सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 46: आदेश 8 के नियम 7,8 एवं 9 के प्रावधान

Update: 2023-12-21 04:00 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 8 लिखित कथन से संबंधित है जो प्रतिवादी का प्रतिवाद पत्र होता है। आदेश 8 के नियम 7,8 एवं 9 भी महत्वपूर्ण नियम हैं इनमें प्रतिरक्षा से संबंधित प्रावधान हैं। इस आलेख के अंतर्गत इन तीनों नियमों पर संयुक्त रूप से विश्लेषण किया जा रहा है।

नियम-7 पृथक् आधारों पर आधारित प्रतिरक्षा या मुजरा-जहाँ प्रतिवादी पृथक् और सुभिन्न तथ्यों पर आधारित प्रतिरक्षा के मुजरा के [या प्रतिदावे के] कई सुभिन्न आधारों पर निर्भर करता है वहाँ उनका कथन जहाँ तक हो सके, पृथक्तः और सुभिन्नतः किया जाएगा।

नियम-8 प्रतिरक्षा का नया आधार -प्रतिरक्षा का कोई भी ऐसा आधार जो वाद के संस्थित किए जाने के या मुजरा का दावा करने वाले लिखित कथन के [या प्रतिदावे के] उपस्थित किए जाने के पश्चात् पैदा हुआ है, यथास्थिति, प्रतिवादी या वादी द्वारा अपने लिखित कथन में उठाया जा सकेगा।

नियम-9 पश्चात्वर्ती अभिवचन-प्रतिवादी के लिखित कथन के पश्चात् कोई भी अभिवचन जो मुजरा के या प्रतिदावे के विरुद्ध प्रतिरक्षा से भिन्न हो, न्यायालय की इजाजत से ही और ऐसे निबन्धनों पर जो न्यायालय ठीक समझे, उपस्थित किया जाएगा, अन्यथा नहीं, किन्तु न्यायालय पक्षकारों में किसी से भी लिखित कथन या अतिरिक्त लिखित कथन किसी भी समय अपेक्षित कर सकेगा और उसे उपस्थित करने के लिए तीस दिन से अधिक का समय नियत कर सकेगा

पश्चात्वर्ती या अतिरिक्त अभिवचन- आदेश 8 का नियम 9 पश्चात्वर्ती अभिकथन प्रस्तुत करने के लिए उपबन्ध करता है। लिखित कथन या प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत करने के बाद उसमें उठाये गये मुजरा या प्रतिदावे के विरुद्ध प्रतिरक्षा में वादी "प्रत्युत्तर" के रूप में अभिवचन प्रस्तुत कर सकता है, परन्तु इनके अलावा कोई अभिवचन प्रस्तुत करने के लिए उसे न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। इसी प्रकार संशोधित अभिवचन अनुमति लेकर पेश किये जा सकेंगे। इस नियम के अधीन प्रार्थी को विशिष्ट कारण पश्चात्वर्ती अभिवचन प्रस्तुत करने की अनुमति हेतु दर्शान होंगे। सामान्यतः जवाब दावे के प्रत्येक पैरा का पश्चात्वतर्ती अभिवचन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

इसके अतिरिक्त न्यायालय किसी भी पक्षकार को किसी भी समय या प्रक्रम पर लिखित कथन या अतिरिक्त लिखित कथन देने का निर्देश दे सकता है और उसके लिए अवधि की सीमा तय कर सकता है। नियम 9 के अधीन इस प्रकार न्यायालय द्वारा अपेक्षा करने (माँगने) के बाद भी लिखित-कथन प्रस्तुत नहीं करने वाले पक्षकार के विरुद्ध न्यायालय आदेश 8 के नियम 10 के अधीन कार्यवाही कर सकेगा।

एक मामले में पश्चात्वर्ती (बाद के) अभिकथन- अतिरिक्त लिखित-कथन फाइल करने की अनुमति माँगी गई। जब वह कथन जो जोड़ा जाना था, पहले के मूल कथनों से असंगत तथा भिन्न था, तो उसे आदेश 6 नियम 17 के अधीन संशोधन के अलावा आदेश 6, नियम 17 की दृष्टि में जोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती। आदेश 8 नियम 9 के अधीन दिये गये आवेदन को आदेश 6, नियम 17 के अधीन आवेदन नहीं समझा जा सकता, क्योंकि दोनों प्रसंग में भित्र है। अतः आदेश 6 नियम 17 के अधीन अलग आवेदन फाइल किया जा सकता है।

न्यायालय-निर्णयों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त वादपत्र के संशोधन के बाद अतिरिक्त लिखित कथन पेश करने का निर्देश दिया गया। मूल लिखित कथन से असंगत और नवे कथन उसमें सम्मिलित कर लिये गये। अतः आदेश 6 के नियम 7 के अर्थ में फेरबदल के लिये आदेश 6 के नियम 17 के अधीन अनुमति लेना आवश्यक है। अतिरिक लिखित कथन प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई, परन्तु नया मामला बनाने के कारण अनुमति को नामंजूर कर दिया गया।

वादपत्र के कब्जे की प्रार्थना (अनुतोष) सम्मिलित करने के लिये उसका संशोधन किया गया, तो प्रतिवादी को अतिरिक लिखित कथन की स्वीकृति दे देनी चाहिये। प्रत्येक पक्षकार पूरक लिखित कथन, न्यायालय की अनुमति से, पेश कर सकता है, परन्तु वादी को प्रत्युत्तर (रिजोइन्डर) पेश करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। उसे प्रत्युत्तर पेश नहीं करने पर भी विवाद्यकों के लिये साक्ष्य पेश करने का हक है।

