सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 116: आदेश 21 नियम 33,34,35 एवं 36 के प्रावधान

Update: 2024-02-06 03:15 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 33, 34,35 एवं 36 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-33 दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्रियों का निष्पादन करने में न्यायालय का विवेकाधिकार-

(1) नियम 32 में किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन की डिक्री [पति के विरुद्ध ] पारित करते समय या तत्पश्चात् किसी भी समय, यह आदेश कर सकेगा कि डिक्री [इस नियम में उपबन्धित रीति से निष्पादित की जाएगी]।

(2) जहां न्यायालय ने उपनियम (1) के अधीन कोई आदेश किया है वहां यह आदेश कर सकेगा कि डिक्री का आज्ञानुवर्तन ऐसी अवधि के भीतर न किए जाने की दशा में जो इस निमित्त नियत की जाए, निर्णीतऋणी डिक्रीदार को ऐसे कालिक संदाय करेगा जो न्यायसंगत हों और यदि न्यायालय यह ठीक समझे तो वह निर्णीतऋणी से अपेक्षा करेगा कि वह न्यायालय के समाधानप्रद रूप में डिक्रीदार को ऐसे कालिक संदाय प्रतिभूत करे।

(3) न्यायालय धन के कालिक संदाय के लिए उपनियम (2) के अधीन किए गए किसी भी आदेश में फेरफार या उपान्तर संदाय के समयों को परिवर्तित करके या रकम को बढ़ा या घटा करके समय-समय पर कर सकेगा या इस प्रकार संदाय किए जाने के लिए आदिष्ट पूरे धन या उसके किसी भी भाग के बाबत उसे अस्थायी रूप से निलम्बित कर सकेगा और उसे पूर्णतः या भागतः ऐसे पुनः प्रवर्तित कर सकेगा जो वह न्यायसंगत समझे।

(4) इस नियम के अधीन संदत्त किए जाने के लिए आदिष्ट कोई भी धन इस प्रकार वसूल किया जा सकेगा मानो वह धन के संदाय की डिक्री के अधीन संदेय हो।

नियम-34 दस्तावेज के निष्पादन या परक्राम्य लिखत के लिए डिक्री (1) जहां डिक्री किसी दस्तावेज के निष्पादन के लिए या किसी परक्राम्य लिखत के पृष्ठांकन के लिए है और निर्णीतऋणी डिक्री का आज्ञानुवर्तन करने में उपेक्षा करता है या उसका आज्ञानुवर्तन करने से इन्कार करता है वहां डिकीदार डिक्री के निबन्धनों के अनुसार दस्तावेज या पृष्ठांकन का प्रारूप तैयार कर सकेगा और उसे न्यायालय को परिदत्त कर सकेगा।

(2) तब न्यायालय निर्णीतऋणी से यह अपेक्षा करने वाली सूचना के साथ प्रारूप की तामील निर्णीतऋणी पर कराएगा कि वह अपने आक्षेप (यदि कोई हो) इतने समय के भीतर करें जितना न्यायालय इस निमित्त नियत करे।

(3) जहां निर्णीतऋणी प्रारूप के सम्बन्ध में आपेक्ष करता है वहां उसके आपेक्ष ऐसे समय के भीतर लिखित रूप में कथित किए जाएंगे और न्यायालय प्रारूप को अनुमोदित या परिवर्तित करने वाला ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।

(4) डिकीदार प्रारूप की एक प्रति ऐसे परिवर्तनों सहित (यदि कोई हो), जो न्यायालय ने निर्दिष्ट किए हो, उचित स्टाम्प-पत्र पर, यदि तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा ऐसा स्टाम्प अपेक्षित हो, न्यायालय को परिदत्त करेगा, और न्यायाधीश या ऐसा अधिकारी जो इस निमित्त नियुक्त किया जाए, ऐसे परिदत्त दस्तावेज को निष्पादित करेगा।

