शर्तें और वारंटी: Sales of Goods Act, 1930 की धारा 11, 12, 13 और 14

Update: 2025-06-24 11:12 GMT

समय संबंधी शर्त (Stipulations as to Time)

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III शर्तों (Conditions) और वारंटियों (Warranties) से संबंधित महत्वपूर्ण अवधारणाओं (Important Concepts) की पड़ताल करता है। इन अवधारणाओं को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे उल्लंघन (Breach) की स्थिति में खरीदार (Buyer) और विक्रेता (Seller) दोनों के अधिकारों और उपायों (Rights and Remedies) को निर्धारित करती हैं।

धारा 11 अनुबंध में समय (Time) के महत्व से संबंधित है। यह स्पष्ट करती है कि, जब तक अनुबंध की शर्तों से कोई अलग इरादा (Different Intention) प्रकट न हो, भुगतान के समय (Time of Payment) से संबंधित शर्तें बिक्री अनुबंध का मूल तत्व (Essence of a Contract of Sale) नहीं मानी जाती हैं। इसका अर्थ है कि यदि खरीदार भुगतान में थोड़ी देरी करता है, तो विक्रेता आमतौर पर अनुबंध को पूरी तरह से रद्द (Repudiate) नहीं कर सकता है, बल्कि केवल नुकसान (Damages) का दावा कर सकता है।

हालाँकि, समय से संबंधित कोई अन्य शर्त, चाहे वह अनुबंध का मूल तत्व है या नहीं, अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, माल की डिलीवरी का समय (Time of Delivery) अक्सर अनुबंध का मूल तत्व हो सकता है, खासकर यदि माल प्रकृति में खराब होने वाला हो (Perishable in Nature) या किसी विशेष घटना के लिए आवश्यक हो।

एक सामान्य नियम के रूप में, व्यापारिक अनुबंधों (Commercial Contracts) में, डिलीवरी का समय अक्सर महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि समय पर डिलीवरी व्यावसायिक संचालन (Business Operations) के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। लेकिन व्यक्तिगत लेन-देन (Personal Transactions) में यह हमेशा ऐसा नहीं होता है।

शर्त और वारंटी (Condition and Warranty)

धारा 12 'शर्त' और 'वारंटी' के बीच महत्वपूर्ण अंतर को परिभाषित करती है, जो माल विक्रय अधिनियम की आधारशिला (Cornerstone) है।

धारा 12(1) बस यह कहती है कि माल से संबंधित बिक्री अनुबंध में कोई शर्त (Stipulation) या तो एक शर्त (Condition) या एक वारंटी (Warranty) हो सकती है।

धारा 12(2) एक शर्त (Condition) को परिभाषित करती है। एक शर्त अनुबंध के मुख्य उद्देश्य (Main Purpose) के लिए एक आवश्यक शर्त (Stipulation Essential) होती है। इसका उल्लंघन (Breach) अनुबंध को रद्द करने का अधिकार (Right to Treat the Contract as Repudiated) देता है। इसका मतलब है कि यदि विक्रेता एक शर्त का उल्लंघन करता है, तो खरीदार अनुबंध को समाप्त कर सकता है (Treat the contract as at an end) और माल को अस्वीकार कर सकता है (Reject the goods), और साथ ही नुकसान का दावा भी कर सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि आप एक विशेष कार रेस में उपयोग के लिए एक कार खरीदते हैं, और अनुबंध में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कार 'रेस तैयार' (Race Ready) होनी चाहिए। यदि डिलीवर की गई कार रेस के लिए तैयार नहीं है, तो यह एक शर्त का उल्लंघन है क्योंकि 'रेस तैयार' होना अनुबंध के मुख्य उद्देश्य के लिए आवश्यक था। आप कार को अस्वीकार कर सकते हैं और अनुबंध को समाप्त कर सकते हैं।

धारा 12(3) एक वारंटी (Warranty) को परिभाषित करती है। एक वारंटी अनुबंध के मुख्य उद्देश्य के संपार्श्विक (Collateral) एक शर्त होती है। इसका उल्लंघन केवल नुकसान के दावे (Claim for Damages) को जन्म देता है, लेकिन माल को अस्वीकार करने और अनुबंध को रद्द करने का अधिकार नहीं देता है। वारंटी का उल्लंघन इतना गंभीर नहीं होता है कि पूरे अनुबंध को खत्म कर दे।

उदाहरण के लिए, यदि आप एक नई कार खरीदते हैं और अनुबंध में कहा गया है कि उसमें 'ब्लूटूथ कनेक्टिविटी' (Bluetooth Connectivity) होगी। यदि कार में ब्लूटूथ नहीं है, तो यह वारंटी का उल्लंघन हो सकता है। आप कार को अस्वीकार नहीं कर सकते, लेकिन आप नुकसान (जैसे ब्लूटूथ सिस्टम लगाने की लागत) का दावा कर सकते हैं।

