सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 41: आदेश 8 नियम 1 व 1(क) के प्रावधान

Update: 2023-12-18 11:30 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 8 लिखित कथन से संबंधित है जो प्रतिवादी का प्रतिवाद पत्र होता है। आदेश 8 के नियम 1 में आधारभूत सिद्धांत को समाविष्ट करते हुए लिखित कथन को दिया गया है। आदेश 8 का नियम 1 महत्वपूर्ण नियम है जो कि लिखित कथन के आधारभूत सिद्धांत के साथ लिखित कथन प्रस्तुत करने की समयावधि भी देता है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 1 व नियम 1(क) पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-1 लिखित कथन- प्रतिवादी, उस पर समन तामील किए जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर, अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन प्रस्तुत करेगाः परन्तु जहां प्रतिवादी उक्त तीस दिन की अवधि के भीतर लिखित कथन फाइल करने में असफल रहता है, वहाँ उसे ऐसे किसी अन्य दिन को जो न्यायालय द्वारा ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, विनिर्दिष्ट किया जाए, फाइल करने के लिए अनुज्ञात किया जाएगा, किन्तु जो समन की तामील की तारीख से नब्बे दिन के पश्चात् का नहीं होगा।]

नियम-1(क) प्रतिवादी का वे दस्तावेज पेश करने का कर्त्तव्य जिन पर उसके द्वारा अनुतोष का दावा किया गया है या निर्भर किया गया है-

(1) जहाँ प्रतिवादी अपनी प्रतिरक्षा का आधार किसी ऐसे दस्तावेज को बनाता है या मुजरा के लिए दावा या प्रतिदावा के समर्थन में किसी ऐसे दस्तावेज पर निर्भर करता है जो उसके कब्जे या शक्ति में है, वहां वह ऐसे दस्तावेतों को सूची में प्रविष्ट करेगा और उसे तब पेश करेगा जब उसके द्वारा लिखित कथन उपस्थित किया जाता है और उसी समय लिखित कथन के साथ फाइल किया जाने वाला दस्तावेज और उसकी एक प्रति प्रदत्त करेगा।

(2) जहां कोई ऐसा दस्तावेज प्रतिवादी के कब्जे या शक्ति में नहीं है, वहां वह जहां कहीं संभव हो, यह कथित करेगा कि वह किसके कब्जे या शक्ति में है।

(3) ऐसा दस्तावेज जिसे इस नियम के अधीन प्रतिवादी द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, किन्तु इस प्रकार प्रस्तुत नहीं किया जाता है, न्यायालय की इजाजत के बिना, वाद की सुनवाई के समय उसकी ओर से साक्ष्य में ग्रहण नहीं किया जाएगा।

(4) इस नियम की कोई बात ऐसे दस्तावेजों को लागू नहीं होंगी जो-

(क) वादी के साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के लिए पेश किया जाए: या

(ख) साक्षी को केवल अपनी स्मृति ताजा करने के लिए सौंपें जाएं:

संशोधन 1999 व 2002 द्वारा आदेश 8 में नियम 1 के साथ नियम 1-क जोड़ा गया है, और पुराने नियम 8-क को लोपित कर दिया गया है। नियम 1 आदेश 8 का प्रवेश द्वार है, जिसमें लिखित-कथन के साथ ही दस्तावेज और उनकी सूची प्रस्तुत करनें की व्यवस्था की गई है का उल्लेख किया गया है।

लिखित-कथन का प्रस्तुतीकरण -समन आदेश 5 के नियम 9 के अधीन जारी किया जावेगा, जिसमें समन प्राप्ति के 30 दिन के भीतर प्रतिवादी को अपना लिखित कथन (दो प्रतियों में मय दस्तावेजों व उनकी सूची के) प्रस्तुत करना होगा। येन केन, यदि वह ऐसा न कर सके तो कारण लेखबद्ध करते हुए न्यायालय इस 30 दिन की अवधि को 90 दिन के के भीतर तक बढ़ा सकेगा, 8 के नियम 5(2) से (4) से साक्ष्य में परन्तु इसके बाद नहीं।

