सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 124: आदेश 21 नियम 54, 55, 56 एवं 57 के प्रावधान

Update: 2024-02-12 08:00 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 54, 55, 56 एवं 57 पर प्रकाश डाला जा रहा है।

नियम-54 स्थावर सम्पत्ति की कुर्की (1) जहां सम्पत्ति स्थावर है, वहां कुर्की ऐसे आदेश द्वारा की जाएगी जो सम्पत्ति को किसी भी प्रकार से अन्तरित या भारित करने से निर्णीत ऋणी को और ऐसे अन्तरण या भार से कोई भी फायदा उठाने से सभी व्यक्तियों को प्रतिषिद्ध करता है।

[(1क) आदेश में निर्णीतऋणी से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह विक्रय की उद्घोषणा के निबन्धनों को तय करने के लिए नियत की जाने वाली तारीख की सूचना प्राप्त करने के लिए किसी विनिर्दिष्ट तारीख को न्यायालय में हाजिर हो।]

(2) वह आदेश ऐसी सम्पत्ति में के या उसके पार्श्वस्थ किसी स्थान पर डोंडी पिटवा कर या अन्य रूढिक ढंग से उद्घोषित किया जाएगा और ऐसे आदेश की प्रति सम्पत्ति के किसी सहजदृश्य भाग पर और तब न्यायसदन के किसी सहजदृश्य भाग पर और जहां सम्पत्ति सरकार को राजस्व देने वाली भूमि है वहां उस जिले के जिसमें वह भूमि स्थित है, कलेक्टर के कार्यालय में भी लगाई जाएगी [ और जहां सम्पत्ति किसी गांव में स्थित भूमि है वहां उस गांव पर अधिकारिता रखने वाली ग्राम पंचायत के, यदि कोई हो,कार्यालय में भी लगाई जाएगी]।

नियम-55 डिक्री की तुष्टि पर कुर्की का उठाया जाना-जहाँ- (क) डिक्रीत रकम खर्चों और किसी सम्पत्ति की कुर्की के पारिणामिक प्रभारों और व्ययों के साथ न्यायालय में जमा कर दी जाती है, अथवा

(ख) डिक्री की तुष्टि अन्यथा न्यायालय की मार्फत कर दी जाती है या न्यायालय को प्रमाणित कर दी जाती है, अथवा

(ग) डिक्री अपास्त कर दी जाती है या उलट दी जाती है,

वहाँ कुर्की प्रत्याह्नत समझी जाएगी और स्थावर सम्पत्ति की दशा में यदि निर्णीत ऋणी ऐसा चाहे तो प्रत्याहरण उसके व्यय पर उद्घोषित किया जएगा और उद्घोषणा की एक प्रति अन्तिम पूर्ववर्ती नियम द्वारा विहित रीति से लगाई जाएगी।

नियम-56 डिक्री के अधीन हकदार पक्षकार को सिक्के या करेन्सी नोटों का संदाय किया जाने का आदेश-जहाँ कुर्क की गई सम्पत्ति चालू सिक्का है या करेन्सी नोट है वहाँ न्यायालय कुर्की के चालू रहने के दौरान किसी भी समय निदेश दे सकेगा कि ऐसा सिक्का या ऐसे नोट या उनका उतना भाग जितना डिक्री की तुष्टि के लिए पर्याप्त हो, उस पक्षकार को दे दिया जाए जो डिक्री के अधीन उसे पाने का हकदार है।

नियम-57 कुर्की का पर्यवसान- (1) जहाँ कोई सम्पत्ति किसी डिक्री के निष्पादन में कुर्क कर ली गई है और न्यायालय किसी करण से डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन को खारिज करने का आदेश पारित करता है वहाँ न्यायालय यह निदेश देगा कि कुर्की जारी रहेगी या समाप्त हो जाएगी और वह अवधि जिस तक ऐसी कुर्की जारी रहेगी और वह तारीख जिसको कुर्की समाप्त हो जाएगी, भी उपदर्शित करेगा।

(2) यदि न्यायालय ऐसा निदेश देने में लोप करता है तो यह समझा जाएगा कि कुर्की समाप्त हो गई है।]

स्थावर सम्पत्ति की कुर्की करने का तरीका नियम 54 में दिया गया है

आदेश का स्वरूप-स्थावर (अचल) सम्पत्ति की कुर्की का आदेश निर्णीत-ऋणी को तथा सभी अन्य व्यक्तियों को एक प्रतिषेधात्मक आदेश के रूप में पहली अनुसूची के परिशिष्ट (3) के प्ररूप (फार्म) संख्यांक 24 में जारी किया जावेगा। (उपनियम -1)

