सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 126: आदेश 21 नियम 64 से 66 तक के प्रावधान

Update: 2024-02-14 09:03 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 64, 65, एवं 66 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-64 कुर्क की गई संपत्ति के विक्रय किए जाने और उसके आगम हकदार व्यक्ति के दिए जाने के लिए आदेश करने की शक्ति-डिक्री का निष्पादन करने वाला कोई भी न्यायालय आदेश कर सकेगा कि उसके द्वारा कुर्क की गई और विक्रय के दायित्व के अधीन किसी भी सम्पत्ति या उसके ऐसे भाग का जो डिक्री की तुष्टि के लिए आवश्यक प्रतीत हो, विक्रय किया जाए और ऐसे विक्रय के आगम या उनका पर्याप्त भाग उस पक्षकार को दे दिया जाए जो डिक्री के अधीन उन्हें पाने का हकदार है।

नियम-65 विक्रय किसके द्वारा संचालित किए जाएँ और कैसे किए जाएँ-जैसा अन्यथा विहित है उसे छोड़कर, डिक्री के निष्पादन में किया जाने वाला हर विक्रय न्यायालय के अधिकारी द्वारा या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा जिसे न्यायालय इस निमित्त नियुक्त करे, संचालित किया जाएगा और विहित रीति से लोक नीलाम द्वारा किया जाएगा।

नियम-66 लोक नीलामी द्वारा किए जाने वाले विक्रय की उद्घोषणा- (1) जहां किसी सम्पत्ति का किसी डिक्री के निष्पादन में लोक नीलाम द्वारा विक्रय किए जाने का आदेश किया गया है वहां न्यायालय आशयित विक्रय की उद्घोषणा उस न्यायालय की भाषा में कराएगा।

(2) ऐसी उद्घोषणा डिक्रीदार और निर्णीतऋणी को सूचना दिए जाने के पश्चात् तैयार की जाएगी और उसमें विक्रय का समय और स्थान कथित होगा और निम्नलिखित बातें यथासंभव ऋजुता और यथार्थता से विनिर्दिष्ट होंगी-

(क) वह सम्पत्ति जिसका विक्रय किया जाना है। [या जहां सम्पत्ति का कोई भाग डिक्री की तुष्टि के लिए पर्याप्त होगा वहां वह भाग];

(ख) जहां वह सम्पत्ति जिसका विक्रय जाना है, सरकार को राजस्व देने वाली किसी सम्पदा में या सम्पदा के भाग में कोई हित है वहां उस सम्पदा पर या सम्पदा के भाग पर निर्धारित राजस्व,

(ग) कोई विल्लंगम जिसके लिए वह सम्पत्ति दायी हो,

(घ) वह रकम जिसकी वसूली के लिए विक्रय आदिष्ट किया गया है, तथा

(ड) हर अन्य बात जिसके बारे में न्यायालय का विचार है कि सम्पत्ति की प्रकृति और मूल्य का निर्णय करने के लिए उसकी जानकारी क्रेता के लिए तात्विक है:

परन्तु जहां उ‌द्घोषणा के निबन्धनों को तय करने की तारीख की सूचना नियम 54 के अधीन किसी आदेश के माध्यम से निर्णीतऋणी को दी गई है वहां जब तक न्यायालय अन्यथा निदेश न दे निर्णीतऋणी को इस नियम के अधीन सूचना देना आवश्यक नहीं होगाः

परन्तु यह और कि इस नियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह न्यायालय से यह अपेक्षा करती है कि वह विक्रय की उ‌द्घोषणा में सम्पत्ति के मूल्य की बाबत अपने प्राकलन प्रविष्ट करें, किन्तु उ‌द्घोषणा के अन्तर्गत दोनों पक्षकारों या उनने से किसी के द्वारा दिया गया प्राकलन, यदि कोई हो, होगा।]

(3) इस नियम के अधीन विक्रय के आदेश के लिए हर आवेदन के साथ एक ऐसा कथन होगा जो अभिवचनों के हस्ताक्षर और सत्यापन के लिए इसमें इसके पूर्व विहित रीति से हस्ताक्षरित और सत्यापित किया गया हो और उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट किए जाने के लिए उपनियम (2) द्वारा अपेक्षित बातें उसमें वहां तक अन्तर्दिष्ट होगी जहां तक कि सत्यापन करने वाले व्यक्ति को वे ज्ञात हो या उसके द्वारा अभिनिश्चित की जा सकती हो।

