अपील दाख़िल करने की प्रक्रिया और अपील की त्वरित समाप्ति : धारा 423 से 425 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

परिचय
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अपील (Appeal) एक ऐसा अधिकार है जिसके ज़रिए दोषी ठहराया गया व्यक्ति या राज्य सरकार किसी फ़ैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकती है। ऐसे कई मामलों में जब आरोपी व्यक्ति निचली अदालत के फ़ैसले से असहमत होता है, तो वह ऊपरी अदालत में अपनी बात रख सकता है और न्याय की पुनरावृत्ति की माँग कर सकता है।
लेकिन इस अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए कुछ निश्चित प्रक्रिया और नियम बनाए गए हैं, जो 'भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023' (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। इसी कड़ी में धारा 423 से 425 में अपील करने के तरीके और उसकी त्वरित (Summary) समाप्ति के नियमों का उल्लेख किया गया है।
इससे पहले हमने धारा 415 से 422 तक यह समझा कि किन-किन मामलों में अपील की जा सकती है, कौन कर सकता है, और किस अदालत में अपील होगी। अब हम यह जानेंगे कि अपील करने की विधि क्या है, जेल में बंद व्यक्ति कैसे अपील कर सकता है, और किन परिस्थितियों में अपील बिना लंबी सुनवाई के समाप्त की जा सकती है।
धारा 423: अपील कैसे की जाए (Petition of Appeal)
धारा 423 के अनुसार, हर अपील एक लिखित प्रार्थना-पत्र (Petition) के रूप में दाख़िल की जानी चाहिए। इस अपील-पत्र को दोषी व्यक्ति स्वयं या उसके वकील के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। इस पत्र के साथ, अदालत के उस निर्णय या आदेश की एक प्रति अनिवार्य रूप से लगाई जानी चाहिए जिसके विरुद्ध अपील की जा रही है।
हालांकि, अगर अदालत चाहे तो वह इस नियम से छूट दे सकती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ग्रामीण क्षेत्र के अभियुक्त को निर्णय की प्रति नहीं मिल पाई और समय की दृष्टि से अपील अत्यावश्यक है, तो न्यायालय उसे अपील दाख़िल करने की अनुमति दे सकती है बगैर प्रति के।
यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि अपीलीय अदालत के पास पूरा संदर्भ हो और वह जान सके कि मूल फ़ैसले में क्या कहा गया था।
धारा 424: जेल में बंद अभियुक्त की अपील (Procedure when Appellant is in Jail)
यह धारा जेल में बंद उन अभियुक्तों के लिए है जो स्वयं अपील करना चाहते हैं। ऐसे अभियुक्त जेल अधीक्षक (Jail Superintendent) को अपना अपील-पत्र और ज़रूरी कागज़ात सौंप सकते हैं। जेल अधीक्षक का कर्तव्य होता है कि वह इन दस्तावेजों को समय रहते संबंधित अपीलीय अदालत तक पहुँचा दे।
यह व्यवस्था इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि केवल जेल में होने की वजह से किसी अभियुक्त का न्याय से वंचित न होना पड़े।
उदाहरण के लिए, यदि किसी अभियुक्त को निचली अदालत ने 5 वर्ष की सज़ा सुनाई है, और वह जेल में बंद है, तो वह जेल अधीक्षक को अपील दे सकता है। जेल अधीक्षक को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह बिना किसी देरी के इसे संबंधित सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय तक भेजे।
धारा 425: अपील की त्वरित समाप्ति (Summary Dismissal of Appeal)
धारा 425 के अनुसार, अगर अपीलीय न्यायालय यह पाता है कि अपील में हस्तक्षेप करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है, तो वह उस अपील को प्रारंभिक स्तर (Summary Stage) पर ही खारिज कर सकता है। लेकिन इस खंड में कुछ विशेष सुरक्षा उपाय भी हैं:
(1) अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर
