सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 62: आदेश 12 नियम 1 से 3(क) तक के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 12 स्वीकृति से संबंधित है। आपराधिक विधि की तरह ही सिविल लॉ में भी स्वीकृति के प्रावधान दिए गए हैं जहां कोई पक्षकार किसी भी मामले को स्वीकार कर सकता है। यह आदेश इन ही स्वीकृति के प्रावधानों को अलग अलग नियमों में निश्चित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 12 के नियम 1,2,2(क),3 एवं 3(क) विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-1 मामले की स्वीकृति की सूचना-वाद का कोई भी पक्षकार अपने लिखित अभिवचन द्वारा या अन्यथा लिखित रूप में सूचना दे सकेगा कि वह किसी अन्य पक्षकार के पूरे मामले की या उसके किसी भी भाग की सत्यता को स्वीकार करता है।
नियम-2 दस्तावेजों की स्वीकृति के लिए सूचना-दोनों पक्षकारों मे से कोई भी पक्षकार दूसरे पक्षकार से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह किसी दस्तावेज को सभी न्यायसंगत अपवादों को छोड़कर सूचना की तामील की तारीख से (सात दिन) के भीतर स्वीकार कर ले।
ऐसी सूचना के पश्चात् स्वीकृत करने से इन्कार या उपेक्षा करने की दशा में, जब तक कि न्यायालय अन्यथा निदेश न करे, किसी भी ऐसी दस्तावेज को साबित करने के खर्च ऐसी उपेक्षा या इन्कार करने वाले पक्षकार द्वारा दिए जाएंगे चाहे वाद के परिणाम कुछ भी हों और जब तक कि ऐसी सूचना नहीं दे दी गई हो किसी दस्तावेज को साबित करने का कोई भी खर्च केवल तभी अनुज्ञात किया जाएगा जब ऐसी सूचना न देना न्यायालय की राय में व्यय की बचत है।
नियम-2(क) यदि दस्तावेजों की स्वीकृति के लिए सूचना की तामील के पश्चात् उनसे इंकार नहीं किया जाता तो उन्हें स्वीकृत समझा जाना-
(1) ऐसी हर दस्तावेज, जिसको स्वीकार करने की मांग पक्षकार से की जाती है, उस पक्षकार द्वारा अभिवचन में या दस्तावेजों की स्वीकृति की सूचना के अपने उत्तर में विनिर्दिष्टतः या आवश्यक विवक्षा से प्रत्याख्यात नहीं की जाती है या उसको स्वीकार न किए जाने का कथन नहीं किया जाता है, सिवाय ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो निर्योग्यताधीन है, स्वीकृत समझी जाएगी: परन्तु न्यायालय स्वविवेकानुसार और लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से यह अपेक्षा कर सकेगा कि इस प्रकार स्वीकृत कोई दस्तावेज ऐसी स्वीकृति से भिन्न रूप से साबित की जाए।
(2) जहां पक्षकार दस्तावेजों की स्वीकृति की सूचना की तामील अपने पर किए जाने के पश्चात् किसी दस्तावेज को स्वीकार करने में अयुक्तियुक्त रूप से उपेक्षा करता है या इंकार करता है वहां न्यायालय उसे दूसरे पक्षकार को प्रतिकर के रूप में खर्चा देने का निदेश दे सकेगा।
नियम-3 सूचना का प्ररूप-दस्तावेजों को स्वीकृत करने की सूचना परिशिष्ट-ग के प्ररूप संख्यांक 9 में ऐसे फेरफार के साथ होगी जो परिस्थितियों से अपेक्षित हो।
नियम-3(क) स्वीकृति के अभिलेखन की न्यायालय की शक्ति- दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए सूचना नियम 2 के अधीन न दी जाने पर भी न्यायालय अपने समक्ष वाली कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम में स्वयं अपनी प्रेरणा से किसी भी पक्षकार से कोई दस्तावेज स्वीकार करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी दशा में यह अभिलेखन करेगा कि क्या पक्षकार ऐसी दस्तावेज को स्वीकार करता है या स्वीकार करने से इंकार करता है या स्वीकार करने की उपेक्षा करता है।
नियम 1 के अनुसार-वाद को कोई पक्षकार (वादी या प्रतिवादी) दो प्रकार से मामले की सत्यता को स्वीकार कर सकता है— (1) अपने लिखित अभिवचन द्वारा - अर्थात्-लिखित कथन में तथ्यों को स्वीकार करना,और (2) लिखित रूप से सूचना दे सकेगा कि वह किसी दूसरे पक्षकार (विपक्षी) के पूरे मामले या उसके किसी भाग के सत्य होने को स्वीकार करता है। इससे वादकरण को सीमित और छोटा करने में मदद मिलेगी।
