दूसरा विवाह हमेशा चर्चा में रहने वाला विषय है।जीवन में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है जहां लोग अपने पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरे विवाह की ओर कदम उठा लेते हैं। ऐसा अनेक उन मामलों में देखने को मिलता है जिन मामलों में पति या पत्नी अलग अलग रह रहे होते हैं तब लोग अपने जीवन को नई राह देने के लक्ष्य से दूसरा विवाह कर लेते हैं पर भारत में दूसरे विवाह को अपराध बनाया गया है।
कुछ रीति-रिवाजों को छोड़कर सभी लोगों को यह हिदायत दी गई है कि भारत में पति और पत्नी के जीवित रहते हुए बगैर वैध तलाक हुए दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा विवाह किया जाता है तो यह दंडनीय अपराध है।
विवाह का मामला पर्सनल लॉ से जुड़ा हुआ है। पर्सनल लॉ ऐसा कानून है जो लोगों के व्यक्तिगत मामलों में लागू होता है। यह कानून धर्म या समुदाय का कानून होता है जो लोगों के व्यक्तिगत मामले में उन्हें दिया गया है। भारत में सामान्य रूप से हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लोग निवास करते हैं।सिख बौद्ध जैन को हिंदू धर्म का ही हिस्सा माना गया है। मुसलमान और ईसाई समाज को अलग धर्म माना गया है। हिंदू धर्म के लिए हिंदू विवाह 1955 है और मुसलमान धर्म के लोगों के लिए उनका अपना पर्सनल लॉ है।
क्या है दूसरे विवाह पर कानून
एक पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करना भारतीय दंड संहिता 1860 का 45 के अंतर्गत धारा 494 दूसरे विवाह के संबंध में उल्लेख करती है। दंड सहिंता की यह धारा दूसरे विवाह को दंडनीय अपराध बनाती है। इस धारा के अंतर्गत दूसरा विवाह करने पर 7 वर्ष तक के कारावास की अवधि का दंड दिया जा सकता है।
भारत में विवाह दो प्रकार से होते हैं। एक विवाह पर्सनल लॉ के अंतर्गत होता है और दूसरा विवाह विशेष विवाह अधिनियम, 1956 के अंतर्गत होता है। इन दोनों ही कानूनों में दूसरे विवाह को दंडनीय बनाया गया है। जैसे कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 17 दूसरे विवाह के संबंध में दंड का उल्लेख करती है। यह धारा स्पष्ट करती है कि जब भी कोई व्यक्ति जिसका पति या पत्नी जीवित है उसके जीवन काल में कोई दूसरा विवाह कर लेता है तब उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का दोषी माना जाएगा।
इसी प्रकार विशेष विवाह अधिनियम की धारा 44 दूसरे विवाह को दंड के रूप में उल्लेखित करती है। अगर किन्ही व्यक्ति ने विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत शादी की है और ऐसी शादी के बाद कोई दूसरा विवाह कर लेता है तब उसे धारा 494 के अंतर्गत दंडित किया जाएगा।
यहां यह ध्यान देना चाहिए कि दूसरे विवाह के मामले में दंड का प्रावधान कुछ रूढ़ि और प्रथा के अंतर्गत है।अगर किसी समुदाय या धर्म में दूसरे विवाह को मान्यता है तब यह धारा लागू नहीं होती। जैसे मुसलमान समाज में दूसरे विवाह को विधि मान्य विवाह माना गया है इसलिए मुसलमानों के संबंध में यह धारा लागू नहीं होती है।
यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि दूसरे विवाह को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने क्रूरता जरूर माना है, पति द्वारा दूसरा विवाह किया जाता है तब उसकी पत्नी के प्रति ऐसा दूसरा विवाह क्रूरता होगा और ऐसी क्रूरता के लिए उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत भी 7 वर्ष तक के कारावास के दंड का प्रावधान है इसलिए दूसरे विवाह के दंड से मुसलमान धर्म के लोग भी नहीं बच सकते।
