डॉक्ट्रिन ऑफ इलेक्शन को उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। जैसे अ अपनी तीन सम्पत्तियों x y तथा z 'ब' को एक ही संव्यवहार द्वारा अन्तरित करता है तथा 'ब' की सम्पत्ति P. स को देता है। अन्तरण विलेख में यह उल्लिखित है कि सम्पत्ति x सम्पत्ति P के एवज में दी जा रही है। यदि व सम्पत्ति P को हो धारण किये रहना स्वीकारता है तो वह केवल सम्पत्ति नहीं पायेगा। शेष दोनों सम्पत्तियों y तथा z को अपनी विसम्मति व्यक्त करने के बावजूद भी पाने का अधिकारी होगा।
वैवाहिक समझौते के तहत, यदि अ की पत्नी उसकी मृत्यु के समय जीवित रहती है, तो वह सम्पत्ति x तो आजीवन प्रयोग करने के लिए सक्षम होगी। अ, सम्पत्ति x को अपने बेटे को दे देता है और इसके एवज में अपनी पत्नी को 200 रुपये वार्षिकी देता है जब तक वह जीवित रहेगी। इसके अतिरिक्त वह अपनी पत्नी को 1000 रुपये वसीयत के रूप में देता है। उसकी पत्नी यह निर्णय लेती है कि वह उसी सम्पत्ति को लेगी जो उसे वैवाहिक समझौते के अन्तर्गत मिलने वाली थी। इस निर्णय के फलस्वरूप वह 200 रुपये वार्षिकी पाने की हकदार नहीं होगी। किन्तु वसीयत के रूप में प्राप्त 1000 रुपये को पाने की हकदार होगी।
निर्वाचन का सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि अन्तरक की इच्छा थी कि संव्यवहार को पूर्णरूपेण क्रियान्वित किया जाए। उसके एक अंश को उसी के दूसरे अंश के विरोधाभास में स्वीकार न किया जाए। यह सामान्य अवधारणा तब लागू नहीं होगी जब अन्तरक ने स्वतः ही यह स्पष्ट कर दिया हो कि अन्तरित सम्पत्तियों में से विशिष्ट सम्पत्ति उस सम्पत्ति के एवज में है जो दूसरे व्यक्ति को अन्तरित होनी है। यह समझा जाएगा कि विसम्मति की स्थिति में केवल विशिष्ट सम्पत्ति ही अन्तरक अथवा उसके प्रतिनिधियों के पास वापस लौटेगी।
निर्वाचन की प्रक्रिया - इस धारा का पैरा 6 उपबन्धित करता है कि जिस व्यक्ति को फायदा प्रदत्त किया गया है, उस व्यक्ति द्वारा प्रतिग्रहण की अन्तरण की पुष्टि के लिए उसके द्वारा किया निर्वाचन गठित करता है, यदि वह निर्वाचन करने के अपने कर्तव्य को जानता हो और उन परिस्थितियों को जानता हो जो निर्वाचन करने में किसी युक्तिमान मनुष्य के निर्णय पर प्रभाव डालती है, अथवा उन परिस्थितियों की जाँच करने का अधित्य मन कर देता है। इस उपबन्ध से यह सुस्पष्ट है कि यह प्रक्रिया एक सोच-समझ कर की जाने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इसमें दो परस्पर विरोधों परिस्थितियों के बीच निर्वाचन करना होता है।
यदि विकल्पधारी व्यक्ति अपनी मंशा स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करता है तो यह अन्तिम एवं निश्चायक होगा, किन्तु यदि वह ऐसा नहीं करता है, केवल प्रदत्त लाभ को स्वीकार कर लेता है, तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि उसने विकल्प का प्रयोग अन्तरण के पक्ष में किया है; बशर्ते :