(ख) विक्रय की उद्घोषणा की तैयारी उपनियम (1 क) के अनुसार निर्णीतऋणी को विक्रय की उद्‌घोषणा की शर्तें तय करने के लिए नियत तारीख की सूचना मिलने पर न्यायालय में उपस्थित होने की अपेक्षा (आशा) की जाती है।

(ग) कुर्की की घोषणा-कुर्की की घोषणा उपनियम (2) के अनुसार डोंडी पिटवाकर की जाएगी और आदेश की प्रति (1) उस सम्पत्ति के खुले भाग पर चिपका दी जाएगी और (2) न्याय सदन के बाहर भी लगा दी जावेगी, (3) राजस्व भूमि होने पर कलक्टर के कार्यालय में तथा (4) गांव की भूमि होने पर संबंधित ग्राम पंचायत के कार्यालय में भी लगाई जायेगी।

कुर्की के लक्षण-कोई सम्पत्ति केवल तभी कुर्क हुई मानी जावेगी, जब (1) यहां कोई कुर्की का आदेश है और (2) उस आदेश के निष्पादन में इस नियम द्वारा निर्धारित औपचारिकतायें पूरी कर दी गई हैं। नियम 54 केवल औपचारिकता नहीं है और उसे प्रवारित (टाला) नहीं जा सकता। स्थावर सम्पत्ति की कुर्की के लिए नियम 54 के उपनियम (1) और (2) में दी गई प्रक्रिया का पूर्ण रूप से अनुसरण न करने पर यह कहना कठिन होगा कि कुर्की का प्रभावपूर्ण आदेश दे दिया गया है। उपनियम (3) विधिमान्य उपबंध नहीं है। एक पक्षकार द्वारा अपनी सम्पत्ति के अन्तरण से रोकने के लिए प्राप्त किया व्यादेश उस सम्पत्ति की कुर्की के (समतुल्य) समान नहीं होता।

उपनियम (2) का उपबन्ध निदेशात्मक संहिता में कुर्की के आदेश को नहीं लगाने के परिणामों को बताने वाला कोई नियम नहीं बनाया गया है। अतः उपनियम (2) के उपबन्ध केवल निदेशात्मक है। इसलिए इनके पालन नहीं करने से विक्रय दूषित नहीं होगा, जब तक कि यह दर्शित नहीं किया जाए कि निर्णीत ऋणी को इससे तात्विक हानि हुई है।

अन्य संक्रामण पर प्रभाव - कुर्की का आदेश पारित करने के बाद और उस आदेश के अनुसार वास्तव में कुर्की करने से पहले किये गये सम्पत्ति के अन्य संक्रामण को चुनौती नहीं दी जा सकती। जहां धारा 64 के अधीन अन्य संक्रामण की वैधता का कोई प्रश्न उठता हो, तो नीलामी विक्रय को केवल इसी आधार पर अपास्त नहीं किया जावेगा कि-कुर्की करने में कोई अनियमितता थी या कोई कुर्की नहीं की गई थी।

निर्णीत ऋणियों द्वारा वादगत सम्पत्ति की अन्य संक्रान्त न करने का वचन दिया गया और ऐसा वचन डिक्री का भाग बना दिया गया। डिक्री के निष्पादन में वर्णित ऋणियों की कुछ सम्पत्ति कुर्क की गई। उक्त सम्पत्ति को बेचने के लिये जारी की गई विक्रय की घोषणा के समय निर्णीत-ऋणियों द्वारा यह आक्षेप किया गया कि कुर्क की गई सम्पत्ति का अन्यसंक्रामण करने से प्रतिषिद्ध करने वाले आदेश की तामील, जैसा कि आदेश 21 नियम 14 द्वारा आपेक्षित है, नहीं की गई थी। निर्णीत-ऋणियों द्वारा वादगत सम्पत्ति को अन्य संक्रान्त न करने का वचन दिये जाने और ऐसे वचन के डिक्री का भाग बना दिया जाने से प्रतिषिद्ध करने वाले आदेश की तामील आवश्यक नहीं है।

कुर्की और विक्रय की उद्घोषणा - [आदेश 21, नियम 54, 66, 67 और 68 सपठित नियम 90]-जो मुद्दे निर्णीत-ऋणी द्वारा नहीं उठाये गये हों ऐसे मुद्दों को पश्चात्वर्ती प्रक्रम पर उसके विधिक प्रतिनिधियों को उठाने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जा सकता। आशयित आपत्तियाँ (आक्षेप) विक्रय से पहले ही उठाई जा सकती हैं, न कि नीलाम-विक्रय के पश्चात्। सम्बन्धी संपत्ति के अनुमानित मूल्य का उल्लेख न करना महत्वपूर्ण नहीं है। सम्पत्ति पर विक्रय की उद्घोषणा का न चिपकाया जाना तथा विक्रय की बाबत डोंडी पीटकर प्रकाशित न किया जाना ऐसे विक्रय को शून्यकरणीय बनाता है, न कि शून्य।

