भारतीय दंड संहिता (IPC) भाग 14 : भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले अपराध

Update: 2020-12-19 08:58 GMT

पिछले आलेख में झूठी गवाही देने के अपराधों के संदर्भ में चर्चा की गई थी इस आलेख में लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले अपराधों का उल्लेख किया जा रहा है।

लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले अपराध-

भारतीय दंड संहिता अपने उस उद्देश्य को प्राप्त करना चाहती है जिसमें वह एक स्वस्थ समाज, एक शांत समाज तथा एक सदाचारी समाज की स्थापना कर सके। सभी नागरिकों का तथा गैर नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वह सभी भारत की सीमा के अंतर्गत आने वाले किसी भी भूभाग पर बसने वाले भारतीय समाज में किसी प्रकार के ऐसे अपराध को नहीं करें जिससे लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़े, सुविधा को नुकसान हो उसका का पतन हो जाए। एक स्वस्थ समाज के लिए यह आवश्यक है कि वहां शिष्टाचार होना चाहिए वहां लोक स्वास्थ्य के संदर्भ में समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। शिष्टाचार और सदाचार अच्छे व्यवहार में निहित होते हैं अर्थात अच्छे व्यवहार का दूसरा नाम ही शिष्टता और सदाचार है। एक दूसरे के साथ अभद्र शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाए अश्लीलता पूर्ण व्यवहार नहीं किया जाए। ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाए जिससे नैतिकता का पतन हो अथवा स्वस्थ, क्षेम और सुविधा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।

इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारतीय दंड संहिता के अध्याय 14 में उन सभी अपराधों का उल्लेख कर दिया गया है जो लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं, लोक सुविधा को संकट में डालते हैं और सदाचार तथा शिष्टाचार को प्रभावित करते हैं।

इस आलेख में हम लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के संबंध में अध्ययन करेंगे।

मनुष्य द्वारा ऐसे अनेक कार्य किए जाते हैं जिनके माध्यम से लोक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारतीय दंड संहिता के अध्याय 14 के अंतर्गत धारा 268 से लेकर 278 तक में लोक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अपराधों के बारे में उल्लेख किया गया है।

10 धाराओं के अंतर्गत उन सभी अपराधों को उल्लेखित कर दिया गया है जिनके माध्यम से लोक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला जाता है।

लोक न्यूसेंस-

भारतीय दंड संहिता की धारा 268 लोक न्यूसेंस के संदर्भ में उल्लेख कर रही हैं। इस धारा के अनुसार लोक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले विभिन्न अपराधों के अंतर्गत लोक न्यूसेंस को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है। न्यूसेंस को हिंदी में लोक अपदूषण भी कहा जाता है परंतु यहां पर पढ़ने की सुविधा के अनुसार लोक न्यूसेंस शब्द उपयोग किया जा रहा है, भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत भी लोक न्यूसेंस शब्द इस्तेमाल किया गया है।

लोक न्यूसेंस का अर्थ है अपने कार्य द्वारा सार्वजनिक रूप से किसी को हानि पहुंँचाना या बाधा उत्पन्न करना। न्यूसेंस एक ऐसा दूषित कार्य है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपत्ति के उपभोग में अथवा सामान्य अधिकारों के प्रयोग में बाधा उत्पन्न करता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 268 के अनुसार जब कोई व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी होता है तब किसी कार्य अवैध लोप का दोषी होता है जिससे कोई सामान्य क्षति, संकट पैदा हो। जनता को इस प्रकार का संकट पैदा होता है उन सामान्य लोगों को जो निकट रहते हैं या आसपास की संपत्ति पर अधिकार रखते हैं। इस प्रकार का न्यूसेंस उन लोगों को क्षति कारित करता है जिससे उन लोगों को क्षति संकट पहुंचाना अवश्यंभावी है जिन्हें सार्वजनिक अधिकार का उपयोग करने का अवसर प्राप्त हो।

