पट्टाली मक्कल काची बनाम ए. मयिलेरुम्पेरुमल केस में संवैधानिक प्रावधानों का व्यापक विश्लेषण

Update: 2024-09-14 14:06 GMT

परिचय (Introduction)

पट्टाली मक्कल काची बनाम ए. मयिलेरुम्पेरुमल मामला, जो 31 मार्च 2022 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया गया, तमिलनाडु विशेष आरक्षण अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता पर आधारित था। सुप्रीम कोर्ट ने यह जांचा कि क्या राज्य द्वारा विशेष पिछड़े वर्गों (MBCs) में आंतरिक आरक्षण (Internal Reservation) देना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करता है। इस केस में मुख्य मुद्दे थे कि क्या 102वें और 105वें संवैधानिक संशोधनों के बाद राज्य के पास पिछड़े वर्गों में आरक्षण देने का अधिकार है और क्या MBCs के भीतर उप-वर्गीकरण (Sub-classification) कानूनी रूप से सही है।

पट्टाली मक्कल काची बनाम ए. मयिलरमपेरुमल मामला आरक्षण के मामलों में संवैधानिक दिशानिर्देशों के पालन के महत्व को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्यों को पिछड़े वर्गों के भीतर उप-वर्गीकरण बनाते समय पर्याप्त डेटा प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया और इस बात पर जोर दिया कि ऐसा कोई भी कदम अनुच्छेद 342-ए के तहत राष्ट्रपति की एसईबीसी की सूची के अनुसार होना चाहिए। निर्णय एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि जबकि राज्य विधायी क्षमता बनाए रखते हैं, उनके कार्य संवैधानिक प्रावधानों में निहित होने चाहिए और साक्ष्य द्वारा समर्थित होने चाहिए।

मामले के तथ्य (Facts of the Case)

तमिलनाडु विशेष आरक्षण अधिनियम, 2021 ने MBCs और असूचित जातियों (Denotified Communities, DNCs) के लिए 20% आरक्षण के भीतर वन्नियाकुल क्षत्रिय (Vanniakula Kshatriya) समुदाय को 10.5% आंतरिक आरक्षण प्रदान किया। इस कदम को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया। मुख्य प्रश्न यह था कि 2018 में हुए 102वें संशोधन के बाद, जिसमें पिछड़े वर्गों की पहचान का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया, क्या राज्य के पास आंतरिक आरक्षण बनाने का अधिकार है।

हाईकोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव की मनाही), और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसरों की समानता) का उल्लंघन करता है, क्योंकि उप-वर्गीकरण के लिए कोई ठोस आंकड़े (Quantifiable Data) प्रस्तुत नहीं किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि बिना राष्ट्रपति की सूची के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) को पहचानने का राज्य का कदम कानूनी रूप से मान्य था या नहीं।

प्रमुख संवैधानिक प्रावधान (Key Constitutional Provisions)

1. अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार (Right to Equality)

अनुच्छेद 14 यह गारंटी देता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं किया जाएगा। इस मामले में चुनौती यह थी कि तमिलनाडु सरकार द्वारा MBCs के भीतर किया गया आंतरिक आरक्षण क्या मनमाना (Arbitrary) या भेदभावपूर्ण था। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि इसके समर्थन में MBCs के उप-समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जनसंख्या के बारे में कोई ठोस डेटा नहीं था।

2. अनुच्छेद 15 – भेदभाव की मनाही (Prohibition of Discrimination)

अनुच्छेद 15(4) राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट को यह देखना था कि वन्नियाकुल क्षत्रिय समुदाय के लिए आंतरिक आरक्षण संविधान के इस प्रावधान के अनुरूप था या नहीं। सवाल यह था कि क्या यह वर्गीकरण प्रासंगिक आंकड़ों पर आधारित था और अनुच्छेद 15 के इरादे के साथ मेल खाता था।

3. अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर (Equality of Opportunity in Public Employment)

अनुच्छेद 16(4) पिछड़े वर्गों के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह सवाल था कि क्या MBCs के भीतर एक विशिष्ट उप-समूह को 10.5% आंतरिक आरक्षण देना अनुच्छेद 16 के तहत उचित था।

4. अनुच्छेद 342-A – सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (Socially and Educationally Backward Classes)

102वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 342-A को जोड़ा गया, जिसने SEBCs की पहचान करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया। यह प्रावधान विवाद का केंद्र था क्योंकि इसके बाद राज्य द्वारा पिछड़े वर्गों में बदलाव या नए आरक्षण बनाने की क्षमता पर सवाल उठाए गए। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना राष्ट्रपति की अधिसूचना के राज्य किसी भी तरह का वर्गीकरण नहीं कर सकता।

अपीलकर्ता (Pattali Makkal Katchi) के तर्क (Arguments by the Appellants)

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि 102वें संशोधन के बाद भी राज्य के पास MBCs के भीतर आंतरिक आरक्षण देने का अधिकार था। उन्होंने दावा किया कि यह अधिनियम संवैधानिक रूप से वैध है और राज्य की कानून बनाने की शक्ति अनुच्छेद 342-A(3) के तहत संरक्षित है, जो राज्यों को SEBCs की अपनी सूची बनाए रखने की अनुमति देता है।

अपीलकर्ताओं ने यह भी कहा कि वन्नियाकुल क्षत्रिय समुदाय की पिछड़ेपन की पहचान लंबे समय से होती रही है और यह 10.5% आरक्षण इस समुदाय के भीतर उचित प्रतिनिधित्व और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था।

प्रतिवादी (A. Mayilerumperumal) के तर्क (Arguments by the Respondents)

प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि 2021 अधिनियम द्वारा दिए गए आंतरिक आरक्षण ने अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन किया क्योंकि इसके समर्थन में वन्नियाकुल क्षत्रिय समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर पर्याप्त आंकड़े नहीं थे। उन्होंने कहा कि यह वर्गीकरण मनमाना और भेदभावपूर्ण था, जिसके कारण MBCs के भीतर अवसरों का असमान वितरण हुआ।

इसके अलावा, प्रतिवादियों ने 102वें संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि SEBCs की पहचान अब केवल राष्ट्रपति कर सकते हैं, और राज्य की विधायिका अब बिना राष्ट्रपति की मंजूरी के नए आरक्षण या वर्गीकरण नहीं बना सकती।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)

1. 102वें और 105वें संशोधन के बाद विधायी क्षमता (Legislative Competence after the 102nd and 105th Amendments)

कोर्ट ने 102वें संवैधानिक संशोधन के बाद तमिलनाडु सरकार की विधायी क्षमता का विश्लेषण किया। कोर्ट ने माना कि यह संशोधन SEBCs की पहचान का अधिकार राष्ट्रपति को देता है, लेकिन राज्य को पिछड़े वर्गों के लिए नीतियां और योजनाएं बनाने का अधिकार अनुच्छेद 342-A(3) के तहत मिला हुआ है। कोर्ट को यह तय करना था कि राज्य का आंतरिक आरक्षण का कदम उसके अधिकार क्षेत्र में आता है या यह राष्ट्रपति के विशेषाधिकार के साथ टकराता है।

2. उप-वर्गीकरण की तर्कसंगतता (Reasonableness of Sub-classification)

कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि पिछड़े वर्गों के भीतर उप-वर्गीकरण (Sub-classification) तभी मान्य है जब यह तर्कसंगत आधार पर हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का विश्लेषण किया कि क्या तमिलनाडु द्वारा दिया गया आंतरिक आरक्षण सामाजिक-आर्थिक डेटा पर आधारित था या यह MBC वर्ग का मनमाना विभाजन था।

3. अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन (Violation of Articles 14, 15, and 16)

कोर्ट ने यह मूल्यांकन किया कि क्या तमिलनाडु विशेष आरक्षण अधिनियम, 2021 ने संविधान के समानता प्रावधानों का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने डेटा की कमी और राज्य द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया का विश्लेषण करते हुए कहा कि किसी भी प्रकार का आरक्षण ठोस आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए और न ही मनमाना हो सकता है और न भेदभावपूर्ण।

फैसला (Judgment)

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए तमिलनाडु विशेष आरक्षण अधिनियम, 2021 को असंवैधानिक घोषित किया। कोर्ट ने पाया कि आंतरिक आरक्षण के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं थे और इसलिए यह मनमाना और अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करता था। कोर्ट ने यह भी कहा कि 102वें संशोधन के बाद राज्यों को SEBCs की पहचान करते समय राष्ट्रपति की सूची का पालन करना होगा।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य को उप-वर्गीकरण का अधिकार है, लेकिन यह कदम केवल तब वैध हो सकता है जब इसे आंकड़ों के साथ सही ठहराया जा सके और यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हो।

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