सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 20: आदेश 6 नियम 6 के प्रावधान

Update: 2023-12-06 10:28 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है जहां अभिवचन के साधारण नियम दिए गए हैं। आदेश 6 के नियम 6 में पुरोभाव्य शर्तों के संबंध में उल्लेख है। यह नियम भी अभिवचन के नियमों को निर्धारित करने के उद्देश्य से है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 6 पर सारगर्भित चर्चा प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-6 पुरोभाव्य शर्तें-जिस किसी पुरोभाव्य शर्त के पालन का या घटित होने का प्रतिवाद करना आशयित हो, वह, यथास्थिति, वादी या प्रतिवादी द्वारा अपने अभिवचन में स्पष्टतः विनिर्दिष्ट की जाएगी और उसके अधीन रहते हुए वादी या प्रतिवादी के पक्ष के लिए आवश्यक सभी पुरोभाव्य शर्तों का पालन या घटित होने का प्रकथन उसके अभिवचन में विवक्षित होगा।

पुरोभाव्य शर्त (Condition Precedent)-संविदा अधिनियम में पुरोभाव्य शर्त का वर्णन किया गया है। धारा 54 के अनुसार "जब कि कोई संविदा ऐसे व्यतिकारी वचनों से गठित हो, जिनमें से एक का पालन या पालन का दावा तब तक नहीं किया जा सके जब तक दूसरे का पालन न कर दिया जाय।" ऐसी शर्त "पुरोभाव्य शर्त" कहलाती है।

अभिवचन में पुरोभाव्य शर्त का कथन (आदेश 6, नियम 6) - अभिवचन में किसी पुरोभाव्य शर्त के पालन या घटित होने का कथन करने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह उस अभिवचन में विवक्षित (अन्तर्हित, छिपी हुई) होती है। परन्तु यदि विपक्षी पुरोभाव्य शर्त के पालन या घटित होने का प्रतिवाद (विरोध) करता है, तो उसे अपने अभिवचन में उसका स्पष्ट विवरण देना होगा कि वह शर्त क्या थी, उसने कौन-कौन पक्षकार थे और वह लिखित में थी या मौखिक।

एक वादी को केवल इसलिए वादरहित नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी पुरोभाव्य शर्त का पालन नहीं किया और प्रतिवादी ने जब कोई कथन या एतराज नहीं किया। यह ध्यान देने योग्य है कि कठोर अर्थ में एक पुरोभाव्य शर्त वादहेतुक का अंग नहीं होती है। यह केवल एक अतिरिक्त औपचारिकता है, जिसे पक्षकारों के प्रत्यक्ष करार द्वारा लागू किया गया है, जिसको किये बिना वाद लाने का अधिकार निलम्बित हो जाता है, जब तक कि उस शर्त को पूरा न कर दिया जाए। अतः किसी पुरोभाव्य शर्त के पालन का विशेष रूप से उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है, इसे अभिवचन में ही विवक्षित (छिपा हुआ) मान लिया जाता है।

उदाहरण-क ने ख का मकान बनाने का ठेका इस शर्त पर लिया कि ख के वास्तुकार (आर्किटेक्ट) से कार्यपूर्ति का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद क को भवन के निर्माण की रकम का भुगतान किया जावेगा। यह पुरोभाव्य शर्त है।

क यदि ख के विरुद्ध रकम की वसूली का दावा लाता है, तो उसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह यह अभिवचन करे कि उसने वास्तुकार का प्रमाण-पत्र ले लिया है। यह उसमें छिपा हुआ है। परन्तु यदि ख इस शर्त की पालना को चुनौती देना चाहता है, तो उसे उस शर्त के बारे में पूरा विवरण देना होगा और ऐसा न करने पर उस शर्त की पालना होना समझा जावेगा। ख द्वारा उस शर्त की पालना नहीं करने का कथन करने पर उस शर्त की पालना करना साबित करने का भार वादी क पर होगा।

पुरोभाव्य शर्त का अभिवचन में उल्लेख कब आवश्यक है? - ध्यान देने योग्य बात है कि जहां वास्तव में पुरोभाव्य शर्त वादी के वादहेतुक का अंग हो, तो उसको अभिवचन में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना होगा। जैसे-किसी चैक आदि पर आधारित वाद में चैक का अनादरण हो जाना, विनिर्दिष्ट पालन के वाद में वादी का इच्छुक व तैयार रहना, बेदखली के वार में मकान खाली करने का नोटिस देना (परन्तु अब ऐसा नोटिस देना आवश्यक नहीं है)।

इसी प्रकार जहां किसी विधि में किसी पुरोभाव्य शर्त को देने का उल्लेख हो, तो ऐसी शर्त का उल्लेख करना होगा, जैसे- सरकार के विरुद्ध दावा करने पर धारा 80 सिविल प्रक्रिया संहिता का नोटिस, प्रशासन के पत्रों की प्राप्ति आदेश 7 नियम 4 के अधीन, धारा 91, 92, सि. प्र. सं. के अधीन प्राप्त की गई न्यायालय की अनुमति। पुरोभाव्य शर्त को चुनौती देना प्रतिवादी का कार्य है। यदि वह शर्त के पालन नहीं करने का अभिवचन करता है, तो उसे उसका स्पष्ट विवरण देना होगा।

वादी ने यदि किसी पुरोभाव्य शर्त का पालन नहीं किया हो, तो वह अपने वादपत्र में यह तथ्य दे सकता है कि किन कारणों से उसने ऐसा नहीं किया और उसके ऐसा न करने में किस प्रकार प्रतिवादी दायी या सम्बद्ध।

किसी पक्षकार के लिए पुरोभाव्य शर्त के पालन का अभिवचन करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नियम 6 के अधीन एक पुराभाव्य शर्त उसके अभिवचन में अवधारित है। परन्तु यदि कोई पक्षकार यह कथन करना चाहता है कि ऐसी कोई पुरोभाव्य शर्त है, जिसका पालन नहीं किया गया, तो उस पक्षकार को यह कथन करना चाहिये कि शर्त क्या थी और यह अभिवचन करना होगा कि उस शर्त का पालन नहीं किया गया।

दत्तक की वैधता की उपधारणा - (धारा 16, हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956) - पति के विकृत मस्तिष्क होने का अभिवाकू विशेष रूप से वादपत्र में आदेश 6 के नियम 6 के अनुसार नहीं किया। यह उपधारणा आज्ञापक है और विशेष विधि के अधीन होने से आदेश 6 नियम 6 के सामान्य उपबन्धों का अतिक्रमण करेगी।

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