क्या अवैध विवाह से जन्मे बच्चों को अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल सकता है?

Update: 2025-07-04 15:56 GMT

हिंदू कानून में विवाह और संपत्ति से जुड़ी कानूनी पृष्ठभूमि सुप्रीम कोर्ट ने Revanasiddappa बनाम Mallikarjun (2023) के फैसले में यह महत्वपूर्ण सवाल तय किया कि क्या ऐसे बच्चे जो अवैध (Void) या रद्दयोग्य (Voidable) विवाह से जन्मे हैं, अपने माता-पिता की संयुक्त या पैतृक संपत्ति (Ancestral/Joint Hindu Family Property) में अधिकार पा सकते हैं। यह विवाद विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 16 (Section 16) और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act) की व्याख्या से जुड़ा हुआ है।

वैधता की कानूनी कल्पना (Legal Fiction of Legitimacy)

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 (Section 16) यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई विवाह शून्य (Void – जो कानूनन वैध नहीं है) या रद्दयोग्य (Voidable – जिसे रद्द किया जा सकता है) घोषित हो, तब भी उस विवाह से जन्मे बच्चे वैध (Legitimate) माने जाएंगे। यह एक Legal Fiction (कानूनी कल्पना) है, जिसका उद्देश्य यह है कि माता-पिता के वैवाहिक संबंध में कानूनी दोष होने से बच्चे के अधिकारों पर कोई प्रभाव न पड़े। लेकिन इसी धारा की उपधारा (3) यह कहती है कि ऐसे बच्चे केवल अपने माता या पिता की संपत्ति में ही अधिकार पा सकते हैं, किसी अन्य की संपत्ति में नहीं।

धारा 16(3) की व्याख्या और सीमाएं (Interpretation and Limits of Section 16(3))

मुख्य प्रश्न यह था कि क्या धारा 16(3) में उल्लिखित “माता-पिता की संपत्ति” में पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) शामिल है या नहीं? यानी क्या ऐसे बच्चे उस संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं जो उनके पिता को उनके पूर्वजों से मिली थी? कोर्ट को यह तय करना था कि क्या “संपत्ति” शब्द में वह हिस्सा भी शामिल है जो उनके माता-पिता को संयुक्त परिवार से मिल सकता है।

संयुक्त हिंदू परिवार और कॉपार्सनरी (Joint Hindu Family and Coparcenary)

Coparcenary (संजुक्त स्वामित्व वाला पारिवारिक ढांचा) हिंदू कानून में वह समूह होता है जिसमें एक पुरुष सदस्य और उसके तीन पीढ़ियों तक के पुरुष वंशज जन्म से ही पारिवारिक संपत्ति में अधिकार पाते हैं। हालांकि 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को भी इसमें बराबरी का अधिकार दिया गया। लेकिन void या voidable विवाह से जन्मे बच्चों को जन्म से ऐसा अधिकार नहीं मिलता क्योंकि वे Coparceners नहीं माने जाते।

कानूनी वैधता का मतलब स्वाभाविक सदस्यता नहीं (Legal Legitimacy ≠ Coparcenary Membership)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे बच्चे कानून द्वारा वैध माने जरूर जाते हैं, लेकिन यह उन्हें Coparcenary का सदस्य नहीं बनाता। Coparcenary में अधिकार जन्म से ही मिलता है, केवल वैधता से नहीं। यदि ऐसे बच्चों को जन्म से ही संपत्ति का अधिकार दे दिया जाए, तो यह पूरे पारिवारिक ढांचे को असंतुलित कर सकता है क्योंकि संयुक्त परिवार में हिस्सेदारी जन्म और मृत्यु के आधार पर बदलती रहती है।

माता-पिता के हिस्से को अलग संपत्ति मानना (Parent's Share as Separate Property)

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब किसी संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन (Partition) होता है या मृत्यु के समय Notional Partition (काल्पनिक विभाजन) की कल्पना की जाती है, तब उस समय माता या पिता को जो हिस्सा मिलता है, वह उनकी स्वतंत्र संपत्ति (Separate Property) बन जाती है। उस हिस्से में ऐसे बच्चे भी उत्तराधिकारी बन सकते हैं, लेकिन केवल माता-पिता की मृत्यु के बाद। उनके जीवनकाल में ऐसे बच्चे हिस्सा नहीं मांग सकते।

पूर्ववर्ती फैसलों से भिन्न दृष्टिकोण (Departure from Earlier Judgments)

इस फैसले ने Jinia Keotin बनाम Kumar Sitaram Manjhi और Bharatha Matha बनाम Vijaya Renganathan जैसे पुराने फैसलों से भिन्न दृष्टिकोण अपनाया। पहले इन मामलों में कोर्ट ने ऐसे बच्चों को किसी भी प्रकार की संयुक्त संपत्ति में अधिकार से वंचित कर दिया था। लेकिन अब कोर्ट ने Gurupad v. Hirabai, Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma और Kalliani Amma v. K. Devi जैसे निर्णयों के आधार पर अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया।

काल्पनिक विभाजन की अवधारणा (Doctrine of Notional Partition)

Notional Partition एक कानूनी कल्पना है जिसमें यह माना जाता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके हिस्से की गणना की जाती है मानो संपत्ति का विभाजन उसी समय हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे विभाजन के बाद जो हिस्सा माता या पिता को प्राप्त होता है, वह उनकी व्यक्तिगत संपत्ति बन जाती है और उस पर ऐसे बच्चों का उत्तराधिकार हो सकता है।

संवैधानिक मूल्य और व्यक्तिगत कानूनों का संतुलन (Balancing Constitutional Values and Personal Law)

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) के तहत सभी बच्चों को सम्मान (Dignity) और समान अवसर मिलना चाहिए। इसलिए ऐसे बच्चों को उनके माता-पिता की व्यक्तिगत संपत्ति में अधिकार देना उनके सम्मान और सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। लेकिन उन्हें Coparcenary सदस्य नहीं मानना ही उचित रहेगा, ताकि पारिवारिक ढांचे में असंतुलन न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि void या voidable विवाह से जन्मे बच्चे अपने माता या पिता की उस संपत्ति में अधिकार पा सकते हैं जो उन्हें संयुक्त परिवार से प्राप्त हुई हो, बशर्ते वह संपत्ति विभाजित होकर व्यक्तिगत (Separated and Individual) संपत्ति बन गई हो। यानी ऐसे बच्चों को केवल अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उस हिस्से में अधिकार मिलेगा, लेकिन वे जीवनकाल में हिस्सा मांगने के हकदार नहीं होंगे।

यह निर्णय इस बात का संतुलन है कि कानून की दृष्टि में सभी बच्चे समान माने जाएं, लेकिन साथ ही हिंदू संयुक्त परिवार की पारंपरिक व्यवस्था भी बनी रहे।

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