(4) न्यायालय उन बातों को अभिनिश्चित करने के प्रयोजन से जो उ‌द्घोषणा में विनिर्दिष्ट की जानी है, किसी भी ऐसे व्यक्ति को समन कर सकेगा लिसे वह समन करना आवश्यक समझे और वैसी किन्हीं भी बातों के बारे में उसकी परीक्षा कर सकेगा और उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह उससे सम्बन्धित अपने कब्जे या शक्ति में की किसी दस्तावेज को पेश करे।

शक्तिदाता उपबंध - नियम 64 शक्तिदाता उपबंध है, जो निष्पादन न्यायालय को निम्न शक्तियाँ प्रदान करता हैं-

(1) कुर्क को गई सम्पत्ति का विक्रय करना और (2) आगम हकदार व्यक्ति को दिये जाने का आदेश करना। डिक्री की तुष्टि के लिए आवश्यक- कुर्क की गई सम्पत्ति का केवल उतना भाग या सम्पूर्ण यथास्थिति, जितना उस डिक्री को तुष्टि के लिए आवश्यक हो, उतना तक विक्रय किया जा सकता है। यह विधायिका का आदेश है।

किसी भी सम्पत्ति या उसके किसी भाग का जो डिक्री को तुष्टि के लिए आवश्यक प्रतीत हो, विक्रय किया जाए। उक्त उपबन्ध करने का मुख्य उद्देश्य डिक्री में वर्णित राशि से ज्यादा सम्पत्ति का विक्रय करने से रोकना है। निष्पादन कार्यवाही में, निष्पादन न्यायालय को पहले यह तय करना है कि डिक्री के निष्पादन के लिए पूरी सम्पत्ति का विक्रय करना आवश्यक है या उसके किसी भाग से डिक्री की तुष्टि हो जायेगी। यह न्यायालय का केवल विवेकाधिकार ही नहीं है बल्कि न्यायालय का दायित्व भी है। इस तथ्य को जांचे बिना किया गया विक्रय अवैध होगा एवं बिना क्षेत्राधिकार माना जायेगा।

सम्पत्ति का नीलाम में विक्रय- निर्णीत ऋणी ने नीलाम से पूर्व ही प्राइवेट क्रेता को विधिमान्य रूप से सम्पत्ति को बेच दिया। सम्पत्ति का हक प्राइवेट क्रेता में निहित हो गया, अब निर्णीत- ऋणों के पास नीलाम में बेचे जाने के लिए कोई विक्रय योग्य अधिकार शेष नहीं रह जाता है और नीलाम विक्रय प्राइवेट क्रेता के हक को समाप्त नहीं कर सकता।

सम्पत्ति की विक्रेयता के सम्बन्ध में आक्षेप किया जाना-न्यायालय द्वारा निर्णीत ऋणी के विरुद्ध डिक्रीदार के पक्ष में दो डिक्रियां दी गई। डिक्रियाँ के निष्पादनार्थ प्रश्नगत सम्पत्ति का विक्रय किया गया।

परन्तु विक्रय संबंधी उद्घोषणा में केवल एक ही डिक्री की रकम का उल्लेख किया गया। विक्रय के लिए सम्पत्ति की दो मदों को पेश किया गया और एक मद के विक्रय से प्राप्त धन विक्रय उद्घोषणा में उल्लिखित रकम को तुष्टि के लिए पर्याप्त था, किन्तु दूसरी मद का भी विक्रय किया गया। जहाँ डिक्रीत के विक्रय से उ‌द्घोषणा में उल्लिखित रकम के बराबर या उससे अधिक कीमत प्राप्त हो जाती है, और वह डिक्रीत रकम को तुष्टि के लिए पर्याप्त हो, वहां उसके बाद विक्रय नहीं किया जाना चाहिए तथा न्यायालय को चाहिए कि वह ऐसे विक्रय को रोक दे।