धारा 423 के अंतर्गत दाख़िल की गई किसी भी अपील को बिना यह सुनिश्चित किए कि अपीलकर्ता या उसका वकील अपनी बात रखने का अवसर पा चुका है, खारिज नहीं किया जा सकता।
(2) जेल से भेजी गई अपील
धारा 424 के अंतर्गत दाख़िल की गई अपील को भी खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि अपीलकर्ता को अपनी बात रखने का अवसर न मिल जाए। हाँ, अगर न्यायालय को लगे कि अपील केवल समय नष्ट करने के लिए की गई है (Frivolous Appeal), या अगर आरोपी को पेश करना अत्यधिक कठिन और अनुपयुक्त होगा, तो अपील को बिना सुनवाई के भी खारिज किया जा सकता है।
(3) समय सीमा का पालन
कोई भी अपील जब तक निर्धारित समय सीमा के भीतर दाख़िल नहीं की गई हो, तब तक उसे खारिज नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, अगर किसी दोषी को 30 दिन की अवधि मिली है अपील करने के लिए और वह अपील समय रहते नहीं करता, तो उसकी अपील स्वतः ही खारिज हो सकती है।
(4) रिकॉर्ड मंगवाने का अधिकार
अपील को खारिज करने से पहले अदालत अगर चाहे तो मुकदमे की पूरी फाइल (Record) मँगवा सकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल कागज़ी अपील-पत्र देखकर ही निर्णय न लिया जाए, बल्कि मुकदमे की पूरी परिस्थितियों का भी मूल्यांकन हो सके।
(5) कारणों का उल्लेख आवश्यक
अगर सत्र न्यायालय (Court of Session) या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) अपील को खारिज करता है, तो उसे लिखित रूप में कारण बताने होंगे कि क्यों अपील में कोई दम नहीं था। इससे अपीलकर्ता को यह समझने में मदद मिलती है कि उसकी अपील क्यों असफल रही।
(6) एक और अपील पर विचार
अगर किसी अभियुक्त ने जेल से अपील की थी और वह धारा 424 के अंतर्गत खारिज कर दी गई, लेकिन उसके वकील ने धारा 423 के तहत अलग से अपील की थी जिस पर विचार नहीं किया गया, तो अदालत बाद में न्यायहित (In the interests of justice) में उस दूसरी अपील पर विचार कर सकती है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति तकनीकी त्रुटियों के कारण अपने अपील के अधिकार से वंचित न हो।
पूर्व धाराओं से संबंध
इन धाराओं को समझने के लिए पहले की धारा 415 से 422 का अध्ययन करना आवश्यक है, जिनमें बताया गया है कि कौन अपील कर सकता है, किन मामलों में अपील का अधिकार नहीं है (जैसे धारा 416 और 417), और किन मामलों में राज्य सरकार या केंद्र सरकार अपील कर सकती है (धारा 418 और 419)। धारा 420 में विशेष मामलों में सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार, और धारा 421 में सामूहिक दोषसिद्धियों में सभी दोषियों को अपील का अधिकार बताया गया है। धारा 422 में यह बताया गया है कि सत्र न्यायालय में अपील कैसे सुनी जाती है।
इन सभी के बाद धारा 423 से 425 यह स्पष्ट करती हैं कि अपील की प्रक्रिया कैसे की जाती है, जेल में बंद अभियुक्त क्या करें, और न्यायालय अपील को प्रारंभिक स्तर पर कब खारिज कर सकता है।
धारा 423 से 425 में अपील की संपूर्ण प्रक्रिया का सरल और प्रभावी विवरण दिया गया है। यह न केवल अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि अदालत को यह भी अधिकार देता है कि वह समय और संसाधनों की बर्बादी रोक सके। विशेष रूप से यह प्रावधान उन लोगों के लिए लाभकारी हैं जो या तो जेल में हैं या जिनके पास सीमित संसाधन हैं। लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि न्यायालय जल्दबाज़ी में बिना अपीलकर्ता को सुने निर्णय न ले।
यह प्रक्रिया न्याय की पारदर्शिता और त्वरितता दोनों को बनाए रखने में सहायक है, और इसलिए हर कानून विद्यार्थी, अधिवक्ता और जागरूक नागरिक को इसका ज्ञान अवश्य होना चाहिए।