उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) को बनाए जाने का उद्देश्य ग्राहकों के अधिकारों को सुरक्षित करना है। एक अर्थव्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अनेक उत्पाद खरीदता है और अनेक सेवाओं को खरीदता है।
एक खरीदने वाले के पास यह अधिकार होना चाहिए कि जिस उत्पाद और सेवा को उसे बेचा गया है उसके संबंध में समस्त अधिकार होना चाहिए। जैसे कि यदि उसे कोई गलत उत्पाद देता गया है तो वह प्रतिकर प्राप्त कर सके, यदि उसे बताई गई इस सेवा के अनुरूप सेवा नहीं दे रही गई है तथा उसने भुगतान कर दिया है ऐसी स्थिति में उसके पास में प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
भारत की संसद में इन्हीं महान उद्देश्यों को तथा प्रगतिशील भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया है। किसी भी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि वहां उसके ग्राहकों के भी अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए तथा एक ग्राहक के पास यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वह कोई भी उत्पाद या सेवा को खरीद रहा है आश्वस्त होना चाहिए कि उसके सभी अधिकार सुरक्षित हैं तथा उसके साथ किसी भी प्रकार की ठगी नहीं की जाएगी।
कुछ आलोचको ने इस अधिनियम को व्यापारी के विरुद्ध बताया परंतु यदि कोई व्यापारी ईमानदारी पूर्वक अपना उत्पाद बेचता है या अपनी सेवाएं बेचता है उस व्यापारी पर यह अधिनियम कोई कठोरता नहीं करता, इस अधिनियम की कठोरता तो उस व्यापारी या उसके प्रति लागू होती है जिसने छल के माध्यम से अपनी सेवा को दिया है, छल के माध्यम से बेचा है तथा अपने कार्य में ईमानदारी का आचरण नहीं रखा है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (1986 का 68) उपभोक्ताओं के हितों से बेहतर संरक्षण के लिए और उस प्रयोजन के लिए उपभोक्ता विवादों के समाधान के लिए उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना का उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
हालांकि उक्त अधिनियम के अधीन उपभोक्ता विवाद प्रतितोष अभिकरणों के कार्यकरण ने काफी हद तक इस प्रयोजन को पूरा किया है, किन्तु मामलों का निपटारा विभिन्न व्यथाओं के कारण शीघ्रतापूर्वक नहीं हो पाया है। उक्त अधिनियम के विभिन्न उपबंधों को प्रशासित करते हुए कई कमियां प्रकाश में आयी हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को वर्ष 1986 में अधिनियमित किए जाने से लेकर माल और सेवाओं के लिए उपभोक्ता बाजारों में भारी परिवर्तन आया है। आधुनिक बाजारों में माल और सेवाओं का अम्बार लग गया है।
वैश्विक प्रदाय श्रृंखलाओं के आविर्भाव, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वृद्धि और ई-वाणिज्यिक के तीव्र विकास के कारण माल और सेवाओं के परिदान की नई प्रणालियां विकसित हुई हैं, उपभोक्ताओं के लिए नए विकल्प और अवसर प्राप्त हुए हैं, इसके साथ-साथ इसके कारण उपभोक्ता नए प्रकार के अनुचित व्यापार और अनैतिक कारबार ब्यौराहारों के प्रति भेद्य हो गए हैं।
भ्रामक विज्ञापन, टेलीमार्केटिंग, बहुस्तरीय विपणन, सीधे विक्रय और ई-वाणिज्य ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं और उपभोक्ताओं को क्षति से बचाने हेतु समुचित और शीघ्र कार्यपालक हस्तक्षेप अपेक्षित होगा।
अतः उपभोक्ताओं को बहुत सी और निरंतर उभरती भेद्यताओं से संरक्षित करने के लिए उस अधिनियम को संशोधित करने की आवश्यकता थी। पूर्वोक्त दृष्टिकोण से अधिनियम को निरमित करने और पुनः अधिनियमित करने का प्रस्ताव रखा गया।