न्यायालय का कर्तव्य तथा विधायिका का आदेश- आदेश 21, नियम 64 के अधीन न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह केवल ऐसी सम्पत्ति या उसके भाग का विक्रय करें, जो डिक्री को सन्तुष्टि के लिए आवश्यक हो। यह विधायिका का आदेश है, जिसे भुलाया या टाला नहीं जा सकता। यह न्यायालय पर बाध्यकार है और केवल विवेकाधिकार नहीं है।

एक मामले में, केवल रुपये 2000/- को डिक्री के निष्पादन में दस एकड़ भूमि रु. 17,000/- में बेच दी गई। इस विक्रय के आदेश 21 नियम 64 का उल्लंघन करने के कारण अपास्त किये जाने के लिए दायी ठहराया गया। यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त दस एकड़ भूमि विभाजनीय नहीं थी या उसका विभाजन अव्यावहारिक या अवांछनीय था। इस मामले में आंखें बन्दकर सम्पूर्ण सम्पत्ति को बेचने को प्रवृत्ति को भर्त्सना की गई।

अति-निष्पादन (Excessive Execution) जब सम्पत्तियों की एक वस्तु की बिक्री डिक्री की राशि का संतोष करने के लिए पर्याप्त है, तो सम्पत्तियों की दूसरी वस्तुओं की बिक्री अति-निष्पादन होगी, जो कि आदेश 21, नियम 64 का उल्लंघन करने के कारण अवैध होगी। शब्दावली डिक्री की सन्तुष्टि के लिए आवश्यक यह दर्शित करती है कि निष्पादन न्यायालय उस बिन्दु तक ही अधिकारिता प्राप्त करता है, जिस पर डिक्री पूर्णरूप से सन्तुष्ट हो जाती है।

(क) सम्पत्ति का विक्रय-शब्दावली डिक्री के समाधान के लिए आवश्यक यह इंगित करती है कि सम्पत्ति का केवल उतना ही भाग ही बेचा जाएगा, जो डिक्री के समाधान के लिए पर्याप्त हो। इस पक्ष पर विचार किए बिना विक्रय अवैध है।

(ख) सम्पत्ति के विक्रय की पुष्टि का प्रभाव निर्णीत-ऋणी ने विक्रय को अपास्त करने की जो कार्यवाही की उसे खारिज कर दिया गया। अब डिक्रीदार-क्रेता कब्जे के लिए आवेदन करता है, तो न्यायालय विक्रय की पुष्टि के बाद नियम 64 के उल्लंघन में उस विक्रय की वैधता की जांच नहीं कर सकता।

(ग) परिसीमा अधिनियम, 1963-अनुच्छेद 134 लागू होगा-नीलामी-क्रेता ने कब्ज़ा देने का आवेदन किया। विक्रय की पुष्टि के दिनांक से परिसीमा काल आरम्भ होता है। परन्तु उक्त आवेदन एक वर्ष बाद फाइल किया है। अतः अनुच्छेद 134 की दृष्टि में अपीलार्थी को कोई सहायता नहीं दी जा सकेगी।

विक्रय से पहले सम्पत्ति की कुर्की के लोप का प्रभाव-विक्रय से पहले सम्पत्ति की कुर्की न करके उसका विक्रय कर देने से वह विक्रय दूषित नहीं होता। नियम 64 को धारा 51 के साथ पढ़ना होगा। कुछ उच्च न्यायालयों के मतानुसार यह एक अनियमितता है, परन्तु इससे विक्रय दूषित नहीं होता।

नियम 65 विक्रय के संचालन की व्यवस्था करता है।

डिक्री के निष्पादन में किया जाने वाला विक्रय न्यायालय के अधिकारी द्वारा या न्यायालय द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संचालित किया जाएगा।

जैसा अन्यथा विहित है, उसका पालन किया जाएगा-आदेश 21 के विभिन्न नियमों का पालन किया जाएगा।

