Consumer Protection Act में क्रिमिनल प्रक्रिया का पालन

Update: 2025-06-06 04:10 GMT

इस एक्ट की धारा 88 के अनुसार कुछ क्रिमिनल प्रावधान किए गए हैं एवं 88 के साथी कुछ अन्य धाराएं भी हैं जो इस अधिनियम के अंतर्गत पारित किए गए आदेशों के पालन करवाए जाने में महत्वपूर्ण साबित होती है। इन धाराओं का प्रयोग करके फोरम उन व्यक्तियों को जेल भेज सकती है जो फोरम के दिए गए आदेश की अवहेलना करते हैं और आदेश का पालन नहीं करता किस लिए फार्म द्वारा पारित किए गए किसी भी आदेश का पालन करना नितांत आवश्यक है।

धारा 88 के अन्तर्गत कार्यवाही को उपभोक्ता विवाद की तरह नहीं माना जा सकता। फलस्वरूप धारा 27 के अन्तर्गत पारित आदेश रिट याचिका में चुनौती योग्य होगा।

जहां परिवादी को फ्लेट एस सी /एस टी श्रेणी के अन्तर्गत आंवटित किया जाना चाहिए था, किन्तु उसके मामले को उक्त सन्दर्भ में दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा नहीं स्वीकार किया गया। राज्य आयोग ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को ऐसा करने के लिए निर्देश दिया कि परिवादी को एस सी/एस टी अभ्यर्थियों के मूल्य पर फ्लैट का आवंटन किया जाय, किन्तु दिल्ली विकास प्राधिकरण ने उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया, वहां कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण बिना किसी संशोधन, परिवर्तन या परिवर्द्धन के राज्य आयोग के आधारभूत आदेश को मानने के लिए बाध्य है।

जिस प्रावधान को हाईकोर्ट द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया हो, इस प्रावधान के अधीन जिला फोरम द्वारा जो हाईकोर्ट की अधिकारिता के अन्तर्गत हो, पारित आदेश अपास्त किए जाने के लिए दावी है।

विक्रय विलेख के निष्पादन में विलम्ब का प्रभाव-विक्रय विएव को निष्पादित करने में याची की ओर से विलम्ब वर्धित कोर्ट फीस का संदाय करने के लिए परिवादी के दायित्व में वृद्धि नहीं कर सकता है।

चूंकि ऐसे रूप में कोई भी अंतिम आदेश अधिनियम की धारा 88 के अधीन प्रत्यर्थियों द्वारा दाखिल की गयी याचिकाओं पर स्वीकार्यरूपेण नहीं पारित किया गया इसलिए धारा 88 के अधीन कोई प्रश्न नहीं होता है। अतएव अपील के वैकल्पिक कानूनी उपचार की धारा के आधार पर रिट याचिका की पोषणीयता के बारे में प्रत्यर्थियों की ओर से किसी भी प्रारम्भिक आक्षेप को स्वीकृत नहीं किया जा सकता।

परिवाद का खारिज किया जाने के विरुद्ध पुनरीक्षण जहां याची को एक फ्लैट आवंटित किया गया और उसको उसका कब्जा भी दे दिया गया वहां चूंकि वह रकम की बकाया किस्त का संदाय करने में असफल रहा इसलिए विरोधी पक्षकार को उससे फ्लैट वापस ले लेने को न्यायसंगत माना गया जिसके परिणामस्वरूप याची द्वारा दाखिल किये गये परिवाद की पारिजी तथा उसके विरुद्ध पुनरीक्षक की वारिजी को उचित माना गया।

इस ही प्रकार धारा- 89 के अनुसार

कोई विनिर्माता सेवा प्रदाता, जो किए जाने वाले ऐसे मिथ्या या भ्रामक विज्ञापन कारित करवाता है जो उपभोक्ताओं के हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो दो वर्ष का हो सकेगा और ऐसे जुमाने से, जो दस लाख रुपए तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा और प्रत्येक पश्चात्वर्ती अपराध के लिए ऐसी अवधि के कारावास से, जो पांच वर्ष का हो सकेगा और ऐसे जुमाने से, जो पचास लाख तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा भ्रमक और झूठे विज्ञापन को रोकने हेतु निर्मित की गई है। इस धारा के अंतर्गत किसी भी व्यापारी द्वारा अपने उत्पाद को बेचने के लिए कोई झूठा या भ्रामक विज्ञापन किसी टेलीविजन या अखबार में चलाया जाता है और उसका विज्ञापन झूठा भ्रमक पाया जाता है तथा उसके विज्ञापन के कारण किसी व्यक्ति को क्षति होती है। ऐसी स्थिति में धारा 89 दंड का प्रावधान करती है। जहां 2 वर्ष तक के दंड के कारावास का उल्लेख किया गया है और साथ में पचास लाख रुपए तक के जुर्माने का भी उल्लेख किया गया है।

धारा 90 के अनुसार

अपद्रवव्य को अन्तर्विष्ट करने वाले उत्पादों के विक्रय का भंडारण, विक्रीत या वितरण या आयात के लिए विनिर्माण हेतु दंड-

