क्या बिना किसी अपराध का आरोपी बनाए किसी व्यक्ति पर LOC लगाना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है?

Update: 2025-02-01 11:45 GMT
क्या बिना किसी अपराध का आरोपी बनाए किसी व्यक्ति पर LOC लगाना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है?

Look Out Circular (LOC) भारत में एक कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) है, जिसका उपयोग अधिकारियों द्वारा उन व्यक्तियों की यात्रा (Travel) रोकने के लिए किया जाता है, जो किसी आपराधिक जांच (Criminal Investigation) में शामिल होते हैं।

राहुल सुराना बनाम Serious Fraud Investigation Office (SFIO) मामले में, मद्रास हाईकोर्ट ने एक LOC की वैधता (Validity) की जांच की, जिसे राहुल सुराना के खिलाफ जारी किया गया था।

उन्होंने तर्क दिया कि यह उनके यात्रा करने के मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Travel) का उल्लंघन करता है, खासकर जब उन्हें किसी भी अपराध (Crime) में औपचारिक रूप से आरोपी (Formally Charged) नहीं बनाया गया था।

यह लेख इस मामले में न्यायालय (Court) द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों (Key Decisions) और LOC से संबंधित कानूनी प्रावधानों (Legal Provisions) की व्याख्या करता है।

LOC से संबंधित कानूनी ढांचा (Legal Framework Governing LOCs)

भारत में LOC को मुख्य रूप से गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) द्वारा जारी कार्यकारी निर्देशों (Executive Instructions) के तहत नियंत्रित किया जाता है।

इनमें 5 सितंबर 1979, 27 दिसंबर 2000 और 27 अक्टूबर 2010 को जारी कार्यालय ज्ञापन (Office Memoranda) शामिल हैं। ये दस्तावेज यह निर्धारित करते हैं कि LOC को कौन जारी कर सकता है और यह कितने समय तक वैध (Valid) रहेगा।

LOC जारी करने के लिए आवश्यक शर्तें (Criteria for Issuance of LOCs)

दिल्ली हाईकोर्ट ने Sumer Singh Salkan बनाम Assistant Director & Ors. मामले में स्पष्ट किया कि LOC केवल उन्हीं मामलों में जारी किया जा सकता है जहां आरोपी (Accused) जानबूझकर गिरफ्तारी (Arrest) से बच रहा हो या बार-बार अदालत में पेश नहीं हो रहा हो।

LOC जारी करने से पहले जांच अधिकारी (Investigating Officer) को एक लिखित अनुरोध (Written Request) देना होता है और इसे वरिष्ठ अधिकारी (Senior Officer) की मंजूरी (Approval) मिलनी चाहिए। LOC का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति को जांच (Investigation) में सहयोग करने या अदालत (Court) के समक्ष पेश होने के लिए मजबूर करना है।

LOC पर न्यायालय की व्याख्या (Judicial Interpretation of LOCs)

कार्थी पी. चिदंबरम बनाम Bureau of Immigration मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने LOC के दुरुपयोग (Misuse) को लेकर चिंता जताई थी।

अदालत ने कहा था कि LOC एक दंडात्मक (Punitive) नहीं बल्कि एक प्रक्रिया (Procedure) है, जिसका उपयोग केवल तब किया जाना चाहिए जब इसके लिए पर्याप्त कारण (Sufficient Reason) मौजूद हों। अदालत ने यह भी कहा कि LOC को मनमाने तरीके (Arbitrary Manner) से जारी नहीं किया जाना चाहिए।

राहुल सुराना मामले का विश्लेषण (Analysis of Rahul Surana Case)

राहुल सुराना बनाम SFIO मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने जांच की कि क्या सुराना के खिलाफ LOC जारी करना उचित (Justified) था। सुराना का तर्क था कि उनका किसी भी आपराधिक गतिविधि (Criminal Activity) से कोई संबंध नहीं है और उनके खिलाफ LOC जारी करना अवैध (Illegal) है।

SFIO का कहना था कि चूंकि सुराना से जुड़ी कंपनियों में वित्तीय अनियमितताओं (Financial Irregularities) की जांच चल रही है, इसलिए LOC जरूरी है।

अदालत ने पाया कि LOC की वैधता समाप्त (Expired) हो चुकी थी और इसे बढ़ाने के लिए कोई ठोस प्रमाण (Concrete Evidence) प्रस्तुत नहीं किया गया था। नियमों के अनुसार, LOC आमतौर पर एक वर्ष के लिए वैध होता है, जब तक कि इसे बढ़ाने के लिए उचित औचित्य (Justification) नहीं दिया जाता।

अदालत ने यह भी नोट किया कि सुराना के खिलाफ कोई आरोपपत्र (Charge Sheet) दायर नहीं किया गया था, और उन्हें 'फ्लाइट रिस्क' (Flight Risk - भागने की संभावना) मानने का कोई आधार (Basis) नहीं था।

मौलिक अधिकार और LOC (Fundamental Rights and LOCs)

यात्रा करने का अधिकार (Right to Travel) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) का हिस्सा है।

Maneka Gandhi बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यात्रा पर प्रतिबंध (Travel Restriction) केवल तभी लगाया जा सकता है जब यह उचित (Reasonable) और विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Procedure Established by Law) के अनुरूप हो।

सुराना मामले में, अदालत ने माना कि उचित औचित्य के बिना यात्रा पर रोक लगाना उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन (Violation) है। यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि राज्य (State) को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का अधिकार (Authority) है, लेकिन उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) का सम्मान भी करना चाहिए।

LOC पर विभिन्न न्यायिक दृष्टिकोण (Comparative Judicial Views on LOCs)

इस मामले में अदालत ने S.Martin बनाम Deputy Commissioner of Police और C. Sivasangaran बनाम Foreigner Regional Registration Officer के मामलों का भी उल्लेख किया, जिनमें अदालतों ने LOC को अवैध घोषित (Declared Illegal) कर दिया था क्योंकि उनके लिए कोई पर्याप्त आधार (Sufficient Basis) नहीं था।

ये फैसले बताते हैं कि LOC केवल एक एहतियाती उपाय (Precautionary Measure) के रूप में जारी नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए ठोस कारण (Concrete Reason) होने चाहिए।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी स्पष्टीकरण (Corrigendum Issued by the Ministry of Home Affairs)

गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने अगस्त 2021 में एक स्पष्टीकरण (Corrigendum) जारी किया, जिसमें कहा गया कि LOC तब तक वैध रहेगा जब तक उसे हटाने (Deletion) का अनुरोध (Request) प्राप्त नहीं होता।

लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि LOC का विस्तार (Extension) स्वतः (Automatically) नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए ठोस प्रमाण (Solid Evidence) प्रस्तुत करना आवश्यक है।

राहुल सुराना बनाम Serious Fraud Investigation Office मामला राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) के बीच संतुलन (Balance) स्थापित करने के सवाल को उठाता है।

यह दोहराता है कि LOC जैसे जबरन उपाय (Coercive Measures) को सावधानीपूर्वक (Cautiously) और ठोस आधार (Strong Basis) पर जारी किया जाना चाहिए। यह मामला न्यायपालिका (Judiciary) की उस महत्वपूर्ण भूमिका (Significant Role) को भी दर्शाता है, जहां वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Fundamental Rights) करती है।

इस फैसले ने स्पष्ट किया कि राज्य को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का अधिकार (Right to Maintain Law and Order) है, लेकिन उसे नागरिकों की स्वतंत्रता का भी सम्मान करना चाहिए।

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