विशेषज्ञों को बुलाने का न्यायालय का विवेकाधिकार : धारा 329 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2025-01-04 11:25 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 329 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों (Government Scientific Experts) की रिपोर्ट को साक्ष्य (Evidence) के रूप में मान्यता देती है।

इस धारा का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल और समयबद्ध बनाना है, जहां विशेषज्ञों की मौखिक गवाही की बजाय उनकी लिखित रिपोर्ट को स्वीकार किया जाता है। यह प्रावधान विशेष रूप से वैज्ञानिक और तकनीकी विश्लेषण वाले मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को सुगम बनाता है।

यह धारा 328 का विस्तार है, जो विशिष्ट संस्थानों जैसे मिंट्स (Mints) और प्रिंटिंग प्रेस (Printing Press) की रिपोर्ट से संबंधित है। धारा 329 इनकी परिधि को और व्यापक बनाकर वैज्ञानिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट को भी शामिल करती है। इस लेख में हम धारा 329 की गहराई से व्याख्या करेंगे और इसके विभिन्न पहलुओं को समझेंगे।

धारा 329 के मुख्य प्रावधान (Key Provisions of Section 329)

रिपोर्ट की स्वीकार्यता (Admissibility of Reports) – उपधारा (Subsection) 1

धारा 329 की उपधारा 1 के अनुसार, सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को किसी भी जांच, सुनवाई या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। यह प्रक्रिया विशेषज्ञों की मौखिक गवाही पर निर्भरता को कम करती है और उनकी लिखित रिपोर्ट को पर्याप्त मानती है।

उदाहरण के तौर पर, यदि किसी नशीले पदार्थ (Narcotic Substance) का विश्लेषण एक सरकारी रासायनिक परीक्षक (Government Chemical Examiner) द्वारा किया गया है, तो उनकी रिपोर्ट को अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

(Court's Discretion to Summon Experts) – उपधारा 2

हालांकि उपधारा 1 लिखित रिपोर्ट को प्राथमिकता देती है, लेकिन उपधारा 2 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह आवश्यक होने पर विशेषज्ञ को अदालत में बुला सके। यह सुनिश्चित करता है कि यदि रिपोर्ट में किसी प्रकार की अस्पष्टता हो, तो न्यायालय विशेषज्ञ से स्पष्टीकरण प्राप्त कर सके।

उदाहरण के लिए, यदि उंगलियों के निशान (Fingerprints) के विश्लेषण से संबंधित रिपोर्ट में किसी प्रकार की विवादित जानकारी हो, तो न्यायालय फिंगरप्रिंट ब्यूरो (Fingerprint Bureau) के निदेशक को अदालत में बुला सकता है।

जिम्मेदार अधिकारी की नियुक्ति (Deputation of a Responsible Officer) – उपधारा 3

उपधारा 3 में उन परिस्थितियों का उल्लेख है, जहां विशेषज्ञ को अदालत में उपस्थित होना संभव न हो। ऐसी स्थिति में, विशेषज्ञ किसी ऐसे जिम्मेदार अधिकारी (Responsible Officer) को भेज सकता है, जो मामले के तथ्यों से भली-भांति परिचित हो और अदालत में विशेषज्ञ की ओर से प्रभावी रूप से गवाही दे सके।

उदाहरणस्वरूप, विस्फोटक सामग्री (Explosive Materials) से संबंधित मामलों में, यदि मुख्य नियंत्रक (Chief Controller) उपलब्ध नहीं हैं, तो वह अपने किसी सहायक को अदालत में भेज सकते हैं।

विशेषज्ञों की परिधि (Scope of Experts) – उपधारा 4

उपधारा 4 उन सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों की सूची प्रदान करती है, जिनकी रिपोर्ट इस धारा के अंतर्गत स्वीकार्य है। इनमें शामिल हैं:

• रासायनिक परीक्षक (Chemical Examiner): जो विषाक्त पदार्थों (Poisons) या दवाओं (Drugs) का विश्लेषण करते हैं।

• मुख्य विस्फोटक नियंत्रक (Chief Controller of Explosives): विस्फोटक सामग्री का परीक्षण करने वाले विशेषज्ञ।

