क्या सरकार द्वारा देय सभी बकायों की वसूली 'बकाया भू-राजस्व' की तरह हो सकती है? – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 256 और 257

Update: 2025-06-30 11:18 GMT

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में यह सुनिश्चित किया गया है कि राज्य सरकार को देय विभिन्न प्रकार की धनराशियों की वसूली भू-राजस्व (Land Revenue) की तरह की जा सके। इसके लिए धाराएँ 256 और 257 विशेष रूप से यह अधिकार प्रदान करती हैं कि सरकार या उसके अधिकारियों को किसी भी प्रकार की राशि, चाहे वह टैक्स हो, फीस हो, जुर्माना हो या ठेका सम्बंधित राशि हो, उसे भू-राजस्व की तरह वसूल किया जा सके। इस लेख में इन दोनों धाराओं का सरल हिन्दी में विवरण प्रस्तुत है।

धारा 256 – विविध (Miscellaneous) राजस्व और अन्य धनराशियों की वसूली (Recovery of Miscellaneous Revenue and Other Moneys)

धारा 256 के अनुसार, निम्नलिखित सभी प्रकार की धनराशियाँ राज्य सरकार द्वारा उसी तरह से वसूली जा सकती हैं जैसे कोई भू-राजस्व का बकाया वसूला जाता है। चाहे वह भूमि से संबंधित हो या अन्य सरकारी सेवाओं से।

(a) ऐसे सभी पैसे जो किसी अन्य कानून या इस अधिनियम द्वारा 'बकाया राजस्व' की तरह वसूले जाने योग्य घोषित किए गए हों:

उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी योजना से सहायता प्राप्त करता है और बाद में उसकी शर्तों का उल्लंघन करता है, तो वह राशि भू-राजस्व की तरह वसूल की जा सकती है, चाहे वह राजस्व सीधे भूमि से संबंधित न हो।

(b) ऐसी सभी धनराशियाँ जो सरकार को किसी शुल्क, टैक्स, ड्यूटी, चार्ज या अन्य देयता के रूप में दी जानी हैं:

चाहे कानून या नियम ने उन्हें भू-राजस्व के रूप में वसूलने का निर्देश न भी दिया हो, फिर भी वे भू-राजस्व की तरह वसूल की जा सकती हैं।

उदाहरण: नगरपालिका द्वारा लगाए गए जलकर या सफाई कर का भुगतान न करने पर भी वसूली उसी प्रक्रिया से की जा सकती है जैसे कि भूमि कर की जाती है।

(c) सरकार या किसी सरकारी विभाग या अधिकारी को जुर्माने, हर्जाने, फीस, मुआवज़े, चराई शुल्क, जंगल या मत्स्य पालन अधिकार आदि के बदले में देय धनराशियाँ:

यदि किसी व्यक्ति को जलस्रोत उपयोग के लिए शुल्क लगाया गया है, या वन उपज बेचने पर सरकार को भाग देना है, तो उसकी वसूली भी इसी धारा के अंतर्गत की जा सकती है।

(d) सभी किराये, प्रीमियम, रॉयल्टी, फीस आदि जो भूमि, पानी या अन्य अचल संपत्ति के उपयोग के लिए देय हैं:

सरकार की संपत्ति चाहे स्थायी हो या अस्थायी, उसके उपयोग के बदले में सरकार को देय सभी राशि भू-राजस्व की तरह वसूल की जा सकती है।

उदाहरण: यदि कोई उद्योग सरकारी भूमि पर चल रहा है और उसने तय किराया नहीं चुकाया, तो सरकार वह राशि नीलामी या कुर्की से वसूल सकती है।

(e) किसी भी प्रकार की लीज़, अनुबंध या अनुदान से संबंधित देय धनराशियाँ:

अगर किसी ठेकेदार ने ठेके के तहत कुछ राशि सरकार को देनी है और भुगतान नहीं किया, तो सरकार उस राशि की वसूली भू-राजस्व की तरह कर सकती है, बशर्ते कि अनुबंध में यह प्रावधान हो।

इस धारा का उद्देश्य:

धारा 256 सरकार को एक मजबूत उपकरण देती है जिससे वह बिना सामान्य मुकदमेबाज़ी के लंबी प्रक्रिया में गए, सीधे भू-राजस्व की तरह हर प्रकार की राशि वसूल कर सके। इससे सरकारी बकाया राशि जल्दी और प्रभावी ढंग से वसूल हो जाती है।

धारा 257 – ज़मानतदार (Surety) से राशि की वसूली (Recovery of Moneys from Sureties)

इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की गारंटी देता है (जैसे कि किसी ठेके में या अनुबंध में), और मुख्य व्यक्ति (Principal) द्वारा भुगतान नहीं किया जाता, तो सरकार सीधे उस ज़मानतदार से भी भुगतान वसूल कर सकती है, मानो वह राशि भू-राजस्व की तरह बकाया हो।

इसका प्रभाव यह है कि:

• गारंटी देने वाला व्यक्ति (Surety) पूरी तरह उत्तरदायी बन जाता है यदि मुख्य व्यक्ति भुगतान नहीं करता।

• ज़मानत पत्र (Security Bond) में जो शर्तें लिखी हैं, उनके अनुसार यदि गारंटी लेने वाले की देनदारी बनती है, तो उसे सरकार भू-राजस्व वसूली की प्रक्रिया से वसूल सकती है।

• यह प्रक्रिया तेज़, प्रभावी और सीधे कुर्की, नीलामी जैसे उपायों से लागू की जा सकती है।

उदाहरण:

रमेश ने अपने मित्र सुरेश के ठेके के लिए ₹50,000 की ज़मानत दी। सुरेश ने सरकारी शुल्क नहीं चुकाया। अब सरकार रमेश से यह ₹50,000 उसी तरह वसूल सकती है जैसे वह भूमि कर वसूलती है।

धाराएँ 256 और 257 राजस्थान सरकार को मजबूत वैधानिक अधिकार देती हैं जिससे वह हर प्रकार की देनदारी चाहे वह टैक्स, फीस, मुआवज़ा, किराया, रॉयल्टी, या अनुबंध आधारित राशि हो को कुशलता से भू-राजस्व की तरह वसूल सके। यह प्रावधान सार्वजनिक धन की सुरक्षा और सरकारी कार्यों में वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसके साथ ही, जो लोग ज़मानत देते हैं, उनके लिए यह चेतावनी है कि वे बिना विचार किए किसी के लिए ज़मानत न दें, क्योंकि सरकार उन्हें सीधे उत्तरदायी मानकर वसूली की कार्रवाई कर सकती है।

इस प्रकार, यह अधिनियम राज्य प्रशासन को वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है और नागरिकों को भी यह जिम्मेदारी याद दिलाता है कि यदि वे सरकार से कोई लाभ या सुविधा लेते हैं, तो उसकी भरपाई समय पर करना भी उनकी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है।

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