सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 72: आदेश 15 नियम 1 से 3 तक के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 15 प्रथम सुनवाई में वाद का निपटारा है। यह आदेश उन प्रावधानों को स्पष्ट करता है जो यह बताते हैं कि न्यायालय किन मामलों में प्रथम सुनवाई को वाद का निपटारा कर सकता है और किस प्रक्रिया से कर सकता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 15 के नियम 1,2 व 3 पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-1 जब पक्षकारों में कोई विवाद नहीं है-जहाँ वाद की प्रथम सुनवाई में यह प्रतीत होता है कि विधि के या तथ्य के किसी प्रश्न पर पक्षकारों में विवाद नहीं है वहाँ न्यायालय तुरन्त ही निर्णय सुना सकेगा।
नियम-2 जब कई प्रतिवादियों में से किसी एक का विवाद नहीं है-'[1] जहाँ एक से अधिक प्रतिवादी हैं और प्रतिवादियों में से किसी एक का विधि के या तथ्य के किसी प्रश्न पर वादी से विवाद नहीं है वहाँ न्यायालय ऐसे प्रतिवादी के पक्ष में या उसके विरुद्ध निर्णय तुरन्त ही सुना सकेगा और वाद केवल अन्य प्रतिवादियों के विरुद्ध चलेगा।
[(2) जब कभी इस नियम के अधीन निर्णय सुनाया जाता है तब ऐसे निर्णय के अनुसार डिक्री तैयार की जायेगी और डिक्री में वही तारीख दी जायेगी जिस तारीख को निर्णय सुनाया गया था।
नियम-3 जब पक्षकारों में विवाद हो- (1) जहाँ पक्षकारों में विधि के या तुथ्य के किसी प्रश्न पर विवाद है और न्यायालय ने इसमें पूर्व उपबंधित रूप में विवाद्यकों की विरचना कर ली है वहाँ, यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि विवाद्यकों में से ऐसे विवाद्यकों के लिए जो वाद के विनिश्चय के लिए पर्याप्त हैं, जो तर्क या साक्ष्य पक्षकार तुरन्त ही दे सकते हैं उसके सिवाय कोई अतिरिक्त तर्क या साक्ष्य अपेक्षित नहीं है और वाद में तुरन्त ही आगे कार्यवाही करने से कोई अन्याय नहीं होगा तो, न्यायालय विवाद्यकों के अवधारण के लिए अग्रसर हो सकेगा और यदि उनसे सम्बन्धित निष्कर्ष विनिश्चय के लिए पर्याप्त है तो वह तदनुसार निर्णय सुना सकेगा, चाहे समन केवल विवाद्यकों के स्थिरीकरण के लिए निकाला गया हो या वाद के अन्तिम निपटारे के लिए : परन्तु जहाँ समन केवल विवाद्यकों के स्थिरीकरण के लिए ही निकाला गया है वहाँ वह तब किया जाएगा जब पक्षकार या उनके प्लीडर उपस्थित हों और उनमें से कोई आक्षेप नहीं करता हो
(2) जहाँ निष्कर्ष विनिश्चय के लिए पर्याप्त नहीं है वहाँ न्यायालय वाद की आगे की सुनवाई मुल्तवी करेगा और ऐसे अतिरिक्त साक्ष्य को पेश करने के लिए या ऐसे अतिरिक्त तर्क के लिए दिन नियत करेगा जो मामले में अपेक्षित हो।
आदेश 15 के नियम 1 तथा 2 प्रथम सुनवाई के दिन उन मामलों का निपटारा करने की शक्ति प्रदान करते हैं जिनमे कोई विवाद शेष नहीं है।
जब कोई विवाद नहीं (नियम-1) आवश्यक बातें -
(1) वाद की प्रथम सुनवाई का प्रक्रम है,
(2) ऐसा प्रतीत होता है कि पक्षकारों के बीच विधि या तथ्य के प्रश्न पर कोई विवाद नहीं है।
(3) ऐसी स्थिति में, न्यायालय उसी समय निर्णय सुना सकेगा।