यह उपबन्ध आज्ञापक है इनका उल्लघंन करने पर नियम 1(क) में बताए गए परिणाम भुगताने होंगे तथा ऐसा दस्तावेज प्रतिवादी को और उच्चतम न्यायालय ने एक प्रकरण में यह अभिनिर्धारित किया कि आदेश 8 नियम 1 एवं उसके अपवाद के प्रावधान को प्रकृत्ति निदेशात्मक (Directory) है, ये प्रावधान 90 दिन बाद जबावदावा अभिलेख पर लेने को न्यायालय को शक्ति को कम नहीं करते हैं।

ये प्रावधान तो प्रतिवादी पर दायित्व अधिरोपित करती है कि वह 90 दिन के अन्दर जवाबदावा न्यायालय में प्रस्तुत करे। उच्चतम न्यायालय ने आगे यह भी अभिनिर्धारित किया कि आदेश 8 नियम 1 के प्रावधानों का पालन हो, केवल आपवादिक मामलों में हो जवाबदावा 90 दिन बाद अभिलेख पर लिया जा सकता है।

यदि न्यायालय समन के तामील के 90 दिनों के बाद प्रतिवादी का लिखित कथन (Reply) अभिलेख पर लेता है तो न्यायालय को अभिलेख पर लेने के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक है।

समन को तामील के 90 दिनों बाद लिखित कथन को अभिलेख पर नहीं लेने का प्रावधान आज्ञापक (Mandatory) नहीं है। आपवादिक परिस्थितियों में 90 दिनों के बाद भी लिखित कथन अभिलेख पर लिया जा सकता है। यदि प्रतिवादी लिखित कथन को प्रस्तुत करने के लिए आदेश 8 नियम 1 को बजाय धारा 151 सीपीसी में आवेदन करता है तो प्रतिवादी को गलत नही ठहराया जा सकता, न्यायालय द्वारा स्वविवेक का प्रयोग करते विलम्ब माफ (Condone) करने ने एवं लिखित न्यायालय द्वारा लिखित कथन कथन को अभिलेख पर लेने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। 90 दिन के बाद अभिलेख पर लेने की शक्ति का प्रयोग दिनवर्षा की भाँति प्रयोग नहीं करना चाहिए।

90 दिनों के बाद लिखित कथन न्यायहित में अभिलेख पर लिया जा सकता है। जवाबदावा प्रस्तुत करने हेतु पर्याप्त अवसर दिये विना विचारण न्यायालय द्वारा जवाबदेही बंद करने से प्रतिवादी अपनी प्रतिरक्षा करने, साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा अतः उच्चतम न्यायालय ने डिक्री अपास्त कर वाद विचारण हेतु प्रतिप्रेषित किया।

व्यवहार प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि प्रस्तुत किए गए लिखित कथन को अपास्त कर दे या निरस्त कर दें एवं उसकी जगह दूसरा लिखित कथन अभिलेख पर लेवे। यदि लिखित कथन में संशोधन करना चाहते हैं तो पक्षकार आदेश 6 नियम 17 के अंतर्गत आवेदन करें। जवाब दावा प्रस्तुत करने की मियाद 90 दिवस के पश्चात् साधारणतया, समय नहीं दिया जाना चाहिए, प्रतिवादी को समय सीमा खत्म होने का इन्तजार नहीं करना चाहिए।

इस आदेश में वर्णित जवाबदावा प्रस्तुत करने को मियाद के पश्चात् विशेष परिस्थितियों में ही जवाब दावा प्रस्तुत करने को अवधि को न्यायालय बढ़ा सकता है।

दस्तावेज तथा सूची का प्रस्तुतीकरण - आदेश 5 के नियम 7 के अनुसार, प्रतिवादी को उपस्थित होकर उत्तर देने के लिए दिये जाने वाले समन में प्रतिवादी को आदेश होगा कि यह आदेश 8, नियम 1 के दस्तावेज पेश करे।

आदेश 8, नियम् 1-क-नया जोड़ा गया है, जिसके अनुसार प्रतिवादी अपनी प्रतिरक्षा या मुजरा या प्रतिदावा के समर्थन में अपने पास के दस्तावेजों को एक सूची बनायेगा और उन दस्तावेजों को उनकी प्रतियों सहित लिखित- कथन प्रस्तुत करते समय प्रस्तुत करेगा। जहां ऐसा दस्तावेज उस प्रतिवादों के कब्जे या अधिकार में नहीं है, तो वह यथासंभव यह बतायेगा कि यह किसके कब्जे में है।