हमें अनेक स्थानों पर समाज के भीतर लोक न्यूसेंस देखने को मिलता है। कोई ऐसा कार्य जो जनसाधारण के स्वास्थ्य, सुविधा और सुख में गंभीर अवरोध पैदा करते हैं और लोक को दूषित करते हैं यह लोक न्यूसेंस माने जाते हैं।

जैसे कि किसी सार्वजनिक स्थान पर पशुओं का वध करना, पत्थरों को पटक देना, गड्ढों को खोद देना, किसी घर के पास जुआ घर या वेश्यालय चलाना, किसी घर के सामने खड़े होकर गालियां देना, किसी घर के सामने तेज ध्वनि में वाहनों के हॉर्न बजाना यह सब लोक न्यूसेंस के प्रतीक है।

लोक न्यूसेंस के अंतर्गत कोई ऐसा कार्य किया जाता है जो अवैध हो तथा कोई कार्य ऐसा भी होता है जो अवैध नहीं हो कर भी लोक न्यूसेंस फैलाता है। इस प्रकार के कार्य के माध्यम से सामान्य लोगों को जो उस घटना के आस पास रहते हैं उनके संपत्ति के अधिकार से वंचित किया जाता है।

वीरप्पा शेट्टी के मामले में अभियुक्तों द्वारा सर्वजनिक मार्ग के एक भाग पर वन बना दिए जाने को लोक न्यूसेंस माना गया। इसी प्रकार निसार मोहम्मद खान के एक प्रकरण में ऐसे व्यक्ति को लोक अपदूषण का दोषी ठहराया गया जिसने सर्वजनिक मार्ग में ऐसे छोटे से भाग पर अतिक्रमण कर लिया था जिसका अवश्यंभावी परिणाम लोगों के आवागमन में बाधा कारित होना था। पूरे मार्ग की एक-एक इंच भूमि आवागमन के उपयोग में लाई जाने वाली थी।

लोक न्यूसेंस व्यक्तिगत भी हो सकता है। व्यक्तिगत न्यूसेंस से अभिप्राय किसी व्यक्ति द्वारा अपनी निजी संपत्ति का इस तरह और अधिकृत रूप से उपयोग करना जिससे कि दूसरे की संपत्ति को क्षति पहुंचती हो या दूसरे व्यक्ति की संपत्ति या संपत्ति अधिकारों में अनाधिकृत रूप से हस्तक्षेप करना जिससे कि उसको कोई क्षति पहुंचती हो। हवा में प्रकाश को दूषित करना, जहरीली गैस फैलाना, जैसे कि जर्मन के तारों को जलाकर उनमें से कार्बन निकालना, रेडियो टीवी पर गाने सुन सुनकर तेज आवाज में जनता को परेशान करना, तेज़ ढोल ताशे इत्यादि बजाकर लोक न्यूसेंस फैलाना।

संक्रमित रोग को फैलाना-

भारतीय दंड संहिता की धारा 269 धारा 270 और धारा 271 किसी संक्रमित रोग को फैलाने के संदर्भ में अपराधों का उल्लेख कर रहीं हैं। कोई ऐसा रोग जिसका संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लगता है इस प्रकार को रोग को फैलाना दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। हाल ही के मामले में कोरोना संक्रमण काल के अंतर्गत कोरोना के मरीजों द्वारा यह जानते हुए कि उन्हें कोरोना रोग हुआ है उसके बाद भी संक्रमण को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को फैलाने के उद्देश्य से सड़कों पर, मार्गों पर, मोहल्लों में खुला हुआ घूमना जिससे संक्रमण किसी दूसरे व्यक्ति को लगने का भी खतरा होता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 269 ऐसे विधिवत रूप से उपेक्षा से ऐसे कोई कार्य को करने को दंडनीय अपराध घोषित करता है जिसके माध्यम से किसी रोग का संक्रमण फैलाया जा रहा हो। धारा 269 इस प्रकार के अपराध के परिणामस्वरूप 6 माह तक की अवधि के कारावास का निर्धारण करती है।

