सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 136: आदेश 21 नियम 95 एवं 96 के प्रावधान

Update: 2024-02-23 03:00 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 95 तथा 96 पर विवेचना की जा रही है।

नियम-95 निर्णीतऋणी के अधिभोग में की सम्पत्ति का परिदान-जहाँ विक्रीत स्थावर सम्पत्ति निर्णीतऋणी के या उसकी ओर से किसी व्यक्ति के या ऐसे हक के अधीन जिसे निर्णीतॠणी ने ऐसे सम्पत्ति की कुर्की हो जाने के पश्चात् सृष्ट किया है, दावा करने वाले किसी व्यक्ति के अधिभोग में है और उसके बारे में प्रमाण पत्र नियम 94 के अधीन दिया गया है वहाँ न्यायालय क्रेता के आवेदन पर यह आदेश करेगा कि उस सम्पत्ति पर ऐसे क्रेता का या ऐसे किसी व्यक्ति का जिसे क्रेता अपनी ओर से परिदान पाने के लिए नियुक्त करे, कब्जा करा कर और यदि आवश्यक हो तो ऐसे व्यक्ति को हटाकर जो उस सम्पत्ति को रिक्त करने से इन्कार करता है, परिदान किया जाए।

नियम-96 अभिधारी के अधिभोग में की सम्पत्ति का परिदान-जहाँ विक्रीत सम्पत्ति अभिधारी के या उस पर अधिभोग रखने के हकदार अन्य व्यक्ति के अधिभोग में है और उसके सम्बन्ध में प्रमाण पत्र नियम 94 के अधीन दिया गया है वहाँ न्यायालय क्रेता के आवेदन पर आदेश करेगा कि विक्रय के प्रमाण पत्र की एक प्रति सम्पत्ति के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगा कर और किसी सुविधापूर्ण स्थान पर डोंडी पिटवा कर या अन्य रूढिक ढंग से यह बात अधिभोगी को उद्घोषित करके कि निर्णीतऋणी क्रेता को अंतरित हो गया है, परिदान किया जाए।

नियम 95 में बताया गया है कि स्थावर सम्पत्ति का विक्रय आत्यन्तिक हो जाने के समय से परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 134 के अधीन एक वर्ष की अवधि में आदेश 21 नियम 95 के तहत आवेदन करने पर निर्णीत ऋणी के अधिभोग में की गई सम्पत्ति का परिदान क्रेता को किया जा सकता है।

प्रश्नगत बन्धक सम्पत्ति के बन्धकदार द्वारा लगाए गए वाद में बन्धनकर्ता और बन्धकदार की सम्पत्ति से पारित डिक्री के निष्पादन में बंधक सम्पत्ति का नीलाम विक्रय किया जाना एक अन्य बाहरी व्यक्ति द्वारा उसे खरीदा जाना किन्तु डिक्री पारित किए जाने के बाद निर्णीतऋणी द्वारा बंधक सम्पत्ति कुछ पट्टेदारों को पट्टे पर दी जानी नीलाम क्रेता द्वारा अभिधारियों के विरुद्ध सम्पत्ति के वास्तविक भौतिक कब्जे के लिए आवेदन नीलाम क्रेता जो कि एक बाहरी व्यक्ति है और उस वाद का पक्षकार नहीं था जिसमें समझौता डिक्री दी गई थी, निष्पादन में सम्पत्ति बेची गई थी, उक्त आदेश 21 के नियम 95 के उपबन्धों की दृष्टि से अपीलार्थी से भौतिक कब्जा लेने का हकदार नहीं है वह अपीलार्थियों के अधिभोगाधीन भागों की बाबत उक्त आदेश के नियम 96 के उपबन्धों के अनुसार प्रतीकात्मक कब्जे के लिए हकदार है।

