राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम की धारा 32 की उपधाराएं (4) से (9) भाग 2

Update: 2025-04-17 15:30 GMT
राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम की धारा 32 की उपधाराएं (4) से (9) भाग 2

पिछले लेख (भाग 1) में हमने राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act) की धारा 31 और धारा 32 की उपधाराएं (1) से (3) को सरल हिन्दी में समझा। अब इस लेख (भाग 2) में हम धारा 32 की शेष उपधाराओं (4) से (9) तक की व्याख्या करेंगे।

इन प्रावधानों में मुख्य रूप से Co-Mortgagee, Sub-Mortgagee, Redemption और Foreclosure से जुड़े मामलों में Court Fee किस प्रकार से निर्धारित की जाएगी, यह स्पष्ट किया गया है।

धारा 32(4): सह-बंधकधारक द्वारा वाद (Section 32(4): Suit by Co-Mortgagee)

जब एक से अधिक व्यक्ति किसी संपत्ति के Co-Mortgagee (सह-बंधकधारक) होते हैं, और उन में से कोई एक व्यक्ति अपने और बाकी बंधकधारकों के लाभ के लिए वाद करता है, तो Court Fee पूरे बंधक पर मांगी गई राशि के अनुसार तय की जाएगी।

यदि कोई सह-बंधकधारक, जो वाद में प्रतिवादी (Defendant) के रूप में जोड़ा गया है, अपने लिखित उत्तर (Written Statement) में यह दावा करता है कि उसे पूरे बंधक पर वादी द्वारा मांगी गई राशि से अधिक रकम चाहिए, तो उसे केवल उस अतिरिक्त राशि पर Court Fee देनी होगी जो उसने अपने उत्तर में मांगी है।

Explanation (व्याख्या): यह उपधारा केवल Court Fee से जुड़ी है, इससे Limitation Law (अवधिपूरण कानून) पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

उदाहरण (Illustration): एक संपत्ति को ₹5,00,000 पर बंधक रखा गया था। तीन Co-Mortgagee हैं – राम, श्याम और घनश्याम। राम बाकी दोनों के लिए वाद करता है और ₹5,00,000 की मांग करता है। Court Fee ₹5,00,000 पर लगेगी। लेकिन अगर श्याम (जो प्रतिवादी है) अपने Written Statement में कहता है कि उसका दावा ₹6,00,000 है, तो श्याम को ₹1,00,000 (अंतर की राशि) पर Court Fee देनी होगी।

धारा 32(5)(a): उप-बंधकधारक द्वारा वाद – बंधकदार की हिस्सेदारी की बिक्री (Section 32(5)(a): Sub-Mortgagee's Suit for Sale of Mortgagee's Interest)

अगर कोई Sub-Mortgagee (उप-बंधकधारक) उस धन की वसूली के लिए वाद करता है, जो उसने बंधक पर उधार दिया था, और वह वाद बंधकदार (Mortgagee) की संपत्ति में हिस्सेदारी की बिक्री के लिए है, तो Court Fee उस राशि के आधार पर तय की जाएगी जो Sub-Mortgagee ने मांगी है।

उदाहरण (Illustration): विनीत ने अमित से ₹2,00,000 उधार लेकर अपने मकान को बंधक रखा। फिर अमित ने यह बंधक राकेश के पास Sub-Mortgage कर दिया। अब अगर राकेश अपना पैसा वसूलने के लिए अमित की हिस्सेदारी बेचवाने का वाद करता है, तो Court Fee ₹2,00,000 के आधार पर लगेगी।

धारा 32(5)(b): उप-बंधकधारक द्वारा वाद – मूल बंधक की संपत्ति की बिक्री (Section 32(5)(b): Sub-Mortgagee's Suit for Sale of Property Mortgaged to Original Mortgagee)

अगर Sub-Mortgagee यह मांग करता है कि वह संपत्ति बेची जाए जो मूल बंधक (Original Mortgage) में गिरवी रखी गई थी, और मूल उधारकर्ता (Original Mortgagor) को भी प्रतिवादी बनाया गया है, तो Court Fee पूरी बंधक राशि (Original Mortgage Amount) के आधार पर तय की जाएगी, जो Sub-Mortgagee को Sub-Mortgage के तहत मिली थी।

उदाहरण (Illustration): वही मामला मान लें, लेकिन इस बार राकेश सीधे उस मकान की बिक्री की मांग करता है जो विनीत ने अमित को गिरवी रखा था, और वह विनीत को भी पार्टी बनाता है। अब Court Fee उस पूरी बंधक राशि पर लगेगी जो राकेश को मिलनी है – यानी ₹2,00,000।

