Consumer Protection Act में क्रिमिनल प्रक्रिया

Update: 2025-06-06 04:06 GMT

यह एक्ट एक सिविल नेचर का एक्ट है लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए और फोरम के आर्डर का पालन करवाने के लिए इसमें क्रिमिनल प्रक्रिया भी दी गयी है। एक्ट की धारा 88 के अनुसार-

केन्द्रीय प्राधिकरणों के निदेशों के अननुपालन के लिए शास्ति जो कोई धारा 20 और धारा 21 के अधीन केन्द्रीय प्राधिकरण के किसी निदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है, ऐसी अवधि के, जो छह मास तक की हो सकेगी, कारावास से या ऐसे जुर्माने से, जो बीस लाख रु तक का हो सकेगा या दोनों से. दंडित किया जाएगा।

यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम चेयरमैन मद्रास प्राविन्सियल कन्जूमर एसोसिएशन के मामले में प्राकृतिक न्याय जिला पीठ द्वारा रेलवे को निर्देश जारी हुआ कि पोलीथीन के झोले में पानी तथा सस्ता भोजन यात्रियों को पहुँचाये। इसके पहले भी एक आदेश था कि यदि इसमें लापरवाही बरती गयी तो महाप्रबंधक को व्यक्तिगत रूप से दण्ड का भागी होगी तथा 1 वर्ष का कारावास काटना पड़ेगा।

यह अभिनिर्धारित किया गया कि जिला पीठ को इस तरह के दण्ड आदेश पारित नहीं करना चाहिए। जिला पीठ ने इस तरह के आदेश पारित करके खुला उल्लंघन किया है तथा अपने क्षेत्राधिकार से आगे जाकर कार्य किया है। दण्ड का प्रश्न तभी पैदा होगा जब पहले सही किसी आदेश का पालन न किया गया हो तथा जिला पीठ को इस तरह से अर्थ नहीं निकालना चाहिए। धारा 88 यह वांछित करती है कि प्राकृतिक न्याय के अनुसार किसी को दण्ड देने के पूर्व उसे सुन लिया जाना चाहिए।

अन्तिम आदेश के साथ ही धारा 88 के अंतर्गत आदेश जारी किया जाना विधिमान्य नहीं होगा।

सुरेन्द्र एनोसेंटर ऑफ रेबरी बनाम शेर सिंह, 1995 के मामले में जब दोषपूर्ण ट्रैक्टर का विक्रय किया गया और इसके विरुद्ध परिवाद दायर किया गया तब भुगतान किये गये मूल्य का प्रतिदाय का आदेश पारित किया गया। जहाँ एक महीने का समय आदेश का अनुपालन करने के लिए दिया गया और आदेश का अनुपालन न किये जाने की दशा में, 2000 रुपये के जुर्माने के साथ-साथ 3 महीने की सजा या कारावास का आदेश भी पारित किया गया। चूंकि आदेश का अनुपालन कर दिया गया इसलिए कारावास की सजा समाप्त कर दी गयी जबकि जुमाने की रकम में 3000 रुपये तक की वृद्धि कर दी गयी।

एक अन्य मामले में कहा गया है कि धारा 88 के अन्तर्गत कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का अनुपालन किया जाना चाहिए।

डी० पी० सेहगत बनाम अशोक गोयल के मामले में कहा गया है कि जब जिला फोरम द्वारा पारित किये गये कारावास एवम् जुमनि सम्बन्धी आदेश का अनुपालन करने में असफल हो गया तब याचिकाकर्ता ने पुनरीक्षण में राज्य आयोग द्वारा पारित किये गये अंतरिम आदेश का अनुपालन कर चुका था और उसने परिवाद में अधिनिर्णीत की गयी रकम एवम् जुर्माना का भी भुगतान कर चुका था। चूंकि याचिका कर्ता उस समय अधिनियम की धारा 88 के प्रावधानों के अधीन प्रारम्भ की गयी कार्यवाही में जिला फोरम के समक्ष हाजिर हो पाने में असफल हो गया जब उसको प्रकाशन द्वारा नोटिस की तामील करायी गयी इसलिए उसे कारण प्रदर्शित करने के लिए एक अवसर प्रदान करना न्यायोचित होगा। अंततोगत्वा प्रश्नगत् आदेश को अपास्त कर दिया गया।

रवीकांत बनाम श्रीमती वीणा भटनागर के वाद में परिवादी ने कम्पनी के साथ धन का निक्षेप किया और गत दिनांकित चेक, राज्य आयोग के आदेश के बावजूद भी ब्याज के साथ भुगतान किया जाने के लिए जारी किये गये। लेकिन जब कम्पनी उसका प्रतिसंदाय करने में असफल रही तब अभियोजन की कार्यवाही प्रारम्भ की गयी। अभिनिर्धारण में प्रबन्धक निर्देशक के विरुद्ध जुर्माना एवम् एक वर्ष का सादा कारावास का दण्डादेश पारित किया गया।

निर्देशक के ऊपर जुर्माना अधिरोपित किया गया और यदि वह ऐसी जुर्माने की रकम का संदाय करने में व्यक्तिकम करे तो उसके विरुद्ध कारावास की भी दाण्डिक प्रक्रिया अपनाये जाने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा, जहाँ प्रश्नगत निर्णयादेश के विरुद्ध अपील दायर की गयी, वहाँ अपीलीय कोर्ट ने भी, राज्य आयोग द्वारा जो प्रबन्ध निर्देशक एवम् निर्देशक के विरुद्ध दोषसिद्धि एवम् दण्डादेश पारित किया गया, की संपुष्टि कर दिया।