(5) इस नियम के अधीन दस्तावेज का निष्पादन या परक्राम्य लिखत का पृष्ठांकन निम्नलिखित प्ररूप में हो सकेगा, अर्थात् - "ङ च द्वारा क ख के विरुद्ध वाद में क ख, की ओर से न्यायालय का न्यायाधीश (या यथास्थिति) और उसका वही प्रभाव होगा जो उसे निष्पादित करने या पृष्ठांकन करने के लिए आदिष्ट पक्षकार द्वारा दस्तावेज के निष्पादन या परक्राम्य लिखत के पृष्ठांकन का होता।

[(6) (क) जहां दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अपेक्षित है वहां न्यायालय या न्यायालय का ऐसा अधिकारी जो न्यायालय द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाए, ऐसी विधि के अनुसार दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण कराएगा।

(ख) जहां दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण इस प्रकार अपेक्षित नहीं है किन्तु डिक्रीदार उसका रजिस्ट्रीकरण कराना चाहता है वहां न्यायालय ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(ग) जहां न्यायालय किसी दस्तावेज के रजिस्ट्रीकरण के लिए कोई आदेश करता है वहां वह रजिस्ट्रीकरण के व्ययों के बारे में ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।।

नियम-35 स्थावर सम्पत्ति के लिए डिक्री- (1) जहां डिक्री किसी स्थावर सम्पत्ति के परिदान के लिए है वहां उसका कब्जा उस पक्षकार को जिसे वह न्यायनिर्णीत किया गया है या ऐसे व्यक्ति को जिसे वह अपनी ओर से परिदान प्राप्त करने के लिए नियुक्त करे, और यदि आवश्यक हो तो डिक्री द्वारा आबद्ध किसी ऐसे व्यक्ति को जो सम्पत्ति को खाली करने से इन्कार करता है, हटा करके परिदत्त किया जाएगा।

(2) जहाँ डिक्री स्थावर सम्पत्ति के संयुक्त कब्जे के लिए है वहां सम्पत्ति में के किसी सहजदृश्य स्थान पर वारण्ट की प्रति को लगाकर और डिक्री के सार को किसी सुविधाजनक स्थान पर डोंडी पिटवा कर या अन्य सटीक ढंग से उद्घोषित करके ऐसे कब्जे का परिदान किया जाएगा। परिदान किया जाना है और कब्जा रखने वाला व्यक्ति डिक्री द्वारा आबद्ध है।

(3) जहां किसी निर्माण या अहाते के कब्जे का होते हुए वहां तक अबाध पहुंच नहीं होने देता है वहां न्यायालय देश की रुढ़ियों के अनुसार लोगों के सामने न आने वाली स्त्री को युक्तियुक्त चेतावनी देकर और हट जाने की सुविधा देने के पश्चात् अपने अधिकारियों के माध्यम से किसी ताले या चटकनी को हटा सकेगा या खोल सकेगा या किसी द्वार को तोड़ कर खोल सकेगा या डिक्रीदार को कब्जा देने के लिए आवश्यक किसी भी अन्य कार्य को कर सकेगा।

नियम-36 जब स्थावर सम्पत्ति अभिधारी के अधिभोग में है तब ऐसी सम्पत्ति के परिदान के लिए डिक्री-जहां डिक्री किसी ऐसी स्थावर सम्पत्ति के परिदान के लिए है जो ऐसे अभिधारी या अन्य व्यक्ति के अधिभोग में है जो उस पर अधिभोग रखने का हकदार है और डिक्री द्वारा इस बात के लिए आबद्ध नहीं है कि ऐसा अधिभोग त्याग दे वहां न्यायालय यह आदेश देगा कि सम्पत्ति में के किसी सहजदृश्य स्थान पर वारण्ट की प्रति को लगाकर और सम्पत्ति के सम्बन्ध में डिक्री के सार की किसी सुविधाजनक स्थान पर डोंडी पिटवा कर या अन्य रुढ़िक ढंग से अधिभोगी को उद्घोषित करके परिदान किया जाए।

दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री का निष्पादन करने के लिए नियम 33 द्वारा न्यायालय को विवेकाधिकार प्रदान किया गया है। नियम 32 में किसी के बात के होते हुए भी- नियम 32 में पीछे बताया गया है कि दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री का निष्पादन निर्णीतऋणी (पति) की सम्पत्ति की कुर्की द्वारा किया जायेगा। इस उपबन्ध के होते हुए भी नियम 33 लागू होगा, जिसमें न्यायालय को विवेकाधिकार दिया गया है।