यदि पहले की कोई कुर्की नहीं हो, तो कुर्की के माल का वैध विक्रय किया जा सकता है। जहाँ आदेश 21, नियम 54 के अधीन प्रतिबंधात्मक आदेश की तामील निर्णीत-ऋणी की मृत्यु के कारण नहीं हो सकी, तो इससे नीलामी-विक्रय दूषित नहीं हो जाता।

मनी डिक्री के निष्पादन में स्थावर सम्पत्ति के नीलामी में आदेश 21 नियम 54 एवं 66 में दी गई शर्तों का पालन करना आज्ञापक है, जहाँ किसी नीलामी से पूर्व, सम्पत्ति का मूल्यांकन नहीं किया गया हो, विक्रय की उदघोषणा नहीं की गई हो एवं विक्रय न ही की जाने वाली सम्पत्ति का प्रकाशन हो ऐसी स्थिति में की गई विक्रय अकृत मानी जायेगी।

धारा 73 तथा आदेश 21, नियम 55 का सम्बन्ध - इस नियम को धारा 73 के साथ पढ़ना होगा जहाँ निर्णीत ऋणी ने एक राशि न्यायालय में कुर्की करने वाले लेनदार की डिक्री की तुष्टि के लिए, जमा करवा दी, परन्तु उसे धारा 73 के कारण आनुपातिक वितरण के लिए उपलब्ध करा दिया गया, तो यह इस नियम के अधीन कोई संदाय (भुगतान) नहीं है और कुर्की जारी रहेगी।

नियम 56 में जहाँ कुर्क की गई सम्पत्ति सिक्कों या करेन्सी नोट के रूप में है, तो उसे हकदार व्यक्ति को दिया जा सकेगा। पहली अनुसूची के परिशिष्ट (ङ) में उस धन आदि का जो परव्यक्ति के हाथ में है, संदाय वादी आदि को करने का आदेश देने के लिए प्ररूप (फार्म) सं. 25 विहित किया गया है।

नियम 57 में कुर्की के पर्यवसान (समाप्त) होने की परिस्थितियाँ बताई गई हैं। निष्पादन के आवेदन को खारिज करने के आदेश में कुर्की के बारे में निदेश दिया जाएगा और ऐसा निदेश न देने पर कुर्की समाप्त होना समझा जायेगा।

आवेदन की खारिजी का आदेश डिक्रीदार के व्यतिक्रम (चूक/ Default) पर आधारित होना चाहिये। शब्द व्यतिक्रम का अर्थ केवल अनुपस्थित होने या आदेशिका- शुल्क का भुगतान न करने या दस्तावेज पेश न करने तक ही सीमित नहीं है, इसमें जो कुछ डिक्रीदार अपने आवेदन के निष्पादन की कार्यवाही करने के लिए बाध्य है, उनके करने में असफलता भी सम्मिलित है।

निष्पादन कार्यवाही में निर्णीत-ऋणी द्वारा अपील- ऐसी अपील फाइल करने पर निष्पादन कार्यवाही को संगणना के प्रयोजन से रोक दिया गया। ऐसा आदेश खारिजी का आदेश नहीं होता, जब कि कुर्की का आदेश जारी रहने का आदेश दिया गया है। अत: पहले के निष्पादन-आवेदन को पुनर्जीवित करने की याचिका परिसीमा द्वारा वर्जित नहीं है।

कुर्की का पुनर्जीवित हो जाना - [सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5)-धारा 64 और आदेश 21, नियम 57]- डिक्री के निष्पादन के दौरान कुर्क की गई संपत्ति का निर्णीत ऋणी द्वारा अन्यसंक्रामण- निष्पादन आवेदन को पुनः स्थापित करने से कुर्की भी निश्चित रूप से उस आवेदन के खारिज किए जाने से पूर्व की अवधि के लिए पुनःस्थापित या पुनःप्रवर्तित हो जाएगी।

एक वाद में अपीलार्थी ने निर्णीत-ऋणी के विरुद्ध कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक धन-संबंधी डिक्री अभिप्राप्त की।