धारा 12(4) इस बात पर जोर देती है कि बिक्री अनुबंध में कोई शर्त, चाहे वह शर्त है या वारंटी, प्रत्येक मामले में अनुबंध के निर्माण (Construction of the Contract) पर निर्भर करती है। इसका अर्थ है कि अनुबंध के शब्दों की व्याख्या (Interpretation of the Words) महत्वपूर्ण है। एक शर्त एक शर्त हो सकती है, भले ही उसे अनुबंध में वारंटी कहा गया हो (Though called a Warranty in the Contract)। अदालतों को वास्तविक इरादे और शर्त के महत्व को देखना चाहिए, न कि केवल उसके शाब्दिक लेबल को।

एक प्रसिद्ध मामला जो शर्त और वारंटी के बीच अंतर पर प्रकाश डालता है, वह है बैटरीकेयर बनाम डिकेन्स (Bettini v. Gye) (1876) 1 QBD 183 (हालांकि यह सीधे माल विक्रय अधिनियम से नहीं है, यह अनुबंध कानून में शर्त और वारंटी के सिद्धांतों को स्पष्ट करता है)। इस मामले में, एक गायक ने कुछ प्रदर्शनों में अपनी अनुपस्थिति के लिए अनुबंध का उल्लंघन किया। अदालत ने फैसला सुनाया कि यह एक वारंटी का उल्लंघन था, न कि एक शर्त का, क्योंकि मुख्य उद्देश्य (गाना) अभी भी प्राप्त किया जा सकता था, और इसलिए आयोजक अनुबंध को रद्द नहीं कर सकता था, बल्कि केवल नुकसान का दावा कर सकता था।

कब शर्त को वारंटी माना जाए (When Condition to be Treated as Warranty)

धारा 13 उन परिस्थितियों को स्पष्ट करती है जहाँ एक शर्त के उल्लंघन को वारंटी के उल्लंघन के रूप में माना जा सकता है, जिससे खरीदार को माल को अस्वीकार करने का अधिकार खो जाता है।

धारा 13(1) के अनुसार, जहाँ बिक्री का अनुबंध विक्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी शर्त के अधीन है, तो खरीदार शर्त को छोड़ सकता है (May Waive the Condition) या शर्त के उल्लंघन को वारंटी के उल्लंघन (Breach of Warranty) के रूप में मानने का चुनाव कर सकता है (Elect to Treat), न कि अनुबंध को रद्द करने का आधार (Ground for Treating the Contract as Repudiated)। यह खरीदार को एक विकल्प देता है - यदि वह चाहता है कि अनुबंध जारी रहे, तो वह शर्त के उल्लंघन के अधिकार को माफ कर सकता है और केवल नुकसान का दावा कर सकता है।

उदाहरण के लिए, आपने एक विशिष्ट रंग की कार ऑर्डर की, जो एक शर्त थी। विक्रेता एक अलग रंग की कार डिलीवर करता है। आप कार को स्वीकार करने और उसे वारंटी के उल्लंघन के रूप में मानने का चुनाव कर सकते हैं, जिससे आप केवल नुकसान का दावा कर सकते हैं (जैसे कार को फिर से रंगने की लागत), बजाय इसके कि कार को पूरी तरह से अस्वीकार कर दें।

धारा 13(2) एक महत्वपूर्ण परिस्थिति को बताती है जहाँ खरीदार अपना अस्वीकृति का अधिकार (Right to Reject) खो देता है। जहाँ बिक्री का अनुबंध अविभाज्य (Not Severable) है (यानी, इसे अलग-अलग हिस्सों में विभाजित नहीं किया जा सकता है) और खरीदार ने माल या उसके हिस्से को स्वीकार कर लिया है (Accepted the Goods or Part Thereof), तो विक्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी भी शर्त के उल्लंघन को केवल वारंटी का उल्लंघन (Breach of Warranty) माना जा सकता है, न कि माल को अस्वीकार करने और अनुबंध को रद्द करने का आधार, जब तक कि अनुबंध में स्पष्ट या निहित रूप से (Express or Implied) ऐसा कोई प्रावधान न हो।

यहां मुख्य विचार यह है कि यदि खरीदार ने माल को स्वीकार कर लिया है और उसे अपने अधिकार में ले लिया है, तो वह आम तौर पर बाद में शर्त के उल्लंघन के लिए माल को अस्वीकार नहीं कर सकता है। 'स्वीकृति' तब होती है जब खरीदार विक्रेता को सूचित करता है कि उसने माल को स्वीकार कर लिया है, या जब खरीदार माल के संबंध में कोई ऐसा कार्य करता है जो मालिक के रूप में उसके असंगत है (उदाहरण के लिए, उसे उप-बेचना)।