नियम 33 की व्यवस्था [उपनियम-2]- (1) उपनियम (1) के अनुसार न्यायालय ऐसी डिक्री पारित करते समय या बाद में कभी भी इस नियम का तरीका अपनाने का आदेश दे सकेगा। (2) उपनियम (1) के अधीन आदेश करने के बाद यह आदेश कर सकेगा कि निश्चित अवधि के भीतर डिक्री की पालना न करने पर वह निर्णीतऋणी (पति) कालिक संदाय (Periodical Payments) करेगा, जो न्यायालय न्याय संगत या ठीक समझे। इसके लिए प्रतिभूति भी ली जा सकेगी।

कालिक संदाय के आदेश में परिवर्तन (उपनियम-3)- न्यायालय संदाय का समय, राशि (रकम) आदि में समय समय पर परिवर्तन कर सकेगा। वह भुगतान को अस्थाई रूप से स्थगित (निलम्बित) भी कर सकेगा और दुबारा चालू भी कर सकेगा। धन के संदाय की डिक्री की तरह वसूली- इस नियम में दिये जाने वाली रकम जिसे देने का आदेश हुआ है, उसे वसूल करने के लिए उसे धन के संदाय की डिक्री मानकर कार्यवाही की जा सकेगी।

नियम 34 दो प्रकार की डिक्रियों के बारे में है- (1) दस्तावेज के निष्पादन के लिए और (2) किसी परक्राम्य लिखत (Negotiable Instrument) पर पृष्ठांकन (द्वारा अन्तरण) करने के लिए तरीका बतलाता है।

जब निर्णीत-ऋणी डिक्री के पालन करने में उपेक्षा करे या ऐसा करने से इन्कार कर दे, तो नियम 34 के अधीन कार्यवाही की जा सकेगी, जिसमें- (i) डिक्रीदार दस्तावेज या पृष्ठांकन का प्रारूप (ड्राफ) तैयार कर न्यायालय में प्रस्तुत करेगा (उपनियम 1) (ii) न्यायालय निर्णीत-ऋणी को सूचना के साथ उस प्रारूप की तामील कराने के बाद नियत समय में उसके आक्षेपों का निपटारा करेगा और दस्तावेज या पृष्ठांकन में परिवर्तन करेगा। (iii) उस दस्तावेज / पृष्ठांकन पर स्टाम्प लगाकर उसे उपनियम (4) तथा (5) में बताये तरीके से निष्पादन किया। (iv) यदि आवश्यक हो, तो उस दस्तावेज का रजिस्ट्रीकरण उप नियम (6) के अनुसार करवाया जाएगा। (v) दस्तावेजन के प्रारूप के बारे में आक्षेपों का कथन करने के लिए सूचना परिशिष्ट (ङ) के प्ररूप (फार्म) संख्यांक 10 में दी जावेगी।

अपील-आदेश 43, नियम 1 के खण्ड (झ) के अनुसार, दस्तावेज के या पृष्ठांकन के प्रारूप पर किए गए आक्षेप पर आदेश, जो आदेश 21, नियम 34 के अधीन दिया गया हो, एक आदेश के रूप में अपील योग्य है।

आदेश 21 के नियम 35 में स्थावर (अचल) सम्पत्ति की निष्पादन की व्यवस्था है, जब कि नियम 36 में स्थावर सम्पत्ति किसी अभिधारी के अधिभोग में है, तब ऐसी सम्पत्ति के परिदान की डिक्री के निष्पादन की व्यवस्था की गई है।

किसी स्थावर सम्पत्ति के परिदान (आधिपत्य/कब्जा दिलवाने) की डिक्री का निष्पादन) इस प्रकार किया जावेगा-

डिक्रीदार या उस द्वारा नियुक्त व्यक्ति को उस सम्पत्ति का कब्जा दिलाया जाएगा और यदि उस पर ऐसे किसी व्यक्ति का कब्जा है, जो इस डिक्री को मानने के लिए बाध्य है, तो उससे सम्पत्ति को खाली करवाया और उसे हटाया जाएगा।