अपील के निष्पादन आवेदन पर निर्णीत-ऋणी की डायमंड हारवर रोड पर स्थित 19 कट्ठा भूमि तथा एक भवन की कुर्की 3 अगस्त, 1970 को की गई। निर्णीत ऋणी 14 सितंबर, 1970 को उक्त भूमि में से। कट्ठा भूमि प्रत्यर्थियों को बेच दी। 9 मई, 1972 को उक्त निष्पादन आवेदन व्यतिक्रम के कारण खारिज कर दिया गया था।

16 सितंबर, 1975 को अपीलार्थी द्वारा आवेदन किए गए जाने पर वह आवेदन पुनःस्थापित किया गया था। उक्त संपत्ति पुन: 26 सितंबर, 1975 को कुर्क कर ली गई। तत्पश्चात् सिविल प्रक्रिया संहिता में आदेश 21, नियम 66 के अधीन उक्त संपत्ति की विक्रय उद्‌द्घोषना जारी की गई थी। प्रत्यर्थियों ने उक्त संपत्ति को कुर्की से निर्मुक्त कराने के लिए एक आवेदन फाइल किया जो कि खारिज कर दिया गया। तत्पश्चात् उच्च न्यायालय में अपील करने पर, अपील मंजूर कर ली गई। उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में यह अपील की गई। अपील मंजूर करते हुए

(ख) अभिनिर्धारित किया किसी वाद को व्यतिक्रम के कारण खारिज करने वाला आदेश, इस प्रयोजनार्थ आवेदन करने पर, अपास्त कर दिया जाता है, वहां वाद उसी प्रकार बना रहता है जैसे कि वह उस तारीख को था जबकि उसे खारिज किया गया था और उस तारीख तक की गई सभी कार्यवाहिया प्रवर्तन में समझी जानी चाहिए जिस तारीख को खारिजी अपास्त की गई थी और खरीजी अपास्त किए जाने पर सभी अंतर्वर्ती आदेश पुनः प्रवर्तित हो जाएंगे। इसी प्रकार संपत्ति की कुर्की का आदेश भी पुनः प्रवर्तित हो जाएगा।

निर्णीत-ऋणी द्वारा 'भ' को किया गया विक्रय तथा 'भ' द्वारा प्रत्यर्थी को किया गया विक्रय, दोनों ही कुर्की के जारी रहने के दौरान और हक निष्पादन मामले में व्यतिक्रम के आधार पर खारिज किए जाने से पूर्व किए थे। यदि इस बारे में संदेह भी माना जाए कि क्या वाद या निष्पादन आवेदन को पुनःस्थापित करने वाले आदेश का प्रभाव कुर्की को भूतलक्षी रूप से पुनःस्थापित करना होगा, जिससे कि वाद या निष्पादन आवेदन के खारिज किए जाने और पुनःस्थापना के आदेश के बीच की अवधि के दौरान किए गए अन्य संक्रामण प्रभावित हो, तो यह स्पष्ट है कि पुनःस्थापना का आदेश उस अवधि के लिए कुर्की को निश्चित रूप से पुनःस्थापित या पुनःप्रवर्तित करेगा जिसके दौरान कुर्की जारी थी, अर्थात् वाद या निष्पादन आवेदन खारिज किए जाने से पहले की अवधि के लिए।

जब कुर्की पुनजीवित नहीं होगी- (आदेश 21, नियम 57(2) तथा आदेश 38, नियम 11-का (2)] जब निष्पादन की कार्यवाही चूक के आधार पर समाप्त कर दी गई, तो उसमें की गई कुर्की भी समाप्त हो गई और निष्पादन- अर्जी पुनःस्थापित होने पर कुर्की जब तक कोई स्पष्ट आदेश न हो, पुनःस्थापित/पुनजीवित नहीं होगी।

निर्णय-पूर्व कुर्की और निष्पादन के अधीन कुर्की में अन्तर-दो मत-आदेश 38, नियम 11 के अधीन निर्णय पूर्व कुर्की की गई और इसके बाद में वाद डिक्रीत कर दिया गया। निष्पादन आवेदन फाइल करने पर उस सम्पत्ति की दुबारा कुर्की करने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु यदि वह निष्पादन आवेदन व्यतिक्रम (चूक) के कारण खारिज हो जाता है, तो क्या उस कुर्की का अन्त हो जाएगा। यह एक विवादास्पद प्रश्न है-एक मतानुसार, जो कि अधिकतर उच्च न्यायालयों ने लिया है, वहां केवल निर्णय-पूर्व कुर्की थी और वह डिक्री के निष्पादन में नहीं थी। अतः यह नियम लागू नहीं होता और कुर्की का अन्त नहीं होगा।

Tags:    

Similar News