प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत करने के बाद वादपत्र में संशोधन करने की जब अनुमति दे दी गई, तो फिर प्रतिवादी को नया प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत करने तथा अतिरिक्त कथन करने से प्रवारित (मना) नहीं किया जा सकता। इसके लिये आदेश 6 के नियम 17 के अधीन अनुज्ञा लेना आवश्यक नहीं है। प्रतिवादी को वादपत्र के संशोधित भाग तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। वादी द्वारा प्रत्युत्तर (Replication) पेश करने पर जब प्रतिवादी को कोई प्रतिकूलता नहीं हुई, तो वादपत्र को संशोधित किये बिना दी गई डिक्री संधारित की गई। न्यायालय ने वाद का सही मूल्यांकन कर वादी को वादपत्र संशोधन करने का निर्देश दिया। इस पर प्रतिवादी को संशोधित वादपत्र के उत्तर में लिखित कथन देने का कोई अधिकार नहीं है। वादपत्र का संशोधन करने पर प्रतिवादी अपना लिखित कथन (प्रतिवाद-पत्र) संशोधित करने का हकदार है, परन्तु वह संशोधित वादपत्र द्वारा नहीं चाहे गये नए अभिवचन सम्मिलित नहीं कर सकता।

संशोधित वादपत्र में उत्तर में लिखित कथन की अनुमति का प्रश्न- संशोधित वादपत्र के बारे में अतिरिक्त लिखित-कथन फाइल करने की अनुमति न्यायालय से दी हुई समझी जायेगी, जब तक कि उसके लिये स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया हो। लिखित कथन के लिये अनुमति देने की न्यायालय की शक्ति विधि के अन्य उपबन्धों के अध्यधीन है।

भाटक नियन्त्रण- प्रतिवाद-पत्र पेश करने के बाद वादपत्र में संशोधन करने की अनुमति दे दी गई, तो फिर प्रतिवादी को नया प्रतिवाद-पत्र या अतिरिक्त कथन देने से मना नहीं किया जा सकता। इसके लिये आदेश 6 के नियम 17 के अधीन अनुमति की आवश्यकता नहीं है और प्रतिवादी को संशोधित वादपत्र तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता।।

अतिरिक्त लिखित कथन प्रस्तुत करना-

एक मामले में कहा गया है कि अतिरिक्त लिखित कथन पेश करने का पहला आवेदन मेरिट पर आदेश दिए बिना खारिज कर दिया गया। अतः अपील न्यायालय द्वारा अतिरिक्त लिखित कथन फाइल करने की अनुमति देना उचित है।

पश्चात्यर्ती अभिवचन की अनुज्ञेयता - किराया देने में चूक के आधार पर किरायेदार की बेदखली का वाद-वादी ने प्रत्युत्तर (Replication) के द्वारा कहा कि-सम्बन्धित पुलिस स्टेशन को वह नक्शा, और अन्य दस्तावेज दे दिये गये थे, जो किरायेदार को निर्माण करने के लिए अनुमति से सम्बन्धित थे। इस नक्शे व दस्तावेजों को लिखित कथन, मुजरा और प्रतिदावा प्रत्युत्तर के साथ नत्थी कर दिया गया। इस प्रत्युत्तर से कोई नया तथ्य अभिलेख पर नहीं लाया गया। अतः इस प्रत्युत्तर को दस्तावेजों सहित अभिलेख पर स्वीकार करना और अनुमति देना अनुचित नहीं है। वादी ने प्रत्युत्तर की अनुमति माँगते हुये जाहिर किया कि प्रतिवादी ने वादोत्तर से जो नये तथ्य उठाये हैं उनका स्पष्टीकरण आवश्यक है। निर्णीत किया गया कि आदेश 8 नियम 9 द्वारा अवधारित प्रक्रिया को बदला, संशोधित नहीं किया जा सकता। आवेदन खारिज किया गया।

प्रत्युत्तर (Replication)- प्रत्युत्तर अभिवचन का एक अंग है और कोई बात जो उसमें विशेष रूप से पहली बार कही गई हो, तो उसका प्रतिरोध नहीं करने पर यह समझा जायेगा कि प्रत्युत्तर में उठाया गया तर्क स्वीकार कर लिया गया है।

अवयस्क के वयस्क हो जाने पर्-जहाँ वादार्थ-संरक्षक अवयस्क-प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करते हुए लिखित कथन प्रस्तुत करता है और वाद के लम्बित रहते हुए वह अवयस्क वयस्कता को प्राप्त कर लेता है- नहीं (क) तो वह अवयस्क पहले कथन को अतिष्ठित करने का और नया लिखित-कथन फाइल करने का दावा कर सकता, (ख) परन्तु वह अवयस्क उस लिखित-कथन को आदेश 6, नियम 17 के अधीन संशोधित करने की अनुमति मांग सकता है।

प्रत्युत्तर (री-जोइन्डर) - धारा 141 के प्रभाव से, आदेश 8, नियम 9 अस्थायी व्यादेश (आदेश 39, नियम 1) को लागू होता है। अतः यदि वादी अस्थायी व्यादेश के लिए आवेदन करता है और प्रतिवादी ने उसका उत्तर दिया है, तो वादी प्रत्युत्तर फाइल कर सकता है। ऐसा प्रत्युत्तर देने की आकस्मिकता केवल तभी उत्पन्न होती है जहाँ प्रतिवादी द्वारा अपने उत्तर में कोई नई बात (कथन) उठायी गयी है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय की अनुज्ञा (इसके लिए) प्राप्त करनी होगी। स्वत्व की घोषणा व कब्जा दिलवाये जाने के वाद के लिखित कथन में प्रतिवादी ने प्रथम बार सम्पत्ति के विनियम बाबत् विवाद उठाया। वादी को इसे नये तथ्य का प्रत्युत्तर अनुज्ञेय है।

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