मूल्यांकन पर बिक्री का समझौता : Sales of Goods Act, 1930 की धारा 9 और 10

Update: 2025-06-23 11:56 GMT

कीमत का निर्धारण (Ascertainment of Price)

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय II अनुबंध की एक और आवश्यक शर्त (Essential Condition) - कीमत (Price) - के निर्धारण से संबंधित है। धारा 9 यह बताती है कि किसी बिक्री अनुबंध में कीमत कैसे निर्धारित की जा सकती है।

धारा 9(1) के अनुसार, बिक्री अनुबंध में कीमत निम्नलिखित तीन तरीकों से तय की जा सकती है:

1. अनुबंध द्वारा निश्चित (Fixed by the Contract): यह सबसे सीधा तरीका है जहाँ खरीदार और विक्रेता स्पष्ट रूप से अनुबंध में कीमत तय करते हैं। उदाहरण के लिए, आप एक दुकान से एक फ्रिज खरीदते हैं जिसकी कीमत ₹25,000 तय की गई है।

2. उस तरीके से तय करने के लिए छोड़ दी गई हो जिस पर सहमत हुए हों (Left to be Fixed in Manner Thereby Agreed): पार्टियां कीमत को तुरंत तय नहीं करती हैं, बल्कि एक तरीका तय करती हैं जिसके द्वारा कीमत निर्धारित की जाएगी। उदाहरण के लिए, वे सहमत हो सकते हैं कि कीमत किसी विशेषज्ञ के मूल्यांकन (Valuation by an Expert) पर आधारित होगी, या बाजार मूल्य (Market Price) पर आधारित होगी जिस दिन डिलीवरी होगी।

3. पार्टियों के बीच व्यवहार के दौरान निर्धारित (Determined by the Course of Dealing Between the Parties): यह तब होता है जब खरीदार और विक्रेता के बीच पहले से ही व्यापारिक संबंध रहे हों और वे नियमित रूप से एक निश्चित तरीके से कीमत का निर्धारण करते हों। उदाहरण के लिए, यदि एक थोक विक्रेता (Wholesaler) और एक खुदरा विक्रेता (Retailer) हमेशा पिछले महीने के औसत थोक मूल्य (Average Wholesale Price) के आधार पर कीमत तय करते आए हों।

धारा 9(2) उस स्थिति को संबोधित करती है जहाँ कीमत उपरोक्त प्रावधानों के अनुसार निर्धारित नहीं की जाती है। ऐसे मामलों में, खरीदार विक्रेता को एक उचित मूल्य (Reasonable Price) का भुगतान करेगा। 'उचित मूल्य क्या है' यह एक तथ्य का प्रश्न (Question of Fact) है जो प्रत्येक विशेष मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

इसका मतलब है कि कोई निश्चित सूत्र (Fixed Formula) नहीं है, और अदालत या मध्यस्थ (Arbitrator) को प्रासंगिक कारकों (Relevant Factors) जैसे माल की गुणवत्ता (Quality), बाजार मूल्य (Market Value), डिलीवरी का समय (Time of Delivery) और अन्य व्यापारिक प्रथाओं (Trade Practices) पर विचार करना होगा।

उदाहरण के लिए, यदि आप किसी कारीगर से एक विशेष हस्तनिर्मित वस्तु (Handmade Item) बनाने का आदेश देते हैं, लेकिन कीमत पहले से तय नहीं की जाती है। वस्तु के निर्माण के बाद, कारीगर एक कीमत मांगता है। यदि आप उस कीमत से असहमत हैं, तो 'उचित मूल्य' उस विशेष वस्तु की सामग्री, श्रम और कारीगरी को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाएगा, और अन्य समान हस्तनिर्मित वस्तुओं के बाजार मूल्य को भी देखा जा सकता है।

हिलस एंड कंपनी लिमिटेड बनाम अर्फोसो लीग्रो एंड कंपनी लिमिटेड (Hillas & Co. Ltd. v. Arcos Ltd.) (1932) 147 LT 503 हालांकि यह सीधे धारा 9 का मामला नहीं है, इसने 'उचित मूल्य' के निर्धारण और अनुबंध की निश्चितता (Certainty of Contract) के महत्व पर जोर दिया। इस मामले में, अनुबंध में कुछ लकड़ी खरीदने का विकल्प था "पहले की तरह उचित मूल्य पर"।

अदालत ने फैसला सुनाया कि यह 'उचित मूल्य' पर्याप्त रूप से निश्चित था, जिसे पक्षों के पूर्व व्यापारिक व्यवहारों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता था। यह दिखाता है कि अनुबंध में कीमत का स्पष्ट रूप से उल्लेख न होने पर भी, यह अभी भी वैध हो सकता है यदि उसे निर्धारित करने का एक तरीका हो या एक 'उचित मूल्य' की अवधारणा लागू की जा सके।

मूल्यांकन पर बिक्री का समझौता (Agreement to Sell at Valuation)