एक वाद में प्रश्नगत परिसर लोक नीलामी द्वारा बेच दिए गए। प्रत्यर्थी ने सर्वोच्च बोली लगाई और उसे परिसर का क्रेता घोषित किया गया और उसके पक्ष में विक्रय की पुष्टि कर दी गई। नीलाम क्रेता की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 21 नियम 95 और 6 एवं इसकी धारा 151 के अधीन दिल्ली उच्च न्यायालय में आवेदन पत्र फाइल किया गया जिसका प्रतिवाद उन तीन अभिघारियों ने किया जो पट्टे पर लिए गए अपने-अपने भागों पर काबिज थे और जिन पर सूचनाएं तामील की गई थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय के विद्वान् एकल न्यायाधीश ने अपीलार्थी अभिधारियों के अधिभोगाधीन उक्त भागों का भौतिक कब्जा नीलाम-क्रेता को सौंपे जाने का आदेश दिया। अभिधारियों ने उक्त आदेश के विरुद्ध एक अपील फाइल की।

खण्ड न्यायपीठ ने अपील खारिज कर दी और प्रत्यर्थी नीलाम क्रेता की ओर से पेश की गई दलील स्वीकार कर ली। दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय और विनिश्चय के विरुद्ध अभिधारियों ने उच्चतम न्यायालय से विशेष इजाजत लेकर यह अपील फाइल की है। यह अपील में मुख्य विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या प्रत्यर्थी नीलाम-क्रेता पट्टेदारों की हैसियत में अपीलार्थियों के अधिभोगाधीन भाग का, जिसकी बाबत पट्टे पक्षकारों के बीच बन्धक बाद में सम्मति डिक्री पारित किए जाने के बाद सृष्ट किए गए थे, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 21 नियम 95 और 6 के अधीन नीलाम क्रेता द्वारा दिए गए आवेदन पत्र में वास्तविक भौतिक कब्जे के लिए हकदार है या नहीं?

अपील मंजूर करते हुए अभिनिर्धारित किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 21 के नियम 95 न्यायालय विक्रय में स्थावर सम्पत्ति के क्रेता को संहिता के नियम 94 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार न्यायालय से आवश्यक प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद न्यायालय विक्रय में खरीदी गई स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के परिदान के लिए आवेदन करने के लिए समर्थ बनाने के लिए उपबन्ध करते हैं।

नियम 95 वास्तविक भौतिक कब्जे के लिए उपबन्ध करता है और नियम प्रतीकात्मक कब्जे के लिए उपबन्ध करता है। नियम 95 के पढ़ने भर से यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाता है कि क्रेता खरीदी गई सम्पत्ति के भौतिक कब्जे का हकदार होगा और न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को हटाकर जो उसे खाली करने से इनकार करता है, खरीदी गई वास्तविक सम्पत्ति का कब्जा देने का निदेश, यदि आवश्यक है, देगा यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी हो जाती है:

बेची गई सम्पत्ति निर्णीत ऋणी के अधिभोग में हो।

बेची गई सम्पत्ति निर्णीत ऋणी की ओर से किसी वादी के अधिभोग में हो।

बेची गई सम्पत्ति कुर्की के बाद निर्णीत ऋणी द्वारा सृष्ट हक के अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति के अधिभोग इसके विपरीत, नियम यह स्पष्ट कर देता है कि जहां कि बेची गई सम्पत्ति अभिधारी के या उस पर अधिभोग रखने वाले अन्य किसी व्यक्ति के अधिभोग में है, वहां संहिता के नियम 94 के अधीन आवश्यक प्रमाण-पत्र क्रेता द्वारा प्राप्त करने के बाद सम्पत्ति का प्रतीकात्मक कब्जा उक्त अधिनियम में उपबन्धित रीति से क्रेता को सौंप दिया जाएगा।

नीलाम क्रेता अपने पक्ष में विक्रय पूर्ण हो जाने और अपने द्वारा विक्रय प्रमाण-पत्र प्राप्त किए जाने के बाद कब्जा प्राप्त करने का अपना अधिकार प्राप्त करता है। ऐसा कब्जा अभिप्राप्त करने का ढंग और रीति सिविल प्रक्रिया संहिता के नियम 95 और 96 से विनियमित होते हैं। नीलाम क्रेता नियम 95 के उपबन्धों की दृष्टि से, जो कि खरीदी गई सम्पत्ति का भौतिक कब्जा प्राप्त करने के नीलाम क्रेता के अधिकारों को विनियमित करता है अभिधारियों की हैसियत में अपीलार्थियों के भौतिक कब्जा प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं है।