नियम 2 में शब्दावली किसी दस्तावेज को स्वीकार कर ले को हटाकर नयी शब्दावली जोड़ी गई है, जिससे न्याय संगत अपवादों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और 15 दिन की सीमा में शीघ्र कार्यवाही निपटाने में उपयोगी होगी। अब 1999 के संशोधन द्वारा यहाँ सात दिन कर दिये गये हैं।
एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को परिशिष्ट 'ग' के प्ररूप संख्यांक 9 में आवश्यक परिवर्तन करते हुए एक नोटिस देगा कि वह किसी दस्तावेज को नोटिस मिलने के सात दिन के भीतर स्वीकार कर ले। परन्तु सभी न्याय संगत अपवाद फिर भी सुरक्षित रहेंगे। ऐसी सूचना के बाद उस दस्तावेज को स्वीकार न करने या उपेक्षा करने पर दोषी पक्षकार पर खर्च लगाये जा सकेंगे।
दस्तावेज को स्वीकृत समझा जाना (नियम 2-क)- यह नया नियम 1976 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसमें आन्वयिक स्वीकृति का सिद्धान्त लागू किया गया है। आदेश 7 के नियम 5 में विनिर्दिष्ट प्रत्याख्यान नहीं किये जाने पर वादपत्र में उस सम्बन्धी अभिकथन को स्वीकार कर लिया मान लेने का उपबंध है।
उसी प्रकार यहां नियम 2-क में किसी दस्तावेज को स्वीकार करने के लिए प्रतिपक्षी द्वारा दिये गये नोटिस (सूचना) के बाद यदि कोई पक्षकार (1) अभिवचन में, या (1) ऐसे नोटिस के उत्तर में उस दस्तावेज को स्पष्ट रूप से या आवश्यक विवक्षा से प्रत्याख्यान (अस्वीकृत) या स्वीकार न करने पर उसे स्वीकार किया गया मान लिया जावेगा। जिसका परिणान उस पक्षकार को भुगतना पड़ेगा और प्रतिकर के रूप में में खर्चा देना होगा। न्यायालय स्वविवेक से कारण लिखकर उस दस्तावेज को अन्य तरीके से साबित करने का आदेश दे सकेगा।
सूचना का प्ररूप- नियम 3 के अनुसार दस्तावेजों को स्वीकृत करने की सूचना परिशिष्ट 'ग' के प्ररूप संख्यांक 9 में परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन (फेरफार) करते हुए दी जावेगी। यह प्ररूप इस खण्ड के अन्त में दिया गया है।
दस्तावेजों के स्वीकार या अस्वीकार नहीं करने पर स्वीकृत माने जाएंगे - सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 12 के नियम 2-क के अधीन वादी द्वारा फाइल किए गए दस्तावेज स्वीकृत समझे जाएंगे, यदि दस्तावेज ग्रहण किए जाने की सूचना की तामील के पश्चात् अस्वीकृत न किये गये हों। वादी ने न्यायालय द्वारा स्वीकृत समय के भीतर अतिरिक्त दस्तावेज फाइल किए थे। इसके बावजूद प्रत्यर्थियों की ओर से किसी ने भी दस्तावेज स्वीकार या अस्वीकार नहीं किए हैं। इसलिए वे दस्तावेज स्वीकृत समझे जाएंगे।
इस मामले में, उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील में छः सप्ताह का समय दिया गया था, पर प्रत्यर्थी ने उसकी अनुपालना नहीं की और साक्षियों की सूची पेश नही की। वादी ने साक्षियों की सूची तथा अतिरिक्त दस्तावेज फाइल किये थे। प्रतिवादी ने समय बढ़ाने की प्रार्थना की और उप-रजिस्ट्रार ने 4 सप्ताह का समय बढ़ा दिया, जो शक्तिबाह्य था।
फिर भी न तो अतिरिक्त दस्तावेज और न ही साक्षियों की सूची फाइल की गई। अतः ऐसी स्थिति में आगे समय नहीं दिया गया। अपील मंजूर की गई। यदि किसी दस्तावेज की ग्राहता के सम्बन्ध में कोई पक्षकार आपत्ति करता है तो ऐसी आपत्ति उचित समय पर करनी चाहिए यदि पक्षकार कोई आपत्ति नही करता है और न्यायालय दस्तावेज पर प्रदर्श लगाने की अनुमति दे देता है। दूसरा पक्षकार बाद में दस्तावेज की ग्राहता के सम्बन्ध में कोई आपत्ति नही उठा सकता। दस्तावेज उसे कहा जा सकता है, जिस पर न्यायालय विधि के अनुसार विचार कर सके और जिसे साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सके।
स्वीकृति का प्रभाव व सीमा-
जब किसी पक्षकार द्वारा स्वीकृति पर किसी दस्तावेज को चिन्हित किया जाता है, तो उस दस्तावेज के लेख पर बाद में कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। किसी दस्तावेज पर अंगुष्ठ चिन्ह या हस्ताक्षर को स्वीकृति की गई हो, तो उसे दस्तावेज का लिखा जाना नहीं माना गया है। ऐसी स्वीकृति उस वाद से संबंधित तथ्यों तक सीमित रहती है, उसका प्रयोग किसी दूसरी कार्यवाही में नहीं किया जा सकता।