द्वेषपूर्वक किसी रोग को फैलाना-

जिस प्रकार भारतीय दंड संहिता की धारा 269 उपेक्षापूर्ण तरीके से किसी संक्रमित रोग को फैलाने के संदर्भ में है इसी प्रकार धारा 270 द्वेषपूर्ण तरीके से किसी ऐसे कार्य को करने के संदर्भ में उल्लेख कर रही है जिससे कोई रोग समाज में फैल जाए। किसी व्यक्ति को संक्रमित रोग है इसकी जानकारी होने के पश्चात भी यदि वह व्यक्ति समाज के भीतर उस रोग को द्वेषपूर्वक फैला रहा है तो ऐसी स्थिति में दंड संहिता की धारा-270 (2) वर्ष तक की अवधि के कारावास का निर्धारण करती है।

धारा 271 के अंतर्गत संक्रमित व्यक्तियों को क्वारन्टीन के अंतर्गत रखा जाता है तथा इस प्रकार के संक्रमित व्यक्ति यदि क्वारन्टीन के नियमों का उल्लंघन करते हैं या उनके नियमों की अवज्ञा करते हैं तो धारा 271 इस प्रकार की अवज्ञा करने वाले व्यक्तियों के संदर्भ में दंड की व्यवस्था करती है। इस प्रकार के क्वारन्टीन के नियमों की अवज्ञा करने पर छह माह की अवधि तक के कारावास के दंड का निर्धारण किया गया है।

रकमा के एक पुराने मामले में अभियुक्त रतिजन्य द्वारा पीड़ित जो कि पेशे से एक वेश्या थी। जिसमें एक व्यक्ति को यह कहकर कि वह बिल्कुल स्वस्थ है अपने साथ लैंगिक संभोग करने के लिए आमंत्रित किया इसके परिणाम स्वरूप उस व्यक्ति को वह रोग हो गया। प्रकरण में यह धारण किया गया कि इस धारा के अंतर्गत वेश्या अपराध की दोषी नहीं थी क्योंकि वह पुरुष स्वयं जिम्मेदार व्यक्ति था और उसके साथ वेश्यावृत्ति के लिए तैयार था फिर यह भी संदेहास्पद है कि उस रोग को जीवन के लिए संकटपूर्ण माना जा सकता है या नहीं।

खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट करना-

व्यक्ति द्वारा बाजार में बेची जाने वाली खाद्य सामग्री को विश्वास के आधार पर क्रय किया जाता है। कभी किसी व्यापारी द्वारा इस प्रकार की खाने पीने की वस्तुएं में कोई ऐसी मिलावट की जा रही है जिससे वस्तु का वजन बढ़ाया जा सके यह लोक स्वास्थ्य के प्रति घोर अपराध है तथा भारतीय दंड सहिंता इस प्रकार के अपराध को माफी योग्य नहीं मानती है।

दंड संहिता की धारा 272 खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट करने पर 6 माह की अवधि तक के कारावास का प्रावधान करती है तथा जुर्माने की भी व्यवस्था करती है। धारा 272 जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अपमिश्रण को दंडनीय अपराध घोषित करती है। इस धारा के अंतर्गत वस्तु ऐसी होना चाहिए जिसकी मिलावट जन स्वास्थ्य के लिए संकट है।

धारा 273 ऐसी वस्तु का विक्रय करने को दंडनीय अपराध घोषित करती है। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से किया गया अपमिश्रण इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है। इस धारा के संदर्भ में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट ऐसे पदार्थ की की जा रही हो जो जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। चोकराज मारवाड़ी ही के प्रकरण में यह निर्धारित किया गया है कि दूध में पानी मिलाकर बेचना धारा 273 के अंतर्गत दंडनीय अपराध नहीं है क्योंकि पानी लोक स्वास्थ्य को कोई हानि नहीं पहुंचाता है परंतु आजकल दूध में कई प्रकार के ऐसे कैमिकल मिलाए जा रहे हैं जिनसे लोक स्वास्थ्य को घनघोर खतरा है। इस प्रकार के प्रकरणों में भारतीय दंड संहिता की धारा 273 दंड की व्यवस्था करती है।

