क्या विधायकों को उनके कार्यकाल के दौरान वकील के रूप में प्रैक्टिस करने से रोका जा सकता है?
अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ के मामले में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया कि क्या निर्वाचित प्रतिनिधि, जैसे संसद सदस्य (MPs) और विधान सभा सदस्य (MLAs), अपने पद पर रहते हुए वकालत कर सकते हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह की दोहरी भूमिकाओं से हितों का टकराव (Conflict of Interest) और पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) होता है।
इस लेख में अदालत द्वारा जांचे गए प्रावधानों (Provisions), महत्वपूर्ण निर्णयों (Judgments), और मुख्य मुद्दे पर चर्चा की जाएगी—क्या विधायकों को उनके कार्यकाल के दौरान वकील के रूप में अभ्यास करने से रोका जा सकता है।
मुख्य मुद्दा और संवैधानिक प्रावधान (The Core Issue and Constitutional Provisions)
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या विधायकों (MPs, MLAs, और MLCs) को वकील के रूप में अभ्यास करने से रोका जा सकता है। यह सवाल विशेष रूप से बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 (Rule 49) के तहत उठाया गया, जो वकीलों को अन्य रोजगार (Employment) लेने से रोकता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विधायक का पद एक पूर्णकालिक जिम्मेदारी है और यह वकील के कर्तव्यों के साथ संघर्ष पैदा करता है, जिससे यह अनुचित हो जाता है कि विधायक अपने पद के दौरान वकालत करें।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 का विश्लेषण (Analysis of Rule 49 of the Bar Council of India Rules)
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 के तहत पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारियों (Full-time Salaried Employees) को वकील के रूप में अभ्यास करने से रोका जाता है। हालांकि, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि विधायकों को पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं माना जा सकता।
विधायकों को भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से वेतन मिलता है, लेकिन उनके और सरकार के बीच कोई औपचारिक नियोक्ता-कर्मचारी (Employer-Employee) संबंध नहीं है। वे सार्वजनिक सेवक (Public Servants) होते हैं जिनकी विशिष्ट जिम्मेदारियाँ होती हैं, लेकिन यह उन्हें सरकार के कर्मचारियों के समान नहीं बनाता, जैसा कि नियम 49 के तहत परिभाषित है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि नियम 49 उन कर्मचारियों पर लागू होता है जो ऐसी भूमिकाओं में कार्यरत होते हैं जिनमें पूर्णकालिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। चूंकि विधायक इस श्रेणी में नहीं आते, इसलिए यह नियम उन पर लागू नहीं होता है।
पूर्व निर्णय और कानूनी मिसालें (Previous Judgments and Legal Precedents)
अदालत ने कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया, जैसे डॉ. हनीराज एल. चुलानी बनाम महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल के मामले में, जिसमें पेशेवरों को दोहरी भूमिकाएँ निभाने से रोकने पर चर्चा की गई थी, जैसे कि चिकित्सा पेशेवर (Medical Professional) होते हुए वकालत करना। हालांकि, विधायकों के मामले में, अदालत ने यह माना कि कोई नियम उन्हें वकालत करने से नहीं रोकता।
एम. करुणानिधि बनाम भारत संघ के मामले में, अदालत ने इस पर चर्चा की कि क्या सार्वजनिक सेवक (Public Servant) या निर्वाचित अधिकारी (Elected Officials) सरकार की "सेवा या वेतन" (Service or Pay of the Government) में माने जा सकते हैं। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि हालांकि विधायकों को वेतन मिलता है, उनके और सरकार के बीच कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है। इसलिए, नियम 49 को उन पर लागू नहीं किया जा सकता।
हितों का टकराव और पेशेवर कदाचार (Conflict of Interest and Professional Misconduct)
याचिकाकर्ता का एक प्रमुख तर्क यह था कि विधायक वकील के रूप में अभ्यास करते समय हितों के टकराव (Conflict of Interest) का सामना कर सकते हैं, खासकर अगर वे ऐसे मामलों में क्लाइंट का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें सरकार या वे कानून शामिल होते हैं जिन्हें उन्होंने खुद बनाया हो।
अदालत ने यह स्वीकार किया कि ऐसे मामलों में चिंताएँ वाजिब हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि क्या किसी विधायक का कानूनी अभ्यास पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) की श्रेणी में आता है, यह हर मामले के आधार पर तय किया जाना चाहिए। केवल इस आधार पर कि व्यक्ति विधायक और वकील दोनों भूमिकाएँ निभा रहा है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसने कदाचार किया है।
अदालत ने यह भी बताया कि पेशेवर कदाचार और हितों के टकराव का नियमन अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (Advocates Act, 1961) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए नियमों के तहत किया जाता है। यदि किसी विधायक की कार्रवाई इन नियमों का उल्लंघन करती है, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने अंततः यह फैसला दिया कि कोई भी कानूनी प्रावधान स्पष्ट रूप से विधायकों को वकील के रूप में अभ्यास करने से नहीं रोकता है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम 49 विधायकों पर लागू नहीं होते क्योंकि वे पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होते।
अदालत ने यह भी जोर दिया कि जहां हितों के टकराव या पेशेवर कदाचार के उदाहरण हो सकते हैं, उन्हें सामान्य रूप से नहीं बल्कि विशिष्ट मामलों के आधार पर जांचा जाना चाहिए।
इसलिए, याचिकाकर्ता द्वारा विधायकों को वकालत से रोकने के लिए मांगी गई राहत अदालत ने अस्वीकार कर दी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन किया कि विधायकों को तब तक वकालत करने की अनुमति है जब तक कि पेशेवर कदाचार के ठोस सबूत न हों।