प्रथम सुनवाई से तात्पर्य न्यायालय द्वारा सुनवाई के लिये नियत उस दिवस से है जब न्यायालय अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग कर पक्षकारों के मध्य के विवाद के प्रश्न निर्धारित करता है।
ऐसे मामले पारस्परिक समझौते द्वारा किए गए कार्य को न्यायालय की मोहर लगाकर उसे विधिक रूप देने के लिए न्यायालय में लाए जाते हैं। यह समझौते का स्वीकृति के आधार पर विधिमान्यकरण है।
जब किसी एक (प्रतिवादी का विवाद नहीं- (नियम 2)-
(1) किसी वाद में एक से अधिक प्रतिवादी हैं,
(2) उनमें से किसी एक का विधि या तथ्य के प्रश्न पर वादी से कोई विवाद नहीं है।
(3) ऐसे प्रतिवादी के पक्ष में उसके विरुद्ध न्यायालय निर्णय सुना सकेगा और उपनियम (2) के अनुसार डिक्री तैयार की जायेगी।
(4) इसके बाद केवल शेष प्रतिवादियों पर वाद चलाया जाएगा।
सिविल वाद का निस्तारण- सिविल वाद, कानून एवं सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार विनिश्चित किया जाना चाहिए न्यायालय की इच्छा से नहीं। वादी को कलंकित करने से पूर्व उसे अपना पक्ष रखने का अवसर, न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के मुताबिक दिया जाना चाहिए।
इस आदेश का नियम 3 पक्षकारों में विवाद होने पर भी प्रथम सुनवाई के दिन वाद का निपटारा करने को शक्ति न्यायालय को प्रदान करता है।
एक विवादग्रस्त पहलू- इस नियम के लागू होने के बारे में न्यायालय में मतभेद रहा है। एक मत के अनुसार, यह विवाद्यकों के स्थिरीकरण के समय लागू होता है, जब कि दूसरे मत के अनुसार यह बाद के प्रक्रम पर भी लागू होता है।
आदेश 15, नियम 3 केवल वहीं लागू होता है, जहाँ कुछ न्यायालयों में यह प्रक्रिया (प्रेक्ट्रिस) है कि- एक वाद में कहा गया है कि विवाद्यकों में स्थिरीकरण के लिए एक दिन नियत किया जाता है और तब यदि विवाद्यक स्थिर हो जाते हैं, तो न्यायालय तुरन्त कुछ विवाद्यकों को सुनवाई के लिए अग्रसर हो सकते हैं। विवाद्यकों के स्थरीकरण के समन जारी किये गये। दोनों पक्षकार आपस में सहमत नहीं होते तब तक साक्ष्य प्रस्तुत किये जाने से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ऐसा निर्णय अवैधानिक एवं गलत है।
नियम 3 के उपनियम (1) में निम्न आवश्यक बातें दी गई हैं-
(1) पक्षकारों के बीच विधि या तथ्य के किसी प्रश्न पर विवाद है,
(2) न्यायालय ने विवाद्यकों को रचना आदेश 14 के अनुसार कर ली है।
(3) फिर यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि-
(1) वाद के निर्णय के लिए आवश्यक विवाद्यकों पर पक्षकार तुरन्त तर्क या साक्ष्य देने को तैयार है,
(2) कोई अन्य तर्क या साक्ष्य उनके बारे में अपेक्षित नहीं है और,
(3) वाद में तुरन्त कार्यवाही करने से कोई अन्याय नहीं होगा।
(4) तो न्यायालय उन आवश्यक विवाद्यकों के निर्णय के लिए अग्रसर होगा और निष्कर्ष यदि निर्णय के लिए पर्याप्त है, तो निर्णय सुना सकेगा।
(5) समन यदि विवाद्यकों के लिए निकाला था, तो पक्षकार या उनके वकील द्वारा इस बारे में आक्षेप (एतराज) न करने पर ही इस नियम के अधीन कार्यवाही की जा सकेगी।
(6) यदि ऐसे निष्कर्ष निर्णय के लिए पर्याप्त नहीं हैं तो-
सुनवाई को स्थगित करेगा और अतिरिक्त साक्ष्य या अतिरिक्त तर्क (बहस) के लिए दिन नियत करेगा।