(i) उसे निर्वाचन करने के अपने कर्तव्य का बोध रहा हो, तथा
(ii) उन परिस्थितियों को जानता रहा हो जो निर्वाचन करने में किसी युक्तिमान मनुष्य के निर्णय पर प्रभाव डालती है, अथवा
(iii) वह उन परिस्थितियों की जाँच करने से इन्कार कर देता है।
तथ्यों के सम्पूर्ण ज्ञान के तहत किया गया निर्वाचन अन्तिम एवं बाध्यकारी होता है। इसके विपरीत ऐसे ज्ञान के बिना किया गया निर्वाचन विकल्पधारी अथवा उसके प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिसंहरित हो सकेगा। सादिक हुसैन बनाम हाशिम अली के बाद में एक मुस्लिम पुरुष ने अपनी पत्नी के पक्ष में उसके महर के भुगतान हेतु एक न्यास सृष्ट किया। इस सम्पत्ति के सम्बन्ध में उठे विवाद को लेकर कांसिल ने यह मत व्यक्त किया कि 'यदि स्त्री को इस न्यास के प्रयोजन एवं तथ्यों के विषय में कुछ नहीं बताया गया था तो उसके द्वारा किया निर्वाचन, जिसके तहत उसने अपने तथा अपने बच्चों के लिए की गयी व्यवस्था को महर के एवज में स्वीकार किया नहीं होगा।' उस पर बाध्यकारी होगा।
अ सुल्तानपुर खुर्द का मालिक था और उसे सुल्तानपुर बुजुर्ग में आजीवन हित प्राप्त था। अ की मृत्यु के पश्चात् उसके बेटे क को सुल्तानपुर बुजुर्ग का पूर्ण स्वामी होना था। अ सुल्तानपुर खुर्द क को देता है तथा सुल्तानपुर बुजुर्ग स को क को सुल्तानपुर बुजुर्ग में के अपने हित की सूचना नहीं थी और उसने ख को इस सम्पत्ति को ले लेने की अनुमति दे दी और स्वयं सुलतानपुर खुर्द ले लिया। 'क' को ख के पक्ष में सुल्तानपुर बुजुर्ग के लिए सम्मति दिया हुआ नहीं माना जाएगा।
निर्वाचन की अवधारणा
जहाँ प्रत्यक्ष निर्वाचन नहीं होता है वहाँ निर्वाचन की अवधारण की जाती है।
इस धारा के अन्तर्गत निम्नलिखित स्थिति में इस तथ्य को अवधारणा की जाएगी :-
यदि वह व्यक्ति जिसे फायदा प्रदत्त किया गया है, विसम्मति व्यक्त करने के लिए कोई कार्य किए बिना, दो वर्ष तक सम्पत्ति का उपभोग कर लेता है तो यह समझा जाएगा कि उसने अन्तरण के पक्ष में निर्वाचन कर लिया है। दो वर्ष की यह कालावधि प्रसिद्ध इंग्लिश बाद क्राफ्टी बनाम ब्रॅम्बुल' से ली गयी है। इस पैरा के अन्तर्गत की जाने वाली अवधारणा विखण्डनीय है और प्रतिकूल साक्ष्य द्वारा इसे रद्द किया जा सकेगा
सामान्य स्थिति में परिवर्तन द्वारा पैराग्राफ 8 उपबन्धित करता है कि यदि विकल्पधारी सम्पत्ति लेने के पश्चात् उसे इस प्रकार प्रयोग में लाता है कि हितबद्ध व्यक्तियों को उसी दशा में रखना असम्भव हो गया है जिसमें वे होते यदि वह कार्य न किया गया होता तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि उसने अपने विकल्प का प्रयोग अन्तरण के पक्ष में किया है।
उदाहरण के लिए क, ख को एक सम्पत्ति अन्तरित करता है जिसका ग हकदार है और उस संव्यवहार के भाग रूप 'ग' को कोयले की एक खान देता है। ग खान को कब्जे में लेता है और उसे निःशेष कर देता है। तद्वारा उसने ख को सम्पत्ति के अन्तरण की पुष्टि कर दी है।
