नेशनल पार्क, वाइडलाइफ सेंचुरी, टाइगर रिजर्व और वन क्षेत्रों में डंप किया जा रहा था प्लास्टिक कचरा, वकील ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की

Update: 2024-06-28 05:15 GMT

वकील ने राज्य के वन क्षेत्रों, नेशनल पार्क, वाइडलाइफ सेंचुरी, टाइगर रिजर्व में कचरा और प्लास्टिक कचरे की डंपिंग के खिलाफ केरल हाईकोर्ट का रुख किया।

याचिकाकर्ता पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील और वन क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में अधिकारियों की निष्क्रियता से व्यथित है।

चीफ जस्टिस ए जे देसाई और जस्टिस वी जी अरुण की खंडपीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया। सरकारी वकील ने राज्य सरकार, राज्य पुलिस प्रमुख, वन विभाग, पर्यावरण मंत्रालय और केरल वन विकास निगम की ओर से नोटिस लिया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सरकारी वकील ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए नोटिस लिया।

अपनी जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जमा हुए अधिकांश कचरे में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक, पीईटी बोतलें, स्नैक्स और पेय पदार्थों के पैकेज शामिल हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों और वन क्षेत्रों में इस तरह के कचरे को फेंकना, खास तौर पर पर्यटकों द्वारा दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों को खतरे में डालता है।

याचिका में कहा गया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं की पहचान करने और उन्हें हटाने तथा प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विशेष कार्य बल हैं। इसमें कहा गया कि तेलंगाना के अमराबाद टाइगर रिजर्व में 01 जुलाई, 2024 से एकल उपयोग प्लास्टिक, बहु-परत प्लास्टिक और एक लीटर और उससे कम की पीईटी बोतलों पर पूर्ण प्रतिबंध है।

याचिका में यह भी बताया गया कि ओडिशा सरकार ने भी 01 अप्रैल, 2024 से नेशनल पार्क, वाइडलाइफ सेंचुरी, टाइगर रिजर्व और इको-टूरिज्म स्थलों में एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया।

याचिका में कहा गया कि प्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ते मुद्दे के बावजूद केरल में प्लास्टिक कचरे को हटाने या पुनर्चक्रित करने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। याचिका में सुझाव दिया गया कि प्लास्टिक का विभिन्न तरीकों से पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण किया जा सकता है, जब तक कि प्लास्टिक के निर्माण, उपयोग और प्रबंधन के तरीके पर पुनर्विचार न किया जाए।

याचिका में आगे कहा गया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वन क्षेत्रों में प्लास्टिक सामग्री के उपयोग पर रोक लगाने के लिए कई नियम और परिपत्र जारी किए हैं। इसमें आरोप लगाया गया कि अप्रभावी कार्यान्वयन, राज्य सरकार की ओर से कार्यकारी आदेशों की अनुपस्थिति और प्लास्टिक कूड़े के लिए अपर्याप्त दंड ने इन दिशानिर्देशों और परिपत्रों को अप्रभावी बना दिया।

याचिका में कहा गया,

"वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार, प्रतिवादी निषेध आदेश जारी करने के लिए बाध्य हैं, जिसमें उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई और ऐसे प्रतिबंधों को लागू करने के लिए प्रभावी प्रवर्तन तंत्र प्रदान करना शामिल है। विधायी जनादेश के अनुसार कार्य करने में चूक मनमाना, अनुचित और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।"

इस प्रकार याचिका में राज्य सरकार से उचित आदेश जारी करने की मांग की गई, जैसे कि राज्य में वन क्षेत्रों, नेशनल पार्क, वाइल्डलाइफ सेंचुरी और टाइगर रिजर्व में पीईटी बोतलों, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक पार्किंग सामग्री जैसे हानिकारक प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने के लिए निषेध आदेश।

याचिका में राज्य के वन क्षेत्रों, नेशनल पार्क, वाइडलाइफ सेंचुरी और टाइगर रिजर्वों से समयबद्ध तरीके से जमा प्लास्टिक कचरे को हटाने के लिए स्थायी योजना तैयार करने की भी मांग की गई।

मामले की सुनवाई 12 अगस्त, 2024 तक के लिए टाल दी गई।

केस टाइटल: एडवोकेट सुनील कुमार ए जी बनाम केरल राज्य और अन्य

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