and Ruling)
इस मामले पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से विवाह के बाद भी यौन संबंध बनाना रेप माना जाएगा। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित किया, जहाँ यह पति को 15 से 18 वर्ष की उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति देता था। इस निर्णय के बाद, भारतीय कानून POCSO अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा के साथ संगत हो गया।
कोर्ट द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे (Fundamental Issues Addressed by the Court)
1. बालिका अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Girl Child's Rights)
कोर्ट ने बालिका के अधिकारों की सुरक्षा की महत्ता पर ज़ोर दिया। विवाहित और अविवाहित लड़कियों के बीच का भेदभाव अनुचित था। कोर्ट ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की, चाहे वह विवाहित हो या नहीं, बच्चे के रूप में मानी जाएगी और उसे यौन हिंसा (Sexual Violence) से पूरी तरह से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
2. अन्य बाल संरक्षण कानूनों के साथ संघर्ष (Conflict with Other Child Protection Laws)
यह निर्णय अन्य बाल संरक्षण कानूनों जैसे POCSO अधिनियम और PCMA के साथ आईपीसी के अपवाद 2 के टकराव को दूर करता है। जहाँ ये कानून 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन गतिविधियों को अपराध मानते हैं, वहीं आईपीसी में पति को एक विशेष छूट मिल रही थी।
कोर्ट ने इस संघर्ष को यह कहते हुए हल किया कि किसी भी लड़की, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, के साथ यौन संबंध बनाना अपराध होगा यदि वह 18 वर्ष से कम उम्र की है।
3. शरीर की अखंडता और प्रजनन की स्वतंत्रता (Bodily Integrity and Reproductive Choice)
इस निर्णय ने यह भी स्थापित किया कि महिला, चाहे वह बालिका हो या वयस्क, को अपने शरीर की अखंडता और प्रजनन संबंधी फैसले लेने का पूरा अधिकार है। किसी भी महिला को यह अधिकार है कि वह यौन गतिविधियों (Sexual Activities) में भाग लेने से इंकार कर सके और उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
4. तस्करी और बाल विवाह (Trafficking and Child Marriages)
कोर्ट ने यह भी माना कि बाल विवाह अक्सर तस्करी (Trafficking) और यौन शोषण (Sexual Exploitation) का माध्यम बनते हैं। बालिकाओं पर इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, जिनका जीवन भर असर रहता है। कोर्ट का यह निर्णय बालिकाओं को बाल विवाह और उसके बाद होने वाले यौन शोषण से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बालिकाओं के संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) को सुदृढ़ करता है और भारतीय कानून को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाता है। 15 से 18 वर्ष की विवाहित बालिकाओं के साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति देने वाले अपवाद को हटाकर, कोर्ट ने बालिकाओं के शरीर की अखंडता, समानता और यौन हिंसा से मुक्त रहने के अधिकारों को सुनिश्चित किया है।
यह निर्णय सभी बच्चों, चाहे वे विवाहित हों या नहीं, के लिए कानून के तहत समान सुरक्षा प्रदान करता है और बाल अधिकारों के प्रति एक सकारात्मक कदम है।