BNSS 2023 की धारा 166 और 167 का विश्लेषण: स्थानीय विवादों का समाधान और जांच की प्रक्रिया
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस संहिता में कई प्रावधान शामिल हैं, जो शांति बनाए रखने और विवादों को उचित तरीके से सुलझाने के लिए बनाए गए हैं।
धारा 166 और 167 ऐसे ही प्रावधानों में से हैं, जो स्थानीय विवादों के समाधान और जांच की प्रक्रिया से संबंधित हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार के विवाद, जो शांति भंग कर सकते हैं, उन्हें उचित और निष्पक्ष तरीके से निपटाया जा सके।
धारा 166 और 167, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत, स्थानीय विवादों को सुलझाने और न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण उपकरण हैं।
धारा 166, भूमि या जल के उपयोग के अधिकार से जुड़े विवादों को सुलझाने की प्रक्रिया प्रदान करती है, जबकि धारा 167, स्थानीय जांच और उसके खर्चों का निपटारा सुनिश्चित करती है। ये प्रावधान शांति बनाए रखने और कानून के शासन को मजबूत करने में सहायक हैं।
धारा 164 और 165 का संक्षिप्त अवलोकन
धारा 164 सार्वजनिक शांति भंग होने की स्थिति में मजिस्ट्रेट को स्थावर संपत्ति के संबंध में हस्तक्षेप करने का अधिकार देती है, और धारा 165 उस स्थिति को संभालने के लिए अटैचमेंट और रिसीवर नियुक्त करने की शक्ति प्रदान करती है। इन दोनों प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण पहले Live Law Hindi में किया जा चुका है।
धारा 166: उपयोग के अधिकार (Right of User) से जुड़े विवादों का निपटारा
धारा 166 उन स्थितियों से संबंधित है, जब किसी भूमि या जल के उपयोग के अधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न होता है, और यह विवाद शांति भंग कर सकता है। यह धारा मजिस्ट्रेट को ऐसे विवादों को सुलझाने का अधिकार देती है, जिससे शांति बनाए रखी जा सके।
मजिस्ट्रेट का आदेश और प्रक्रिया
धारा 166(1) के तहत, जब एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य जानकारी से यह विश्वास हो जाता है कि किसी भूमि या जल के उपयोग के अधिकार के संबंध में ऐसा विवाद है जो शांति भंग कर सकता है, तो वह एक लिखित आदेश जारी कर सकता है।
इस आदेश में वह अपनी संतुष्टि के आधार और संबंधित विवाद में शामिल पार्टियों को एक निश्चित तारीख और समय पर अदालत में उपस्थित होने के लिए कह सकता है। पार्टियों को अपने-अपने दावों के बारे में लिखित बयान प्रस्तुत करने के लिए भी कहा जाएगा।
स्पष्टीकरण: इस उप-धारा के लिए "भूमि या जल" की अभिव्यक्ति का वही अर्थ है जो धारा 164(2) में दिया गया है। इसका मतलब है कि यह विवाद स्थावर संपत्ति या उसके उपयोग के अधिकार से संबंधित हो सकता है।
उदाहरण: मान लीजिए कि एक गाँव में एक तालाब है, जिसे दो समूहों द्वारा उपयोग किया जाता है। एक समूह इसे केवल पशुओं को पानी पिलाने के लिए उपयोग करता है, जबकि दूसरा समूह इसे मछली पालन के लिए उपयोग करना चाहता है।
इस विवाद के कारण गाँव में तनाव है और शांति भंग हो सकती है। ऐसी स्थिति में, मजिस्ट्रेट पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर दोनों समूहों को अदालत में पेश होने के लिए बुला सकता है और उनके दावे सुन सकता है।
विवाद का समाधान
धारा 166(2) के अनुसार, मजिस्ट्रेट प्रस्तुत किए गए बयानों की समीक्षा करेगा, पार्टियों को सुनेगा, और सबूतों की जांच करेगा। वह इन सबूतों का प्रभाव देखेगा और आवश्यक समझे तो अतिरिक्त सबूत भी ले सकता है।
इसके बाद, अगर संभव हो तो, वह यह निर्णय करेगा कि विवादित अधिकार वास्तव में मौजूद है या नहीं। इस प्रक्रिया में, धारा 164 के प्रावधानों का पालन किया जाएगा।
उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण में, यदि मजिस्ट्रेट पाता है कि मछली पालन के लिए तालाब का उपयोग करना कानूनन सही नहीं है, तो वह इस अधिकार को नकार सकता है और केवल पशुओं को पानी पिलाने के लिए तालाब का उपयोग जारी रखने का आदेश दे सकता है।
अधिकार की सुरक्षा
धारा 166(3) के तहत, यदि मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि ऐसा अधिकार वास्तव में मौजूद है, तो वह उस अधिकार के उपयोग में किसी भी प्रकार की रुकावट पर रोक लगाने का आदेश जारी कर सकता है। इसमें, उचित मामलों में, उस अधिकार के उपयोग में किसी भी रुकावट को हटाने का आदेश भी शामिल हो सकता है।
