क्या आत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता माना जा सकता है?

Update: 2024-10-26 11:52 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र बनाम के. मीना (2016) के मामले में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या आत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) माना जा सकता है और क्या यह तलाक (Divorce) के लिए पर्याप्त आधार है।

इस फैसले में कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 13(1)(ia) के तहत "क्रूरता" (Cruelty) की व्याख्या पर गहराई से विचार किया और कई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों का उल्लेख किया।

तलाक के लिए मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) का आधार

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत मानसिक क्रूरता तलाक का आधार बन सकती है। कोर्ट ने मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) की व्याख्या करते हुए कहा कि अगर एक साथी का लगातार आचरण, धमकी या व्यवहार दूसरे साथी को मानसिक पीड़ा (Mental Agony) पहुंचाता है, तो यह क्रूरता मानी जाएगी।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या (Suicide) की धमकी देता है या ऐसा कोई प्रयास करता है, तो यह गंभीर रूप से जीवन की शांति को भंग कर सकता है और मानसिक रूप से प्रभावित कर सकता है।

इस मामले में पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया, जिससे पति पर मानसिक दबाव पड़ा। कोर्ट ने पंकज महाजन बनाम डिंपल @ काजल (2011) के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि आत्महत्या की बार-बार धमकी देना मानसिक क्रूरता का आधार हो सकता है। इस तरह की धमकियों से न केवल मानसिक शांति भंग होती है, बल्कि साथी के मन में कानूनन उलझने का डर पैदा होता है।

परिवार से अलग करने का दबाव: क्रूरता का आधार

कोर्ट ने यह भी विचार किया कि क्या पत्नी द्वारा पति को परिवार से अलग होने के लिए मजबूर करना क्रूरता मानी जा सकती है।

भारतीय समाज में सामान्य रूप से यह अपेक्षा की जाती है कि शादी के बाद बेटा अपने माता-पिता की देखभाल करेगा, खासकर जब वे उसकी आय पर निर्भर हों। इस मामले में, पत्नी का पति को माता-पिता से अलग करने का आग्रह वित्तीय स्वार्थ (Financial Motive) से प्रेरित पाया गया।

कोर्ट ने भारतीय परिवार की परंपराओं और सामाजिक मूल्यों (Social Values) पर जोर देते हुए कहा कि माता-पिता की देखभाल करना न केवल नैतिक (Moral) बल्कि कानूनी (Legal) जिम्मेदारी भी है।

विजयकुमार रामचंद्र भाटे बनाम नीला विजयकुमार भाटे (2003) के फैसले का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे अनुचित मांगें जो परिवार में अशांति फैलाती हैं, मानसिक क्रूरता मानी जा सकती हैं।

विवाहेतर संबंध (Extra-Marital Affair) के झूठे आरोप और मानसिक पीड़ा

कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि विवाहेतर संबंध (Extra-Marital Affair) के झूठे आरोप मानसिक क्रूरता के गंभीर रूप हो सकते हैं। इस मामले में पत्नी ने पति पर एक नौकरानी (Maid) के साथ संबंध होने का झूठा आरोप लगाया, हालांकि इसके समर्थन में कोई सबूत नहीं मिला।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के बेबुनियाद आरोप न केवल रिश्ते में विश्वास को नष्ट करते हैं, बल्कि पति की प्रतिष्ठा (Reputation) और मानसिक शांति को भी प्रभावित करते हैं।

इस संदर्भ में विजयकुमार रामचंद्र भाटे के मामले को दोहराते हुए कोर्ट ने कहा कि चरित्र हनन (Character Assassination) के झूठे आरोप तलाक के लिए पर्याप्त आधार हैं। ऐसे आरोपों से व्यक्ति को गहरी मानसिक पीड़ा और अपमान का सामना करना पड़ता है, जिससे वैवाहिक जीवन को बनाए रखना असंभव हो जाता है।

कोर्ट का निर्णय और तर्क (Court's Decision and Rationale)

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) को बहाल कर दिया, जो पहले फैमिली कोर्ट ने दी थी। कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास, परिवार से अलग करने की कोशिश और झूठे आरोप मानसिक क्रूरता के स्पष्ट उदाहरण हैं।

कोर्ट ने यह भी माना कि पति-पत्नी के बीच 20 साल से अधिक समय से चली आ रही दूरी को देखते हुए अब इस रिश्ते को बहाल करना उचित नहीं होगा।

नरेंद्र बनाम के. मीना मामले का फैसला मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) की कानूनी परिभाषा को और स्पष्ट करता है। यह बताता है कि आत्महत्या की धमकी, परिवार से अलग करने का अनुचित आग्रह, और झूठे आरोप मानसिक पीड़ा का कारण बन सकते हैं और तलाक के वैध आधार माने जा सकते हैं।

कोर्ट ने यह भी माना कि भारतीय समाज के सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ जाकर अनुचित मांगें करना मानसिक क्रूरता का रूप हो सकता है। इस फैसले ने मानसिक क्रूरता की परिभाषा और तलाक के अधिकारों को लेकर महत्वपूर्ण दिशानिर्देश स्थापित किए हैं

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