विहित रीति से लोक नीलामी (खुली बोली) द्वारा विक्रय किया जाएगा।

बोली को स्वीकार करने का कार्य-संहिता में कहीं ऐसा उपबन्ध नहीं है कि-बोली को न्यायाधीश स्वयं स्वीकार करें। उसके प्राधिकार से बोली स्वीकार करने का कार्य विक्रय का संचालन करने वाले अधिकारी का है, जो सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को क्रेता घोषित करता है और नियम 84 के अधीन क्रय राशि के जमा कराने पर विक्रय पूर्ण हो जाता है। परन्तु दूसरा मत यह है कि-विक्रयकर्ता अधिकारी के समक्ष लगाई गई उच्चतम बोली न्यायालय द्वारा पुष्ट करने के अध्यधीन है और जब तक न्यायालय उसे स्वीकार नहीं करता वह पूर्ण नहीं है।

निष्पादन डिक्री में विक्रय संचालित करने की क्षमता ऐसा विक्रय या तो उस प्रयोजन के लिए सम्बन्धित न्यायालय से सम्बद्ध व्यक्ति कर सकता है या फिर ऐसा व्यक्ति कर सकता है, जिसे न्यायालय उस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे।

विक्रय के लिए विज्ञापन द्वारा प्रस्ताव आमंत्रित करना लोक नीलामी द्वारा विक्रय नहीं- नीलामी जनता के बीच प्रतियोगिता द्वारा की जाती है, जिसमें प्रत्येक बोली लगाने वाले को अपनी बोली बढ़ाने का अधिकार होता है। वहां का वातावरण उस बोली लगाने वाले को अपनी बोली बढ़ाने के लिए उत्साहित करता है। इस प्रकार बढ़ी हुई बोली प्राप्त की जा सकती है। परन्तु यह उस समय संभव नहीं है, जब विक्रय का विज्ञापन देकर लिखित में प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं। अतः विज्ञापन द्वारा प्रस्ताव मांगना लोक नीलामी द्वारा विक्रय नहीं है और उसे आदेश 21, नियम 64 के अधीन अपास्त किया जा सकता है।

नियम 66 लोक नीलामी में विक्रय की उद्‌घोषणा करने की आवश्यक शर्ते व तरीका बताता है।

उ‌द्घोषणा की आवश्यक शर्ते उपनियम 1 तथा 2 के अनुसार उ‌द्घोषणा के लिए आवश्यक शर्तें इस प्रकार

लोक नीलाम द्वारा विक्रय का आदेश दिया जाएगा,

उद्‌द्घोषणा न्यायालय की भाषा में होगी

उद्‌घोषना में उपनियम (2) में ऊपर (क) से (ङ) तक दी गई विशिष्टियों होंगी। इसके लिए निर्धारित प्ररूप (फार्म) परिशिष्ट (ङ) के संख्यांक 29 में दिया गया है।

उद्‌घोषना डिक्रीदार और निर्णीतकणी को सूचना देने के बाद में तैयार की जावेगी। परन्तु परन्तुक के अनुसार नियम 54 के अधीन सूचना देने पर इस नियम के अधीन सूचना देना आवश्यक नहीं होगा। विक्रय उद्‌घोषणा की शर्तों को तय करने के लिए नियत दिन की सूचना परिशिष्ट (ङ) के प्ररूप संख्यांक 28 में दी जाएगी।

उ‌द्घोषना में नीलामी का स्थान व समय अंकित किया जाएगा।

मध्यप्रदेश-संशोधन के अनुसार डिक्रीदार के अनुमान से उस सम्पत्ति का बाजार मूल्य भी अंकित किया जावेगा।

विक्रय के आदेश के लिए आवेदन (उपनियम 3) ऐसे आवेदन में दिये कथन को अभिवचन के समान हस्ताक्षरित और सत्यापित किया जावेगा, उसमें उपनियम (2) में चाही गई बातें दी जायेंगी। परीक्षा द्वारा तथ्यों का पता लगाना (उपनियम 4) उद्‌द्घोषणा में दी जाने वाली बातों का पता लगाने के लिए न्यायालय किसी भी व्यक्ति को बुलाकर उसकी परीक्षा कर सकेगा या उसके पास के दस्तावेज मंगा सकेगा।

निर्धारित प्ररूप (फार्म) पहली अनुसूची के परिशिष्ट (ङ) में निम्न प्ररूप निर्धारित किये गये हैं, जिनका प्रयोग किया जाएगा-