तद्नुसार, एक विधेयक, अर्थात् उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018, तारीख 5 जनवरी, 2018 को लोक सभा में पुरःस्थापित किया गया और उस सदन द्वारा 20 दिसम्बर, 2018 से पारित किया गया। विधेयक के राज्य सभा में विचार के लिए लंबित रहते हुए, 16वीं लोक सभा का विघटन हो गया और विधेयक व्यपगत हो गया। अतः, वर्तमान विधेयक, अर्थात् उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 पुरःस्थापित किया गया।
प्रस्तावित विधेयक उपभोक्ताओं के अधिकारों का संवर्धन करने, संरक्षित करने और प्रवृत्त करने के लिए, अनुचित व्यापार व्यवहारों से उद्भूत उपभोक्ताओं को नुकसान से बचाने के लिए, जब आवश्यक हो तब हस्तक्षेप करने और वर्ग कार्रवाई प्रारंभ करने, जिसके अंतर्गत माल वापस मंगवाना प्रतिदाय और माल को वापसी प्रवर्तित करना है, के लिए किसी कार्यपालक अभिकरण, जिसे केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के नाम से जाना जाएगा, की स्थापना का उपबंध करता है, इससे विद्यमान विनियामक व्यवस्था में संस्थागत कमी की पूर्ति होगी।
वर्तमानतः अनुचित व्यापार व्यवहारों के निवारण या उसके विरुद्ध कार्रवाई करने का कार्य किसी प्राधिकारी में निहित नहीं है। इसका उपबंध ऐसी रीति में किया गया है कि सीसीपीए के लिए अभिकल्पित भूमिका, सेक्टर विनियामकों और द्विगुणन की भूमिकों की पूर्ति करता है, तथा अतिव्याप्ति और संभावित द्वंद्व का परिवर्जन करता है।
विधेयक में त्रुटियुक्त उत्पाद के कारण या सेवा में कमी द्वारा उपभोक्ताओं को कारित नुकसान के कारण उत्पाद दायित्व की कार्रवाई के लिए उपबंधों की परिकल्पना भी है। इसके अतिरिक्त अनुकल्पी विवाद समाधान प्रक्रिया विधि के रूप में मध्यकता' का उपबंध भी दिया गया है।
विधेयक में अन्य बातों के साथ-साथ, उपभोक्ता शिकायत प्रतितोष अभिकरणों की धनीय अधिकारिता को बढ़ाने, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों में सदस्यों की न्यूनतम संख्या में वृद्धि करने और उपभोक्ताओं के लिए इलेक्ट्रानिक रूप से परिवाद फाइल करने, आदि से संबंधित उपभोक्ता विवाद प्रतितोष अभिकरणों की उपभोक्ता विवाद न्यायनिर्णयन प्रक्रिया के सरलीकरण के उद्देश्य से विभिन्न उपबंधों की व्यवस्था है।
भारत के ज्यादातर लोग गरीब और अशिक्षित है। वे अपने कठिन परिश्रम से कमाए हुए पैसों का भी सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाते हैं। बाजार में उन्हें जो कुछ भी मिलता है उसे वे आंख मूंदकर खरीद लेते हैं तथा वे अपने पैसों की सही कीमत नहीं वसूल कर पाते। चतुर व्यवसायी भोले भाले अशिक्षित क्रेताओं को हीन गुणवत्ता वाली वस्तुएं देकर उन्हें ठग लेता है।
विक्रेता अत्यधि मुनाफा प्राप्त करने की होड़ में घटिया किस्म की तथा अपमिश्रित वस्तुएं क्रेता को देता है। इससे क्रेता पर दोहरा असर पड़ता है एक तो वह कठिन परिश्रम से कमाए गए धन का सदुपयोग नही कर पाता है तो दूसरी तरफ घटिया तथा अपमिश्रित वस्तुओं को खरीद कर अपने तथा अपने परिजनों को बीमारी के मुंह में ढकेल देता है ऐसे बीमार क्रेता कहां जाएं। ऐसे शोषित उपभोक्ताओं को इस दोहरी मार से बचाने के लिए ही 24 दिसम्बर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित किया गया।
देश का प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है। उसे पहले प्रभुता सम्पन्न व्यक्ति माना जाता था, परनु कालान्तर में निर्माताओं, उत्पादकों तथा विक्रेताओं में स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ने लगी तब से उपभोक्ताओं के हितों की उपेक्षा करने लगे। माल की गुणवत्ता पर उन्होंने ध्यान देना छोड़ दिया। बाजार में क्रेता सावधान नियम लागू कर दिया गया।
जिसके द्वारा माल की खरीददारी करते समय क्रेता को सावधानी बरतनी पड़ती है। विनिर्माता एवं विक्रेता द्वारा यह कहा जाता है कि क्रेता को खरीददारी करते समय आंखे खुली रखनी चाहिए।