कौन कर सकता है शिकायत
धारा 494 को अलग रूप दिया गया है। इस धारा के अंतर्गत भले ही 7 वर्ष के कारावास के दंड का उल्लेख हो फिर भी इस धारा को संज्ञेय बनाया गया है। असंज्ञेय होने का अर्थ यह है कि इस धारा के अंतर्गत पुलिस थाने से सीधे एफआईआर दर्ज नहीं करवाई जा सकती और व्यक्ति की गिरफ्तारी भी नहीं होती है क्योंकि यह अपराध असंज्ञेय है इस अपराध को शिकायतकर्ता परिवाद के तौर पर प्रस्तुत करता है।
जब भी कोई दूसरा विवाह किया जाता है तब पीड़ित पक्षकार केवल पति या पत्नी ही होगी कोई दूसरा व्यक्ति इसकी शिकायत नहीं कर सकता। जैसे कि यदि किसी पुरुष ने उसकी पत्नी के जीवित रहते हैं दूसरा विवाह कर लिया है तब उसकी पहली पत्नी ऐसे दूसरे विवाह के विरुद्ध उसके पति की शिकायत परिवाद के माध्यम से मजिस्ट्रेट के समक्ष कर सकती है पर कोई दूसरा व्यक्ति इसकी शिकायत नहीं कर सकता।
क्या विवाह मान्य होता है
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या कभी भी पहला पति या पत्नी के जीवित होते हुए दूसरा विवाह करना कानून की नजर में मान्य होता है।इसका सीधा सा जवाब यह है कि ऐसा विवाह किसी भी सूरत में मान्य नहीं होता है।
अगर ऐसा विवाह किया जाता है तब वह सिरे से शून्य हो जाता है और उसे कोई वैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं होती है पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे मामले में पत्नी के प्रति उदारता बरतते हुए उसे भरण पोषण का अधिकारी माना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई भी पत्नी भरण पोषण मांगने की अधिकारी है भले ही उसका विवाह कानून द्वारा मान्य नहीं हो।ऐसी स्थिति में दूसरी पत्नी भी अपने पति से भरण-पोषण तो मांग ही सकती है और यही नहीं बल्कि जो बच्चे जन्म लेते हैं ऐसे बच्चे भी पिता की संपत्ति में अधिकारी होते हैं और उन बच्चों को अवैध संतान नहीं माना जाता है। उन बच्चों को सभी वह अधिकार प्राप्त होते हैं जो एक वैध विवाह से होने वाले बच्चों को प्राप्त होते हैं।
क्या पति और पत्नी की सहमति से दूसरा विवाह किया जा सकता है
इस मामले से जुड़ा हुआ दूसरा प्रश्न यह भी है कि क्या पहले पति या पत्नी की सहमति से दूसरा विवाह किया जा सकता है।
जैसे कि किसी व्यक्ति की पत्नी जीवित है और वह दूसरा विवाह कर लेता है क्या उसकी जीवित पत्नी ऐसे विवाह को करने की मान्यता दे देती है तब उसका विवाह वैध हो जाता है। यह बात ठीक नहीं है दूसरा विवाह किसी भी सूरत में वैध नहीं होता है भले ही पहली पत्नी या पति इसके लिए अपनी सहमति दे दे।
ऐसा विवाह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत दंडनीय ही होगा और पीड़ित पक्षकार किसी भी समय ऐसे अपराध के संबंध में मजिस्ट्रेट को संज्ञान दे सकता है। यहां पर यह ध्यान रखना चाहिए कि पीड़ित पक्षकार केवल मजिस्ट्रेट को संज्ञान दे सकता है थाने से पुलिस अधिकारी इसके संबंध में एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं।
ऐसी शिकायत करने के लिए किसी परिसीमा की भी कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी समय ऐसी शिकायत की जा सकती है भले ही ऐसा विवाह 10 वर्ष पूर्व किया गया हो इसकी शिकायत 10 वर्ष बाद भी की जा सकती है और व्यक्ति को आरोपी पाए जाने पर न्यायालय द्वारा दंडित किया जाता है।
इस प्रकार दूसरे विवाह को दंडनीय अपराध बनाया गया है जिन लोगों पर दूसरे विवाह से संबंधित धारा लागू नहीं होती है उन्हें क्रूरता से संबंधित धारा में आरोपी बनाया जा सकता है क्योंकि दूसरा विवाह एक प्रकार से क्रूरता ही है।