जहाँ पर अपीलार्थी एक अधिशासी अभियंता था। धारा 88 की कार्यवाही के अन्तर्गत उसे नामतः पक्षकार नहीं बनाया गया। उस आदेश को पालन न करना उचित न था।

जिला पीठ के आदेश के विरूद्ध अपील अनुयोज्यता जिला पीठ के आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है।

नीडिल इण्डस्ट्रीज इण्डिया लिमिटेड बनाम जनरल मैनेजर, टेली काम्युनीकेशन व अन्य 1997 के वाद में निष्पादन याचिका प्रतिकर के रूप में जिस रकम का भुगतान परिवादी के पक्ष में किये जाने के बारे में डिक्री पारित की गयी उसका निष्पादन नहीं किया गया। इसके बावत विरोधी पक्षकार ने राष्ट्रीय आयोग के समक्ष विचारणार्थ एक फाइल की अपील का प्रतिवाद किया, और जिसके परिणामस्वरूप न केवल अपीलकर्ता की इस याचना को अस्वीकृत कर दिया गया कि उसके विरुद्ध पारित की गयी, आज्ञप्ति में अधिनिर्णीत प्रतिकर की वसूली किये जाने हेतु निष्पादन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाय; बल्कि यह भी उसे निर्देश दिया गया कि जिस रकम का संदाय सम्बन्धित पक्षकार को करने के सन्दर्भ डिक्री पारित की गयी उसका अविलम्ब उसे भुगतान किया जाए।

एक प्रकरण में यह अभिनिर्धारित किया गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 88 में उपबन्धित आधारभूत आदेश को संशोधित, परिवर्तित या परिवर्धित नहीं किया जा सकता है।

जहां किसी धनराशि को ब्याज सहित वापस किये जाने के सन्दर्भ राज्य आयोग द्वारा आदेश दिया गया था, वहां इसके विरूद्ध यह प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी कि उक्त आदेश अवैधता से युक्त था। वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि अधिनियम के परे जाना अनुमन्य नहीं है।

धारा 88 के अन्तर्गत कार्यवाही की प्रकृति दाण्डिक है और इस धारा के अधीन निष्पादन कार्यवाही में तीसरे पक्षकार का आक्षेप स्वीकार्य नहीं है।

संभावना विल्डर्स एग्रीड मेमर्स एसोशिएशन बनाम संभावना बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में कहा गया है कि जब अन्तिम अवसर प्रदान किये जाने के बावजूद भी विरोधी पक्षकार ने उन निर्देशों का अनुपालन नहीं किया, जिनका कि उन्हें अनुपालन करना चाहिए था, तब पुलिस प्राधिकारियों को निर्देशकों के विरुद्ध गिरफ्तारी के वारण्टों का निष्पादन करने के लिए निर्देश दिया गया। इसके अलावा, जहाँ विरोधी पक्षकारों को 3 महीने की कालावधि तक जेल में निरुद्ध किये जाने का आदेश पारित किया गया, वहाँ यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि वह धनराशि जिसका संदाय किया जा चुका था, का सभी परिवादियों को अनुपातिक दर से वितरित किये जाने का भी निर्देश दिया गया।

आशीष कुमार विश्वास बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण व अन्य के वाद में आयोग द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि परिवादी दिल्ली क्षेत्र में एक वर्ग तीन फ्लैट का आवंटन प्राप्त करने का हकदार था, वहाँ इस आदेश के विरुद्ध किसी भी अपील के. दायर न किये जाने के परिणामस्वरूप उसे अंतिम आदेश माना जा चुका था और इसलिए यदि कथित फ्लैट का आवंटन भी किया गया तो वह आदेश का अनुपालन किये जाने का लुतनात्मक दृष्टिकोण से भाव रखने वाला नहीं माना जा सकता था।

एक मामले में कहा गया है कि जहाँ दिये गये निर्देश का अनुपालन विरोधी पक्षकार उस दशा में भी नहीं किया जब उसे वैसा करने का अंतिम मौका प्रदान किया गया था, वहाँ तीन महीने की कालावधि के लिए जेल में विरुद्ध किये जाने के लिए निर्देशकों के विरुद्ध गिरफ्तारी के वारण्ट जारी किये गये तथा उ उनका निष्पादन करने के लिए पुलिस आयुक्त एवम् उपआयुक्त को निर्देश भी दिये गये, वहाँ यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि अधिनिर्णीत की गयी, 5,00,000 रुपये की प्रतिकर की रकम को एक निश्चित दर से सभी परिवादीगण के बीच कर दिया जाय।

क्षेत्राधिकार धारा 88 के अन्तर्गत कार्यवाही में मूल आदेश में कोई सुधार या संशोधन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट को मूल आदेश के विरुद्ध कोई विधिक क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।

ऐसे अजमानतीय वारण्ट को जारी करने वाले आदेश को विधिमान्य माना गया जिसे उचित अधिसूचना के बिना ही जारी किया गया था।

पुनरीक्षण धारा 88 के अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा पारित आदेश में राज्य आयोग को पुनरीक्षण अधिकारिता में केवल उस स्थिति में हस्तक्षेप करने की अधिकारिता होगी जब अधिकारिता के संबंधी गलती का कोई प्रकरण हो।

राज्य आयोग के आदेश के अनुपालन में जिला फोरम द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता और यह पुनरीक्षण योग्य नहीं है।

चूंकि याची ने राज्य आयोग द्वारा आदेश की घोषणा की तारीख कालावधि 60 दिनों के अन्दर परिवादी से यान को कर्मशाला के दोष दूर करने के लिए लाने हेतु कहा था इसलिए पुनरीक्षण याचिका को अनुज्ञात कर दिया गया।

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