घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में किसी भी महिला को घर में रहने का अधिकार

Update: 2025-10-09 12:17 GMT

इस एक्ट की धारा 17 एक महिला को साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार देती है, जिसके अनुसार- साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार (1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, घरेलू नातेदारी में प्रत्येक महिला को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा चाहे वह उसमें कोई अधिकार, हक या फायदाप्रद हित रखती हो या नहीं।

(2) विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसरण में के सिवाय, कोई व्यथित व्यक्ति, प्रत्यर्थी द्वारा किसी साझी गृहस्थी या उसके किसी भाग से बेदखल या अपवर्जित नहीं किया जायेगा।

धारा 17 की उपधारा (1) सर्वोपरि खण्ड से प्रारम्भ होती है जो दूसरे संविधियों पर अभिभावी प्रभाव रखती है। उपखण्ड प्रावधानित करता है कि प्रत्येक महिला अपने घरेलू नातेदारी में साझी गृहस्थी में रहने की हकदार होगी चाहे उसमें उसका कोई अधिकार, हक या लाभकारी हित है या नहीं।

निश्चित रूप से यह ऐसा प्रावधान है जो वैवाहिक नातेदारी के साथ व्यवहार करने वाली विद्यमान विधियों के अधीन वैवाहिक गृह की संकल्पना के क्षेत्र को अभिवृद्धि करता है। यह धारा 2 (च) के अधीन घरेलू नातेदारी की परिभाषा के संदर्भों में है जिसका तात्पर्य दो व्यक्तियों के बीच ऐसे सम्बन्ध से है जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं, जब वे समरक्तता, विवाह द्वारा या विवाह, दत्तक गृहण की प्रकृति की किसी नातेदारी द्वारा सम्बन्धित हैं।

उक्त अधिनियम की धारा 2 (ध) की परिभाषा बड़ी वृहद है। यह यहाँ तक कि उस गृहस्थी को भी शामिल करती है जिसका प्रत्यर्थी अविभक्त कुटुम्ब का सदस्य है। धारा 19 जो मजिस्ट्रेट निवास आदेश प्रदान करने की शक्ति देता है, साझी गृहस्थी के सम्बन्ध, साझी गृहस्थी के अध्यासन के लिए व्यथित व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कई आदेश प्रदान करने के लिए प्रावधानित करता है। इस मामले में मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी को साझी गृहस्थी से हटने का भी निर्देश दे सकता है।

गृहस्थी का तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों के समूह से है जो सामान्यतया एक ही रसोई में बना खाना खाते हैं। ब्लैक की लॉ डिक्शनरी में "गृहस्थी" जिसमें परिवार एवं घर के सामान साथ ही साथ परिवार एक साथ रहता है या एक ही छत के नीचे रहने वाला व्यक्तियों का समूह होता है एवं लॉ ऑफ लेक्सिकॉन में इसे एक ही छत के नीचे रहने वाले व्यक्तियों के समूह के रूप में वर्णित किया गया है एवं यह एक परिवार बनाते हैं एवं विस्तारित रूप से भी एक परिवारिक मुखिया के अधीन रहते हैं।

केरल के एक मामले में निवास के अधिकार के संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया है कि तलाक इस मामले में महिला के पति द्वारा घोषित किया गया है और इसलिए महिला इस अधिनियम के उपबन्धों का आश्रय लेने के हकदार नहीं है। चाहे वह विवाह विछिन्न पत्नी हो या नहीं, यदि घरेलू सम्बन्ध था और घर का प्रयोग उस क्षण साझी गृहस्थों के रूप में किया गया था, जब महिला उस साझी गृहस्थी में निवास के अधिकार का दावा करने के लिए हकदार है।

साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार लड़की का विवाह व्यवस्थित विवाह था और उसे विवाह के पश्चात् सड़क पर नहीं लाया गया था जबकि उसे प्रश्नगत मकान में लाया गया था। पक्षकार प्रत्ययगण का कोई मामला नहीं है कि उसके पति का उसका अपना अन्य पर था, जिसमें वे एक साथ रह रहे थे। यदि उसे विवाह के पूर्व जानकारी दी गयी होती कि उसे उस घर में निवास करने की अनुमति नहीं दी जायेगी।

उसे उस घर को साझी गृहस्थी मानने के रूप में अनुमति नहीं दी जायेगी, तो वह ऐसे विवाह के लिए सहमत न होती। ऐसे मामले में लड़की का कोई बुद्धिमान माता-पिता ऐसे व्यक्ति को विवाह के लिए सहमत न होते। इसलिए लड़की को उनकी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने और वहां उसे ठहरने के लिए उस घर में ले जाये जाने की अनुमति देने के पश्चात्, उन्हें मात्र इस दावा पर उसको बाहर निकालने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि घर सास से सम्बन्धित है।

अधिनियम की धारा 17 (1) के अधीन, साझी गृहस्थी में निवास के अधिकार का मूल्यांकन केवल तब किया जा सकता है, यदि पर पति से सम्बन्धित है या पति द्वारा किराये पर लिया गया है या घर संयुक्त परिवार से सम्बन्धित है, जिसका पति सदस्य है। साझी गृहस्थों का यह तात्पर्य नहीं हो सकता कि जहां कहीं पति और पत्नी विगत में एक साथ रहते थे, वह साझी गृहस्थी होगी

अधिनियम की धारा 17 जो साझी गृहस्थी में निवास करने के अधिकार से सम्बन्धित है, महिलाओं के अधिकार को मान्यता देती है जो घरेलू नातेदारी में है, को साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार प्राप्त होगा। यह प्रावधान प्रत्यर्थी के साथ घरेलू सम्बन्ध तक सीमित नहीं होता, जबकि यह साझी गृहस्थी में रहने वाली घरेलू नातेदारी में प्रत्येक महिलाओं पर अधिकार प्रदान करता है।

उनका सम्बन्ध समरक्तता, विवाह या विवाह की प्रकृति की नातेदारों, दत्तक या अविभक्त परिवार में रह रहे सदस्यों की तरह हो सकता है। इस प्रकार, यह साझी गृहस्थी में महिलाओं के अधिकार को भी सुरक्षित करता है। परन्तु जब यह अधिनियम की धारा 18 के अधीन सुरक्षा के लिए आते हैं तो यह केवल प्रत्यर्थी के विरुद्ध निषेधात्मक आदेश प्रदान करना प्रावधानित करता है।

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