जानबूझकर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य अपायकर पदार्थों को बेचना इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है। रोटी बनाने के लिए अनाज आवश्यक है और अपेक्षित वस्तु है और वह निश्चित रूप से इस धारा के अर्थ में खाद्य पदार्थ है। कसौटी यह है कि क्या खाद्य के रूप में कोई पदार्थ सारवान तथा अपेक्षित है स्वामी और पति क्रमश सेवक तथा पत्नी के लिए उत्तरदायी है यदि उन्हें इस बात का ज्ञान है कि विक्रय के लिए प्रस्तावित पदार्थ अपायकर था।

औषधियों का अपमिश्रण-

औषधियों में अपमिश्रण किया जाना रोगियों के जीवन से खिलवाड़ है। रोगी किसी भी औषधि का सेवन अत्यंत विश्वास के साथ करता है तथा उस औषधि को बनाने वाले उत्पादक पर रोगी को पूरा विश्वास होता है। विश्वास के साथ में उस ओषधि को खाता है तथा उसे यह विश्वास होता है कि औषधि को खाने के पश्चात वह रोग से मुक्त हो जाएगा औषधि में किसी प्रकार की मिलावट करना रोगियों के विश्वास को तोड़ना होगा।

भारतीय दंड संहिता की धारा 274 औषधियों में मिलावट के संदर्भ में उल्लेख कर रही है, इस धारा के अनुसार जो कोई किसी औषधि में किसी प्रकार का अपमिश्रण इस आशय से यह संभव जानते हुए कि वह किसी औषधीय प्रयोजन के लिए ऐसे बेची जाएगी उपयोग में की जाएगी मानो उसमें ऐसा अपमिश्रण न हुआ हो। इस प्रकार से अपमिश्रण करेगा इस अपराध के लिए 6 महीने की अवधि के कारावास तक का निर्धारण किया गया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 275 इस प्रकार अपमिश्रण की गई औषधियों को बेचने के संबंध में दंड का उल्लेख करती है जो इस प्रकार से मिलावट की गई दवाइयों को बेचेगा उसे 6 महीने तक के कारावास के दंड का भुगतान करना होगा।

कुए नदी तालाब को गंदा करना-

भारतीय संहिता की धारा 277 लोक जल स्त्रोत जलाशय को दूषित भ्रष्ट और कलुषित करने के संबंध में उल्लेख कर रही है। यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी लोक जलाशय को दूषित कर दिया जाता है तो उसे 3 महीने के दंड का भुगतान करना होगा। 3 महीने तक के कारावास का इस धारा के अंतर्गत निर्धारण किया गया है।

जैसे कि किसी कुएं में कोई दूषित पदार्थ डाल देना, किसी मरे हुए जानवर को फेंक देना जिससे उस कुए का पानी उपयोग में लाया जाना दूभर हो जाए। इस प्रकार के कुए का उपयोग जब लोक द्वारा किया जाता है तब धारा 277 के अंतर्गत प्रकरण बनता है अन्यथा रिष्टि के मामले में बनता है।

इसी प्रकार वायुमंडल को जीवन के लिए हानिकारक बनाने के संदर्भ में भी दंड का प्रावधान किया गया है। किसी गैस के माध्यम से यदि वायुमंडल को दूषित किया जा रहा है और जीवन के लिए खतरा बनाया जा रहा है तो इस स्थिति में भी भारतीय दंड संहिता की धारा 278 जुर्माने का प्रावधान करती है।

अगले आलेख में लोक सुविधा को प्रभावित करने वाले अपराधों के संदर्भ में तथा शिष्टाचार और सदाचार को प्रभावित करने वाले अपराधों के संदर्भ में उल्लेख किया जाएगा।

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