अपीलार्थी निर्णीत-ऋणी नहीं हैं। उनका निर्णीत ऋणी की ओर से सम्पत्ति पर अधिभोग नहीं है। वे सम्पत्ति की किसी कुर्की के पश्चात् निर्णीत ऋणी द्वारा सृष्ट किए गए किसी हक के अधीन अघिभोग रखने का दावा भी नहीं कर रहे हैं। प्रस्तुत कार्यवाही में, नीलाम क्रेता, जो कि एक बाहरी आदमी है और वाद का पक्षकार नहीं था जिसमें समझौता डिक्री दी गई थी जिसके निष्पादन में सम्पत्ति बेची गई, आदेश 21 के नियम 95 के उपबन्धों की दृष्टि से, अपीलार्थी से भौतिक कब्जा लेने के लिए हकदार नहीं है और नीलाम क्रेता के बारे में यह अभिनिर्धारित करना होगा कि वह अपीलार्थियों के अधिभोगाधीन भागों की बाबत आदेश 21 नियम 96 के उपबन्धों के अनुसार प्रतीकात्मक कब्जे का हकदार है।

नीलाम क्रेता द्वारा सम्पत्ति के कब्जे के 47 का स्पष्टीकरण 2- परिदान के लिए आवेदन

एक वाद में आदेश 21, नियम 95 तथा धारा परिसीमा का प्रश्न- अनुच्छेद 134 लागू होगा, न कि अनुच्छेद 136 के अधीन अभिनिर्धारित किया कि- अनुच्छेद 136 और 134 द्वारा विहित परिसीमा अवधियां दो भिन्न प्रयोजनार्थ हैं, पूर्ववर्ती अवधि उस कब्जे की डिक्री के निष्पादन के संबंध में है जिसकी बाबत डिक्री पारित की जाए और पश्चात्वर्ती अवधि उस स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के परिदान के आवेदन की बाबत है जो किसी डिक्री के निष्पादन के अनुक्रम में क्रय की गई।

दोनों अनुच्छेद अपने प्रवर्तन में बिल्कुल भी एक जैसे नहीं हैं और यह बात भी सरलता से समझ में नहीं आती कि दोनों अनुच्छेद परस्पर कैसे भिन्न हैं। निष्पादन में क्रय की गई स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के परिदान के आवेदन को, कल्पनामात्र भी, परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 136 के उपबन्ध का आश्रय लेने के लिए संपत्ति के कब्जे की डिक्री के निष्पादन के आवेदन के अर्थ में नहीं लिया जा सकता है। मात्र इस कारण कि नीलाम-क्रेता को उस वाद में पक्षकार समझा जाएगा जिसमें डिक्री पारित की गई।

संहिता की धारा 47 के स्पष्टीकरण-2 के खंड (क) में यथाउपबंधित रूप में और स्पष्टीकरण-2 के खण्ड (ख) के कारण संपत्ति के कब्जे के परिदान से संबंधित सभी प्रश्न धारा 47 के अर्थान्तर्गत डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से संबंधित प्रश्न समझे जाएंगे, सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21, नियम 95 के अधीन कब्जे के परिदान के आवेदन को कब्जे की डिक्री के निष्पादन का आवेदन नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 136 द्वारा यथाविहित 12 वर्ष की परिसीमा कालावधि आकृष्ट नहीं होगी।

यदि यह अभिनिर्धारित किया जाता है कि अनुच्छेद 136 संहिता के आदेश 21, नियम 95 के अधीन कब्जे के परिदान के आवेदन को लागू होगा, तो इससे बेतुकापन दर्शित होगा। कल्पना करें कि कोई डिक्री 12 वर्ष की परिसीमा के अंतिम दिन निष्पादन में लाई जाती है, तो स्पष्टतया डिक्री के निष्पादन में किसी सम्पत्ति का विक्रय 12 वर्ष की समाप्ति के पश्चात् होगा और, इसलिए नीलामक्रेता द्वारा संपत्ति के कब्जे के परिदान के लिए किसी प्रकार का आवेदन ग्रहण किए जाने योग्य नहीं होगा चूंकि डिक्री की तारीख से 12 वर्ष पहले ही व्यतीत हो चुके हैं।