शर्त: हालांकि, इस प्रकार का आदेश तभी जारी किया जा सकता है जब यह साबित हो कि वह अधिकार पूरे साल भर में कभी भी प्रयोग किया जा सकता है और रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उस अधिकार का उपयोग किया गया हो।
यदि वह अधिकार केवल विशेष मौसमों में या विशेष अवसरों पर प्रयोग किया जा सकता है, तो यह आवश्यक है कि उस मौसम या अवसर के दौरान वह अधिकार प्रयोग किया गया हो।
उदाहरण: अगर तालाब का उपयोग केवल गर्मी के मौसम में होता है, और रिपोर्ट प्राप्त होने के पहले उस मौसम में इसका उपयोग किया गया था, तो मजिस्ट्रेट मछली पालन के लिए तालाब के उपयोग को रोकने का आदेश जारी कर सकता है।
धारा 164 और 166 के बीच तालमेल
धारा 166(4) में यह प्रावधान है कि यदि मजिस्ट्रेट को किसी कार्यवाही के दौरान यह पता चलता है कि विवाद किसी भूमि या जल के उपयोग के अधिकार से संबंधित है, तो वह अपनी राय रिकॉर्ड करने के बाद, कार्यवाही को धारा 166 के तहत जारी रख सकता है, जैसे कि यह कार्यवाही धारा 164 के तहत शुरू हुई हो।
इसी तरह, यदि कार्यवाही धारा 166 के तहत शुरू हुई है और मजिस्ट्रेट पाता है कि मामला धारा 164 के तहत निपटाया जाना चाहिए, तो वह इस पर कार्यवाही जारी रख सकता है जैसे कि यह कार्यवाही धारा 164 के तहत शुरू हुई हो।
उदाहरण: यदि तालाब के उपयोग का विवाद बहुत जटिल हो जाता है और उसमें शांति भंग होने का खतरा होता है, तो मजिस्ट्रेट इस मामले को धारा 164 के तहत भी निपटा सकता है।
धारा 167: स्थानीय जांच और खर्चों का निपटारा
धारा 167 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब धारा 164, 165, या 166 के तहत किसी मामले में स्थानीय जांच की आवश्यकता हो, तो वह जांच उचित तरीके से की जाए और उसके खर्चों का निपटारा भी हो सके।
स्थानीय जांच की आवश्यकता
धारा 167(1) के अनुसार, जब धारा 164, 165, या 166 के तहत किसी मामले में स्थानीय जांच की आवश्यकता हो, तो जिला मजिस्ट्रेट या उप-मंडल मजिस्ट्रेट किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को इस जांच के लिए नियुक्त कर सकता है।
यह अधिकारी नियुक्त मजिस्ट्रेट को आवश्यक निर्देश भी दे सकता है और यह घोषणा कर सकता है कि जांच के लिए आवश्यक खर्च किसके द्वारा और कितना अदा किया जाएगा।
उदाहरण: अगर तालाब के उपयोग के विवाद में स्थानीय परिस्थितियों की जांच की आवश्यकता हो, तो जिला मजिस्ट्रेट एक अन्य मजिस्ट्रेट को इस जांच के लिए नियुक्त कर सकता है और यह भी तय कर सकता है कि जांच का खर्च किस समूह द्वारा वहन किया जाएगा।
जांच रिपोर्ट का महत्व
धारा 167(2) के अनुसार, नियुक्त अधिकारी द्वारा बनाई गई रिपोर्ट को मामले में साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है।
इसका मतलब है कि मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट को अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है और उसे मामले की जांच में महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
उदाहरण: यदि जांच रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि तालाब का उपयोग मछली पालन के लिए किया जा रहा है, तो यह रिपोर्ट अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है और इसके आधार पर मजिस्ट्रेट निर्णय ले सकता है।
खर्चों का निपटारा
धारा 167(3) के अनुसार, जब धारा 164, 165, या 166 के तहत किसी मामले में किसी पक्ष द्वारा खर्च किए गए खर्चे हुए हैं, तो निर्णय सुनाने वाला मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकता है कि यह खर्च कौन अदा करेगा। यह खर्च किसी एक पक्ष द्वारा, या अन्य पक्ष द्वारा या सबके द्वारा मिलकर, पूरे या आंशिक रूप में अदा किया जा सकता है।
इन खर्चों में गवाहों से संबंधित खर्च और वकीलों की फीस भी शामिल हो सकती है, जिसे अदालत उचित समझेगी।
उदाहरण: अगर तालाब के उपयोग के विवाद में किसी पक्ष ने वकील की फीस दी है और गवाहों को बुलाया है, तो मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकता है कि यह खर्च दूसरा पक्ष अदा करेगा।