(1) जो कोई, स्वयं या उसकी ओर सेकिसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी अपद्रव्य को अन्तर्विष्ट करने वाले किसी उत्पाद को विक्रय के लिए विनिर्माण करता है या भंडारित करता है या उसका विक्रय करता है या आयात करता है, -

(क) यदि ऐसे कार्य का परिणाम उपभोक्ता को कोई क्षति नहीं है, ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा और ऐसे जुर्माने से, जो तीन लाख रु० तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा;

(ख) ऐसी क्षति कारित करना, जो उपभोक्ता को हुई घोर उपहति की कोटि में नहीं आती है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और ऐसे जुर्माने से, जो तीस लाख रू तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा;

(ग) ऐसी क्षति कारित करना जिसका परिणाम उपभोक्ता को हुई घोर उपहति है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और ऐसे जुमनि से, जो पांच लाख रू तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा;

(घ) जिसका परिणाम उपभोक्ता की मृत्यु है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो सात वर्ष से कम नहीं होगा किन्तु जो आजीवन कारावास तक का हो सकेगा और ऐसे जुमान से, जो दस लाख रूप से कम का नहीं होगा, से दंडनीय होगा।

(2) उपधारा (1) के खंड (ग) और खंड (घ) के अधीन अपराध संज्ञेय तथा अजमानतीय होंगे।

(3) उपधारा (1) के अधीन दंड के होते हुए भी, कोर्ट प्रथम बार की दोषसिद्धि के मामले में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन उस उपधारा में निर्दिष्ट व्यक्ति को जारी की गई अनुज्ञप्ति को दो वर्ष तक की अवधि के लिए निलंबित कर सकेगा और दूसरी बार या पश्चात् दोषसिद्धि के मामले में अनुज्ञप्ति को रद्द कर सकेगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिए

(क) अपद्रव्य से ऐसी कोई सामग्री, जिसके अन्तर्गत बाह्य पदार्थ भी है, अभिप्रेत है जिसे उत्पाद को असुरक्षित बनाने के लिए नियंत्रित या प्रयुक्त किया जाता है;

(ख) घोर उपहति का वही अर्थ होगा जो उसका भारतीय दंड संहिता, 1860 (1860 का 45) की धारा 320 में है।

धारा 91 कहती है कि

नकली माल के विक्रय के लिए विनिर्माण या उनके भंडारण या विक्रय या वितरण या आयात के लिए दंड (1) कोई, स्वयं या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी नकली माल का विक्रय के लिए विनिर्माण करता है या भंडारण करता है या विक्रय करता है या वितरण करता है या उसका आयात करता है, यदि ऐसा कार्य

(क) ऐसी क्षति कारित करता है, जो उपभोक्ता को हुई घोर उपहति की कोटि में नहीं आता है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और ऐसे जुमाने से, जो तीन लाख रु तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा;

(ख) ऐसी क्षति कारित करता है, जिसका परिणाम उपभोक्ता को हुई घोर उपहति है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और ऐसे जुमनि से, जो पांच लाख रु तक का हो सकेगा से दंडनीय होगा;

(ग) ऐसी क्षति कारित करता है, जिसका परिणाम उपभोक्ता की मृत्यु है, ऐसी अवधि के कारावास से, जो सात वर्ष से कम का नहीं होगा किन्तु जो आजीवन कारावास तक का हो सकेगा और ऐसे जुर्माने से, जो दस लाख रू तक का हो सकेगा, से दंडनीय होगा।

(2) उपधारा (1) के खंड (ख) और खंड (ग) के अधीन अपराध संज्ञीएय तथा अजमानतीय होंगे।

(3) उपधारा (1) के अधीन दंड के होते हुए भी, कोर्ट प्रथम बार की दोषसिद्धि के मामले में तत्समय प्रवृत्तक किसी विधि के अधीन उस उपधारा में निर्दिष्ट व्यक्ति को जारी की गई किसी अनुज्ञप्ति को दो वर्ष की अवधि के लिए निलंबित कर सकेगा और दूसरी बार या पश्चात् दोषसिद्धि के मामले में अनुज्ञात को रद्द कर सकेगा।

धारा 92 के अनुसार

कोर्ट द्वारा अपराधों का संज्ञान केन्द्रीय प्राधिकारी या इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा फाइल किए गए किसी परिवाद पर धारा 88 और धारा 89 के अधीन किसी अपराध का सक्षम कोर्ट द्वारा ही संज्ञान लिया जाएगा अन्यथा नहीं।

धारा 93 के अनुसार

धारा 22 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करने वाला महानिदेशक या कोई अन्य अधिकारी, जिसको यह जानकारी है कि ऐसा करने के लिए कोई युक्तियुक्त आधार नहीं है और फिर भी, -

(क) किसी परिसर की तलाशी लेता है या तलाशी करवाई जाती है;या

(ख) किसी अभिलेख, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज या वस्तु का अभिग्रहण करता है,

ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और ऐसे जुर्माने से, जो दस हजार रु तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा।

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