धारा 32(6): जब अन्य बंधकधारक पक्षकार हो (Section 32(6): Holder of Prior or Subsequent Mortgage or Charge Made Party)

अगर किसी वाद में Prior (पहले) या Subsequent (बाद के) Mortgage या Charge धारक को पक्षकार (Party) बनाया जाता है — चाहे वह वाद Co-Mortgagee का हो (32(4)) या Sub-Mortgagee का हो (32(5)) — तो धारा 32(2) और 32(3) के नियम ऐसे व्यक्तियों पर भी उसी प्रकार लागू होंगे।

Mutatis Mutandis (म्यूटैटिस म्यूटैन्डिस) का मतलब है – जैसा कि परिस्थिति के अनुसार लागू किया जा सकता है।

उदाहरण (Illustration): अगर किसी Co-Mortgagee के वाद में किसी बाद के बंधकधारक को पक्षकार बनाया गया है और वह अपने Written Statement में कुछ राशि की मांग करता है, तो उसे धारा 32(2) के अनुसार Court Fee देनी होगी।

धारा 32(7): जब मूल बंधकधारक Written Statement में अधिक दावा करे (Section 32(7): Original Mortgagee Claims More in Written Statement)

अगर कोई Original Mortgagee किसी ऐसे वाद में पक्षकार होता है जिसमें उपधारा 32(5)(b) लागू होती है, और वह अपने Written Statement में बंधक पर वादी से अधिक राशि की मांग करता है, तो धारा 32(4) के नियम उस पर भी लागू होंगे।

इसका मतलब यह है कि उसे अतिरिक्त दावे की राशि पर Court Fee देनी होगी।

उदाहरण (Illustration): Sub-Mortgagee ने ₹3,00,000 की मांग की, लेकिन Original Mortgagee ने Written Statement में कहा कि बंधक पर उसका दावा ₹4,00,000 है। तो उसे ₹1,00,000 के अंतर पर Court Fee देनी होगी।

धारा 32(8): मोचन वाद (Section 32(8): Suit for Redemption of Mortgage)

अगर कोई व्यक्ति बंधक को छुड़ाने (Redemption) के लिए वाद करता है, तो Court Fee उस राशि के आधार पर लगेगी जितनी राशि उसने plaint (वाद पत्र) में बंधक पर बकाया बताई है।

पहली शर्त (First Proviso): अगर वादी ने कम राशि पर Court Fee दी है, लेकिन बाद में पता चलता है कि वास्तविक बकाया ज्यादा है, तो कोर्ट कोई डिक्री (Decree) पारित नहीं करेगी जब तक कि वादी शेष Court Fee न चुका दे।

दूसरी शर्त (Second Proviso): अगर बंधक Usufructuary Mortgage या Anomalous Mortgage है और वादी मोचन के साथ-साथ लाभ के हिसाब (Surplus Profit Accounts) की भी मांग करता है, तो Court Fee मोचन और हिसाब – दोनों के लिए अलग-अलग लगेगी।

उदाहरण (Illustration): श्याम ने ₹4,00,000 की मोचन राशि बताकर Court Fee दी, लेकिन वास्तव में बकाया ₹5,00,000 निकला। तो श्याम को ₹1,00,000 की और Fee देनी होगी तभी डिक्री दी जा सकेगी।

धारा 32(9): बंधक का जब्तीकरण या विक्रय की पुष्टि (Section 32(9): Foreclosure or Declaration of Sale as Absolute)

अगर बंधकधारक यह वाद करता है कि बंधक की संपत्ति जब्त कर ली जाए (Foreclosure), या वह संपत्ति उसके नाम पर पूरी तरह से स्थायी रूप से स्थानांतरित मानी जाए (Declaration of Sale as Absolute), तो Court Fee उस रकम के अनुसार लगेगी जो वादी ने Principal और Interest के रूप में मांगी है।

उदाहरण (Illustration): बंधकधारक ने ₹3,00,000 मूलधन और ₹50,000 ब्याज मांगा है। तो Court Fee ₹3,50,000 के आधार पर लगेगी।

धारा 32 की उपधाराएं (4) से (9) उन जटिल परिस्थितियों को सरलता से स्पष्ट करती हैं जब एक से अधिक बंधकधारक, उप-बंधकधारक, या मोचन संबंधी पक्षकार वाद में शामिल होते हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति अपने दावे के अनुरूप ही Court Fee अदा करे और किसी पर भी अनावश्यक वित्तीय बोझ न पड़े।

इन नियमों से न्यायिक प्रक्रिया को न्यायसंगत, पारदर्शी और सुलभ बनाया गया है। Rajasthan Court Fees Act की यह विशेषता है कि यह प्रत्येक संभावित परिस्थिति का विस्तृत समाधान प्रदान करता है।

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