• फिंगरप्रिंट ब्यूरो के निदेशक (Director of Fingerprint Bureau): उंगलियों के निशानों का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञ।

• हाफकिन इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ (Haffkine Institute Experts): सूक्ष्मजीव विज्ञान (Microbiology) और विषाणु विज्ञान (Virology) के विशेषज्ञ।

• फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक (Directors of Forensic Science Laboratories): राज्य और केंद्रीय फॉरेंसिक विशेषज्ञ।

• सरकारी सीरोलॉजिस्ट (Serologist to the Government): रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों का परीक्षण करने वाले विशेषज्ञ।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केवल योग्य और मान्यता प्राप्त विशेषज्ञों की रिपोर्ट ही साक्ष्य के रूप में मान्य हो।

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न्यायिक कार्यवाही में विशेषज्ञ रिपोर्ट की भूमिका (Role of Expert Reports in Judicial Proceedings)

प्रक्रियाओं में तीव्रता (Efficiency in Legal Processes)

धारा 329 न्यायिक प्रक्रियाओं में तीव्रता लाने में सहायक है। विशेषज्ञों की मौखिक गवाही पर निर्भरता कम होने से समय और संसाधनों की बचत होती है।

रिपोर्ट की विश्वसनीयता (Reliability of Expert Reports)

सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई रिपोर्टों को अत्यधिक विश्वसनीय माना जाता है। यह विशेषज्ञ सख्त नैतिक और व्यावसायिक दिशानिर्देशों के तहत काम करते हैं, जिससे उनकी रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है।

पक्षों के अधिकारों का संतुलन (Balancing the Rights of the Parties)

यह प्रावधान अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है। उपधारा 2 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह आवश्यक होने पर विशेषज्ञ को बुला सके, जिससे न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहती है।

अन्य प्रावधानों के साथ संबंध (Relationship with Other Provisions)

धारा 328: विशिष्ट संस्थानों की रिपोर्ट (Reports from Specific Institutions)

धारा 329, धारा 328 का विस्तार करती है। जहां धारा 328 मिंट्स और फॉरेंसिक विभागों तक सीमित है, वहीं धारा 329 में व्यक्तिगत विशेषज्ञों जैसे रासायनिक परीक्षकों और सीरोलॉजिस्टों को भी शामिल किया गया है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Indian Evidence Act, 2023)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 129 और 130 विशेषज्ञ साक्ष्य की स्वीकार्यता पर दिशानिर्देश देती हैं। यह प्रावधान धारा 329 के अनुरूप है।

उदाहरण (Illustrations)

1. विषाक्तता का मामला (Case of Poisoning)

एक मामले में शरीर के तरल पदार्थों का विश्लेषण एक सरकारी रासायनिक परीक्षक द्वारा किया गया। उनकी रिपोर्ट में विषाक्त पदार्थ की उपस्थिति की पुष्टि होती है। अदालत ने रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया, लेकिन बचाव पक्ष ने कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। न्यायालय ने विशेषज्ञ को बुलाकर स्पष्टीकरण प्राप्त किया।

2. उंगलियों के निशान का विश्लेषण (Fingerprint Analysis)

चोरी के मामले में, फिंगरप्रिंट ब्यूरो के निदेशक ने एक रिपोर्ट तैयार की। बचाव पक्ष ने विश्लेषण की सटीकता पर सवाल उठाए। न्यायालय ने एक सहायक अधिकारी को अदालत में बुलाया, जिसने रिपोर्ट को समझाया।

3. विस्फोटक सामग्री का परीक्षण (Analysis of Explosive Materials)

बम धमाके के मामले में मुख्य नियंत्रक द्वारा विस्फोटक अवशेषों का परीक्षण किया गया। रिपोर्ट को चुनौती देने पर, न्यायालय ने विशेषज्ञ को बुलाकर उनके विश्लेषण की प्रक्रिया समझने का अवसर दिया।

धारा 329 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायिक प्रक्रिया को अधिक कुशल और विश्वसनीय बनाता है। यह प्रावधान विशेषज्ञ रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्यायालय प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे। इसके प्रावधान आधुनिक न्याय प्रणाली में वैज्ञानिक और तकनीकी साक्ष्य के महत्व को दर्शाते हैं।

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