क्या Section 37 Appeal में अदालत Arbitral Award की स्वतंत्र समीक्षा कर सकती है या केवल Section 34 तक सीमित है?
सुप्रीम कोर्ट ने Bombay Slum Redevelopment Corporation Pvt. Ltd. v. Samir Narain Bhojwani (2024 INSC 478) में एक अहम प्रश्न पर विचार किया: क्या Section 37 of the Arbitration and Conciliation Act, 1996 के तहत अपील सुनने वाला Appellate Court किसी मामले को वापस (Remand) Section 34 Court को भेज सकता है?
यह मुद्दा इस बात से जुड़ा है कि Arbitration प्रक्रिया (Arbitration Process) में अदालतों की भूमिका कितनी सीमित है और अपीलीय अदालत (Appellate Court) किस सीमा तक दखल दे सकती है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने MMTC Ltd. v. Vedanta Ltd. (2019), UHL Power Co. Ltd. v. State of Himachal Pradesh (2022) और Konkan Railway Corporation Ltd. v. Chenab Bridge Project Undertaking (2023) जैसे महत्वपूर्ण फैसलों पर भरोसा किया।
Section 34 के तहत अदालत का अधिकार (Jurisdiction under Section 34)
Section 34 Arbitration Act के अंतर्गत वह प्रावधान है जिसके तहत कोई पक्ष Arbitral Award (निर्णय) को चुनौती दे सकता है। परंतु इस अधिकार की सीमा बहुत संकीर्ण है। अदालत को Arbitral Tribunal (निर्णायक मंडल) के फैसले पर अपील करने का अधिकार नहीं है।
अदालत केवल उन्हीं आधारों पर Award को रद्द कर सकती है जब उसमें Patent Illegality (स्पष्ट गैरकानूनीपन) हो, या Award Public Policy of India (भारत की सार्वजनिक नीति) के विरुद्ध हो, या फिर Natural Justice (प्राकृतिक न्याय) के सिद्धांतों का उल्लंघन हो।
इसका मतलब यह है कि Section 34 Court तथ्य (Facts) और सबूत (Evidence) को दोबारा परखने वाली अदालत नहीं है, बल्कि केवल निगरानी (Supervisory) की भूमिका निभाती है।
Section 37 के तहत अपीलीय अधिकार (Appellate Powers under Section 37)
Section 37 Arbitration Act के तहत Section 34 Court के आदेशों के खिलाफ अपील की जा सकती है। परंतु सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि Appellate Court का अधिकार Section 34 Court से भी अधिक सीमित है।
MMTC Ltd. v. Vedanta Ltd. (2019) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Section 37 Appeal में अदालत स्वतंत्र रूप से Award की समीक्षा (Independent Assessment) नहीं कर सकती। उसे केवल यह देखना है कि Section 34 Court ने अपने अधिकारों का सही प्रयोग किया या नहीं।
इसी तरह UHL Power Co. Ltd. (2022) में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Section 37 का अधिकार केवल यह जांचना है कि Section 34 Court ने कानून की सही व्याख्या की या नहीं।
इस प्रकार, Section 37 Appeal अदालत का दायरा बहुत संकुचित (Narrow) है।
Remand का प्रश्न (The Question of Remand)
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या Section 37 के तहत High Court का Division Bench Section 34 Court को मामला फिर से सुनने के लिए भेज सकता है (Remand कर सकता है)।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Arbitration Act में Code of Civil Procedure (CPC) लागू नहीं होता। Section 19(1) में साफ लिखा है कि Arbitral Tribunal CPC से बंधा नहीं है। पर इसका यह अर्थ नहीं कि Appellate Court पूरी तरह से Remand देने में असमर्थ है।
कोर्ट ने कहा कि Remand का अधिकार केवल Exceptional Circumstances (अत्यंत असाधारण परिस्थितियों) में ही प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए:
1. जब Section 34 Court ने मामले को बिना Merit देखे ही खारिज कर दिया हो।
2. जब Section 34 Petition बिना Notice दिए ही निपटा दिया गया हो।
3. जब कोई पक्षकार मर चुका हो और उसके कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Heirs) को शामिल न किया गया हो।
इन परिस्थितियों के अलावा Appellate Court को खुद ही मामले का निपटारा करना चाहिए।
विधायी मंशा (Legislative Intent)
Arbitration Act, 1996 का मूल उद्देश्य यह है कि Arbitration प्रक्रिया तेज, न्यायपूर्ण और कम से कम न्यायिक दखल (Minimal Judicial Interference) वाली हो। 2015 के संशोधन (Amendments) का भी यही उद्देश्य था कि देरी कम हो और Arbitration को अधिक प्रभावी बनाया जाए।
यदि Appellate Courts बार-बार Remand देंगे तो पूरा उद्देश्य विफल हो जाएगा क्योंकि प्रक्रिया और लंबी हो जाएगी।
पूर्ववर्ती निर्णयों से मार्गदर्शन (Precedential Guidance)
Konkan Railway Corporation Ltd. (2023) ने स्पष्ट किया कि Section 37 का अधिकार Section 34 जितना ही सीमित है।
UHL Power Co. Ltd. (2022) ने भी कहा कि Section 37 केवल उन्हीं आधारों पर हस्तक्षेप कर सकता है जो Section 34 में मान्य हैं, जैसे Patent Illegality और Public Policy।
इसलिए Remand का उपयोग केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष (Supreme Court's Conclusion)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में Single Judge ने पहले से ही बहुत विस्तृत (Detailed) आदेश दिया था, जिसमें सभी मुद्दों पर विचार किया गया था। इसलिए Division Bench को खुद ही Appeal पर निर्णय लेना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि Section 37 के तहत Remand का अधिकार है, परंतु यह केवल अपवादस्वरूप (Exceptionally) ही प्रयोग किया जा सकता है। सामान्य मामलों में यह अनुमति नहीं है।
व्यापक महत्व (Broader Implications)
यह निर्णय Arbitration की स्वतंत्रता और अंतिमता (Finality) को मजबूत करता है। यह Appellate Courts को यह संदेश देता है कि वे बिना कारण Remand न दें। Arbitration को लंबी मुकदमेबाजी में बदलना इस कानून की भावना के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Section 37 के तहत Remand की शक्ति मौजूद है, लेकिन इसका प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए। यह निर्णय Arbitration कानून में संतुलन स्थापित करता है न्याय सुनिश्चित करना और साथ ही Arbitration को एक तेज और प्रभावी विवाद समाधान प्रणाली बनाए रखना।