(क) संख्यांक 27- धन की डिक्री के निष्पादन में सम्पत्ति के विक्रय का वारंट।

(ख) संख्यांक 28- विक्रय उद्‌घोषणा तय करने के लिए नियत दिन की सूचना।

(ग) संख्यांक 29- विक्रय की उद्‌द्घोषणा।

(घ) संख्यांक-30- विक्रय की उद्‌घोषणा कराने के लिए नाजिर को आदेश।

न्यायालयों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त (क) आदेश 21, नियम 66(2) के उपबन्ध का स्वरूप तथा उद्देश्य- डिक्री के निष्पादन में सम्पत्ति का विक्रय किया गया और उक्त सम्पत्ति के मूल्य का प्राक्कलन किया गया। विक्रय उद्‌घोषणा में कौन-कौन सी विशिष्टियां दी जानी चाहिएं और विक्रय किस प्रकार कराया जाना चाहिए- उक्त उपबंध के अधीन निष्पादन न्यायालय का कर्तव्य मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही यह अवधारण किया जा सकता है कि उद्‌द्घोषना में कौन-कौन सी विशिष्टियां दी जाएं। इस प्रश्न के बारे में कड़े नियम नहीं बनाए जा सकते हैं किन्तु इस कर्तव्य का पालन न्यायिक तथा युक्तियुक्त रूप से किया जाना चाहिए।

निर्णीत-ऋणी का अधिकार व उसका त्यजन-यदि आदेश 21. नियम 66(2) के अधीन निर्णीत-ऋणी को नोटिस दिया जाना है, तो उसमें वह नियम 66 (2) में वर्णित बातों का उत्तर देगा, जो कि विक्रय की उद्‌द्घोषना की विषय-वस्तु होंगे और उनको देखने से प्रक्ट होगा कि निर्णीत ऋणी का अधिकार पूरी सम्पत्ति या उसके एक भाग की बिक्री से डिक्री की संतुष्टि होने तक विस्तृत है। निर्णीत-ऋणी के इस अधिकार का वह सुविधापूर्वक अभित्यजन (त्याग) कर सकता है और यदि वह ऐसा करता है, तो आदेश 21, नियम 88 के अधीन ऋणी को नोटिस देने का लोप करना केवल एक अनियमितता है और नोटिस संबंधी उपबन्धों की पालना नहीं करने से विक्रय शून्य नहीं होगा।

सम्पत्ति के मूल्यांकन का प्रश्न न्यायालय को आदेश 21, नियम 66का कठोरता से पालन करना होगा। प्रत्येक मामले में यह आवश्यक नहीं है कि पहले उस सम्पत्ति का मूल्यांकन किया जाए और उसे उद्‌घोषणा में अस्ति किया जाए। परन्तु जहां बहुमूल्य सम्पति है, वहां कम से कम ऐसा करना चाहिये। न्यायालय या उसके अधिकारियों को इस तरह काम नहीं करना चाहिये कि वह इस आलोचना को उत्पन्न करें कि यह उदासीन या आकस्मिक मार्ग से किया गया है।

न्यायालय द्वारा सम्पत्ति की नीलामी में विधि का सावधानी से पालन आवश्यक सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 66 के अनुसार विक्रय उद्‌द्घोषणा की शर्तें तय करने के लिए नोटिस नहीं दिये गये। उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि उससे निर्णीत ऋणी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने से विक्रय दूषित नहीं हुआ। हम इस प्रश्न में नहीं जाते। किन्तु जैसा कि प्रिवी काउन्सिल ने कहा है, हम बतादें कि न्यायालयों के निदेशों के अधीन विक्रयों में न्यायालय का यह दायित्व है कि अधिकतम सावधानी बरते।

भले ही न्यायालय के लिए प्रत्येक मामले में यह आवश्यक न हो कि मूल्यांकन करके उसे विक्रय उद्‌घोषणा में लिखे, किन्तु यह वांछनीय है कि कम से कम उस सम्पत्ति के मामले में जो मूल्यवान हो, न्यायालय उसका मूल्यांकन करके उसे विक्रय उद्‌घोषणा में लिखे। हम यह जोड़ना आवश्यक समझते हैं कि न्यायालय या उसके अधिकारियों का कोई कार्य ऐसा नहीं होना चाहिये कि इस आलोचना का अवसर आए कि कार्य ध्यान दिए बिना या चलते-फिरते ढंग से किया गया।

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