जो दस्तावेज इस नियम के अधीन न्यायालय में प्रतिवादी को उसे प्रस्तुत् नहीं करने पर, न्यायालय को अनुमति के बिना, लिया जावेगा। आवश्यक रूप से प्रस्तुत करना चाहिए था, उस दस्तावेज को वाद को सुनवाई में साक्ष्य में नहीं।

परन्तु यह नियम दो प्रकार के दस्तावेजों पर लागू नहीं होगा-जो-

(क) वादी के साक्षियों की प्रति परीक्षा के लिए प्रस्तुत किए जावें, या

(ख) साक्षी को उसको स्मृति ताजा करने के लिए दिए जायें।

विक्रय विलेख के निरस्तीकरण के वाद में, प्रतिवादी को साक्ष्य के प्रक्रम पर, प्रतिवादी ने एक आवेदन प्रस्तुत कर कतिपय दस्तावेजात को अभिलेख पर लेने की प्रार्थना की। उक्त दस्तावेज के सम्बन्ध में प्रतिवादी ने कोई अभिवचन लिखित कथन में अंकित नहीं किये। लिखित कथन में संशोधन का आवेदन खारिज होने का आदेश अंतिम होने के पश्चात्, उक्त दस्तावेज, देरी से पेश होने बाबत् समुचित स्पष्टीकरण के अभाव में अभिलेख पर नहीं लिये जा सकते।

आदेश 13 का नियम 2 लोपित कर दिया गया है, जो दस्तावेजों को पेश न करने के प्रभाव के बारे में था।

विक्रय-पत्र को प्रस्तुत नहीं करने का प्रभाव - -जहाँ प्रतिवादी ने अपने प्रतिवादपत्र में उस विक्रय-पत्र के निष्पादन को स्वीकार कर लिया, जिसके आधार पर वादी उस भूमि के आधे भाग पर अपना स्वत्व मांग रहा था। विचारण न्यायालय ने यह पाया कि वादी उस विवादग्रस्त भूमि पर, जब तक यह सेवा करता है, अपने अधिकार के लिए हकदार है। अपील-न्यायालय ने उस विक्रय-पत्र के पेश नहीं होने होने के कारण वादी का स्वत्व का प्रश्न निर्णीत नहीं किया, इसे न्यायोचित नहीं माना गया। ऐसी स्थिति में उस दस्तावेज को पेश नहीं करना महत्त्वपूर्ण नहीं था।

आदेश 8 नियम 1, नियम 5 उपनियम (2) और 10- नियम 1 के अधीन यचापेक्षित, यदि प्रतिवादी अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन फाइल नहीं करता है, तो न्यायालय में, सिवाय निःशक्त व्यक्ति के विरुद्ध वादपत्र में अन्तर्विष्ट तथ्यों के आधार पर निर्णय सुनाने को नियम 5 (2) के अधीन शक्ति निहित है। अपने विवेकाधिकार के योग में न्यायालय को इस बात को छूट है कि वह इस तथ्य के होते हुए भी कि प्रतिवादी ने प्रतिरक्षा का अपना लिखित कथन फाइल नहीं किया है, वादी से उन तथ्यों को साबित करने को अपेक्षा करे, जिनका वादी द्वारा वादपत्र में अभिवचन किया गया है। न्यायालय का उक्त आशय का आदेश किसी अवैधता से से दूषित नहीं होता है।

लिखित कथन वाद में विरोधी पक्षकार से लिखित कथन प्रस्तुत किए जाने की न्यायालय द्वारा अपेक्षा की गई। लिखित कथन के प्रस्तुत किए जाने के लिए वाद की सुनवाई को कई तारीखों पर स्थगित किया गया। प्रतिवादियों द्वारा लिखित कथन का फाइल न किया जाना एवं अनेक स्थगनों के उपरान्त पुनः समय की माँग करना। न्यायाधीश द्वारा उनकी प्रार्थना को नामंजूर कर दिया जाना। प्रतिवादी लिखित कथन या तो पहली सुनवाई के अवसर पर या न्यायालय द्वारा निश्चित किसी अन्य तारीख को ही प्रस्तुत कर सकता है।

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