निर्वाचन की अवधि- यदि विकल्पधारी अन्तरण की तिथि से एक वर्ष के भीतर अन्तरण को पुष्टि करने का या उससे विसम्मति का अपना आशय अन्तरक या उसके प्रतिनिधि को नहीं बता देता है, तो अन्तरक या उसका प्रतिनिधि उस कालावधि के अवसान पर उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह निर्वाचन करे और यदि वह ऐसी अपेक्षा की प्राप्ति के पश्चात् युक्तियुक्त समय के भीतर उसका पालन नहीं करता तो यह समझा जाएगा कि उसने अन्तरण की पुष्टि करने का निर्वाचन कर लिया है। युक्तियुक्त कालावधि किसी भी दशा में अवशिष्ट एक वर्ष से अधिक की नहीं हो सकेगी।
निर्योग्यता से प्रभावित व्यक्ति द्वारा निर्वाचन - अन्तिम पैरा यह उपबन्धित करता है कि यदि 1 निर्वाचन के दायित्व से युक्त किसी निर्योग्यता से प्रभावित है, तो निर्वाचन उस समय तक मुल्तवी रहेगा जब तक उस निर्योग्यता का अन्त नहीं हो जाता या जब तक निर्वाचन किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा नहीं किया जाता।
अपवाद - निम्नलिखित मामलों में निर्वाचन का सिद्धान्त लागू होगा :
(i) स्वतंत्र हित स्वतंत्र अन्तरण।
(ii) विपरीत उद्देश्य।
(iii) सरकारी अनुदान।
(iv) निर्वाचन असम्भव हो।
(v) अन्तरण विलेख में निर्वाचन के प्रतिकूल व्यवस्था हो।
साम्या कोर्ट ऐसे मामलों में निराश अन्तरितों के लिए बिना कोई व्यवस्था किए प्रदत्त फायदा को वापस लौटने की अनुमति नहीं देगा। यदि विकल्पधारी के कृत्य के फलस्वरूप निराश अन्तरिती अन्तरण के अन्तर्गत सम्पत्ति नहीं प्राप्त कर सका तो अन्तरक या उसका प्रतिनिधि उसे निराश न होने देने के भार से युक्त होगा।'
उदाहरण के लिए सुल्तानपुर का खेत ग को सम्पत्ति है और उसका मूल्य 800 रुपये है। 'क' उसे दान को लिखत द्वारा ख को अन्तरित करने की प्रव्यंजना करता है और उसी लिखत द्वारा 'ग' को 1000 रुपये देता है। ग खेत को अपने पास रखना निर्वाचित करता है। 1000 रुपये 'क' को वापस हो जाएंगे। किन्तु यदि के निर्वाचन से पहले मृत हो जाता है और अन्तरण अनुग्राहिक है तो उसका प्रतिनिधि 1000 रुपये में से 800 रुपये ख को देगा। यदि अन्तरण प्रतिफलार्थ था तो क अथवा उसका प्रतिनिधि 1000 रुपये में से 800 रुपये ख को देगा।
अपवाद — जहाँ उस सम्पत्ति के स्वामी को, जिसे किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में अन्तरित करने की प्रव्यंजना की गयी है, कोई विशिष्ट लाभ देने की इच्छा व्यक्त की गयी है और ऐसा लाभ उसी सम्पत्ति के एवज में दिया जाना अभिव्यक्त है, यहाँ यदि ऐसा स्वामी यह निर्णय लेता है कि वह अपनी ही सम्पत्ति अपने पास रखेगा और अन्तरक द्वारा दी गयी सम्पति ग्रहण नहीं करेगा तो वह उसी संव्यवहार प्रदत्त किसी अन्य लाभ को त्यागने के लिए आबद्ध नहीं होगा। अपनी विसम्मति व्यक्त करने के कारण सम्पत्ति स्वामी केवल विशिष्ट फायदे से वंचित होगा न कि अन्य फायदों से।