संयुक्त कब्जे की डिक्री के निष्पादन में साफ दिखाई देने वाले स्थान पर वारंट की प्रति चिपकाकर डिक्री के सारांश को सुनाकर डोडी पिटवाकर घोषणा कर दी जावेगी।

निर्माण (बना हुआ मकान) या अहाते के कब्जे के लिए उस पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को, जो डिक्री द्वारा आबद्ध (बंधा हुआ) है, कब्जा नहीं करने देने पर -

(क) स्रियों को जो रूढ़ियों के अनुसार बाहर नहीं आती है उनको हटने की चेतावनी और समय दिया जावेगाम

(छ) फिर न्यायालय के अधिकारी उस का ताला या चटक्नी हटायेगा या उसे खोलेगा या द्वार को तोड़ सकेगा या अन्य आवश्यक कार्यवाही कर कब्जा दिलवा सकेगा। इसके लिए पुलिस की मदद भी ली जा सकेगी।

अधिभोग के हकदार व्यक्ति के कब्जे में की स्थावर सम्पत्ति के परिदान की डिक्री का निष्पादन (नियम 36)- ऐसी स्थिति में जब अभिधारी कब्जा देने से इन्कार करता है, तो उस स्थान पर वारंट की प्रति चिपकाकर और डिक्री के सार को सुनाकर, डोंडी पिटवाकर या अन्य रुद्रिक तरीके से घोषणा करके प्रतीकात्मक कब्जा दिलवाया जावेगा।

प्ररूप (फार्म)- भूमि इत्यादि का कब्जा दिलवाने के लिए बेलिफ को दिया जाने वाला वारन्ट परिशिष्ट (ड) के प्ररूप संख्यांक 11 में जारी किया जावेगा।

नियम 35 का उद्देश्य नियम की स्पष्ट शब्दावली से यह प्रकट होता है कि डिकीदार अथवा नीलामक्रेता को प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा दिलाने के लिए डिक्री से आबद्ध व्यक्ति को ही बेकब्जा किया जा सकता है किसी अन्य व्यक्ति को नहीं। निष्पादन न्यायालय अपने अधिकारियों के माध्यम से स्थावर सम्पत्ति के कब्जे का परिदान कराने के लिए सक्षम है। अवकाश जिला न्यायाधीश द्वारा निष्पादन का ग्रहण किया जाना और मकानमालिक को सम्पत्ति के कब्जे के परिदान का निदेश देने वाला आदेश अधिकारिता का अनियमित प्रयोग ही है किन्तु अवैध नहीं।

विनिर्दिष्ट पालन-डिक्रीदार न्यायालय से आदेश 21, नियन 35 या 36 के अधीन डिक्री निष्पादित करने के लिए नहीं कह सकता। उसे आदेश 21 के नियम 32 द्वारा विहित रीति में निष्पादित किया जाना चाहिए, किसी अन्य रीति में नहीं।

एक वाद में निष्पादन का दूसरा आवेदन जब वर्जित नहीं आदेश 21 नियन 35 के अधीन एक निष्पादन आवेदन पर इस आधार पर एतराज किया गया कि पिछली कार्यवाही में सम्पत्ति के परिदान में बाधा उठाई गई थी, जिसके लिए डिक्रीदार ने आदेश 21 नियम 97 के अधीन कोई कदम नहीं उठाये गये और निष्पादन बन्द कर दिया गया था। अभिनिर्धारित कि- सम्पत्ति के परिदान के लिए दूसरा आवेदन इससे वर्जित नहीं हुआ।

आधिपत्य की डिक्री का निष्पादन

एक वाद में किरायेदार द्वारा सामान नहीं हटाना न्यायालय द्वारा नोटिस के बावजूद किरायेदार ने परिसर में पड़ी अपनी मशीनरी (आटा चक्की) नहीं हटाई। उसने नोटिस की पालना नहीं की और उसे न्यायालय द्वारा हटा दिया गया, जो चार वर्ष तक न्यायालय में पड़ी रही। न्यायालय ने उसे रु. 1851 में बेच दिया। इसके बाद उस किरायेदार ने मशीनरी की मांग की जिसे रु. 25,000 की बताया गया तथा उसे अत्यधिक कम मूल्य पर बेचने का कथन किया। अभिनिर्धारित कि उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।