पेरेसी बनाम मेरिले (Perron v. Merrilees) (एक काल्पनिक उदाहरण जो सिद्धांत को दर्शाता है): एक थोक व्यापारी एक रेस्तरां को 50 किलो विशिष्ट पनीर का अनुबंध करता है, जो 'डिलीवरी पर गुणवत्ता निरीक्षण' के अधीन है। रेस्तरां मालिक 20 किलो पनीर का उपयोग करता है और फिर पाता है कि बाकी पनीर खराब गुणवत्ता का है। चूंकि अनुबंध अविभाज्य था और उसने 20 किलो स्वीकार कर लिया था, वह अब शेष 30 किलो को अस्वीकार नहीं कर सकता है, बल्कि केवल खराब गुणवत्ता वाले पनीर के लिए नुकसान का दावा कर सकता है।

धारा 13(3) स्पष्ट करती है कि यह धारा किसी भी शर्त या वारंटी के मामले को प्रभावित नहीं करेगी जिसकी पूर्ति कानून द्वारा असंभवता (Impossibility) या अन्यथा के कारण क्षमा की जाती है। यह अनुबंध अधिनियम के निराशा (Frustration) के सिद्धांत से जुड़ा है, जहाँ कुछ बाहरी घटना के कारण प्रदर्शन असंभव हो जाता है।

शीर्षक आदि के संबंध में निहित उपक्रम (Implied Undertaking as to Title, etc.)

धारा 14 उन महत्वपूर्ण निहित शर्तों (Implied Conditions) और निहित वारंटियों (Implied Warranties) का प्रावधान करती है जो माल की बिक्री के हर अनुबंध में स्वाभाविक रूप से मौजूद होती हैं, जब तक कि अनुबंध की परिस्थितियाँ कोई अलग इरादा न दर्शाती हों।

धारा 14(a) शीर्षक (Title) के संबंध में एक निहित शर्त (Implied Condition) प्रदान करती है:

• बिक्री के मामले में (In the case of a sale), विक्रेता के पास माल बेचने का अधिकार है।

• बेचने के समझौते के मामले में (In the case of an agreement to sell), विक्रेता को उस समय माल बेचने का अधिकार होगा जब संपत्ति हस्तांतरित होनी है। यह एक मौलिक शर्त है क्योंकि खरीदार को बेचने का अधिकार न रखने वाले व्यक्ति से माल खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

रोलैंड बनाम डिवॉल (Rowland v. Divall) (1923) 2 KB 500 इस निहित शर्त पर एक क्लासिक मामला है। रोलैंड ने डिवॉल से एक कार खरीदी। बाद में पता चला कि डिवॉल का कार पर कोई शीर्षक नहीं था क्योंकि यह चोरी की संपत्ति थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि शीर्षक के लिए एक निहित शर्त का उल्लंघन किया गया था, और रोलैंड पूरी खरीद मूल्य वसूल करने का हकदार था, भले ही उसने कार का कई महीनों तक उपयोग किया था। यह मामला इस बात पर जोर देता है कि खरीदार को हमेशा यह अधिकार होता है कि वह माल के वास्तविक मालिक से माल प्राप्त करे।

धारा 14(b) शांत कब्ज़े (Quiet Possession) के संबंध में एक निहित वारंटी (Implied Warranty) प्रदान करती है कि खरीदार को माल का शांत और निर्बाध कब्ज़ा और आनंद (Have and Enjoy Quiet Possession) होगा। इसका मतलब है कि खरीदार को माल के उपयोग में किसी भी तीसरे पक्ष द्वारा परेशान नहीं किया जाएगा, जिसके पास माल पर वैध दावा हो। यदि ऐसा होता है, तो खरीदार नुकसान का दावा कर सकता है।

उदाहरण के लिए, आप एक पुरानी किताब खरीदते हैं। बाद में, एक तीसरा पक्ष दावा करता है कि पुस्तक उसकी है और आपके उपयोग में बाधा डालता है। यदि यह दावा वैध है, तो विक्रेता ने शांत कब्ज़े की निहित वारंटी का उल्लंघन किया है।

धारा 14(c) एक निहित वारंटी (Implied Warranty) प्रदान करती है कि माल किसी भी प्रभार (Charge) या भार (Encumbrance) से मुक्त होगा जो किसी तीसरे पक्ष के पक्ष में हो और जिसे अनुबंध बनने से पहले या उस समय खरीदार को घोषित या ज्ञात नहीं किया गया था। यह सुनिश्चित करता है कि खरीदार को माल पर कोई छिपा हुआ ऋण (Hidden Debt) या अधिकार (Right) नहीं मिलता है।

उदाहरण के लिए, आप एक मशीन खरीदते हैं। बाद में, एक बैंक आता है और दावा करता है कि मशीन पर उसका ऋण था जो विक्रेता ने कभी नहीं चुकाया और अब वे मशीन को जब्त करना चाहते हैं। यदि आपको इस ऋण के बारे में अनुबंध के समय पता नहीं था, तो विक्रेता ने भार से मुक्ति की निहित वारंटी का उल्लंघन किया है।

Tags:    

Similar News