धारा 10 एक विशेष परिदृश्य से संबंधित है जहाँ कीमत किसी तीसरे पक्ष के मूल्यांकन (Valuation of a Third Party) द्वारा तय की जानी होती है।

धारा 10(1) के अनुसार, जहाँ माल बेचने का समझौता इस शर्त पर होता है कि कीमत किसी तीसरे पक्ष के मूल्यांकन द्वारा तय की जाएगी, और ऐसा तीसरा पक्ष या तो ऐसा मूल्यांकन नहीं कर सकता है (Cannot Make Such Valuation) या नहीं करता है (Does Not Make Such Valuation), तो समझौता टाल दिया जाता है (Avoided)। इसका मतलब है कि यदि कीमत तय करने का सहमत तरीका विफल हो जाता है, तो पूरा अनुबंध शून्य हो जाता है।

लेकिन, एक परंतुक (Proviso) भी है: बशर्ते कि, यदि माल या उसका कोई हिस्सा खरीदार को डिलीवर कर दिया गया है (Delivered to), और उसके द्वारा विनियोजित कर लिया गया है (Appropriated by), तो खरीदार उसके लिए उचित मूल्य (Reasonable Price) का भुगतान करेगा।

यह परंतुक खरीदार को माल का लाभ उठाने की अनुमति नहीं देता है यदि वह मूल्यांकन के तरीके के विफल होने के कारण अनुबंध से बच जाता है। यदि उसने माल को स्वीकार कर लिया है और उसका उपयोग कर लिया है, तो उसे उसके लिए एक उचित मूल्य का भुगतान करना होगा।

उदाहरण के लिए, रमेश सुरेश को अपनी दुर्लभ सिक्कों का संग्रह बेचने के लिए सहमत होता है, और कीमत एक प्रसिद्ध मुद्राशास्त्री (Numismatist) द्वारा तय की जानी है। यदि मुद्राशास्त्री किसी कारणवश मूल्यांकन नहीं कर पाता है, तो समझौता टाल दिया जाएगा।

हालाँकि, यदि रमेश ने सुरेश को कुछ सिक्के पहले ही दे दिए थे और सुरेश ने उन्हें अपने संग्रह में शामिल कर लिया था (विनियोजित कर लिया था), तो सुरेश को उन सिक्कों के लिए एक उचित मूल्य का भुगतान करना होगा।

धारा 10(2) उस स्थिति को संबोधित करती है जहाँ तीसरा पक्ष विक्रेता या खरीदार की गलती (Fault) के कारण मूल्यांकन करने से रोका जाता है। ऐसे मामले में, जो पक्ष दोषी नहीं है (Party Not in Fault) वह दोषी पक्ष (Party in Fault) के खिलाफ क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा (Suit for Damages) कर सकता है।

यह उस पार्टी को दंडित करता है जिसकी लापरवाही (Negligence) या जानबूझकर कार्रवाई (Deliberate Action) के कारण मूल्यांकन नहीं हो पाता है, जिससे दूसरे पक्ष को नुकसान होता है।

उदाहरण के लिए, पिछले उदाहरण में, यदि सुरेश जानबूझकर मुद्राशास्त्री को सिक्कों का मूल्यांकन करने से रोकता है, तो रमेश सुरेश के खिलाफ क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है, क्योंकि सुरेश की गलती के कारण मूल्यांकन नहीं हो पाया और अनुबंध पूरा नहीं हो सका।

मेसन बनाम बर्क (May & Butcher Ltd v R) (1934) 2 KB 17 हालांकि यह सीधे भारतीय कानून का मामला नहीं है, यह इस सिद्धांत पर जोर देता है कि यदि अनुबंध की एक आवश्यक शर्त (जैसे कीमत) बाद में तय की जानी थी लेकिन तय नहीं हो पाई, तो अनुबंध शून्य हो सकता है।

यह दिखाता है कि जब कीमत निर्धारण का तरीका किसी तीसरे पक्ष पर निर्भर करता है, तो उस तरीके की विफलता का अनुबंध पर गंभीर परिणाम हो सकता है, जब तक कि माल पहले ही डिलीवर और विनियोजित न किया गया हो।

धारा 9 कीमत के निर्धारण के विभिन्न तरीकों को स्पष्ट करती है, जिसमें अनुबंध द्वारा स्पष्ट निर्धारण, सहमत तरीके से निर्धारण, या व्यापारिक व्यवहार के आधार पर निर्धारण शामिल है। यदि इनमें से कोई भी तरीका काम नहीं करता है, तो 'उचित मूल्य' का भुगतान किया जाता है।

धारा 10 विशेष रूप से उस स्थिति से निपटती है जहाँ एक तीसरे पक्ष का मूल्यांकन कीमत तय करने के लिए आवश्यक होता है, और यह बताती है कि ऐसे मूल्यांकन की विफलता अनुबंध को कैसे प्रभावित करती है, और यदि किसी पक्ष की गलती के कारण ऐसा होता है तो क्या उपाय उपलब्ध हैं।

Tags:    

Similar News