धारा 18 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: किराया न्यायाधिकरण का क्षेत्राधिकार

Update: 2025-04-01 14:47 GMT
धारा 18 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: किराया न्यायाधिकरण का क्षेत्राधिकार

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के तहत, किराया संबंधी विवादों (Rent Disputes) को सुलझाने के लिए किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) को विशिष्ट अधिकार (Exclusive Jurisdiction) दिए गए हैं।

धारा 18 (Section 18) यह स्पष्ट करता है कि केवल किराया न्यायाधिकरण को इन मामलों की सुनवाई करने का अधिकार होगा और अन्य किसी दीवानी न्यायालय (Civil Court) को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा।

केवल किराया न्यायाधिकरण को अधिकार (Exclusive Authority of Rent Tribunal)

धारा 18(1) यह स्पष्ट करता है कि इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों (Areas to which this Act extends) में मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के बीच किसी भी प्रकार के विवाद (Dispute) को सुलझाने का अधिकार केवल किराया न्यायाधिकरण को होगा।

इसका मतलब यह है:

• कोई भी पक्ष सीधे दीवानी न्यायालय (Civil Court) में मुकदमा (Suit) दायर नहीं कर सकता।

• मकान मालिक और किरायेदार से जुड़े विवादों का निपटारा केवल किराया न्यायाधिकरण के माध्यम से किया जाएगा।

• अधिनियम के तहत दायर की गई याचिकाओं (Petitions) से जुड़े सभी विषयों को किराया न्यायाधिकरण ही सुनेगा और निर्णय देगा।

विशेष मामलों में अन्य विधियों का पालन (Applicability of Other Laws in Certain Cases)

हालांकि, कुछ मामलों में किराया न्यायाधिकरण को अन्य कानूनों का भी ध्यान रखना होगा।

यदि याचिका ऐसे मामलों से संबंधित है जिन पर अध्याय II और III (Chapter II and III) के प्रावधान लागू नहीं होते, तो न्यायाधिकरण को निम्नलिखित कानूनों का अनुसरण करना होगा:

1. संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882)

2. भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872)

3. कोई अन्य विधि (Any Other Substantive Law), जो उस विवाद पर लागू हो सकती है।

इसका अर्थ यह है कि यदि किराया न्यायाधिकरण के समक्ष कोई ऐसा मामला आता है, जिसमें विशेष रूप से इस अधिनियम के कुछ प्रावधान लागू नहीं होते, तो वह अन्य प्रासंगिक कानूनों के अनुसार मामले का निपटारा करेगा, जैसे कि अगर मामला दीवानी न्यायालय में होता, तो वह कैसे निर्णय लेता।

विशेष कानूनों के तहत आने वाले मामलों में किराया न्यायाधिकरण का कोई अधिकार नहीं (No Jurisdiction in Special Cases)

किराया न्यायाधिकरण के अधिकार कुछ विशेष मामलों में सीमित हैं।

धारा 18 में यह स्पष्ट किया गया कि यदि विवाद निम्नलिखित अधिनियमों के अंतर्गत आता है, तो किराया न्यायाधिकरण इसे सुनने के लिए अधिकृत नहीं होगा:

1. राजस्थान सार्वजनिक परिसरों से अनधिकृत निवासियों को बेदखल करने का अधिनियम, 1964 (Rajasthan Public Premises (Eviction of Unauthorized Occupants) Act, 1964)

2. राजस्थान परिसरों के अधिग्रहण और बेदखली संबंधी अध्यादेश, 1949 (Rajasthan Premises (Requisition and Eviction) Ordinance, 1949)

इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई मामला सरकारी भवनों या विशेष अधिग्रहित परिसरों (Government or Requisitioned Properties) से संबंधित है, तो उसे किराया न्यायाधिकरण के बजाय संबंधित सरकारी अधिकारियों या अन्य न्यायालयों द्वारा सुना जाएगा।

अनुपस्थित किराये की वसूली के मामलों में प्रक्रिया (Procedure for Recovery of Unpaid Rent - Section 18(2))

यदि कोई मकान मालिक केवल बकाया किराया (Unpaid Rent) या किराये की बकाया राशि (Arrears of Rent) की वसूली के लिए याचिका दायर करता है, तो इस याचिका के लिए धारा 14 (Section 14) में वर्णित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।

उदाहरण:

अगर किसी किरायेदार ने पिछले 6 महीने से किराया नहीं दिया है और मकान मालिक केवल बकाया किराया प्राप्त करना चाहता है, तो वह किराया न्यायाधिकरण में धारा 14 के तहत याचिका दायर करेगा। न्यायाधिकरण उसी प्रक्रिया का पालन करेगा, जैसा कि धारा 14 में निर्धारित किया गया है।

स्वामित्व प्राप्त करने की याचिकाओं में समयसीमा (Time Schedule for Possession Recovery - Section 18(3))

यदि कोई याचिका किराये की संपत्ति के कब्जे (Possession) को वापस लेने से संबंधित है और उस संपत्ति पर अध्याय II और III (Chapter II and III) के प्रावधान लागू नहीं होते, तो ऐसी याचिकाओं पर धारा 15 (Section 15) में दी गई प्रक्रिया लागू होगी।

उदाहरण:

यदि कोई मकान मालिक यह दावा करता है कि किरायेदार ने किराये की संपत्ति के उपयोग के नियमों का उल्लंघन किया है और अब उसे संपत्ति खाली करनी होगी, तो वह धारा 15 के तहत याचिका दायर करेगा और न्यायाधिकरण उस धारा में निर्दिष्ट प्रक्रिया का पालन करेगा।

याचिका दायर करने का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction for Filing a Petition - Section 18(4))

किराया न्यायाधिकरण के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार उस न्यायाधिकरण को होगा, जिसके क्षेत्राधिकार में वह संपत्ति स्थित है।

इसका मतलब यह हुआ:

• यदि किसी संपत्ति का विवाद जयपुर में स्थित है, तो जयपुर के किराया न्यायाधिकरण में ही याचिका दायर की जाएगी।

• यदि कोई संपत्ति जोधपुर में है, तो जोधपुर के किराया न्यायाधिकरण में मामला दायर किया जाएगा।

• किसी भी अन्य शहर या कस्बे में भी यही नियम लागू होगा।

इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि विवाद से जुड़े गवाहों (Witnesses), साक्ष्यों (Evidence) और अन्य दस्तावेजों को आसानी से प्रस्तुत किया जा सके और न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके।

धारा 18 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 के अंतर्गत किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।

इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

• अन्य किसी भी कानून के बावजूद (Notwithstanding Any Other Law), केवल किराया न्यायाधिकरण को मकान मालिक और किरायेदार के विवादों को सुलझाने का अधिकार होगा।

• यदि कोई मामला विशेष कानूनों, जैसे राजस्थान सार्वजनिक परिसरों से अनधिकृत बेदखली अधिनियम, 1964, के अंतर्गत आता है, तो किराया न्यायाधिकरण उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

• बकाया किराये (Unpaid Rent) की वसूली और किराये की संपत्ति का कब्जा वापस लेने से संबंधित याचिकाओं के लिए क्रमशः धारा 14 और धारा 15 के प्रावधानों का पालन किया जाएगा।

• याचिका केवल उस न्यायाधिकरण में दायर की जा सकती है, जहां संपत्ति स्थित है।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि किराये से जुड़े विवादों का न्यायिक समाधान तेज, पारदर्शी और प्रभावी तरीके से किया जाए, जिससे दोनों पक्षों के हित सुरक्षित रह सकें।

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