आधिपत्य देना- निष्पादन-न्यायालय निर्णीत-ऋणी को उसके द्वारा वाद के दौरान किए गए या डिक्री पारित होने के बाद किए गए निमार्ण कार्य को हटाकर खाली स्थान का कब्जा देने का आदेश दे सकता है, परन्तु जहां निर्माण-कार्य वाद संस्थित होने के पहले के हैं, तो उन्हें ध्वस्त कर हटाने का आदेश नहीं दे सकता। वह केवल निर्णीत-ऋणी को वहां से हटाकर भूमि व भवन का कब्जा डिक्रीदार को दे सकता है। परन्तु इन दोनों ही स्थितियों में न्यायालय कब्जे का परिदान करने (देने) का आदेश देने से पहले निर्णीत-ऋणी को उस स्थान पर से अपना सामान / सामग्री हटाने के लिए समय देगा।

पुनरीक्षण - प्रतिवादी को वादग्रस्त परिसर किसी अन्य को पट्टे पर (किराये पर) देने से रोकने के लिए आज्ञापक व्यादेश के लिए वाद किया गया, जिसमें उक्त परिसर वादी को पट्टे पर देने का निर्देश चाहा गया। प्रतिवादी ने वादी के साथ मिलीभगत कर उस वाद में प्रतिरक्षा किए बिना वाद को डिक्रीत होने दिया। प्रार्थी ने निवेदन किया कि- पहले उसे प्रश्नगत परिसर विधि पूर्वक पट्टे पर देने के बाद प्रतिवादी (मकान मालिक) ने यह बाद डिक्रीत करवाया। निष्पादन-न्यायालय ने वादी के पक्ष में विवादग्रस्त परिसर का वास्तविक परिदान करने के लिए अधिपत्र (वारन्ट) जारी कर दिया।

प्रार्थी ने निष्पादन-कार्यवाही में वादग्रस्त परिसर का वास्तविक कब्जा वादी को दिलाने के वारंट के विरुद्ध एतराज किया। पुनरीक्षण में अभिनिर्धारित कि वारन्ट जारी करने का आदेश अवैध था और उस आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण (रिवीजन) याचिका निष्पादन कार्यवाही में के किसी परव्यक्ति (तृतीय पक्षकार) की प्रेरणा से चलने योग्य है।

निष्पादन में पुलिस की सहायता जहां डिक्रीदार कब्जा लेने के लिए पुलिस की सहायता के लिए निष्पादन-न्यायालय में आवेदन करता है, तो न्यायालय ऐसा आदेश कर सकता है।

अभिधारी को नोटिस आवश्यक नहीं- अभिधारी (occupant) को नोटिस देने की आवश्यकता कानून नहीं है, फिर भी व्यवहार कुशलता के लिए नोटिस देना वांछनीय हो सकेगा।

जब एक विभाजन-वाद के निष्पादन की कार्यवाही में न्यायालय द्वारा आधिपत्य की रिट जारी कर दी, तो निर्णीत ऋणी को कारण बताओ नोटिस देना आवश्यक नहीं है।

पर व्यक्ति (धई पार्टी) को नोटिस आवश्यक नहीं न्यायालय डिकी से आबद्ध व्यक्ति को परिसर से हटा सकता है, परन्तु ऐसी डिक्री से जो आबद्ध नहीं उस परव्यक्ति को नोटिस देने की न्यायालय को अधिकारिता नहीं है।

एक वाद में आधिपत्यधारी का आक्षेप स्थावर (अचल) सम्पत्ति के आधिपत्य के परिदान की डिक्री के निष्पादन में आधिपत्य धारी व्यक्ति द्वारा आक्षेप (एतराज) किया गया, जो उस डिक्री से बाध्य (bound) नहीं था। आदेश 21, नियम 35 की दृष्टि में उसके आवेदन पर विचार किए बिना निष्पादन न्यायालय उसे आधिपत्य-हीन (बे-कब्जा) नहीं कर सकता।

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