विदेश में किए गए अपराध पर भारत में केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना सीआरपीसी की धारा 188 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि जब वैवाहिक क्रूरता का अपराध किसी भारतीय नागरिक द्वारा भारत के बाहर किया गया हो तो ट्रायल कोर्ट को केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत आपराधिक मुकदमा नहीं चलाना चाहिए।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने धारा 188 सीआरपीसी के तहत केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के अभाव में पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
“इस मामले में यह देखा जा सकता है कि प्रथम आरोपी द्वारा किए गए कथित सभी आरोप, जो आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध को आकर्षित करते हैं, भारत के बाहर हैं। यह मामला निश्चित रूप से सीआरपीसी की धारा 188 के दायरे में आएगा। इसलिए धारा 188 सीआरपीसी के तहत पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना वर्तमान कार्यवाही गलत है।”
पति ने अपने खिलाफ दर्ज अंतिम रिपोर्ट रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि आपराधिक मुकदमा शुरू करने के लिए धारा 188 सीआरपीसी के तहत केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं ली गई। उन्होंने प्रस्तुत किया कि वैवाहिक क्रूरता के सभी आरोप तब लगाए गए, जब वास्तविक शिकायतकर्ता ऑस्ट्रेलिया में उनके साथ रह रही थी।
धारा 188 सीआरपीसी और सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण करने पर न्यायालय ने माना कि यदि अपराध का हिस्सा भारत में किया गया तो किसी भी मंजूरी की कोई आवश्यकता नहीं थी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया,
"साथ ही यदि प्रत्यक्ष कृत्यों का हिस्सा या कम से कम एक उदाहरण भारत में किए जाने का आरोप है तो ऐसे मामलों में सीआरपीसी की धारा 188 के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है।"
मामले के तथ्यों में न्यायालय ने पाया कि पति के खिलाफ आरोपों की संपूर्णता तब की गई, जब वे ऑस्ट्रेलिया में रह रहे थे। इस प्रकार, इसने माना कि पति के खिलाफ अपराध की जांच या सुनवाई केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। इस प्रकार, न्यायालय ने पति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल: डार्विन डोमिनिक बनाम केरल राज्य