यदि अनुच्छेद 136 कब्जे के परिदान के आवेदन को लागू मान लिया जाता है, तो उसी कारण से यह विक्रय अपास्त करने के आवेदन को भी लागू होगा। दूसरे शब्दों में, विक्रय अपास्त करने के लिए आवेदन भी विक्रय की तारीख को ध्यान में रखे बिना जो कि प्रकटतः बेतुकी है, डिक्री की तारीख से 12 वर्ष की अवधि के भीतर किया जा सकता है।

पुराने परिसीमा अधिनियम, 1908 के अधीन, कब्जे के परिदान के लिए आवेदन उस तारीख से जिस पर विक्रय उस अधिनियम के अनुच्छेद 180 द्वारा यथाविहित रूप में आत्यंतिक बन गया तीन वर्ष के भीतर किया जा सकता था, किन्तु परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 134 के अधीन ऐसा आवेदन उस तारीख से जिस पर विक्रय आत्यंतिक बन गया एक वर्ष के भीतर किया जा सकता है। इस प्रकार न्यायालय विक्रय के समय क्रय की गई सम्पत्ति के कब्जे के परिदान की परिसीमा कालावधि काफी कम कर दी गई है।

अनुच्छेद 124 और 136 की व्याप्ति और उनकी विषय वस्तु भिन्न होने के कारण, अनुच्छेद 134 के विवक्षित निरसन का प्रश्न, जैसा कि उच्च न्यायालय के विद्वान् न्यायाधीश ने अभिनिर्धारित किया, बिल्कुल भी उद्‌भूत नहीं होता है। तद्नुसार, न्यायालय यह अभिनिर्धारित करता है कि अनुच्छेद 134 सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 95 के अधीन डिक्री के निष्पादन में विक्रय की गई सम्पत्ति के कब्जे के परिदान के लिए नीलाम-क्रेता द्वारा किए गए आवेदन को लागू होगा।

आधिपत्य (कब्जा) देना-कब्जे का स्वरूप-

इस नियम में खास (वास्तविक) कब्जे का परिदान करने की व्यवस्था है, न कि प्रतीकात्मक कब्जे के बारे में।। क्रेता को सम्पत्ति का खाली कब्जा लेने का अधिकार है और उस सम्पत्ति पर बने ऊपरी ढांचों को हटाने का भी अधिकार शब्द कोई व्यक्ति (एनी परसन) जो इस नियम के अन्तिम भाग में आया है, उसका प्रसंग इस नियम में पहले आए व्यक्तियों से है अर्थात् निर्णीत-ऋणी या उसकी ओर से कोई व्यक्ति जो कब्जे मे हो या उसके अधीन दावा करने वाला व्यक्ति।

इसको एक अतिक्रमी पर लागू नहीं किया जा सकता और तदनुसार उसे बेदखल करने की कार्यवाही निष्पादन में नहीं की जा सकती, परन्तु इसके लिए अलग से वाद लाना होगा। निर्णीत-ऋणी के विरुद्ध प्रतीकात्मक या औपचारिक परिदान (डिलीवरी) का प्रभाव उसे उसके अधिकार, स्वत्व और हित से आधिपत्यरहित (बे-कब्जा) करना होता है। ऐसा परिदान प्रतिकूल आधिपत्य में अन्तराल डाल देता है।

एक मामले में कहा गया है कि बन्धकिती बंधक के अधीन अपने अधिकार को लागू कर सकता है। समझौता डिक्री के निष्पादन में प्रश्नगत सम्पत्ति को नीलाम कर दिया गया। नीलामी-क्रेता द्वारा सम्पत्ति के भौतिक कब्जे के लिए आवेदन किया गया। विक्रय की पुष्टि या विक्रय प्रमाणपत्र जारी होने के पहले की तारीख को बन्धकिती द्वारा वह सम्पत्ति किरायेदारों को दे दी गई, जिनका भौतिक कब्जा है। ऐसी स्थिति में, नीलामी-क्रेता उस सम्पत्ति का प्रतिकात्मक कब्जा पाने का हकदार है, न कि भौतिक कब्जा।

डिक्री या आर्डर के निष्पादन में आधिपत्य (कब्जे) के परिदान हेतु पुलिस की मदद-बेदखली के आवेदन में डिक्री दे दी गई और किरायेदार ने एक वाद फाइल किया, जिसमें डिक्रीदार को डिक्री के निष्पादन से रोकने के लिए व्यादेश की मांग की। इस वाद में अस्थाई व्यादेश का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।

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